नव वर्ष २०१७ आर मैथिल कवि लोकनिक नव उपहार ‘कृति’

नव वर्ष पर मैथिली कवि-रचनाकारक रचनाक संकलन

नव वर्ष २०१७ केर शुभकामना मैथिली जिन्दाबाद केर समस्त पाठक लोकनि!

mithila-painting-new-yearमैथिली भाषा चौजुगी जीययवला भाषा कियैक थीक से बेर-बेर स्पष्ट करैत आबिये रहल छी, एक बेर फेर कहय मे कोनो हर्ज नहि – मिथिलाक लोक अपन विद्याबल सँ सृजनशीलता श्रृंगार करय मे विश्वक विभिन्न सभ्यता मे अपना केँ बहुत आगू रखने छथि आर मैथिली भाषा मे अवसरपर तऽ लेखन काज होइते अछि, बिना अवसरहु मैथिली लेखकक कलम रुकैत नहि अछि, अविरल लेखनधारा सँ मैथिली भाषा सदा-सदा जियैत रहल, जियैत रहत। बाल्मीकि अपन रामायण मे जहिना संकेत मे कहलैन अछि जे हनुमानजी अपहृत जानकी सँ लंका भेंट करय जाएत छथि, ओतुका अवस्था देखैत छथिन जे सब कियो सीता केँ डेराबय-धमकाबय मे लागल अछि जे कोहुना ओ रावण केँ वरण करय लेल सहमत भऽ जाएथ…. जखन कि सीता अपन नजरि रामक अनुपस्थिति मे जेना झुकौलनि से धरि कहियो नहि उठा सकलीह… तेहेन सन अवस्था मे हनुमानजी अपना केँ जानकीक सोझाँ कोना प्रकट करता, कोन भाषा मे बात करता जाहि सँ हुनका ई विश्वास होएन जे हनुमानजी सेहो कोनो मायावी राक्षस आ रावणक लोक नहि भऽ रामक दूत थिकाह… आर तहिया ओ मैथिली भाषा (मानुषी भाषा) मे बात कएलनि। एहि ऐतिहासिक तथ्यक बाद बुद्ध धर्म आ जैन धर्म सँ जुड़ल शास्त्र-पुराण मे मैथिलीक चर्चा प्राकृत – अवहट्ट आदिक रूप मे कैल गेल अछि। पुनः ज्योतिरिश्वर आ विद्यापति सँ होएत चन्दा झा आदिक युग मे अबैत मैथिली अपन पूर्ण विकसित आधुनिक रूप मे हमरा सभक सोझाँ विद्यमान अछि। मैथिली जिन्दाबाद प्रयास कय रहल अछि जे विभिन्न अवसर पर मैथिली रचनाकार सभ जे सोसल मीडिया पर अपन कृति शेयर करैत छथि तेकर संकलन करैत चली। एहि क्रम मे आइ नव वर्ष २०१७ पर निम्न रचना, जाहि मे हमरो एक रचना अछि तेकरा नव वर्षक उपहार रूप मे एतय राखि रहल छी।

१. प्रवीण नारायण चौधरी, संपादक, मैथिली जिन्दाबाद – हालः विराटनगर

भाग्य सराहू अपन-अपन!!
 
हे मिथिलाक सब सपुत
भाग्य सराहू अपन-अपन,
जाहि धरती सिया अयली
ताहि धरा धन्य अहाँक जीवन!
 
हिमालय सँ गंगा धरि
कोसी सँ गंडक धरि
विस्तृत प्रकृति अरण्य खंड,
माटि पानि आगि वय आकाश
सुन्दर स्वच्छ अछि पावन!
हे मिथिलाक सब सपुत
भाग्य सराहू अपन-अपन!
 
कोसी बलान कमला बागमती
गंडकी सुरसरि कत रास नदी,
निकसि हिमालय गंगा बाढथि
धोथि पखारथि मिथिक भूमि,
एहि अनुपम भूखंड बीच
आयल छी हम सब मानव तन,
हे मिथिलाक सब सपुत
भाग्य सराहू अपन-अपन!
 
चर-चाँचर पोखैर इनार
सब तैर गंगाकेर रूप निहार,
माछ मखान आ पान समान
शुभकारी प्रतीकक जहान,
वेदानुरूप सब दृश्य प्रत्यक्ष
ओहि लोक केँ कर जोड़ि नमन!
हे मिथिलाक सब सपुत
भाग्य सराहू अपन-अपन!
 
