मिथिलाक उभरैत रचनाकार युवा लोकनिक रचना

pnc-with-abdur-rajjakवर्तमान तीव्र संचार युग मे मैथिली कविता, कथा, आलेख, विचार, समाद आदिक लेखनकार्य मे युवा मैथिल सब काफी आगू छथि। आउ किछु युवा रचनाकार सभक रचना मैथिली जिन्दाबाद केर पाठक लेल परसैत छीः

१. नारायण मधुशाला (मूल घरः सिरहा, मिथिला – वर्तमान विराटनगर, मोरंग मे १२वीं कक्षा मे अध्ययनरत)

घर कोनाक जाएब यार बात छै बगियाके

आब मोन नै लगैय अहाँक खिसा सुनि नढियाके!

एबालऽ कतेक प्रेमसँ भाभी आइ फोन केलक

अरे यार बगिया खाइके हकार सेहो देलक!

पता नै आब फँसल छी कथीक झमेलामे

सहोदर भाइ बाप माएसँ दूर भऽ अकेलामे

अहाँ रहु फसट जनवरीके पार्टिएमे लटकल

हमरासँ नै होत एना अनायास भटकल

भाई हम तऽ जियब मरब अपन मैथिलिएमे

गाम घर छोडल नै जेत अहाँ जकाँ बेसैतिएमे

२. अमित मंडल, धनुषाधाम (हालः मरुभूमि सउदी अरब)

प्रदेशक जिनगी (रचना)

पुरा जिनगी बिताबऽ चाहै छली
सुन्दर नगरी मिथिलाधाम मे,

दु:ख सु:ख जीनगीक खेल छै
मुदा दु:ख नै कटलौं अपनहि धाम मे,

केहन विधना लिखल हमरा कपार मे
आइब गेलौं हम सात समून्दर पार मे,

सब किछ छूटि गेल जिनगीक राह मे
आब जिनगी बितै यऽ आन विरानक नगरी मे,

बहुते सहलौं अत्याचार यौ बाबु भैया
आब रहलो नहि जाइयऽ मरूभूमी मे,

बहुत कमेलौं ढ़उवा रूपैया जिनगी मे
खुब कैलौं मौज मस्ती यौ बाबु भैया!

मुदा मिथिला सन प्रेम पेबा लेल
अखनो तरसैत छी यौ बाबु भैया!!

३. अशरफ राईन, धनुषाधाम (हालः दोहा, कतार)

गजल :-६९

सहरक लागल पसाही गाम धरि पसरैत गेलै
झाँपल माथक दुपट्टा आब नीचाँ ससरैत गेलै

पश्चिमक हवा बही एलै एहन गति मे जे गाम
बिदेशी अपना क अपन संस्कार बिसरैत गेलै

अप्पन पोसाक भेल छै अपने गाम सँ सुड्डाह
समीज साड़ी सब छोड़ि बिकनी पहिरैत गेलै

पुरखाक बाँचल इज्जत ओहो एलै बाट पर
नाचै नंगटे सगरो, अपन संस्कृति बहरैत गेलै

अपने हाथे झाँपि चलब आँखि आब अशरफ़
बृद्धि भेलै कुकर्म केर लाज सरम झहरैत गेलै

४. उद्गार यादव, सिर्सिया (हालः दोहा, कतार)

जिनगी के बोझ

गजल

कतबो कानी मुदा आँखि मे नोर नै अछि
दु:ख दर्द सँ जिनगी ओराएत नै अछि

क देलखिन बेभराम महंगाई आदमी केँ
बोझ जिनगीक ढोइते ढोवाएत नै अछि

कहियो बाढि अबैत त कहियो सुखाड़ लऽ गेल
आब खेत कोन मन से बौवाएत नै अछि

खेती मौसम के मार सँ टुवर-टापर भ गेल
महल मडैये पर कनिको मोहाएत नै अछि

जहिया रहे जरुरत त तकबो नै केलकय
आइ बेमतलब सटल सोहाएत नै अछि

दिल के भीतर के माइर भीतरे सहि लेली
सब बात सब के आगु बजाएत नै अछि

५. धनेश्वर ठाकुर, धनुषाधाम (हालः दोहा, कतार)

हेल्प मधेसी संस्था बहुत महान

गरिब होइ या शहीद के परिवार

घाउमे महम पट्टी लगाव के करै छै काम

एक पर एक मधेसी भाई-बन्धु

लागल छै एहि हेल्प मधेसी संस्था मे

सब मधेसवासी केँ करै छै कल्याण

हेल्प मधेसी संस्था बहुत महान

६. विन्देश्वर ठाकुर, धनुषाधाम (हालः दोहा, कतार)

अनुत्तरित प्रश्न

काल्हि अधरतिएसँ
मोनमे उठल अछि एकटा हिलोर –
आब कते दिन करब चाकरी?
कते दिन चपाएब खबुस?
तें आब नै रहब परदेशमे
जाएब अप्पन देश
लगाएब पान/मखान
बरु करब कोनो छोटेछीन काज
मुदा रहब अपनहि देश/कोसमे ।

