अविरल धाराः गीतकार शिव कुमार झा ‘टिल्लू’ केर रचना

साहित्य

– शिव कुमार झा टिल्लू

shiv kumar jhaअविरल धारा – ई नाम टिल्लू केर कलमक मसिक प्रवाह देखि संपादकक मन सँ एतय लिखल गेल अछि। पोथीक शीर्षक कविक स्वेच्छा सँ किछु आरे संभव होयत। विगत किछु दिन सँ निरन्तर पठायल गेल रचना केँ एक संग एकटा छोट पोथीक रूप मे मैथिली जिन्दाबाद पर प्रकाशित कैल जा रहल अछि। एक ओजस्वी कवि पिता केर पुत्र स्वयं एक प्रखर कवि – कालीकान्त झा ‘बुच’ आ शिव कुमार झा टिल्लू केर अवतार मैथिली साहित्य लेल भेल हम बुझैत छी। आउ, मनन करी हिनक किछेक कविता रचनादि परः

१. माय !

जन्म पालनमे निजसुख बिसरलि हुनके अंश बेमाय
हे शिव ! जनिक तपक नहि कोनो परतर
वएह छथि श्रष्टा माय !
कखनहुँ रौद्र कालीसन रूपक कखनहुँ गौरी नेह
हे शिव ! अपन देह संततिलेल बिसरलि
बिसरलि शान्तिक गेह
त्यागक देवि हे द्रवित भेल शिव धर्म लिखल नहि जाय
हे शिव ! चंचल चितवन बालक विचरण
मायक मोहने अघाय !
कर्म भवानी नीति संज्ञानी पहिल गुरु हे धाय
हे शिव ! पितृक ऋणके’ सरित माँथपर
माय अर्णव के चुकाय ?
भाल कराल जखन पथ तोरल देल संतति बिचुकाय
जननी ! क्षमाप्रार्थी अछि संतति शिव
किए देल मायकेँ कनाय !
बापक नाम सदति संतति संग माय सरस्वती रूप
जननी ! अतुल प्रभाव बिनु देव एकल छथि
मातु आरती धूप
अतः उदित तखने छी बिछुड़ल आबू लेब मनाय
जननी ! सुनू ह्र्दयक गति मायक वाचन
रहलहुँ हियसँ बजाय !
२. एकादशवाणी ( तेसर अर्घ्य )
मोन वचन संग कर्मसँ धरु लेखनी समरूप
तखने बूझब औ सृजक छी साहित्यिक भूप !१ !
एक दिशाहे गति जकर भाँगय ओकर कपार
बोधगम्य अछि बाटजौं नहि नियति लाचार !२!
दू रंगक परतर कोना दुहूमे किछु त’ विशेष
भाग शून्य आ अंक बिच रहि गेल शेष अशेष !३!
उतयोगक ई युग कोना छ’ल प्रपञ्चक भोग
धरती कोरि शोणित बोरै तकरे पात अभोग !४!
न्यायक श्रृंगी कहि देलक जकरा हियमे पाप
ओ उच्छृंखल छीपसँ करबै स्वनामक जाप !५!
अंतर जौं अर्चिस प्रखर गाल बजायब व्यर्थ
शब्दक हाहाकार नहि बाँचितहुँ जकरे अर्थ ! ६ !
व्याख्या अछि परिधान के’ फाटल वसनक नूर
ओझरायल छंदजाल ल’ हेरथि यात्री के’ भूर ! ७ !
महिमा जकर अनंत अछि ओ हम्मर मिथिलाम
पागक पर्वत आन भू बिसरि गेल छथि गाम ! ८ !
संस्कृति चिनुआरसँ ओलती ओसार द’ गाम
परती कि डीह उजड़ि रहल कोन प्रवासी ठाम !९ !
मैथिली मिथिला मंच पर उतरल बिसरि विदेह
गहबर कुञ्जी माटि तर चूबि रहल मूल गेह !१० !
अछि सुखार त’ पानि कोना सीता चुबबथि नोर
गदहबेर मिथिराज ले’ कोन जोकरक ई भोर ! ११ !
३. कविता !
 
दिवसक वासिनी प्राणपुनीता
 
रातुक सुहासिनी अति प्रीता
अहाँक बिनु अछि व्यर्थ ई जीवन
भावक रीति प्रीतिरस कविता !
अहीँक अंशसँ भेंटल ममता
नहि त’ होइतहुँ योगक रमता
अहीं सिखेलहुँ सकल समंजन
एहि आँचरतर दृष्टिमे समता !
विचारक नव परिभाषा जनलहुँ
शेष अशेष नहि ! नश्वर मनलहुँ
देहक कणकण जखन जड़ै छल
प्राण- आवृति सृजनकेँ अनलहुँ
बेरुक हुसल पुनि पंथ चलै छै
जे छूटल ओ हाथ मलै छै
जकरा हियमे गतिक ज्ञान अछि
कोनो प्रपञ्चसँ ओ ने छलै छै !
ऋद्धिक आश जगबितहुँ कविता
सिद्धिक पियास बुझबितहुँ कविता
अष्टयामिनीक हे मन सहचरी
अंतधरि ग’र लगबितहुँ कविता
४. काल सकारय कर्मक धूजा !
कर्म बेगरता काल बाटपर
पड़ल अकरमल सदति खाटपर
कर्महीन जे भाग गुनै छै
कर्मठ अभागबिच विहनि बुनै छै !
एकदिशि हाहि संतोष पराभव
दोसरक कृत्य भरोससँ संभव
भाग त’ ककरो नहि छै वशमे
किए पांकबिच चलब विवशमे !
संकटकाल मौनहित अंजन
व्यर्थ दुःखक नहि उर अभिव्यंजन
सुनि उपहास स्वरूपक गंजन
आँखि बन्न केलथि दुखभंजन !
