राम-जानकी विवाह पंचमीक अन्तिम विधः राम कलेवा केर मनोरम दृश्य

sujeet-jhaराम जानकी विवाहपञ्चमी महोत्सव विशेषः अन्तिम विध मौहककेर सेहो खूब चर्चा रहल

– सुजीत कुमार झा, जनकपुर । दिसम्बर ९, २०१६.
 
जखन विवाह भऽ गेलैक तऽ मौहक अर्थात राम कलेवा केर विध कोना रुकत । आर मिथिलाक वैवाहिक परंपरा मे पति-पत्नी बीच प्रेमालापक पहिल सामाजिक शिक्षा सेहो त आखिर एहि विध सँ भेटैत छैक । आर एतय त स्वयं प्राणीजनक आधार साक्षात् परमात्माक सुन्दरतम् अवतार रामचन्द्र जी आर शक्तिक आदिस्रोत जगदम्बा भवानी मनुष्यतन मे गृहस्थी आरम्भ करय जा रहल छथि । सर्वप्रथम एक-दोसर केँ प्रेम सँ मिठ खीर खुआकय मौहक करती तखनहि मानव केर कल्याण संभव होयत । तऽ भेल ई जे रघुवर चारु भैयाँ मिथिला दरबारसँ निकललाह आ मड़वापर बैसि रहलथि । मड़वाकेँ सजेबाक आवश्यक्ता नहि छल । रातिएमे विवाह भेल रहैक । पहिने रघुवर बैसलाह फेर भरत । क्रमशः लक्ष्मण आ शत्रुघन । विधकरीसभ भोजनक सामानसभ आनि कऽ राखि देलन्हि ।
ram-kaleva1
खीरक अनादर नहि करियौ यौ दुलहा
खीरक अनादर नहि करियौ
खीरक उपरमे बरफी राखल अछि
कोहवरमे मिलत असर्फी यौ दुलहा
खीरक अनादर नहि करियौ यौ दुलहा ……
 
ram-kaleva2गीतगाइन सभ मौहककेर विशेष अवसर पर गीत गेनाय शुरु कएलन्हि आ चारु दिस उत्सुकता होबए लागल । जानकी मन्दिर प्रांगण मे लाखों श्रद्धालू भक्तक भीड़ मे सब कियो दूलहा सब केँ देखय लेल परेशान छलथि । प्रभु कोना मौहक करैत छथि – सब एहि लेल बेहाल देखाएत रहय । गीतपर गीत समाप्त भऽ रहल अछि, रघुवर गीतमे आनन्दित छथि । टोल पड़ोसक सारिसभ किछु मजाक सभ सेहो कऽ रहल छलखिन । मुदा रघुवरकेर हाथ आगा बढि नहि रहल अछि । जानकी मन्दिरक प्राङ्गणमे लाखों व्यक्ति अपन नयनसँ ई क्षण देखबाक लेल व्याकुल भऽ रहल अछि । स्वयं अनुजसभ भरत, लक्ष्मण आ शत्रुघन आश्चर्यमे छलाह आई भैयाकेँ खीर किए नहि आकर्षित कऽ रहल अछि । आगुमे खीर, रसभरी, लड्डु, बादशाही, खाजा, बतासा कि कि नहि भैयाके तऽ सभ प्रियगरे छन्हि । शत्रुघन लक्ष्मण दिस तकैत अस्थिरे सँ बजलाह । रघुवर स्वयं विष्णुक अवतार छलथि । लोकक मोनक भितर कि सभ चलि रहल अछि हुनका नहि बुझल रहत तऽ किनका । भाइ सभक उत्सुकताक शान्त करबाक लेल कन्खियाएते शान्त करबाक ओ प्रयास कएलन्हि ।

ram-kaleva3मुदा छोटके सभ अधिकार रहैत छैक । शत्रुघन रुकएबला कहाँ छलथि, ओ पुछिए देलथि खीरक एहेन तिरस्कार किऐक भैया ? रघुवरकेँ आब मुंह खोलहि पड़लन्हि । ओ कानमे भरतकेँ कहलन्हि, भरत लक्ष्मणकेँ आ फेर लक्ष्मण छोटजनकेँ । रघुवरकेर कहब छलन्हि जे हम अहाँ अयोध्याक राजकुमार भलेही छी, ओहिठामक परम्परा अलग छैक, एतय मिथिलाक हमसभ जमाए भेलहुँ । एहिठाम थोर बहुत मान मनौअल नहि भेल तऽ मौहकक आनन्दे कि ?
 
