विशिष्ट व्यक्तित्व परिचयः मणिकान्त झा, कवि (मैथिली आ हिन्दी)
फेसबुकक पर्यायवाची शब्द फुइसबुक सेहो कतेको लोक कहैत अछि, प्रसंग रहैत छैक तेहने-तेहने आ विशेषण सब भेटैत रहैत छैक ओहने-ओहने। कहल जाएत छैक जे अहाँ जेहेन दृष्टि राखब तेहेन दुनिया देखायत। आब तकबय फूसि-फटक केर वस्तु त आखिर फेसबुक केर महत्व कोना बुझि सकबैक। हँ, तखन त सच ईहो छैक जे कतेको झूट्ठा आ दंभी-अभिमानी कूकार्य एहि फेसबुक सँ होएत छैक, दोसराक ध्यानाकर्षण लेल मिथ्या-भाषण, आचार-विचार आ पैघ-पैघ बात कतेकोक मुंहें सुनि लेबैक आर अतिरंजन सँ मोन खिन्नता केँ प्राप्त करत। लेकिन सार्थक दृष्टि सँ सदैव सत्य आर उपयोगी वस्तुक खोज मे रहला सँ भेटैत अछि तत्त्वविद् आर मर्मज्ञ सज्जन, हुनकर अति विशिष्ट पहिचान, योगदान, सम्मान आदि। आइ किछु दिन मात्र भेल भेंटघांट आ आपसी देखादेखी हमरा एक गोट एहने महान चरित्र सँ दर्शन फेरो करौलक अछि। ओ थिकाह मणिकान्त झा।
पूछलियैन जे एखन कतेक साल सँ कुल कते रास रचना लिखल – किछु मोन पड़ैत अछि? कहला, “ओना तऽ consulting Civil & Structural Engineer छी। हमर अप्पन consultancy firm Builtech Consultancy Services अछि दिल्ली मे। वर्ग – आठम सऽ लेखन मे रुचि अछि। किछु कहानी लिखने रही, ओकर नन्दन मऽ पठौने रहि। मुदा प्रकाशित नैअ भऽ सकल। फेर एक साल सऽ लिखय लगलहुँ अछि। हमरा सबक अप्पन कार्य क्षेत्र मऽ बहुत व्यस्तता रहैत छैक। मुदा आब ओहि सऽ समय निकालि फेर सऽ लिखनाय शुरू कयलहुँ। हिन्दी और मैथिली दूनू मऽ, गुरु चन्द्र नाथ मिश्र ‘अमर’ ओ हमर मैथिलीक शिक्षक छलाह, सरस्वती स्कूल, दरभंगा मऽ आर हिन्दी मऽ सुमित्रा नन्दन पंत। कुल २४-२५ टा (हिन्दी आ मैथिली) मिला कऽ लिख चुकल छी।”
त आउ, मणिकान्त बाबूक किछु रचना पढी आ गर्व करी एहेन महान सोचक सन्तान पर, प्रार्थना करी ईश्वर सँ जे मिथिला सदैव आबाद रहय एहने महान सपुत सब सँः
१. बाबा, हमर गुहार
हे भोले दानी, कतेक हम कानि,
प्रभु, सुनियौ हमर गुहार यौ । प्रभु सुनियौ—
सबहक छियै अहीं पालनहार यौ। सबहक छियै—–
अहॉ छी करूणाक अवतार, लगबियौ हमरो नैया पार,
उझिलियौ भक्तिक शीतल फुहार,
बजाबियौ हमरो अपने द्वार यौ ।
हे शशिशेखर, सुनियौ हमर गुहार,
सबहक अहीं खेवनहार,
त्रिभुवनक छी अहीं सरकार,
छी हम अहींक दरश कऽ लेल बेक़रार,
हमरो लगबियौ बैतरणी पार यौ ।
हे दु:खमोचन, अहींक छथि सकंटमोचन अवतार यौ ।
अहीं छियै हमर जीवनक आधार,
व्याप्त अछि अहीं मऽ समस्त संसार यौ ।
हे रूद्रेश्वर , हिरण्याक्ष पुत्र अंधकासुर पर,
उठेलियै अहीं अप्पन हथियार,
केलियै त्रिशूल सऽ ओहि दुष्ट पर प्रहार,
त्रिपुरांतक सेहो केलियै अहीं संहार यौ ।
हे महेश्वर, अहूँक लीला अपरम्पार,
केलियैन माता काली कऽ रौद्र रूप पर,
ममता कऽ निर्मल बौछार यौ ।
हे शिव शम्भु, विदेह लेने रहथि कठोर संकल्प ,
स्वयम्वर मऽ छलैअ एकेटा विकल्प ,
जे तोड़त अहीं कऽ देल धनुष,
वियाहल जेतिह धीया वैदेही,
ओहि वीर पुरूष कऽ संग ,
अहि घोषणा सऽ सम्पूर्ण मिथिला छल दंग ।
यौ बाबा,
तोड़ि देलक अहींक धनुष महान, कतेको वीरक गुमान,
सब लाजें पड़ेलाह छोड़ि जनकपुर धाम यौ।
परशुराम कऽ छलनि, जेहि पर अभिमान,
ओकरे तोड़लाह पर बनलाह,
सिया कऽ पति भगवान श्री सिया पति राम यौ ।
—–मणि—- ११.०२.२०१७.