मात्र विषम बिच कर्म विनायक
अस्तित्वक एक्के अधिनायक
कोनो भोग लेल कर्म अछि पूजा
काल सकारय कर्मक धूजा !
५. कजरी 
नहुँनहुँ बरसय बदरिया हो रामा भादव महीना
चहुँदिशि खेल कजरिया हो रामा भादव महीना
कान्हा मुग्ध नुकायल गाछतर
नाचथि प्रेयसी सांवरिया हो रामा भादव महीना
ठनका ठनकि मन प्राण डराओल
पक्ष ई गहन अन्हरिया हो रामा भादव महीना
ड’रक मारलि दुबकलि राधा
चमकल अचके बिजुरिया हो रामा भादव महीना
कृष्ण विभोर हीयासँ लगाओल
पुनि नाव तड़ित इजोरिया हो रामा भादव महीना
साँझक बाट लोक की बाजत
संकट लाजक डगरिया हो रामा भादव महीना
गोपिका घुरलि आब अहूँ जाउ राधे
डरुने डगरिपर कहरिया हो रामा भादव महीना
६. बाल -हरि ( गीत )
माखन चोरौलनि कान्हा चोर
पोछलनि तैयो लागल ठोर
अचके मायक दृष्टि पड़ल त’
गाल बजाबथि हरि मुंहजोर !
सीक सँ खसि क’ टूटल बासन
आब यशोदा करती शासन
हम्मर नहि ई बिलाड़िक करनी
सदति ह’म पालक अनुशासन
उचित ने होयत दंड देबै जौं
रिझा रिझा क’ चढ़लनि कोर !
हमरा लग अछि कालक खगता
काज चलय हमरोसँ अगता
बाबाकेँ कोनो फकीर नहि
परदुःख लेल अर्पित ओ भगता
कृष्णआहि सुनि हँसथि नन्द जी
मातृ सिनेहक कोनो ने जोर !
गाहीक गाही गायक गिनती
सुनथि कोना ओ नेनाक विनती
चरब’ लेल किछु चाकर राखू
माय करै छी अहीँसँ मिनती
चोरिक कलंकसँ हीया कानय
ई कहि कृष्ण चुआबथि नोर !
सोलह कला के’ एक अंश छल
पछताबथि माय – हमर लाल भल
किए’ अबोध केँ नोर कनेलहुँ
हिनक मोन छनि निर्मल निश्छल
काल्हिसँ बाबा गाय चराबथि
कहैत छियनि अहाँ पारू शोर !
७. ई कविता उड़ीसामे अपन कनियाक लहास कान्हपर ल’ क’ एकसरे चलैत दीन ” दीना ” केँ अर्पित !
 
वाह वाह रे मनुजक मोन !
 
लाज विचार विखक सरितामे
घोरि बनाओल धाखक तेल
विधनोसँ नहि ड’र बचल छै
मनुखक हीया कत’ चलि गेल ?
तंत्री लेल ई दारुण जीवन
बनि रहलै बड़का हथियार
घड़ियालक सन नोर बहाक’
सभ व्यपारी करय शिकार
दीना दीनक गति देखल जग
उत्कले नहि उत्कट भेल देश
के पहिने वाहवाही लूटत
धएने सभ संचारी भेश
रुग्ण कान्हपर ओ लहास ल’
चलल जडाब’ दस बीस कोस
पाछाँ जे ओ तस्वीर खीचै
पकड़ि लेतय से नहि छल होश
मरल नारि बिंहुसल दीनाकेँ
सभसँ पहिने ह’म देखायब
संचारक हम सार्थक प्रहरी
युगकेँ पहिने ह’म जनायब
औ बाबू अहाँ लोको ने छी !
चारि कान्ह त’ द’ दितियै
सबलक वाहवाही फेर भेटतै
दीनक सेहो नेह लितियै
क्षय रोगक जौं ड’र छलै त’
कटही गाड़ी लितहुँ जोगारि
अर्थक अर्थी खूब बहारलहुँ
दीनक चचरी दितहुँ बहारि
शासक केँ त’ चर्च व्यर्थ अछि
कोना हँसोथब ओक्कर मोन
दीना सन छै भरल वर्त ई
लाशक संग बौआइत वोन
बिसरि गेलहुँ हम को’न मनुख छी
कहिया छल पंछी ई सोन
इतिक पराभव आभारक संग
वाहवाह रे मनुजक मोन !
८. जोड़ि सकी त’ हियकेँ जोड़ू !
शूलक नहि परवाहि रहल अछि
जतेक सक्क अछि सभठां बोरू
सीता अवधक धरा समाओलि
आब ने मिथिकेँ धरती कोरू !
जे करबै इतिहास बनाओत
कनकाखर युगग्रन्थ समाओत
भाङ्गल तत्वने भौतिक जोड़य
दड़कल छद्म रसायन जोड़य
कालक घर अछि भावक खगता
जोड़ि सकी त’ हियकेँ जोड़ू !
करनी धरनी ख़ाक छनै छै
अपवित्र मन पाक बनै छै
दुइ अंकक प्रालब्ध ज्ञान नहि
नील -पद्म तरेगनकेँ गनै छै
भंगुर विहनि सुखा रहल अछि
स्रोत कोरि ओकरा त’ बोरू !
लड़ि लड़ि घायल भेल विजेता
कृष ने राम ने द्वापर त्रेता
पुरुखाके अरजल भसकि गेल छनि
ई बुड़बक की नगर बसेता
कर्मक स्नायु घुना गेल अछि
महारथी केर भाभट छोड़ू !
