आध्यात्मिक होली मे जीवन लेल कतेको सीख निहित अछि

विचार आलेख

– प्रवीण नारायण चौधरी

होली मनेबाक परंपरा मे रंग-अबीर तऽ अछिये… मुदा एकर माहात्म्य सेहो हमर हृदय केँ बेर-बेर टच करैत रहल अछि।
 
pnc at holiहिरण्यकशिपु केर कठोर तपस्या उपरान्त ओ वरदान मंगबाक समय मृत्यु पर विजय प्राप्त करबाक लेल अपन सर्वोत्तम बुद्धिक प्रयोग केलक। एक तरफ तपस्या समान दुरह कर्म केलक, दोसर तरफ प्रस्तुत फल केर भोग करबाक लिलसा मे मृत्यु समान अटल सत्य केँ असत्य प्रमाणित करबाक लेल सृष्टि रचयिता ब्रह्माजी सँ आशीर्वाद मंगलक।
 
भगवानक विधान सेहो कतेक अटल सत्य छैक से देखू – अत्यन्त विशिष्ट अवस्थाक दर्शन भऽ रहल अछि हमरा एतय…. मोन पुलकित भऽ रहल अछि ई सोचियेकय जे आखिर भगवान् ओहि दानव हिरण्यकशिपु केँ ओहि कठोर तपस्या पूरा भेलाक तुरन्त बाद वरदान मंगबा घड़ी सेहो बुझा-रिझा सकैत छलाह… मुदा ओ स्वतंत्रताक हनन नहि करैत छथि, ओ ओकर माँग केँ पूरा करबाक लेल ‘तथास्तु’ कहैत छथि। कारण, जे कर्म करत, ओकरा फल देबहिये टा के छन्हि हुनका।
 
दोसर विशिष्ट अनुभूति एतय हमरा कि भेटैत अछि, लोकक बुद्धि कतेक…. आखिर हिरण्यकशिपु वरदान मे मृत्यु पर विजय प्राप्त करबाक लेल जाहि-जाहि अवयवक प्रसंग जोड़ि सकल ताहि मे पूर्ण बात समाहित नहिये भेल। ओ नर-जानबर समान कर्ता देखलक, ओ दिन व राति केर पहर देखलक, ओ अस्त्र आ शस्त्र समान हिंसाक साधन देखलक, ओ जल, थल आ नभ समान स्थान देखलक, एतेक तक जे ओ घर आ बाहर केर वातावरण सेहो देख सकल… ओकरा मृत्युक घटना घटबाक लगभग सब अवयव एतेक देखेलैक। तैँ ओ अपन बेहतरीन सोचक अनुसार ब्रह्मा सँ वरदान लय लेलक आ आब अपन माथक कटोरी मुताबिक ओ सर्वशक्तिमान बनि गेल। जखन लोकक मन मे एना सर्वशक्तिमान बनि जेबाक ख्याल घर कय जाएछ तकर बाद फेर ओकरा दोसर केँ आँखि देखबय मे समय नहि लगैत छैक। मानव केर एकटा दुर्गुण कहू आ कि स्वभावक एकटा विलक्षण रूप – सम्मान सँ शक्तिमान् आ शक्तिमान् सँ अभिमान बढब तय होएत छैक। गोटेक निरपेक्ष लोक सब किछु केँ अत्यन्त सहज भाव मे ग्रहण करैत भगवान् केर सत्ता केँ सदिखन ओहिना मानैत रहैत अछि। वैह अदृश्य सत्ताधारीक सत्ताक सर्वमान्य व्यवस्थाक अन्तर्गत अपन जीवन केँ मानैत अछि। मुदा हिरण्यकशिपु मे ओ अभिमान चरम पर जाएछ आर ओ अपना केँ सर्वशक्तिमान घोषित करेबाक अभियान चला बैसैछ।
 
