गीताक तेसर बेरुक स्वाध्याय
(निरंतरता मे… भगवान् ओहि बलक वर्णन कएलनि जे मनुष्यक मुख्य शत्रु थीक आर यैह सब पर हावी रहैत अछि, कोनो तरहें मानयवला नहि होइछ…. काम आर क्रोध केँ ओ बल कहि ज्ञानीजन पर्यन्त केँ एकर चाप मे होयबाक बात कहलैन, मूढक तऽ बाते छोड़ू। संगहि इन्द्रिय, मन आर बुद्धि एहि शत्रुक निवास्थान – यानि किला थीक। भगवान् एकटा सैन्य कमाण्डर समान शत्रु सँ विजय प्राप्त करबाक लेल किलाक बारे मे जानकारी करौलनि। आर आब आगू…)
भगवान् आगाँ कहैत छथि,
तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ।
पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्॥ ४१॥
तैँ हे भरतवंशी सब मे श्रेष्ठ अर्जुन! अहाँ सबसँ पहिने इन्द्रिय केँ वश मे (नियम्य) करैत एहि ज्ञान आर विज्ञान केँ नाश करयवला महान् पापी काम केँ अवश्ये टा बलपूर्वक मारि दियौक।
इन्द्रिय केर स्वभाव जे छैक से अपन विषय तरफ झूकबे करतैक, मुदा ओकरा नियमित-नियंत्रित करब मनुष्यक दृढ इच्छाशक्तिक बात मानल जाएछ। दम साधब जेना साँस केँ नियंत्रण करयवला योग केँ कहल जाएछ, ठीक तहिना इन्द्रिय केँ प्रबल इच्छा सँ रोकबाक लेल ओकरा विषय सँ विच्छेद करबाक साधना मनुष्य सँ संभव छैक। आँखि यदि कोनो गलत विषय देखबाक इच्छा करत तऽ ओकरा मुनि लेब या अन्यत्र किछु पवित्र वस्तु देखबाक तरफ लगा देब तऽ ई अपनहि हाथ मे रहैत छैक। एहनो नहि छैक जे आब आँखि ओतय सँ हँटहे लेल नहि मानत।
भगवान् पहिने तऽ शत्रुक वासस्थल रूप मे इन्द्रिय, मन आर बुद्धिक विषय मे कहिये देने छथि, आब ओहि शत्रु पर विजय प्राप्त करबाक उपाय मे सर्वप्रथम कहला जे इन्द्रिय केँ नियमित आचरण मे लगाउ, नियंत्रित करू। शत्रु (काम आर क्रोध) केँ ज्ञान तथा विज्ञान केँ नाश करयवला बुझैत ओकरा निश्चिते टा मारू।
इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्य: परं मन:।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धे: परतस्तु स:॥ ४२॥
एवं बुद्धे: परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना।
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्॥ ४३॥
इन्द्रिय केँ स्थूलशरीर सँ श्रेष्ठ, सबल, प्रकाशक, व्यापक तथा सूक्ष्म कहल जाएछ। इन्द्रिय सँ पर (श्रेष्ठ) मन अछि, मन सँ सेहो श्रेष्ठ बुद्धि अछि और जे बुद्धि सँ सेहो श्रेष्ठ (पर) अछि, ओ आत्मा थीक।
एहि प्रकारें बुद्धि सँ पर आत्मा केँ जानैत अपनहि द्वारा अपना-आप (आत्मा)क वश मे करैत हे महाबाहो! अहाँ ओहि कामरूप दुर्जय शत्रु केँ मारि दियौक।
ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे कर्मयोगो नाम तृतीयोऽध्याय:॥ ३॥
हरेक मनुष्य केँ यैह संकल्प सँ जीवन पथ पर अग्रसर बनबाक चाही। एतय भगवान् द्वारा कर्मयोग केर सिद्धान्त पर विराम लगायल गेल अछि। गीताक तेसर अध्याय वर्तमान युग मे मनुष्य लेल एकटा मौलिक प्रशिक्षण केर रूप मे बुझल जाएछ। एहि सँ जीवनक हरेक मोर पर कोना आगू बढल जाय से शिक्षा भेटैत अछि।
हरिः हरः!!