२. हे प्रिये
हे प्रिये, अहॉक मोन सुन्नर,
अहॉक रूप सुन्नर,
सुन्नर अछि मुस्कान,
जेना पूर्णिमा कऽ चान, यै ।
बिहुँसैय छी तऽ ठोर भऽ जाइत,
अछि अरहुल सन लाल ।
लाजे कठौत भऽ जाइत अछि,
अहॉक लाजवन्ती सन गाल, यै ।
यै,फँसि गेलाहूँ हम अहींक फॉस मऽ। यै, फँसि—-
हे मृगनयनी,
अहॉक कजरायल ऑखिक तीर,
हृदय कऽ देलक अछि चीर ।
अहॉक फहराईत कारी केशक छँटा ,
लगैत अछि जेना, भादोक घनघोर घटा ।
अहॉ कऽ मौध सन बोल,
कान लग बजैत अछि जेना,
बाबाक थान मऽ ढोल ।
अहॉक बाजैय सऽ बजैत अछि,
हमरा मोन मऽ ताशा,
जेना मिसरी सऽ बनल बताशा ।
अहॉक पायलक मधुर झनकार,
जेना सीहकैत अछि बसंती बयार ।
हे मयूरी ,अहॉक देखैत छी,
तऽ लगैत अछि झमझम,
बरसात मऽ नचैत अछि जेना मोरनी,
हमर हृदय कऽ छी अहीं चोरनी ।
अहॉक अल्हड़ चाईल,
शिकारी कऽ देखि भागैईत जेना हिरणी ।
हे प्राणेश्वरी, नैअ करू सोलह श्रृंगार,
कतोअ हमरे नजैर नैअ लागि जाय, यै ।
अहॉ बिन जिनगी ,हमर अछि उदास,
अहीं हमर जिनगीक छी अाश,
अहीं मऽ बसल अछि हमर सांस, यै ।
अहॉ बिन हमर जिनगी अछि अन्हार,
अहीं छी हमर आधार,
जेना अन्हरिया राति मऽ,
टिमटिमाईत भगजोगनी कऽ इजोत, यै ।
हे प्रियतमा, अहॉ सऽ मिलन कऽ लेल,
हम छी बेक़रार,
बीत रहल अछि मधु मासक राति,
अहॉ जूनि करू हमरा निराश, यै ।
अहींक ताकि रहल छी हम बाट,
ओहि पर नैअ लगाऊँ आब, अहॉ टाट, यै ।
पाथर खसैय आ बहैय बसात,
चाहे घनघोर अनहरिया राति,
सब किछु छोड़ि, प्रिये आऊँ नऽ,
बीत रहल अछि मिलनक राति, यै । यै, बीत—-
हे प्रेयसी, रूसू जुनि हमरा सऽ,
अहॉ हमर चान,अहींक हम चकोर, यै ।
नैअ बनू जेठक सुरूज सन कठोर,
अहॉ बिन मोन भऽ गेल अछि विभोर, यै ।
भोरूकबा मऽ चिड़ैय -चुनमुन्नी कऽ,
जेना गूँजैत अछि शोर,
हे रमणी, एतेक नैअ बनू, अहॉ निष्ठुर, यै ।
हे संगनी, आब मोन भऽ, गेल अछि बेकल,
तड़ैप रहल अछि हमर जिगर,
नैअ बनू दूतियाक अहॉ चान, यै ।
जल्दी सऽ आऊ, बेसी भाव आब नैअ अहॉ खाऊ, यै ।
अहॉ बिन आब रहल नैअ जाइत अछि,
अहॉ कऽ बिरह, आब सहल नैअ जाइत अछि, यै ।
अहॉ बिन, जेना जल बिन मांछ, बिन पातक गाछ, यै ।
जेना चिल्का बिन चिल्कोर, बिन पाइखक मोर,यै ।
यै, आऊ न राति सऽ भऽ जाइत आब भोरऽऽ ,