९. सोहर ( कृष्ण जन्म )
आठम दिवस मास भादव राति अन्हरिया रे
ललना रे हरि अयला देवकीक कोर
गहन मेघ करिया रे………
कंसक जेल दड़किक’ फुजल बिनु मरिया रे
ललना रे माँथ चंगेरामे कान्हा
बनल तात भरिया रे ………
दुष्ट कंसक राकस सूतल गोरथरिया रे
ललना रे जागल मात्र दुई देव
ई राति दुपहरिया रे…..
सूतल सकल जीव चेतन मथुरा बजरिया रे
ललना रे स्वर्गमे सुर सभ नाचथि
बनल पमरिया रे……..
माँथ पर सद्यः रक्षक डरने बहरिया रे
ललना रे ग्वालभूमि भाव विभोर देखि
नृपक कहरिया रे……
ओतहु सूतल नृपनंद बदलि देल सरिया रे
ललना रे कृष्ण यशोदाक कोर
हँसल चिघ्घरिया रे……..
१०. झूला ( राधा -कृष्ण )
झूलथि झूला कृष्ण बरसाना तटमे
विवश राधा दृष्टि मात्र पनिघट मे !
वृषभानुक संग एखन गगरी भरै छथि
कीर्तिक चिनुआर लेल ज’ल उपछै छथि
नयनासँ कहि देलनि अएब झटपट मे !
निश्छल परेमक तर देव बौरायल
शीघ्र आउ राधे छथि कान्हा औनायल
छलकि कहय ज’ल हरि प्राण मरुघटमे !
रेशमके’ डोरि ससरफानी पड़ल छै
झूला लग ठाढ़ कृष्ण ज्ञानी अड़ल छै
घुरियो के’ ताकलि नहि , मान संकटमे !
निर्द्वन्द्व तात आबि पड़ला मचानपर
दौड़ि एली राधे सुनि मुरलीक तानपर
ज’लक बिनु मीन जकाँ कृष्ण छटपटमे !
अधम सन वरन के’ ने चेष्टा एत’ अछि
पुनितनेह बसय चरण हरिके’ जत’ अछि
हे शिव ! ई पावन अछि नहि लटपटमे !
११. प्राप्तिक आश किए’ चाननमे ?
गीतिकाव्य केँ चर्च गगन मे
अतुकांती हँसि रहल मगनमे
आब होयत नहि संगत गर्जन
मात्र अकविता सुनब लगनमे
भावपूर्ण सभ रचना उचितन !
कोनो सर्जन पर नहि लांछन
सभ सर्जकके’ ढंग अपन सन
हियक सकारल कृतिक वंदन
दृष्टि संलयन ठामक खगता
शक्तिह्रास ने करब विघनमे !
मैथिल मैथिली रास कहै छथि
सीताके’ उपहास करै छथि
मात्र अपन करनी प्रचारमे
खन दर्शक खन मंच चढ़ै छथि
यति गति तं इतिहास लिखै छै
अनुचितश्रम कथीके’ मंथनमे ?
करैत रहू जे मोन सुझाबय
बरु अतुकांत पियास मिझाबय
देश काल लेल रचना करियौ
नहि उद्देश्य जे रास रचाबय
निष्ठे सँ सम्मान प्रतिष्ठा
प्राप्तिक आश किए’ चाननमे ?
कीर्तिक कृति अछि अकवितासँ
कोकिल मधुप गीति सवितासँ
व्यंग्यवाण भावक सुगान लेल
अमर आरसीेँ दिशि ममताासँ
यायावर यात्रीक सुगम रथ
काशीसँ मिथिके’ उपवनमे !
प्रचारहेतु मायक करेज नहि
कुम्भकरण लेल कुशक सेज नहि
गाल बजेबै सुनि युग हँसतै
कान मुनत जौं होयत तेज नहि
मोन- घ’र आ गाम जगबितहुँ
व्यर्थ ई विचरण वन नंदनमे !
१२. शरद नवरात्रा (दुर्गा महिमा गीत)
शरदक नवरात्रि आबि गेलै हे एली जगमे भवानी
देवालय मातामयी भेलै हे राज क’रथि रुद्राणी !
ब्रह्मा हरि-हर मिलिक’ मूरति सजाबथि
जिनकर प्रभाव अतुल हुनका बजाबथि
अनुखन प्रतिष्ठा प्राण भेलै हे कलशकतर नवानी !
एहेन पिरीत जगत पहिने ने देखल
गोंग बहिर वाकजीव देवताक मेखल
सक्कत जौ नीरसँ महेलै हे देखू आंकुरके’ सानी !
अंग बंग मिथिलामे महालया गुंजन
कन्या कुमारि बटुक पूजाले’ खनखन
पायसमे दृष्टि गड़ि गेलै हे दक्षिणामे सोन चानी !
नौ रूपक जननी सजली बनि सुजाता
हियसँ सकारथु हमर दुर्गामाता
वंदनाक गीत गूंजि गेलै हे सगरिखुशी- ने मलानी !
छथि ई साकार माय शाश्वत सभदिना
हे शिव ने बुझू ई जग लेल नवीना
मुदा ई विशेष क्षण कहेलै हे करू भव्या -बखानी !
१३. सोहर ( दुर्गा- अवतार )
खसल महिसपर दामिनी प्रगटलि भामिनी हे
ललना दुर्गा दुःखके शामिनी फूललि कामिनी हे !
अष्ट शताधिक नामिनी वृषपर गामिनी हे
ललना जगअर्चिस अनुगामिनी विलमलि जामिनी हे !
उमा सर्वाणी रूपा ई आद्या अनूपा हे
ललना मूनलि जग अन्हकूपा कि सोलह स्वरूपा हे !
स्तुतिके मंजुल गान चराचर गुंजित हे
ललना घुरल सुरक सम्मान यथार्थ ने कल्पित हे !