खेत पथार खरिहान दलान
पर्णकुटीर समूहक मचान,
बकरी छगरी गाय महिंस
हर बरद मालक बथान,
देह विदेह सीमित साधन
निज कर्मफल भोगबाक मन!
हे मिथिलाक सब सपुत
भाग्य सराहू अपन-अपन!
 
बाबू माय बाबा बाबी
काका काकी मामा मामी,
पीसा पीसी मौसा मौसी
भाइ-बहिन नाना नानी,
सामूहिकता श्रृंगार जतय
गाँथल फूलक माला सन!
हे मिथिलाक सब सपुत
भाग्य सराहू अपन-अपन!
 
बुद्धि-विवेक भक्ति ओ ज्ञान
पुरखा सिखाओल धर्म सुजान,
ऋषि-मुनिक देखाओल बाट
ताहि पर मैथिल जीवनक ठाठ,
अन्नपूर्णा देवीक ई नैहरा
उपजय एतय देवलोकक अन्न!
हे मिथिलाक सब सपुत
भाग्य सराहू अपन-अपन!
 
बाट बिसरि जेना भटकल राही
जाति-धर्म विचार बघारी,
समता समरस जनकक राज
साली-मनखप सब समाज,
घर फूटय त लूटय गँवार
देखि ‘प्रवीण’क टूटल मन!
हे मिथिलाक सब सपुत
भाग्य सराहू अपन-अपन!
 
समस्त मिथिलावासी केँ फेर याद कराबी जे अहाँक जन्म एहि विशिष्ट भूखण्ड मे होयब बड पैघ सौभाग्य थीक, एकरा जाति-धर्मक नाम पर कम आ परमात्मा सँ बेसी जोड़िकय देखी-बुझी। नव वर्ष २०१७ मे संकल्प ली जे जनक-जानकीक अंश हम-अहाँ अपन मिथलाक नवनिर्माण मे निज जीवन-धनक उपयोग केँ बुझैत कर्तव्यनिष्ठ बनब। विशेष, अहाँ सभ केँ उपरोक्त पदावलीक संग शुभकामना अछि। ईश्वर सभक कल्याण करैथ। ॐ तत्सत्!!

हरिः हरः!!

२. प्रभात राय भट्ट, धनुषाधाम, मैथिली कवि एवं अभियानी, हालः दुबई

नव वर्षक नव नव संदेश
मिटए दुख दारिद्र कलेस
सुख समृद्धि,सुमंगल् वृद्धि
होमए रिद्धी सिद्धी श्रीगनेश

नव नव विचारक अँकुरण
होमए ज्ञान् ज्योती प्रस्फुटन
अविराम तरलता केर धारा
सब जीव जगत करि अवलम्बन

छ्ल दम्भ द्वैध होमए अवसान
बढए विद्वजन विद्वुषि कए मान
सभ्यताक ध्वजा गगन चुमए
होमए सभ्य समाजक निर्माण

३. विजय कुमार इस्सर, दलसिंगसराय (हालः कोलकाता) – मैथिली कवि व गीतकार

नव वर्ष मंगल मय रहय
अछि ई हमर शुभकामना
मन हर्ष में डूबल रहय
अछि ई हमर शुभकामना ।
सुख शांति में जीवन कटय
स्वजन में हो सद्भावना
जिनगी’क नव उत्कर्ष हो
अछि ई हमर शुभकामना ।
सद्बुद्धि हो,समृद्धि हो
मधुमय हो सबहक वाचना
स्वास्थ्य मय कया रहय
अछि ई हमर शुभकामना ।
नव ताल-लय,नव छंद हो
नव गीत केर हो सर्जना
संहति बनय,सहमति बनय
अछि ई हमर शुभकामना ।
संस्कार -संस्कृति सदति-
फूलय फरय से अर्चना
मैथिली पसरथि जगत् भरि
अछि ई हमर शुभकामना ।

४. किसलय कृष्ण, समाचार संपादक, मैथिली जिन्दाबाद, सहरसा

सुर सरगम, साज सज्जित संग मीठ ताल हो ….
आनन्द आ उल्लास केर संग नबका साल हो…
वर्षक प्रवेश पर किसलय हमर अछि भावना…
हर्षक संग संसारर्के अर्पित हमर शुभकामना…

५. पवन कुमार झा ऊर्फ ‘गुमनाम फरिश्ता’, संचारकर्मी व कवि-लेखक, मधुबनी – हालः कोलकाता

बदलि गेल साल
हाल बदलल कहाँ ?
बोझ भेल जिनगी
एतय सम्हरल कहाँ?