अहॉ हमर दीया, अहींक हम बाति,
दूनू मिलि गाबि, गीत पराति, यै ।
—मणि—- १०.०२.२०१७
श्रृंगार रसक रचना
३. माय आ बेटा
माय –
नैअ चिट्ठी, नैअ संदेश,
नैअ घुरि कऽ अयलह, अप्पन देश,
बौऊ, बसल छअ तू परदेश,
तू हमरा बिसैर गेलअह–(२)
तोरे मऽ बसल अछि प्राण ,
निकैल रहल अछि हमर जान ।
बौऊ, तू हमरा बिसैर—(२)
बेटा-
माय, तोरा हम कोना बिसरबौअ,
तू मैया पार्वती, तोहर हम गणेश गैय,
तू ही छअ हमर ब्रह्मा, विष्णु, महेश गैय ।
तू ही हमर जिनगी कऽ छँअ, उद्देश्य गैय,
तोरे कहला पर अयलहूँ परदेश, गैय ।
तोरा हम कोना —(२)
माय-
ओना तू छह बड्ड बुधियार,
खाय-पियै मऽ, रहियअ होशियार,
तोरा ओतअ नैअ छह, किओ देखिनिहार ।
बौअ रखियअ अप्पन ध्यान,
भगवती करथुन तोहर कल्याण,
हुनके पर अछि हमर आश,
नैअ करथिन ओ हमरा निराश ।
बौऊ, तू हमरा बिसैर—(२)
बेटा-
माय, तोरा हम कोना बिसरबौअ,
तोरा बिन जिनगी नैअ शेष,
बदैल गेल अछि हमर भेष,
उड़ी रहल अछि हमर केश,
भऽ गेलिओ एकदम भदेश गैअ ।
याद आबैत अछि ,
तोहर हाथक रनहुआ सोहारी,
आ’ तरल तिलकोर गैअ,
याद अबैत छी पूसक बगिया,
आ’ पंचमीक घोरजोर गैअ ।
पेट, जड़लाहा, जे नैअ कराबैय,
एतयौ बस छैअ, अप्पने सन गाम गैअ ,
तू ही हमर सुरूज ,तू ही छअँ हमर चान गैअ ,
तोरे लऽ कऽ मुँह पर, अछि मुस्कान गैअ,
तोरे सऽ ओ हमर गाम गैअ ।(२)
माय-
बौऊ , तू हमरा सऽ कियाक रूसल छह ,
तू हमरा बिन, कोना बसल छह,
घूरि कऽ आबि जाऽ गाम हौअ ,
याद करैत छथुन ,बड़का तोहर माम हौअ,
बौअ,घूरि कऽ आबि जाऽ गाम हौ (२)
बेटा-
कि कहियो माय, काज कतैक अछि ,
कोना दिन ,कोना राति कटैत अछि ।
सॉसों लैअ कऽ नैअ फ़ुरसत भटैत अछि,
नैअ खाईओ कऽ टाईम गैअ ,
कोना कऽ अबियै अखन गाम गैअ ।
तोहर बेटा छौअ बड्ड लाचार,
गाम एनाय भऽ गेलौ पहाड़ गैअ ।(२)
माय,तू हमरा बिसैर गेलअहँ ।
नैअ पठौलह तू ,कोनो सनेस गैअ,
तू हमरा बिसैर—(२)
माय-
बौऊ , काज- राज छौड़ि जल्दी सऽ
आबह गाम हौअ ।
तोरा बिन नैअ होयत अछि भोर ,
नैअ सुखैत अछि ऑखिक नोर हौअ।
बौऊ, तू हमरा बिसैर—(२)
बेटा-
बान्हि लेलियौ हम सूटकेश ,
आबैत छियौ घूरि अप्पन देश ।
नैअ होअ तू, बेसी परेशान ,
तू ही हमर भगवान गैय ।
माय,तू ही हमर भगवान —(२)