द्वंद्व तखन शुरु होएत छैक जखन कियो अत्यन्त भक्तमान् आ अन्तर्दृष्टि सँ पूर्ण संपन्न ब्रह्मलीन वेत्ता ओकर एहि अभिमान केर विरुद्ध आवाज उठा बैसैछ। ओकरा ई विश्वास नहि होएछ जे एतेक पैघ वरदान संपन्न भेलाक बादो ओकरा पर कियो आँखि उठा सकैत अछि। मुदा ब्रह्म केँ जाननिहार ओकर छद्म ज्ञान पर हँसैत अछि आर अपरिमित भगवान् केर अनगिनती अवयव सँ ओकरा अपरिचित मानि ओकरा बुझेबाक चेष्टा करैत अछि। एतय विष्णु भगवान् केर परम प्रिय भक्त पात्र प्रह्लाद जे स्वयं एहि तथाकथित सर्वशक्तिमान् राजा हिरण्यकशिपुक पुत्र थीक, ओ पिता केँ उन्टा ज्ञान देमय लगैछ आ हुनका अभिमान केँ त्यागकय बस पूर्वहि समान कठोर तपस्वी बनि अपन मोक्ष प्राप्ति लेल उपदेश देबय लगैछ। पिता हिरण्यकशिपु एना घरहि मे विद्रोह केँ पचा नहि पबैत छथि आर विभिन्न उपाय करैत प्रह्लाद केँ बुझा-सुझाकय विद्रोह अन्त करबाक लेल प्रयास करैत छथि।
 
एतय कतेक रास विशिष्ट दर्शन समाहित अछि तेकरा शब्द मे कोना वर्णन करू, केवल आह्लाद सँ भरल भाव टा राखि रहल छी। प्रह्लाद बाल्यावस्था मे छथि, मुदा आँखि मुनिकय विष्णु भगवान् केँ सर्वसत्ताधारी कहि रहला अछि। हिरण्यकशिपु समान कठोर पिताक आज्ञा केँ अवहेलना कय रहला अछि। पिता केँ पुत्र सँ स्नेह छन्हि, मुदा एना सत्ताक सामर्थ्य पर घरहि मे चुनौती… ना! ई एक अभिमानी पिता केँ मान्य नहि अछि। ओ प्रह्लाद केँ एक विशेष गुरु सँ पाठ सिखेबाक बियौंत करैत छथि। एम्हर सारा प्रजा आ देवलोकहु केर सीमा धरि हिनक घोषणाक तहलका कंपन पैदा कय देने अछि। अपन प्रजा आ राजक सीमा मे केकर तागत अछि जे हिरण्यकशिपु केँ सर्वश्रेष्ठ-अमर-अविजीत नहि मानत! ओ बेचारे गुरु सेहो राजाक आज्ञा मुताबिक मोन मसोसिकय प्रह्लाद केँ वेद-वेदान्तक बिपरीत स्वनिर्मीत आ राजाक प्रेरणा सँ रचित श्लोक आदिक माध्यम सँ शिक्षा देबय लगलाह। सर्वसामर्थ्यवान् प्रभुक स्थान पर एना हिरण्यकशिपु समान मृत्युक ग्रास केँ मृत्युक मालिक कहब प्रह्लाद केँ पिताक अज्ञानता आ गुरु केर भय मे रहबाक बात सँ दलमलित कय दैत छलन्हि। ओ गुरु सँ अपन बालमनक निर्दोषभाव सँ तेना बाजय लगैत छलाह जे बेचारे गुरु आ कक्षा मे उपस्थित अन्य दानव पुत्र-पुत्री छात्र-छात्रा सब भावुक बनि जाएत छल। प्रह्लाद कहय लगैथ, “गुरुजी! अहाँ तऽ अन्तर्प्रकाश सँ पूर्ण छी, फेर एना उन्टा हमर पिताक भय सँ कियैक बाजि रहल छी? अहाँक एना भयभीत होयब हमरा एहि राज केर अन्त शीघ्र होयबाक दृश्य देखा रहल अछि।”
 