मोन केर दक्षिण कोन्हसँ
उठैत अछि प्रश्नक अन्हडि आ
जा’ खसैत अछि-
हृदयके बीच मैदानमे
से ठीके –
कोन तरहे स्वीकार करत हमर देश?
एकटा भूतपूर्व रेमिट्यान्स मेसिन ?
कि नि:वर्तमान रोजगारहीन मनुख?
पासपोर्टकें हेन्सम फोटो संग
कारी झामर भेल मुंह
ऎनामे निहारैत –
जिनगीक ५५ बरखमे
बेचना कक्का खोजि रहल छै –
जिनगीक मोल
बेचलहबा जवानी आ
बलिदानीक समुच्चा
श्रेणी सबहक समुच्चित उत्तर ।

अपसोच-
एहि अनुत्तरित प्रश्न सँ
निरूत्तर होइत कक्का
घोकचा लैत अछि मुंह
पोछैत अछि माथक घाम आ
धिक्कारैत अछि अपने आपकें ।

७. अर्जुन प्रसाद गुप्ता “दर्दिला”, लहान, सिरहा

गीत : “घसल अठन्नी फटल रुपैया”

घसल अठन्नी फटल रुपैया, पडल हमर भागमे,
सब कियाे अइजऽ हाँसि रहल य, हमर नाेर खसल अागिमे ।

दिलमे हमर काँट गराकऽ, फूल माँगै हमरासँ,
नाेरमे हमरा डुबा डुबाकऽ, गंगाजल माँगै हमरासँ,
हमरे संगे रहि रहिकऽ, अंग सजाबै दागमे ।
घसल अठन्नी फटल रुपैया, पड़ल हमर भागमे…..

घरक हम माझिल पुत्र, छाँटल छुटल भाग लगाबै,
मायक दुलार छाेट भाइ, बाप जेठकाके बखारी देखाबै,
भाइ भैयाके मीठ मीठ भाेजन, हमरा नुनाे ने पडल सागमे ।
घसल अठन्नी फटल रुपैया, पड़ल हमर भागमे…..

८. अब्दुर रज्जाक राइन, हरिपुर, धनुषाधाम

किछु कता

*

फेकैत तिरछी नज़र जान लै छी किया
नयन सs फेकैत ज़हर प्राण लै छी किया
स्नेह अहींके बस लागे सदिखन जूवान
चम्कैत हमर इजोरीयाके चान लै छी किया

*

आश आशेमे सपना झूलैत रहल
किछ पाबेले बिपना भूलैत रहल
दर्पणमे सब किछ झलकैत रहे
आनो बनैत अपना फूलैत रहल

*

दुनुपार मैथिल मिथिलाप’ दाउ लगाक’ नेता सब
शोषित पहिचान बनौलक घाउ लग़ाक’ नेता सब
हक़ साँचे तीतगर लागे नै जानि यौ दुनियाके 
बेच देलैन इतिहासकेँ कौड़ीक’ भाउ लग़ाक’ नेता सब

९. प्रयास प्रेमी मैथिल उर्फ राम नारायण मेहता, सुन्सरी (हालः मलेशिया)

अपन अवाज लिखै छी

कलमक’ नोर सँ
अपन अन्दाज लिखै छी ।
अपन मन भित्तरके हम
अपन अवाज लिखै छी ।
समाजमे देखैत छी हम
बड्का जाति सबके विचार
छोट जाति सबहक ऊपर
मात्र समानता शब्दके प्रहार
ब्यवहारमे देखै छी कत्तौ कत्तौ
समानताके पोन्की पोन्कैत
मुदा बेसी सँ बेसी चेहरापर
मात्र बनावटी विचारक मेकअप
भित्री रूपे वैह पुरातन चेहरा
कू-विचार आ कू-रीतिके बिज सबपर जकड़ल अछि
जबतक समानताके शब्द संगे
ब्यवहारिक नुडी सँ
परिवर्तनके घुस्सा नै लागत
सायद एकदिन जायकेँ
ऊ पुरातन विचारक बीज
बचल खुचल इन्सानी चेहराकेँ
खायकेँ माटिमे मिला देत ।

१०. अशोक कुमार सहनी, रघुनाथपुर, सिरहा (हालः दोहा, कतार)

मैथिली गीत
हम रहि क’ परदेश में…..

हम रहि क’ परदेशमे राख्लौं मिथिलाके लाज यौ
हम सोचलौं खतम ने भ’ जाय मिथिलाके संस्कार यौ

हमरा याद आबय छल अपन पाग, पान, मखान यौ
भोज भात आमक गाछी अपन खेत खरिहान यौ
हम रहि क’ परदेशमे…. ……..

हम नहि देखलौं परदेशमें गाय महिसक बथान यौ
पोखरी महार पर चुल्हा जरैत पाकैत पुरी पकमान यौ
हम रहि क’ परदेशमे…. ……

हम याद केलौं परदेशमें तीसी कुम्हौरी मुरौरी यौ
डोका काँकौड़ माछ सम्हारिके राखल उक्का संठी यौ
हम रहि क’ परदेशमे…… …..