Search

जूड़ शीतल केर शुभकामना

झा चन्दन – मिथिलाक एकमात्र कार्टूनिस्ट आ मैथिली जिन्दाबाद केर संपादक (खेल, आइटी, मनोरंजन समाचार) केर एक सदाबहार कृति “कार्टून” सहित अहाँ सब लेल मैथिली जिन्दाबाद केर तरफ सँ शुभकामना संदेशः

अपने सब केँ ‘जूड़ शीतल’ केर हार्दिक बधाई!!

jur shital cartoonभोरे-भोर भिनसरबाक समय मे माँ आ बाबी लोकनि जखन माथ पर ठंढा-ठंढा जल दैत रहथिन्ह, त’ हम चहाकय उठि जैत छलहुँ आ’ पता लागि जाएत छल जे आइ ‘सिरुआ’ और “जूड़-शीतल” छियैक।

हमरा ओही ठाम एहि पाबनि केर ‘टटका-बसिया’ पाबनि सेहो कहल जाएत छैक।
असल मे बात ई जे टटका मे गरम-गरम दैलपूरी आर बसिया मे ‘बाइस बरी-भात’ खेबाक प्रचलन-परंपराक ई पाबनि थीक। एही पाबनि मे मात्र धिया पुता टा नहि, गाछ-वृक्ष केँ सेहो जुराएल जाएत अछि। घरक कोन्टा आ मोख सब केँ सेहो बाइस-बरीभातक भोग लगाओल जाएत अछि।

हमरा सब केँ एखनो धरि याद अछि जे केना सब गोटे मिलीजुलि आमक गाछी जाएत छलहुँ ओतय गाछ सबकेँ जुरेबाक लेल। सुखद आश्चर्य होएत अछि जे अप्पन समाज पर्यावरण केर प्रति कतेक जागरूक छल जे एहेन महत्वपूर्ण परंपरा केँ अदौकाल सँ निर्वाह करैत आबि रहल अछि। आजुक आधुनिक युग मे वैज्ञानिक एहि लेल चिन्ता व्यक्त करैत अछि जे ग्लोबल वार्मिंग आ बढैत औद्योगिकरण सँ प्रदूषण बढिकय मानव जीवन लेल खतराक घंटी बजा रहल अछि, एहि सब सँ बचबाक लेल वनरोपण, वन-संरक्षण आदि करैत मानव जीवन केर रक्षा कैल जा सकैत अछि, नहि तऽ पिघलैत ग्लेशियर सँ नहि जानि कखन जल-प्रलय मचत, आ कि भूकंप सँ धरती दहैल जायत, आ कि भीषण गर्मीक चपेट मे मानव सभ्यता पड़ि जायत…. पानि-पानि कय प्राणी सब विलैक उठत… प्राकृतिक आपदा कोनो रूप मे महाप्रलयंकारी साबित होयत। मुदा गर्व अछि जे हम मैथिल केर संस्कार मे पर्यावरण केर सुरक्षा प्रति सजगता अपन पाबनिक माध्यम सँ सेहो रहल अछि। कतेक संपन्न संस्कृति अछि हमर सच मे!

कतेको गाम मे आजुक दिन शिकार खेलबाक लेल सेहो लोक सब गाछी वा वन‍-जंगल दिस जाएत अछि। जंगली जीव जे मांसाहारी लेल खेबा योग्य मानल जाएत अछि तेकर शिकार करब आजुक विशेष परंपरा मानल जाएत अछि। कहल जाएत अछि जे नहि किछु तऽ एकटा खिखिरोक शिकार करू! नर्हिया, खरिया आदि तऽ खाद्य भेल, अखाद्य जंगली जीव केँ सेहो मारबाक काज मात्र आजुक दिन मानव समाज मिथिला मे करैत अछि। एकरो एकटा सकारात्मक संदेश जाएछ जे जंगली प्राणीक प्रकोप सँ बचबाक लेल ओकरा सबकेँ त्रसित करबाक आवश्यकता अछि। हलाँकि ई प्रथा आइ-काल्हि न्यून किंवा लुप्तप्राय होमय लागल अछि, कारण आब जंगल सेहो नहि भेटैत अछि आ नहिये जंगली जानवरक ओहेन प्रकोप।

औझका दिन धूरखेल लेल सेहो प्रसिद्ध अछि। माटि आ पानि – बाँसक फूचकारी बनबैत लोक खूब थाल-माटि-पानि सब खेलाएत अछि। संभवतः भीषण गर्मीक असैर संग अपना केँ रीतबाक संकेत थीक ई धूरखेल। जहिना होली मे रंग-अबीर तहिना जूड़ शीतल मे धूरखेल!

एहि दिवस केँ मैथिलक नव वर्ष सेहो मानल जाएत अछि। विक्रम संवत केर हिसाब सँ सेहो नव वर्ष आरम्भ होयबाक यैह दिवस थीक। आजुक दिनक आध्यात्मिक महत्व सँ आइयो मिथिलावासी सुपरिचित रहैथ, यैह संदेशक संग हमर एक कार्टून अहाँ सब केँ समर्पित अछि। अपन सुझाव सब पठबैत रही। एक बेर फेर सँ शुभकामना!!

Related Articles