ram-kaleva4भेल ई छल जे जनकजी अर्थात जानकी मन्दिरक महन्थ राम तपेश्वर दास वैष्णवक इच्छा रहन्हि जे रघुवरकेँ अपने हाथसँ घडी पहिराबी । मुदा उचित समय नहि भेट रहल छल । कन्यादानकेर समयमे जेबीम घड़ी रखने छलाह, मुदा दशरथजी हमरा सीतासन पुतहु दऽ धन्य कऽ देलहुँ आब हमरा किछु नहि चाही कहि रोकि देने रहथि । मुदा किनल घड़ी कोना फेरल जाय, ससूरक धर्मसंकट रघुवर शायद बुझि गेल छलथि ।
 
ram-kaleva5विधकरी कि स्वयं सुनयना एक‍-दू बेर रघुवर लग आबि चलि गेल छलथि हुनको अर्थ नहि लागि रहल छल । तखने गीतगाइन सभ गीत शुरु कएलन्हि,

संगी पुछियौ ग दुलहा रुसल छथि किए
जनकपुरसन बजार घड़ी मिलए हजार
बिना अर्थक मनोरथ पुरबै कोना
संगी पुछियौ ग दुलहा रुसल छथि किए
जनकपुरसन बजार सुट मिलए हजार
संगी पुछियौ ग …….
 
ram-kaleva6गीत शुरु होइते सुनयना जनकजी सँ मन्त्रणा करए पहुँचलथि आ सभ समस्याक निकास भऽ गेल । समय पाबि जनकजी सुनयना मार्फत घड़ी पठा देलन्हि । जहिना घडी पहिरला रघुवर चारु भैयाँक हाथ चलय लगलन्हि । गीतगाइनसभ फेरसँ गीत शुरु कएलन्हि ।
 
खीर खाउ यौ दूलहा, खुब मोटाउ यौ दूलहा
अपन चोटकल चोटकल गालकेँ फुलाउ यौ दूलहा
मैया पुछती बौवा दुबर छी किए
अहाँ अपन साउसके नाम नहि हँसाउ यौ दूलहा
खीर खाउ यौ दुलहा…..
 
ram-kaleva7लोक तऽ ई सब दृश्य आ गीत सब सुनि-सुनि झुमि रहल छल । पूरे मिथिलावासी कि जतेक आगन्तुक सब छलथि सब कियो मौहककेर आनन्द लऽ रहल परमानन्द मे रमल छलथि । सभ अपना आपमे धन्य भऽ रहल अनुभूति कय रहल छलथि । त्रेतायुगमे नहि देखलहुँ तऽ कि कलयुगमे सेहो रघुवर बेर-बेर लोककेँ देखबाक अवसर दऽ रहल छथि । किछु गोटे जनकजीकेँ सेहो एहि अवसर जुटाबएके लेल लाख-लाख धन्यवाद दऽ रहल छलथि ।
 
भागलपुरसँ आएल वसन्ती देवी कहलीह हम तऽ मात्र पूजापाठ करबाक हिसाबसँ चारि दिन पहिने आबि गेल छलहुँ मुदा गजब गजबके अवसर जनकजी देखा देलन्हि ।
 
रघुवर चारु भाइकेर मौहक होइते बरियाती सरियाती सभकेर भोजनक क्रम चलए लागल । कि रसगुल्ला, कि लड्डु, पेड़ा, कि खाजा एकसँ एक मिठाईकेर क्रम चलैत रहल । जनकजीकेर भण्डार आइ खाली होबएबला कहाँ छल । मिथिलाक गीतगाइनसभ सेहो आइ रुकएबाली नहि छलीह । मौहककेर संगहि बरियातीसभकेँ सेहो डहकन गाबि आनन्दित कऽ रहल छलीह । अयोध्यामे सेहो एकसँ एक विद्वान सन्तसभ छथि । मिथिलाक नारीसभ गाबि रहल डहकनकेर अर्थ बुझि बुझि कऽ मिठाई तोडि रहल छलाह । रसे-रस आनन्द लैत भोजन करबाक परंपरा मिथिला छोड़ि आन ठाम कतय पायब, सब कियो आपस मे चर्चा कय रहल छलाह । ठहाका पर ठहाका छूटि रहल छल । प्रीतिभोज आ मिथिला मे, एकर तऽ वर्णन करब देवतो-ऋषि सँ संभव नहि अछि ।
 

एक गीतगाइन कहलीह, “आब फेर अगिले बरस रघुवरकेर चुमाओन होयत, मौहक होयत । आइ हमसभ गीत गाबएसँ पाछाँ हँटयवाली कहाँ छी ।” हुनकरसभक गीत तऽ देव उत्थानक एकादशीएसँ शुरु भऽ जाइत अछि । धनुष यज्ञकेर बाद तऽ रुकबाक नामे नहि लऽ रहल अछि । सब कियो मने-मन आनन्दित छथि । अपन सहभागिता आ योगदान सँ सब कियो बरिस भैर आनन्दमग्न रहता यैह आशीर्वाद संग सब कियो आजुक अवसर पर आत्मा-परमात्मा मे मगन भेल छथि । पुनः ऐगला वर्ष हमहुँ अपन लेख-रचना आ समाद संग एहि अवसर पर कलम चलायब, हमरो सौभाग्य बनल रहय, एहि प्रार्थनाक संग मैथिली जिन्दाबाद केर समस्त पाठक लेल शुभकामना ।