मिथिलाक वैवाहिक पंजी व्यवस्था आ पंजीकार

मिथिला मे पंजीबद्ध विवाह केर मूल्यवान् परंपरा

– प्रभाकर झा

saurath sabha 2015मिथिलादेशक १४म शताब्दीक आरम्भकालक राजा हरसिंह देव द्वारा शुरू कैल गैल पंजी प्रथा आजुक भोजपत्र आओर कागज केर रूप मे धुरा फाँकि रहल अछि । कि‍छु दस्तावेज सब तऽ एतेक पुरान भए गेल अछि जे ओकरा आब पढ़लो नहि‍ जा सकैत छैक, जे बचल छल ओ या त धुरा फाँकि‍ रहल अछि वा कोनो सरकारी दफ्तर केर अलमारी मे बन्न भए विलुप्त हेबाक कगार पर अछि । जरूरत अछि एकर डिजिटलाइजेशन केर ताकि एकरा आम लोक धरि पहुँचेबाक एकटा ठोस स्रोत बनय। कोनो भी कालखंड मे ई लोक केँ आसानी सँ उपलब्ध भऽ सकय । उक्त गप किछु दिन पूर्व पंजीकार दिवाकर झा संग भेल वार्ता मे सोझाँ आयल।

ओ बतौलनि जे हुनकर परिवार 1558 ई सँ पंजीकार केर रूप मे मिथिलाक मैथिल ब्राह्मण समाज केर वैवाहिक पंजियन कार्य करैत आबि रहल अछि । हुनकर घर मे ओ 11म पुस्त छथि‍ जे पंजीकार बनलाह । अखैन धरि जे पंजीकार बनल ओहि मे क्रमश: स्व० पुराई झा, हरि झा, पोषण झा, महामहोभजन झा, दुल्ला झा, कृष्णा झा, जगधर झा, उमाकांत झा, पंडित पंजीकार श्री देवनारायण झा आ तकर बाद दिवाकर झा छथि‍ ।
एहि गप क आँँगा बढ़ाबैत श्री दिनकर झा बतौलथि‍ जे ओ पंजिकारी मे करीब 40 साल सँ लागल छथि‍ आ अखैन धरि करीब 3000 सँ बेसी पंजियण करा चुकला अछि । हरेक साल ओ 50-60 टा पंजियण त करिते टा छथि‍ । ओ इहो बतौलथि‍ जे सभटा पंजियण ओ तिरहुता लिपी मे करैत छथि । संगे ओ कहलनि जे एहि कुलक नवीन पंजीकार दिवाकर जी छथि‍ जे सबसँ कम बयस मे पंजीकार बनलाह अछि ।
शैक्षणिक योग्यताक हिसाब सँ दिवाकर झाजी एकटा बी-टेक इंजिनीयर छथि‍ । संगे-संग ओ अपन पुश्तैनी परंपरा केँ बचेबा मे सेहो लगन सँ लागल छथि‍ । ओ एकटा कुशल पंजीकार, कुशल चित्रकार आ कुशल अभि‍यंता सेहो छथि‍ । पंजीकरण केर विविध आयाम ओ अपन दादा श्री देवनाराण झा सँ सिखने छथि‍ । श्री झा चाहैत छथि‍ जे सभटा चीज जे पोथी मे बन्न अछि ओकरा पुरा दुनिया जानय । ओ चाहैत छथि‍ जे आभासी दुनियाक लोक सेहो पंजी व्यवस्था सँ परिचित बनय । एहि लेल ओ एकटा एप्प सेहो बनाबय चाहैत छथि‍ जाहि सँ पंजियण व्यवस्था प्रस्तुत भऽ सकय आ आसान भऽ सकय आ सहजहि लोकसभ केँ उपलब्ध भऽ सकय ।
कि अछि पंजी व्यवस्था 
पंजी व्यवस्था क शुरूआत मिथि‍ला नरेश हरिसिंह देव (1310-1324) सर्वप्रथम शुरू केने छथि‍ । दरअसल पंजी प्रथा एक प्रकारक जिनोलॉजिकल रिकॉर्ड अछि जेकरा हम पंजी कहैत छी, अर्थात ओ पोथी जाहि मे हमर पूर्वज क जिनोलॉजिकल रिकॉर्ड होए । एहि प्रथा क लागु करबाक पाछाँ एतबे टा उद्देश्य छल शादी बियाह एहन परिवार मे होए जेकर वर आ वधु पक्ष मे कोनो सीधा रक्त संबध