माय, तोरा हम कोना बिसरबौ (२)
—मणि— ०६.०२.२०१७
माय- बेटाक प्रसंग
३. पत्नी चालीसा —
जय जय जय पत्नी महारानी,
जय जय जय पत्नी महारानी,
कृपा करो मेरी कल्याणी,
तुम ही हो मेरी जगरानी,
तुम्हरे शरण में आये हम,
कष्ट हरो मेरी निदानी,तुम हो महादानी ।
जय जय जय पत्नी महारानी ।
कृपा करो हे महारानी—-
हे देवी, तुम हमरे हो प्रिये रानी,
तुमसे कोई नहीं बच सकता प्राणी ।
वैर करे जो तुमसे,उसे मिल जायेगा काला पानी ।
तुम्हरे भय से कौन बचाये,
जब प्रभु ने भी हार मानी,तुम हो सर्वज्ञानी ।
तुम करूणा की मेरी देवी ,
मुझसे सेवा जो करवानी,
उसके लिये तैयार ये प्राणी।
सुन लो मेरी ये गुहार,
सहने को हूँ सब अत्याचार ,
तुम्हें करता हूँ मैं अभिनन्दन ,
हे प्राण प्रिये ,तुम ही हो मेरे वन्दन ।
तुम रक्षक, काहे को डरना,
मेरा कष्ट तुम्हीं को हरना,
संकट में मुझे कौन बचाये,
आना है जब तुम्हरे ही शरणा,
तब दुनियॉ से काहे को डरना ।
दोस्त महिम भी काम ना आये,
सब कुछ है मुझे ही भरना ।
सात वचन ले लो तुम वापस ,
अकाल मृत्यु काहे को मरना ।
जीवन मेरा तुम्हीं सम्भाले,
बच्चों को तुम ही हो पाले,
घर के हो तुम ही रखवाले,
कोतवाल बन जाये साले,
सास- ससुर ही हैं मेरे देवा,साली सेवा से मिल जाये मेवा ।
ये सेवा है अद्भुत न्यारा ,ना माने वो स्वर्ग सिधारा ।
जय जय जय पत्नी महारानी—-
कृपा करो हे महारानी—-
दैत्य- पिशाच से काहे को डरना,
तुम हो उसी की बहिना,
जो भी तुम्हरे संगत में आवे,
अपने ही हाथ घर जलावे ।
तुम से बड़ा न कोई भक्षक,
तुम्हीं मेरे जीवन के रक्षक ,
भय खाये तुम से ही तक्षक ।
चरण में झुकाता हूँ आज,मैं अपनी मस्तक ,
यम भी ना दे, तुम्हरे बिन द्वार पर दस्तक ।
जय जय जय पत्नी महारानी—-
कृपा करो हे महारानी—-
तुम में है बहुत चतुराई,
ऑंखें मोती जब भर -भर आई,
इस लीला से कौन बचाये।
बाहर शेर, घर में गीदड़ सब भाई,
पत्नी के सामने पति की,
घिग्घी बन्ध जाये,
नतमस्तक होने में ही है भलाई ।
हे करूणा की देवी ,लाज रख लो आज मेरी,
नहीं तो हो जायेगी जग हँसाई ।
जय जय जय पत्नी महारानी—-
कृपा करो हे महारानी—-
–मणि– ०४.०२.२०१७
हास्य – व्यंग्य रचना