सभसँ श्रेष्ठा जननी ई भेल प्रमाणित हे
ललना ब्रह्मक तीनू रूप अतुल अनुप्राणित हे !
१४. महागौरी वन्दना !
देवि जगदम्बा पशुपतिके’ भामिनी !
आठम रूप दुर्गा सोझाँमे कामिनी
शक्ति अमोघ संग सद्यः फलदात्री
कल्मष बहारि देलहुँ माय जगतधात्री
सोखि लिय’ जगके सभ जामिनी
हे माय सोखि लिय’ जगके सभ जामिनी
देवि जगदम्बा पशुपतिके’ भामिनी !
संताप पाप दैन्य दुःखहु ने आबै
अक्षय पवित्र पुण्य जगमे लहराबै
शंख चन्द्र कुंद फूल भाविनी
हे माता शंख चन्द्र कुंद फूल भाविनी
देवि जगदम्बा पशुपतिके’ भामिनी !
एक हाथ अभय मुद्रा दोसर त्रिशूले
जगब’ लेल डमरू आशीष वर मूले
असुरी मोन लेल बज्र दामिनी
हे माता असुरी मोन लेल बज्रदामिनी
देवि जगदम्बा पशुपतिके’ भामिनी !
महागौरी कांतिमान गौरवर्ण रूपा
स्नेहमयी शांत मृदुल सर्जना स्वरूपा
पार्वती शिवा शक्ति नामिनी
हे उमे पार्वती शिवा शक्ति नामिनी
देवि जगदम्बा पशुपतिके’ भामिनी !
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१५. दुर्गा वंदना
अहींके’ चरणटा अंतिम धाम
हे जगजननी हमर प्रणाम !
हर हरि जपथि अहींके’ नाम
ब्रह्मलेल दुर्गा शब्द सुनाम !
भावक अंजलि भक्तक हाथ
अचले चरणलग जीवक माँथ
भव्या भव्य मात्र गुणग्राम
पबिते चरणरज बिसरल काम !
अंतर बाहर एक समान
सदति भरू माँ समरस तान
पापक भावसँ भेंटय त्राण
हमरो हिय हुअए सतगुण धाम !
कर्मक बेरिने भाग्यक बात
छ’ल प्रपञ्चसँ रही एकात
सतदानक लग काँपै ने हाथ
नेहक हिय योगक विश्राम !
श्रष्टा सृष्टिक सकल विधान
द्रष्टा कालसँ करब निदान
मातृकृपा केँ राखी मान !
एहि आँचर तर पूर्णविराम !
व्यथाकाल ने काँपय देह
सुखक घड़ी नहि उमकय रेह
बाँचल क्षण सन्तोखक याम
प्रांजल “शिव” जीवन आयाम !
१६. अन्तर्मनक अराधना
भक्तिक दुर्ग पड़ल संकटमे दुर्गा शक्ति देखबियौ ने
हहरय आर्य्यक माटि सनातन मैया अपने अबियौ ने ….
भखरल ऋद्धि सिद्धि लिखल पट
माता अहाँकेर मोखेसँ
गोरिया माटिक लेब चढ़ेलहुँ
हमहूँ माता धोखेसँ
बिचुकैत बिचुकैत ज्ञान हेरायल किछु नव दर्शन लबियौ ने …….
एकसरि कहबनि की सुनती माँ
होइछ एकातक गुरुवर झूठ
हरियर पोरगर केर खगता तँ
की करतै ओ तरुवर ठूठ
सगुन ब्रह्म केर सकल उपासक दर्शन आशमे गबियौ ने …..
हे जननी चिष्टान्नमे फुफरी
निर्जल द्रव कोना खीर बनत
भोगक राशि अभोग अंशमे
कोना ने भक्त अधीर बनत
खाली आँजुर ठाढ़ उपासक मात्र भावकेँ पबियौ ने ..
१७. दुर्गा वंदना
दुर्गति नाशिनी अय अहँक आरती
करथि स्वयं जगदीश
काल विनाशिनि अय शिवक हाथमे
अड़हुल फूल पचीस !!
शुम्भ पातकी दम्भक घातिनी
निशुम्भक पाखण्डक कातिनी
आर्यक अराध्या भव्या सम्मुख ब्रह्मा
झुका नेने छथि शीश !!
दैत्य दानव ड’रे काँपथि
आस्तिक स्तुति नव जापथि
उमा रमा ब्रह्माणी अहींक रूपमे
द’ रहली आशीष !!
कलि जगक शांतिकेँ जाड़ल
धर्मी छथि सभसँ बारल
पापक पोटरी हेरथि जनितो ई
जीवन अछि क्षणिक बरिस !!
युगयुगक छगुन्ता तोड़ू
नेहक संग नीतिकेँ जोड़ू
कुमकुम केसर संगहि नित्य देखायब
दीनक मोनक टीस !!
१८. दुर्गा वंदना
दुर्गा महिमा अहँक अनूप !
पहिलुक रूपमे शैल सुता छी
पुनि ब्रह्मचारिणी रूप
दुर्गा महिमा अहँक अनूप !
चन्द्रघंटा बनि संकट हरलनि
मणिपूर चक्रक कूप
स्वर्णिम कान्तिक गाथा गाबथि
दीन सम्बल सभ भूप
दुर्गा महिमा अहँक अनूप !
मंद मुसकि ब्रह्माण्ड बनौलनि
माय कुष्मांडा रूप
अष्टभुजाकेँ प्रिय कुम्हर बलि
सिद्धि निधि सृजन स्वरुप
दुर्गा महिमा अहँक अनूप !
चित्तवृतिकेँ चैतन्य बनयलहुँ
स्कन्दमायक ल’ रूप
चारि भुजा माँझ कोरमे नेना
कमल स्वरूपा सूप
दुर्गा महिमा अहँक अनूप !