गुरुजी एना प्रह्लाद केर मुखारविन्द सँ सत्य केर निरूपण सुनिकय मोनेमोन अत्यन्त प्रसन्न होएथ, सब छात्र-छात्रा ओहि गुरुपरिवार मे प्रह्लादक संग भगवत्गान करय लगैत छल। विद्यालय मे ‘हरे कृष्ण हरे कृष्ण – कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम – राम राम हरे हरे॥’ केर निरंतर गान होमय लगैत छल। ई बात धीरे-धीरे हिरण्यकशिपुक कान धरि पहुँचैत अछि आर ओ औचक निरीक्षण करबा लेल पहुँचि जाएत छथि… तखनहु सब केओ भगवद्भक्ति मे डूबल…. गुरुजी आँखि-ताँखि मुनने अश्रुधारा बहबैत भगवान् केर ओहि रूप मे डूबि गेल छथि…. जेकर वर्णन भक्त प्रह्लाद कय रहला अछि आर दानव पुत्र-पुत्री छात्र-छात्रा सब सेहो अपन-अपन ठुड्ढी-गाल धेने ध्यानपूर्वक ओहि प्रवचन केँ सुनि रहल अछि…. हिरण्यकशिपु ई देखिते आगि समान धधकय लगैत छथि आ गुरुजी केँ खूब फज्झेत करैत कहैत छथि, “जाहि काज लेल अहाँ केँ कहल गेल तेकर बिपरीत अहाँ स्वयं प्रह्लाद सँ शिक्षा लेमय लगलहुँ? हमर सत्ताक अधीन एहि समस्त बाल-बालिका केँ सेहो बिपरीत ज्ञान दिया रहल छी। अहाँ तऽ राजद्रोही छी।…” खैर, गुरुजी केँ व सब छात्र-छात्रा केँ तऽ जे भेल से भेल… मुदा प्रह्लाद बड़ी निडर बनिकय हँसैत पिताक क्रोध शान्त करबाक अनुरोध कय बाजल, “पिताजी! अहाँ कहिया बात बुझब? कनेक एहि कीर्तन केर रस पान कय केँ देखू। सब अंधकार अपने मेटा जायत।” जरल पर नून छीटल समान क्रोध सँ थरथराइत पिता प्रह्लाद केँ डेन पकड़िकय खींचैत लय गेलाह बाहर। अपराधी समान ओकरा प्रताड़ित कय अपन दरबार मे शीघ्र सजाय देबाक लेल नैयायिक सब केँ आदेश देलनि।
 
होलिका केर चर्चा आयल। राजगुरु हुनकर विशेष आशीर्वादक बात केलनि। फागुन पूर्णिमाक अर्धरात्रिक विशेष समय हुनका प्रह्लाद सहित अग्निकुन्ड मे प्रवेश लेल कहल गेल। होलिकाक आशीर्वाद छल जे आइग सँ हुनका कोनो हानि नहि पहुँचि सकैत छल। मुदा एतहु परिणाम भेल उल्टा। होलिका डहि गेली बेचारी! प्रह्लाद केँ ओ आइग छूबियो नहि सकल। टिप्पणीकारक मत अनेक अछि एहि ठाम। किछु लोकक मत छन्हि जे होलिका मे सद्ज्ञान सँ दयाभाव आबि गेलनि। ओ अपन आशीर्वादित ओढनी अपन देह पर सँ उतारिकय प्रह्लाद केँ ओढा देलनि। ओ सत्य केर रक्षा केलीह। जखन कि दोसर मत कहैत अछि जे होलिका केँ आत्मरक्षार्थ अग्नि सँ सुरक्षाक विशेष आशीर्वाद प्राप्त छलन्हि। एतय ओ आत्मरक्षाक स्थान पर बलजोरी प्रह्लाद केर हत्याक मनसा सँ ओकरा संग लय आगि मे प्रवेश केलीह। ताहि सँ ओ आशीर्वादक प्रभाव उनटा भऽ गेल। ईश्वर केर सत्ता मे झूठ केर अस्तित्व छद्म चंद लेल मात्र ओकर अनुभूति करबाक लेल बनाओल गेल अछि, अटलता-स्थिरता केवल सत्य केर मान्यता पर ई सम्पूर्ण सृष्टि आधारित अछि। हमर मत अछि जे दुनू टिप्पणीकार सही छथि। होलिका डहि गेली, प्रह्लाद बाँचि गेलाह। लोक एकरा मिथक मानय, मुदा हमर अन्तर्मनक विश्वास दृढ अछि जे सत्यक कवच सँ घेरल प्रह्लाद केँ उपस्थित आगि किछु नहि बिगाड़ि सकल, अपन दंभ सँ दलमलित आशीर्वाद समूल नष्ट भऽ गेल। आशीर्वाद सेहो छद्म थीक – एहेन गूढ दर्शन भऽ रहल अछि हमरा।
 