जहिया स ज्ञान भेल
देखि रहल एक खेल
कोना क छीनि भरि
अपन घर, आन लेल
मोन में विचार
कहियो उमरल कहाँ?

मिथिला में राज करब
सत्ता के डारि धरब
नेता बनब सब
अपने में मारि करब
जनता आ नेता के
एक जगह अनबाक लेल
कोनो विचार बिंदु
आई धरि ककरो में
जनमल कहाँ?

जहिया धरि हाल रहत
मांगी-चैंग गुजर करि
जे दिये भीख तकर
भरि पांज चरण धरि
तहिया धरि सपनों में
सम्मान भेटत की?
वोटबैंक राजनीति
कलह-कष्ट मेटत की ?
आत्मसम्मान आहांक
सर्वोपरि सत्ता स
भावना ई जन-जन में
पसरल कहाँ ?

बदलि गेल साल
हाल बदलल कहाँ?

६. कृष्ण कुमार झा ‘अन्वेषक’, संपादक, मैथिली दर्पण, मुम्बई

अपमान

पहिल दिन सन् सत्रह सालक
मनाबी दहेजक दिवस निषेध।
संकल्पक ई दिन हो निश्चित
समाज बनायब मुक्त दहेज।।१।।
शिक्षा-दीक्षा-संस्कारक बलपर
प्रगतिक पथपर बेटी छथि आगू।
नारी अपमानक एहि कुप्रथाके
सभ्य समाज मिलि आबहु त्यागू।२।
नवका पीढ़ी पुछि रहल अछि
किइए मंगैत छी एहेन दहेज?
जे समाजके तोड़ि रहल अछि
एहेन प्रथासँ करियौ परहेज।।३।।
बेटी जन्मक शुभ समाचार सुनि
हीनभाव सब व्यक्त करैत छथि।
ममताके मूरति बेटी सन्ततिके
हीन बुझि अपमान करैत छथि।४।
लालन-पालनमे भेद नञ मानी
शिक्षा-दीक्षा-स्नेह हो एक समान।
दहेजप्रथा अछि कोढ़ समाजक
ई थिक बेटी सन्तानक अपमान।५।

७. नारायण मधुशाला, छात्र एवं युवा कवि-गजलकार, लहान। हालः विराटनगर

सोचै छी आईसँ सुधरबाक प्रयत्न करब…
कने-मने निक गुण भरबाक प्रयत्न करब…

देखी कतऽ धरि सफल भऽ सकै छी हम…
सत्यताक पथ पर आगा बढबाक प्रयत्न करब…

कहल जाईय “बन्दैन मुलुक दूईचार सपूत मरेर न गये”…
तऽ देश खातीर एकबेर मरबाक प्रयत्न करब…

रण परसँ दुश्मन नै भागै, ई भऽ नै सकैय…
मनमे विश्वास आ खूनमे सहास भरि लडबाक प्रयत्न करब…

अहाँ मानु नै मानु मधुशालाक एकौह:टा बात मुदा…
आब खाली बजबाक नै, कुछ करबाक प्रयत्न करब…

८. झा महेश डखरामी, कवि, दिल्ली

पल छिन भिन्न नियम अटल
बन्हल पाश जीव ब्रह्म पटल
नहि पुनि दर्शन बीतल काल
प्रत्युय पसारी नेह कालभाल
पाबय सम्मान सबहि विमर्श
डेग पुरस्सर पाबय उत्कर्ष
सतत प्रमुदित हृदय हर्ष
दैव दया हो सकल वर्ष

९. राम सोगारथ यादव, धनुषाधाम, मैथिली कवि-गजलकार

।। गजल ।।

नव वर्ष सभहक लेल अटल होय
पहिलके साल जाँका इ सटल होय

दुनियाँ जे जेना सोंचै मुदा अपना
मातृभुमी लेल सभहम मन कटल होय

पूरा नहिं तँ अधे सहि नव बर्षमे
आन पऽ सान कैल घटल होय

अपनामे बेसिमे बेसिसँ रमैत झमैत
सभ मैथिलमे मिथिला पऽ मान बढल होय

हमतँ जे जेना जीबिली अहि धर्ती पऽ
मुदा हमर मन,मातृभुमि लेल कटल होय

१०. अमित पाठक, मैथिली कवि-गीतकार – मधुबनी

नव भोर ई नव दिन ई नव बरख ई उल्लास के
नव गीत के नव राग के जिनगीक नव आश के
नव गीत के…………….