आज्ञाचक्रमे साधक के मन
छठम कात्यायिनी रूप
गोधूलि वेला देवी अराध्या
विलम्बित वरन स्वरुप
दुर्गा महिमा अहँक अनूप !
सिद्धिक पट कालरात्रि खोलथि
सातम दिवस अनूप
विद्युत मालसँ तरंग विसर्जित
पुण्यक भाग सरूप
दुर्गा महिमा अहँक अनूप !
श्वेताभूषण वर्ण गोर छन्हि
आठम गौरी रूप
पापविनाशिनी जगत्धात्री हे
भरू अधलाहक कूप
दुर्गा महिमा अहँक अनूप !
नवमस्वरूपा सिद्धिदात्री माँ
कमलासन बहुरूप
साधक मोनक आश सिद्धि लेल
इएह आदि – अंतक रूप
दुर्गा महिमा अहँक अनूप !
१९. दुर्गा वन्दना
भवप्रीता एलखिन आशक संगमे मिथिलाक नगरमे
आ’हे मिथिलाक नगरमे जनककेँ नीति डगरमे
पाटल रंग सत्या अंग अनंगमे शिवक सहचरमे
दुर्गा शूलधारिणी रूपे आद्या चित्त धवल अनूपे
भक्तक उर बोरल भक्तिक गंगमे विमला परतरमे
भवप्रीता एलखिन आशक संगमे मिथिलाक नगरमे
चंद्रघंटाक शंखनाद सुनि सुरभित चित्रा गुण धुनिधुनि
साधिका लपटलि बहुला नेहरंगमे श्रद्धाक भंवरमे
भवप्रीता एलखिन आशक संगमे मिथिलाक नगरमे
भव्या नित्या सर्ववाहन आब ने उपहासक उलहन
भक्तक संग ज्ञाना भाव मतंगमे आर्याक घ’र घ’रमे
भवप्रीता एलखिन आशक संगमे मिथिलाक नगरमे
उत्कर्षिणी शाम्भवी चिंता मातंगी क्रिया अनंता
देवी चरणक लग भक्त मलंगमे गाम गाम शहरमे
भवप्रीता एलखिन आशक संगमे मिथिलाक नगरमे
२०. सिद्धिदात्री वंदना
कमलिनी शिवकशक्ति जगदम्बे
अष्टसिद्धि के’ अहीं अबलम्बे !
अणिमा प्राप्ति ईशित्व हे गरिमा
प्राकाम्य लघिमा वशित्व माँ गरिमा
चतुर्भुजा जग चहुदिशि खम्बे
अष्टसिद्धि के’ अहीं अबलम्बे !
सकल सृष्टिमे किछुओ अगम नहि
जे पकड़ल अपनेक चरण गहि
सिंहवाहिनी सभ दुःखभंगे
अष्टसिद्धि के’ अहीं अबलम्बे !
पंकज दाहिनी अधोहस्त वश
चरणसटल सिर चुसथि कृपारस
कृपा बिराजथि अंग अनंगे
अष्टसिद्धि के’ अहीं अबलम्बे !
देविकृपा शिव अर्द्धनारीश्वर
विषय भोग शून्य मायक गहबर
शान्ति अमियपद निधिक तरंगे
अष्टसिद्धि के’ अहीं अबलम्बे !
यथासाध्य जप पूजन अर्चन
हिय हेरथि माँ देखथि ने साधन
वाकसिद्ध रमा उमा हे गंगे
अष्टसिद्धि के’ अहीं अबलम्बे !
२१.  हे जननी जगदम्ब भवानी ! ( भगवती वंदना )
हे जननी जगदम्ब भवानी
मात्र अहीं अबलम्ब भवानी
हे जननी जगदम्ब भवानी !
सकल जगत के काल विनाशिनी
रौद्र रूप सभ संकट नाशिनी
हर हरि ब्रह्म तेज रुद्राणी
हे जननी जगदम्ब भवानी !
पूर्ण भक्ति लग मुग्ध स्वरूपा
मायक प्रांजल मोहक रूपा
हम अबोध आँचर तर कानी
हे जननी जगदम्ब भवानी !
लक्ष्मी बनि पालक संग विचरण
काली रूप काल तन सिहरन
गणपति रक्षक शिवक शिवानी
हे जननी जगदम्ब भवानी !
वाकदेवी स्वर शब्दक चिंतन
ब्रह्मचारिणी तृष्णाके’ मर्दन
महागौरि कल्मष कल्याणी
हे जननी जगदम्ब भवानी !
२२. नचारी
हिमक शैलपर अपने बैसल
तखन कोना जग तप्त
हे शिव ! मनुजक हियमे उसनल तृष्णा
भक्ति भेलै अभिशप्त !
भरने छह तों कंठ हलाहल
उगलि रहल छै लोक
तांडव मानव क’ रहलै ये’
नहि छै कोनो शोक
दानकबल संग दया के’ सम्बल
करहक जटाजल सिक्त
हे शिव ! मनुजक हियमे उसनल तृष्णा
भक्ति भेलै अभिशप्त !
कंठ जारि नीलकंठ कहेलह
जग होइते निष्प्राण
दीनक हाल तोरा छह बुझले
समरथ -भौतिक तान
चानक अंश उधारक शीतल
सुरुजक देह प्रदीप्त
हे शिव ! मनुजक हियमे उसनल तृष्णा
भक्ति भेलै अभिशप्त !
ज्ञानी बुड़िबक गोंग बनल छै
अधमकेँ वाकक श्रृंग
जे माली बनि सुमन संवारल
ओकरे काटल भृंग
भाव सिनेह साध्यक सांगहतर
साधक धएल विरक्त
हे शिव ! मनुजक हियमे उसनल तृष्णा
भक्ति भेलै अभिशप्त !………….
