नारीक समर्पण

समर्पण

– डॅा प्रतिभा “उन्मेषा”⁠⁠⁠⁠

ram-janaki-vivahनारीक जीवन अछि समर्पण
नारीक कर्म समर्पित जीवन।

छथि उदाहरण प्रवल एहि बातक
सीता भटकथि पति संग वन-वन।।

राजाक पुत्री भए बनवासी भेली
संसारक सुख केलनि समर्पण।

पतिक वास्ते अग्नि परीक्षा दय
केलनि स्वयंके माँ धरतीके अर्पण।।

धर्म सदैव रहलनि संग हुनकर
मातु-पिताके मानके ओ रखलनि

सदिखन कर्म मे लागल रहली
कहियो नइ किछु ककरो कहलनि।।

समर्पण शब्द सम्मानित हुनकहिसS
समानार्थी भS नारी सँ जुरि गेल।

कदम-कदम पर कएल समर्पण
मुदा नारिक जन्म अकारथ भेल।।

सब माँगि रहल सतत् समर्पण
हे नारी! तूँ कर नीजके समर्पित।

देह वेश ईच्छा विश्वास ओ सम्मानके
कर्म के तूँ मूर्त रुप जगके अर्पित।।

त्याग अपन ईच्छा ओ विवेक के
बन मूरत परिहास ओ उपहासके।

पर नारी शक्ति उजागर कर आबो
सुन नव सदीक आर्त पुकारके।।

ध्वनि सुनू गुञ्जित मध्यम मध्यम
गाबि कहैछ प्रतिभा पुकारि-पुकारि।

अपन संस्कार ओ विचार नय बिसरु
निज अस्तित्वके राखू सम्हारि-सम्हारि।।

सदिखन होइछ नारीक तिरस्कार
बिसरु नइ व्यक्त केनाइ अपन विचार।

अधिकार अपन पाएब तखनहि
बनाएब जखन सम्मानक आधार।।