आर, अन्तक दिन पुर्णिमाक प्रात तऽ गजबे भऽ गेल! सर्वसामर्थ्यवान् केर भान सँ चूर हिरण्यकशिपु घोर हिंसक ताण्डव करय लागल। ओ आइ अपन पिता धर्म पूरे बिसैर गेल। ओ अपन स्वत्वक झूठ सामर्थ्यक घमंड मे प्रह्लादक सत्य केर अस्तित्व केँ मिथ्या मानि बैसल। ओ समस्त प्रजा केँ बजा लेलक ई देखबाक लेल जे ओकर सत्ताक मान्यता विरुद्ध स्वयं ओकर अपन पुत्र गेल अछि तऽ ओकरा ओ कोन तरहें बध करय जा रहल अछि…. बान्हि देलक अपन निर्दोष पुत्र केँ ओ खंभा सँ। हाथ मे लऽ लेलक खड्ग धरगर… आर नाचय लागल अपन अभिमानक मृदंगी ताल पर। प्रह्लाद एखनहु विहुँसि रहल अछि। ओकरा मृत्यु सँ एकदम डर नहि लागि रहलैक अछि। ओ भले बच्चा छल, मुदा सच्चा छल। सत्यक कवच ओकर रक्षार्थ काज कय रहल छलैक तेकरहु ओकरा परवाह नहि रहैक। ओ पिता केँ स्थिर होयबाक विनय करैत रहल। ओ कहैत रहल जे अहाँक अन्त समीप अछि। एतेक खुलेआम परमात्मा विद्रोह केकरहु कल्याण नहि कय सकल आइ धरि। ईश्वर सँ डर करू! हमरा अहाँ कि डेरायब। सब कियो मृत्यु केँ प्राप्त करैछ। मुदा ई मृत्यु मात्र शरीरक होएत छैक। हम या अहाँ सब हुनक अंश आत्मारूप छी। कतेको बेर जन्म आ मृत्यु मे आबय पड़त। तऽ आइ जँ हमरा मारबे करब तऽ कोन बड़का काज करब, मुदा अहाँ अपन घमन्ड केँ छोड़ू। ओकरा मारू बरु!
 
हिरण्यकशिपु पागल समान दहाड़य लागल। कहलक,
 
“देखय छी कतय छौ तोहर भगवान्!
कहे बचाबहु तोहर प्राण!”
 
आर, तेकर बाद…..
 
जहाँ खड्ग सँ करितय प्रहार,
प्रगट भेलथि ‘नरसिंह’ खंभा फाड़ि!!
धेलनि गट्टा हिरण्यकशिपुक,
एक हाथ सँ ठोंठो दाबि!
घबरायल छल हिरण्यकशिपु देखि हुनका,
करय लागल घिग्घी चित्कार!
जे नहि छल विश्वास कतहु सँ,
से देखलक ओ सोझाँ ठाढ।
आब कि बाजत सूझल नहि ओकरा,
करय लागल ओ घोर विलाप।
मोन पारि ओ कहलक देव सँ,
अहाँ कोनाकय मारब आब?
बिसैर गेलहुँ कि वरदान अपन प्रभु,
हिरण्यकशिपु केँ देने रही,
आब अहाँ लंग अछि कोन शक्ति,
सबटा तऽ हम लेने रही!
कहलैन देव हँसैत ओकरा सँ,
एलहु तोहर मृत्युक सही समय,
वरदानक रक्षा कोना हम करबय
देखमे तूँ संसारहु ई देखय!
नहि हम नर, आ नहिये जानबर,
आयल छी ‘नरसिंह’ स्वरूप,
नहिये घर आ नहिये बाहर,
राखब तोरा चौखैट पर,
ई नहि दिन आ नहिये थीक राति,
मारब तोरा साँझहि पर,
नहि जल थल न नभ मे मारब,
मारब तोरा जाँघहि पर,
अस्त्र-शस्त्र केर बात तूँ छोड़े,
फारब पेट तोर हाथहि-नहे,
आर खेलायब होली तोर खूने,
भक्त प्रह्लादक जीतहि पर!
घरघराइ कंठहि सँ दानव,
मानि लेलक अपन आइ हार!
सब वरदानक काट प्रभु लंग,
देलनि ओकर देह केँ फाड़ि!
खेलल होली खून सँ ओकर,
हँसबैत-खेलबैत भक्त प्रह्लाद,
ई देखबैत संसारक सबकेँ,
कथमपि फँसू न झूठ फसाद!
 
यैह थीक होली! यैह भेल पाबनि-तिहार!!
 
हरिः हरः!!