२३. मैथिली नचारी
हे हर जगक दुःखक नहि छोर !
जखन राति औनाइत मनु मन
ताकय धवल इजोर
हे हर जगक दुःखक नहि छोर !
भौतिकता के’ आश मे नित नित
गहल प्रपञ्चक पाश
दम्भक ताग झूठके’ बनसी
लपसल हाहिक बोर
हे हर जगक दुःखक नहि छोर !
कातर मन संगहि नश्वर तन
मानथि ने मठ-धीश
भेटलनि जोगल कर्मक फल जौं
दनुज नयन मे नोर
हे हर जगक दुःखक नहि छोर !
तेसर नयन दियौ अपने सन
देखबय टा सत्कर्म
चरण अनर्गल बाट पड़य नहि
दर्शन प्रेमक कोर
हे हर जगक दुःखक नहि छोर !
२४. जय जय श्वेताम्बरि जग माता
(सरस्वती वंदना )
जय जय श्वेताम्बरि जगमाता
विद्यावारिधि बुद्धिक दाता !!
चेतना दर्शन ज्ञान प्रदायिनी
स्वर संगीत लयक गति दायिनी
कुम्भकरण सन तप ने निरर्थक
दिअ’ आशीष कर्म हुअए अर्थक
तान सुरक सद्गुणक विधाता
विद्यावारिधि बुद्धिक दाता !!
शरद ऋतु सन शीतल शारदे
देवी वासंती कुबुद्धि ताड़ि दे
श्वेत हंस क्षीर श्वेते कलकल
श्वेतवाहिनी देलहुँ अलभ बल
हम अश्वेत संज्ञान ने माता
विद्यावारिधि बुद्धिक दाता !!
अर्पण पथ केर पुंज नवीना
नवल नेह धुन छोड़थि वीणा
भौतिकबल नहि नहि तन सम्बल
चाही अमल अभिनव धैर्यक बल
सुनू वागीशा अहीँसँ नाता
विद्यावारिधि बुद्धिक दाता !!
२५. सरस्वती वंदना
हंसवाहिनी विद्यादायिनी श्वेत वस्त्रमे शारदे
ज्ञानआदिनी वीणावादिनी अज्ञ भक्तकेँ ताड़ि दे !
सोहजागिनी रागरागिनी लयक पुंज पसारि दे
कल्पदामिनी कर्मकामिनी नवल तान बघारि दे !
शब्द मधुरी कंठ अर्पण मधुर वचनक उर समर्पण
भाल पर तृष्णा भरय नहि देखि वैभव हिय जरय नहि
शांति शीतल गति नियतिसँ कुपित क्रोध बहारि दे !
बुद्धि विद्यासँ भरल तन हाहिसँ एकात हो मन
ज्ञान शाश्वत धम जगाबय इएह स्वरसम भावमंथन
आहि भौतिक कोरमे जग पुनित ज्ञान पसारि दे !
२६. शिव वन्दना ( धुन : लगनी )
श्वेत फूल तोड़ि आनल
पंचगव्य भांग सानल
की आहो रामा
शिव छथि कैलाश कोना क’ मनायब रे की !
शीतल बर्फक ढेर
बाटक ने कोनो टेर
की आहो रामा
व्याधिल देहल संग हिम पर जायब रे की !
रहल ने संगी शेष
गणदेव सेहो ओहि देश
की आहो रामा
उमा मायक आँगन ककरा पठायब रे की !
ने उष्ण वसन बांगक
कलि सेहो एक टाँगक
की आहो रामा
शिव शिव जपिते एतहि औनायब रे की !
समरथ ने भक्तक देह
कोना देव दीनक गेह
की आहो रामा
शिव के दुआरे अंत गमायब रे की !
सबतरि जौं भोल बसथि
किए ने ओ रूप धरथि
की आहो रामा
पानिये जकाँ की सगरो महायब रे की !
२६. सीताक बाललीला ( गीत )
डोलल पलना सिया निन्नेसँ जगलथि
कत’ मयना बेटी अचके मे उठलथि !
माता अभव्या के बाललीला देखियौन
जगतक धात्री केँ हँस’ लेल कहियौन
सबहक पालिका आइ नोरेसँ कुहरथि !
कत’ मयना बेटी अचके मे उठलथि !
भक्तक परीक्षा किएक अय जननी
उपासलि सुनयना ने विघ्न करू मझिनी
देखू दुआरेसँ चाकरि केँ चिकरथि
कत’ मयना बेटी अचके मे उठलथि !
अहीँ के’ पूजा ले’ औखनधरि उपासलि
हियाक दूध देलनि माता पियासलि
स्तुतिक तान सुनि दर्शन ले’ मल्हरथि
कत’ मयना बेटी अचके मे उठलथि !
शिवक भक्त जनक दौड़ि कोरमे उठेलनि
ओहो ने बूझि सकलनि किनका हँसेलनि
क्षीर पीबि जगदम्बा भक्तक घर पलरथि
कत’ मयना बेटी अचके मे उठलथि !
आजुक मिथिला आँगन मैथिली कनै छथि
भेलथि विदेह जनक अपने हँसै छथि
श्रष्टाक दारुण देखि करुण मोन ससरथि
कत’ मयना बेटी अचके मे उठलथि !
२७. सोहर (सीता जन्म )
महमह मिथिला के’ मंदिर खहखह गहबर रे
ललना सिया एली धरतीक कोर गाबथि माय सोहर रे !
गदगद जनकक नेह सुखक नहि परतर रे
ललना चहचह राज विदेह महल दिशि धरफर रे !
खसल अमिय सन नोर सुनयना मोन मलमल हे
ललना सभ दीन मांगथि बधैया जनकपुर मल्हरल रे !