अनुराग प्रति स्वयंगहु संगहि
अदनहुँ लए हियत: राखिक’
नहिं चोट किनकहु देब किन्नहु
बोल केहनहुँ बाजिक’
नित मोन के सब कोन में दए वास मधु सन भाष के
नव गीत के……………..

अधलाह् पछिला साल केर
बिसरब ने संगति फेर हो
सद्कर्म केर सन्गोर हो
आ हर्ष नित बेरि-बेर हो
सब हारि के पुनि जीत में परिमार्जनक विश्वास के
नव गीत के……………….

ऊर्जा नवल दिनकर किरण सँ
प्रज्वलित कए मोन के
कालहु के अपनहिं वश करब
भेदब गगन चहुँ कोण के
कर्मक प्रतापहिं करब सींचित निज भविष्यहु चास के
नव गीत के………………
नव भोर ई…………..

११. राजीव रंजन मिश्र, गजलकार – हालः कोलकाता

गजल

ने अनुराग कोनो ने अभियोजना अछि
जगत शांति सुखमय रहै कामना अछि

नमन जेठके छोट खातिर शुभाशीष
गुरू मातु-पितुके चरण वंदना अछि

दुखेलहुँ हियाके जनिक कोनो रूपे
तनिक लेल सादर क्षमाप्रार्थना अछि

रहै मोन खनहन चढी चान सभ मिलि
रही सभ निरामय से शुचि भावना अछि

नवल वर्ष राजीव मंगलमयी हो
सभक हेतु शतकोटि शुभकामना अछि

१२२ १२२ १२२ १२२ (बहरे मुतकारिब)

१२. सूरज कुमार प्रीतम, सिनुरजोड़ा, धनुषाधाम – हालः मलेशिया

गजल

सुरूवात आब करू नयाँ साल संगे!
शुभ शांति आब भरू नयाँ साल संगे!!

जनता जनके कखन भेंल किछ निक!
दुःख पिरा आब भरू नयाँ साल संगे!!

सब दुःख मिटत कलयूँग के राम !
नया जिंगी आब लरू नयाँ साल संगे!!

घरपरिवार अपन मिलत नै प्रदेश में !
अपना सब नै आब डरू नयाँ साल संगे!!

छै अपन मिथिला मैथिल या मैथली!
सब एकठां आब धरू नयाँ साल संगे!!

१३. विन्देश्वर ठाकुर, कवि एवं अभियानी, धनुषाधाम – हालः दोहा, कतार

नव वर्षक शुभकामना

सगरो सबठाँ चमकी अहिना
नित दिन गमगम गमकी अहिना
सकल मनोरथ पुरबथि राम
सफल होएथ मनोबांक्षित काम
द्वेष,कलेश निकट नहि आबए
मोन प्रसन्न,जन जन चित्त भावए
सदा उल्लासित- मंगल कामना
दीर्घायु भव: नव वर्षक शुभकामना !!

१४. सुबोध चौधरी, कवि, मधुबनी

।।शुभकामना।।
🌼🌼🌼🌼🌼
नेह भरल नव नीक भावना,
नव वष॔क अहि शुभकामना।
सात रंगक इन्द्रधनुष सन,
जीबन सहज सुखद सम बीतै,
नै दुख दर्दक धाह परै कोनो,
सुखक छाहरि तर भरि साल बीतै।
*
रहि सखा संबंधी हंसी खुशी मिलि,
सभ स्वस्थ रहि धन धान्य भरल।
नव वर्षमे नव साफल पावि,
कोनो गीत नया प्रेमक गाबि।
मन आत्मविश्वास ने अहम् लाबि,
अहीं युग पुरुष कोल्हूका भावि।
*
बीतल गलती जे साफ करी,
कियो केलक गलतीमाफ करी,
पुरना जँ नीक आवेश करि,
नवका युगमें प्रवेश करि।
*
नेह भरल नव नीक भावना,
नव वर्षक अहि शुभकामना।।