नहि होए । जाहि स हुनकर परिवार मे सुख शांति होए आ वंश मे सुयोग्य आ कुलीन संतान उत्पन्न होए । मिथि‍ला नरेश सबसे पहिने एहि विचार कए 14टा गाम मे लागू करने छलथि‍ जाहि मे सौराष्ट्र, परतापुर, शि‍वहर, गोविंदपुर, गोविंदपुर, फतेहपुर, सजौल, सुखसनिया, अखयारी हेमनगर, बलुआ, बरौली, समसौल, सहसलुका इत्यादि । एहि व्यवस्था कए सुचारू रूप से लागू करबाक लेल पंजीकार क नियुक्ती कैल गेल जे वर वधु क मूल गोत्र क ध्यान मे राखि‍ कए पंजी व्यवस्था कए सुचारू रूप स लागू करैत छलाह ।
वर वधू पक्ष मे सर्वप्रथम संबंध स्थापित करबाक काज पंजीकार द्वारा अधिकार निर्णय सँ शुरु करबाक परंपरा अछि । ओ दूनू पक्षक गोत्र, मूल, आ वंशज कए मिलाकए देखैत छथि जे दूनू पक्ष केर पूर्वज मे कोनो प्रकार सीधा रक्त संबंध पूर्वहि सँ स्थापित तऽ नहि अछि । जँ वर पक्ष आ वधु पक्ष केर पैतृक पक्ष मे ७ पुस्त धरि व मातृक पक्ष मे ५ पुस्त धरि कोनो प्रकारक सीधा रक्त संबंध पहिनहि सँ पाओल जाएत तऽ ओहि विवाह लेल अधिकार निर्णय कार्य निरस्त भऽ जायत। कोनो संबंध नहि रहलाक बादे दुनू गोटेक विवाह केर प्रस्ताव अधिकार निर्णय पाबि स्वीकार होयबाक अत्यन्त मूल्यवान् परंपरा रहल अछि ।
अधिकार निर्णय उपरान्त मात्र पंजीकार द्वारा दुनू पक्षक परिचय केँ पंजीबद्ध ( एक प्रकार क डाक्यूमेंटेशन ) बनाओल जाएछ, आओर ओ हुनकर नाम, ग्राम आ मूल गोत्र केर हिसाब सँ पंजी पुस्तक मे सूचीकृत कैल जाएछ । ओकर बाद बधु पक्ष लेल एकटा परामर्श पत्र बनाबैत ओहि परामर्श पत्र केँ वर द्वारा पढ़ाकय हुनका संग वैवाहिक संबंध स्थापित करल जाएछ । मिथिला मे पंजीबद्ध वैवाहिक परंपराक यैह इतिहास रहल अछि ।
बहुत बाद मे अनुवंशिकी विषय पर शोध प्रस्तुत कएनिहार प्रसिद्ध वैज्ञानिक ग्रेगर मेन्डल व हुनका बादक वैज्ञानिक लोकनि एहि तरहक परंपरा केँ जीनोम फ्यूजन केर संज्ञा देलनि । विश्व परिवेश मे एतेक विलक्षण वैवाहिक सिद्धान्त मात्र मिथिलाक गोटेक वर्ग ओ जाति मे भेटैत अछि ।  बिपरीत जीन मे विवाह केला सँ संतान कुलीन आ स्वस्थ पैदा लैत अछि – विज्ञानहु केर मान्यता यैह अछि । एकरा वैज्ञानिक सेहो प्रमाणि‍त केने अछि । ज्ञात होए कि पंजीकारी प्रथाक लेल मिथि‍ला मे सौराठ सभा गाछी बड्ड बेसी प्रसिद्ध भेल आर एहि तरहक कुल ४२ सभास्थल संपूर्ण मिथिलाक्षेत्र मे लगाओल जेबाक विहंगम इतिहास अछि । एहि सभास्थल पर लाखोंक संख्या मे लोक सब जुटैत छल आर विभिन्न शास्त्रीय परंपरा केँ अनुसरण करैत विवाह योग्य युवा-युवती लेल वैवाहिक संबंध मुक्ताकाश मे उपरोक्त सिद्धान्त पर तय होएत छल । सभा क आयोजन जेना पूर्व मे होएत छल से आब विभिन्न कारण सँ लगभग विलुप्त भए गेल अछि । मिथि‍ला लेल इ दुखद पक्ष अछि ।