खुशी मोन चानीसोन लुटबथि नृपकेर सहचर रे
ललना राग तान नव अनुरागमे सकल चराचर रे !
सजि गेल आशक पात सजल भोग छप्पन रे
ललना करथि पुरुब अभ्यास देखब कोना नेनपन रे !
गुरुजन गुनल सुदिन दिन सीता भवप्रीता रे
ललना पसरत मिथिलाक नाओं ई जगत पुनीता रे !
२८. भवानी वन्दना
भावक सूरति सजा क’ खाली आँजुरसँ चरण धरै छी
एहि नश्वर संसार पधारू
कुपथ मे धंसलहुँ अपने उबारू
बाहरमे शीतलहरी तैयो कोना हम आगिसँ जड़ै छी
कल्पक मूरति बना क’ हे माता नित दर्शन करै छी !
सकल पिपासा जड़िसँ उखारू
झाँपल भक्तिक डगरि उघारू
तृष्णाकेँ हक्कन कनबियौ हे माता भक्तिक खोईंछ भरै छी
कल्पक मूरति बना क’ हे माता नित दर्शन करै छी !
तीनू जगतक मातु भवानी
गहन अन्हरिया घूमय चानी
चितमे बसै छथि रुद्राणी मुदा हम हाहिक मारल मरै छी
कल्पक मूरति बना क’ हे माता नित दर्शन करै छी !
भक्ति केँ दाबल भौतिक दानव
की करबै -हम कलि के मानव
बेटी बनि पुनि आउ मिथिला हे माता माटिदिशि आश धरै छी
२९. देवी वन्दना
फेरब ने नैन माय भामिनी अय एहि जगतक अम्बा
हेरब दिवस साँझ जामिनी अय सुनू सुनू जगदम्बा !
सोहल फ’ड़क सन भेल हमर जीवन
मुरुझायल प्राण मुदा साधल हिय अर्पण
मौलायल साध्य फूल कामिनी अय नव गुनू अबलम्बा
हेरब दिवस साँझ जामिनी अय सुनू सुनू जगदम्बा !
कातर परान मुदा भावक ने अगता
भक्तिक विहनिसँ उगय चास अगता
डोलबय ने दुविधाक दामिनी अय आस्तिकताक खम्बा
हेरब दिवस साँझ जामिनी अय सुनू सुनू जगदम्बा !
एहिना महमह रहय कर्मक ई आँजुर
ओकरा समेटने हो आशाक आँगुर
हुअए गति जीवन अनुगामिनी अय रहय सोझ चौखम्बा
हेरब दिवस साँझ जामिनी अय सुनू सुनू जगदम्बा !
३०. हे माँ शारदे वाकक अम्बे !!
(सरस्वती वंदना )
हे माँ शारदे वाकक अम्बे !!
शब्द सुहासिनी जय जगदम्बे
विष्णुप्रिया स्वर संगम प्रीता
लखि संगीतक छंद पुनीता
प्रांजल अज्ञ कालि दुःखभंगे !
हे माँ शारदे वाकक अम्बे !!
शोभित श्वेतवस्त्र तन मलमल
वीणा वादन गुंजित स्वरकल
रागक भामिनी तानक गंगे !
हे माँ शारदे वाकक अम्बे !!
कोमल उर मे सुरकेँ सजाबू
विद्या वैभव दीप जड़ाबू
सगरो जगतक अंग अनंगे !
हे माँ शारदे वाकक अम्बे !!
ज्ञान विवेकक वंश बढाबू
सभ संततिकेँ हंस बनाबू
शिष्ट आचरण हँसथि उमंगे !
३१. शरद सुहासिनी जय जगदम्बे …!
सकल जगतमे पुलकित अम्बे
शरद सुहासिनी जय जगदम्बे …!
निश्छल जीवन देखथि तरंगे
बाल सुचेतन माय -उमंगे
आतुर कटकट व्याधिल खम्बे
शरद सुहासिनी जय जगदम्बे ..!
भोग बनल आइ योगक गुनिया
भव्या रूप देखि हरखित मुनिया
रूपसिसँ तपसी भेली रम्भे
शरद सुहासिनी जय जगदम्बे ..!
कणकण बोरल भक्तिक रजसँ
शोभित मुकुट धनधान्य उपजसँ
दिकदिगन्त सुरभित हे दिगम्बे
शरद सुहासिनी जय जगदम्बे ..!
सभ पक्ष ” देवी ” बनि क’ अबितहुँ
धर्मक बाट जगतकेँ देखबितहुँ
नेहक डगरमे पुंज सुगम्बे
शरद सुहासिनी जय जगदम्बे …!
सुरभित नवल सकारथ रूपे
दुर्गति नाशिनी तेज अनूपे
श्रद्धासँ भीजल अंग अनंगे
शक्ति स्वरूपा माँ दुःखभंगे ….!!
३२. हे दुर्गे भवबंधन तारिणी !!
हे दुर्गे भवबंधन तारिणी !!
दृष्टि धरू माँ नरक निवारिणी !
नयन विलोपित ज्योति अलोपित
देखब कोना मायक रूप शोभित
भाव सजल मधु छींटू माता
नीक डगरिकेँ बनबू ज्ञाता
सरित शांत पुण्य पाप बिहारिनी !
हे दुर्गे भवबंधन तारिणी !!
करुणाके एहि जगमे खगता
प्रखर सिद्ध भेल हासक अगता
दारुण लेल मात्र सिंह सुहासिनी
द्रवित शरदमे कमलक आसिनी
दया नीर दिअ’ शस्त्रक धारिणी !
हे दुर्गे भवबंधन तारिणी !!
कातर कातर प्राण बिखंडित
कोना करब हम महिमा मंडित
बुद्धि भ्रमित भौतिक पिआसमे
भाव फूटय नहि नोर चासमे
चित्त ध’ सुनू हे व्यथा उद्धारिणी !