१५. घनश्याम झा, मनीगाछी, दरभंगा – कवि व अभियानी

नव वर्ष , नव अभिनंदन ,
वंदन , जन्मभुमि अभि वंदन,
है अभिलाषा , नव वर्ष में,
अविचल बनें भारत विश्व में ।
नये पथ पर चले भारत,
आओ बने हम सब सारथी,
नये वर्ष मैं है यही कामना,
श्रेष्ठ बने भारत विश्व में ।

१६. प्रवीण कुमार झा, स्वतंत्र लेखक-विचारक, बेलौन, दरभंगा। हालः दिल्ली

एक टा बर्ष और बीत गेल…
अपना सुख समृध्दि केर बेहतरी में.
कतेक साल आगाँ और बीतत.
मुदा जे नै बीतत आ बिसरल जेत
ओ छी अपना सब केर कर्तव्य.
 
वेद पुराण आ अप्पन मैथिल संस्कृति
अपना सबके तीन टा कर्तव्य
निर्बाहक लेल प्रेरित करैत या.
पिता केर रूप में,
पुत्र केर रूप में
आ समाजिक प्राणी केर रूप में.
संभवतः अहि तीनु में सौं
हम सब पहिले कर्तव्य केर निर्बहन में
जिनगी गुदस्त क दैत छी.
ओझरायल रहैत छी.
अप्पन आ अपना धिया पुता के लेल
अर्जन अर्जन आ अर्जन.
हाँ, किछ लोक एहनो छैथ
जे दोसर कर्तव्यक निर्वाह सेहो करैत छैथ…
यानि अपना जन्मदाता केर देखभाल
आ हुनक प्रति अपन कर्तव्य निर्वहन.
 
मुदा की मानव जन्म
अहि दुनु कर्त्तव्य के निर्बहन सँ
समाप्त भ जाइत छै?
कतेक लोक तेसर कर्तव्य
भार के बारे में सोचैत छथिन.
कतेक आदमी समाज केर प्रति
अपना कर्तव्यक निर्बाहक लेल
चिंतित होइत छैथ? दरअ
सल यैह संख्या ओहि समाज केर
बेहतरी के मापदंड होईत छैक.
आ फेर मिथिला समाज केर
हालत किनको सँ छिपल कहाँ अहि.
न अप्पन मिथिला समाजक लोक समृद्ध,
न संस्कृति सुरक्षित
आ मुलभुत सुविधा सौं सेहो वंचित.
 
की अप्पन कर्तव्य सिर्फ एतबे
जे जय मिथिला आ जय मैथिली कहि कय
अहि कर्तव्य केर पूर्णाहुति क दी?
की अपने सब अपना आस पास दू आदमी के
आगू बढेबा में मदद नै क सकैत छी ?
की हम अपना बच्चा सब में
अप्पन संस्कार अप्पन भाषा तक केर
ज्ञान नै द सकैत छी हम सब ?
कम से कम समाज केर उन्नति के लेल
अपना जनप्रतिनिधि वा समाज सेवक सब के
हिला-डुला त सकैत छी की नै ?
 
आई नव वर्षक उपलक्ष्य मे
सब जाति आ धर्म के मैथिल संगी साथी के
उज्जवल भविष्य केर शुभकामना दैत
एतबे कहब जे तेसर कर्तव्यक लेल सेहो सोची.
समाज केर बेहतरी सौं अंतत:
अपने आबै वला संतान केर बेहतरी सेहो होयत.
सुधार आ बेहतरीक लेल
काज बहुत रास छैक.
बहुत दिशा में छैक.
समाज सुधरत..
जानकी के सम्मान भेटत..
मैथिली खुशहाल होयत.
बस एतबे कहब.

जय माँ जानकी.

१७. अशरफ राइन, धनुषाधाम – हालः दोहा, कतार

गजल

बनि गुलाब गमकैत रहू नयाँ साल मे
मंद मुश्की संग महकैत रहू नयाँ साल मे

फरैत फुलॉएत खिलैत रहू सदिखन
कली बनि चहकैत रहू नयाँ साल मे

दुःख भागे दूर – दूर खुस्याली भरल रहे
तरक्की ओर ससरैत रहू नयाँ साल मे

परल राति अमावस सब पर भेल बोझ छै
बनि इजोरिया पसरैत रहू नयाँ साल मे

एतबे दुवा मागै छै आहाँ लेल अशरफ़
फुलझड़ी बनि झहरैत रहू नयाँ साल मे