सुनू भाइ हमर पुकार
– प्रवीण नारायण चौधरी
मातृभाषा संग शत्रुता – भेषहु केर प्रतिकार
पहिरि धोती चमकि देखा – भेटत कि अधिकार!!
पसरल अछि अशिक्षा – कूरीतिक अंबार
जातिवादी सम दावानल – दूर केना अँधकार!!
माँगय छी समदृष्टि सँ – समावेशीक सरकार
दंभ भरल संख्याबल केर – बेसीक नेता भरमार!!
विद्या-बुद्धि आ पौरुषबलकेँ – छोड़ि बढी मझधार
आब डूबाबैथ या ऊबारैथ – एक कृष्ण सरदार!!
समझौता सब होइते रहलय – लागू नहि विचार
घोर-दही-घी-मधु आ मट्ठा – स्वतंत्रता केर अँचार!!
‘प्रवीण’ बनू आ घर सम्हारू – माथा भिड़ेनाय बेकार
भाषा-संस्कृति बाँचल रहतय – सृजनक निश्छल धार!!
जय मैथिली – जय मिथिला!!