हे दुर्गे भवबंधन तारिणी !!
यद्यपि साकल अर्थ ने साधन
मात्र जलहि संग सुनू माँ वंदन
सकल खलकमे हाहिक क्रंदन
आहि दिअ’ हुअए सगरो नंदन
आत्म प्रसून ल’ ठाढ़ गोहारिनी !
हे दुर्गे भवबंधन तारिणी !!
३३. गणेश वन्दना
शिवगण स्वामी सिद्धिविनायक
पहिलुक पूज्यक हे अधिनायक !
हे लम्बोदर कांति गजानन
श्रापित कौंचक मूषक वाहन
प्रणव ब्रह्म श्रृंग शोभित मस्तक
मध्य उदर सूढ़ मात्रा हस्तक
नाम नाक बुद्धिक परिचायक
पहिलुक पूज्यक हे अधिनायक !
ऋद्धि सिद्धि सहचर जगत विधाता
दर्शन न्याय सनातन ज्ञाता
गाणपतेयक कपिल प्राण छी
विकट एकदन्त लौकिक संज्ञान छी
नमहर कान ग्राह्य शक्तिक लायक
पहिलुक पूज्यक हे अधिनायक !
बिनु ज्ञानक कोनो मुक्ति निरर्थक
केतुरूप स्वामी सर्व दर्शन अर्थक
उमा शिव सुत कार्तिकक अनुज छी
पियरगरि छथि अशोक सुंदरी धी
सुमुख धूम्रकेतु भालचंद्र विनायक
पहिलुक पूज्यक हे अधिनायक !
शुभ लाभ तातकें पियरगर मोदक
पाश अस्त्र ग्राह्य लड्डू भोगक
जलतत्वक पति विघ्नक नाशक
धीर गंभीर अनुशीलन शासक
ओंकारक सर्वव्यापक गायक
पहिलुक पूज्यक हे अधिनायक !
३४. मैथिली नचारी ( शिव स्तुति )
कोन विधि आहे शिव करी हम पूजा
स्तुति मंत्रक नहि ज्ञान
नहि आचमनि लेल पित्तरक अरघा
नहि पूजाक समान….
बाड़ीक भांगक झाड़ी चरि क’
बसहा केलक निष्प्राण
शीतक मारल कनैल फुलल नहि
आकक पात मलान …
फाटल पोथी मुसबा कतरल
कोना विद्यापति तान
लक्ष्मीनाथ गोसाँई कत’ छथि
कत’ गोविन्द रसखान ….
नरक निवारण कोना क’ हेतै
नहि घृत आ ने कपूर
सुरभि अलोपित वरन कत’ सँ
आँजुर भरल धथूर ……..
अंतिम आश धरै छी बाबा
अहीँसँ औढरदान
आन रूपक संग पितरकें दियौँन
दीनक लेल संज्ञान ….
३५. कोजगरा
फोका सनक मखानक लावा गरम जिलेबीक तोर
प्रथम हविषा विष्णुकेँ अर्पित आसिन पूनम इजोर
चलू कोजगरा मनेबै मीठपर पान चिबेबै !
हरिकेँ जागृत कोनाने करबै हरि मिथिलाक जमाय
अवधपुरी पाहुन बनि जेबै ह’म सिया केँ भाय
कौड़ी खेलैत राति बितेबै देखबै कातिक- भोर
अवध बाला संग हंसीठठ्ठा मुदाने मोनमे चोर
मिथिला के’ मान मनेबै मैथिली गान सुनेबै !
नेहक अतुल प्रतीक ई पावनि अन्नपूर्णाक उपासन
ऋद्धिसिद्धि आगमक बाद सभ धरथि पचीशीक आसन
श्रेष्ठजनकेँ ह’म चरण पकड़बै भेंटतै नेहक कोर
शीतसँ भीजल मधुर खीर केँ भोर लगायब ठोर
मधुरी मैथिल कहेबै विद्यापति तान केँ गेबै !
नवल व’रकनियाँ लेल मंगबनि मैथिलीसँ आशीष
ह’म सार लोकक पालक केँ देतथि आशसँ बीस
देखि देखि क’ काँच कुमारके’ मोनमे नाचय मोर
भग्न भेल तन्द्रा त’ चहुँदिशि सुनल पचीशीक शोर
हमहूँ हाथ लगेबै हारल केँ आब जितेबै !
३६. छठि गीत ( २२.१०.२०१६ )
छठिमाता अयली भगत अंगना
चलू – च’लू अय भगतिन करब खरना !
गमकि गेल खीर आब चूल्हिसँ उतारू
बीति गेलै दुःखककाल तुष्टिसँ संवारू
पातरि सजाबथि भरल नयना
चलू – च’लू अय भगतिन करब खरना !
अनुपालक घौर काटि बालक हँसै छथि
संतोखी गात माय भोग लगबै छथि
भाव भरल भक्त सुरूज मोन मगना
चलू – च’लू अय भगतिन करब खरना !
वातक सुगंध सूँघि प्रत्यूषा एलथि
जीवक सिनेह देखि उषाकेँ बजेलथि
नवनव बहुआसिन साजल कंगना
चलू – च’लू अय भगतिन करब खरना !
दू दिनक पावनि ई धरतीपर रहबै
छठिमाय भक्तेसंग सुख दुःखकेँ सहबै
भक्ति भरल साज बाज भाव बजना
चलू – च’लू अय भगतिन करब खरना !
हे माता ! देलहुँजे तकर होइ भोगी
आहिक ने व्याधि धरय ने देहक रोगी
त्रासल पियास हरू करू चंगना
चलू – च’लू अय भगतिन करब खरना !