प्रेम सँ विवाह धरि
– प्रवीण नारायण चौधरी
हाई स्कूल मे जाइते देरी प्रेम केकरा कहल जाएछ से बुझि गेल छल तिरपित। संगतो तेहने-तेहने आर दीदीक उपन्यास पढबाक आदति सँ अपनो आदति बिगाइड़ लेलाक कारणे ओकरा नायकक नायिका प्रति कल्पना करब सहजहि आबि गेल छलैक। ताहि समय मे तखन नंगापनक हद्द आइ जेकाँ नाँघल नहि जेबाक चलते प्रेम मे मात्र हृष्ट-पुष्ट हिरो आ ब्युटी क्वीन हिरोइन टा होएत छलैक।
तिरपित सेहो प्रेम करय लागल बबीता सँ – कारण ओकर कक्षा मे बबीता मात्र एतेक सुन्नरि छलैक जे तिरपित केँ समझ मे आबि सकलैक। ई ठीक रहत। एकरे संग प्रेम करब। जीवन भरिक सपना सजाबय लागल बबीतेक संग तिरपित। मुदा तिरपित केँ एतेक समझ रहितो जे प्रेम दु तर्फा हेबा लेल हिरोइन तक प्रस्ताव पहुँचायल जाएत छैक, हिम्मत नहि जुटा सकल ओ जे आखिर ई बात ओ बाजत कोना आ दोसर केँ आखिर अपन पवित्र प्रेमक भावना कहि गंदा कियैक करत ओ। बड गुनधुन-गुनधुन केलाक बाद ओकरा कोनो उपन्यास मे पढलहबा याद आबि गेलैक जे पवित्र प्रेम मे ईश्वर बड पैघ भूमिका खेलाइत छथिन, से बस ओ चुप्पे रहबाक निर्णय केलक। खाली जखन छुट्टी होइक तऽ ओ बबिताक पाछाँ-पाछाँ कने दूर धरि चलबाक चेष्टा करय। मुदा ओत्तहु एकटा अन्जान भय ओकरा मन केँ सतबय। ओ सोचय जे कहीं ई पाछू मुड़िकय टोकि देलक तऽ कोना लाज बचत। लेकिन ओकरा अन्दर सेहो एकटा बदमसबा छौंड़ा बसैत छलैक जे शिक्षक आदि सँ सुनय लेल भेटैत छलैक, ठानि लेलक जे पूछत तऽ कहि देबैक जे तूँ हमरा बड़ नीक लगैत छँ। बस, यैह सब सोचि ओ नित्य बबीताक पाछाँ-पाछाँ चलय। ओकरा घर धरि अरियातय मे खूब डर लगैक ताहि हेतु घर सँ सौ मीटर एम्हरहि सँ ओ अपन घरक रस्ता धऽ लैत छल।
प्रेम तऽ पक्का भऽ गेल छलैक, ताहि हेतु ओ ईश्वर सँ मन्दिर मे बबीता केँ जीवनसंगिनीक रूप मे देखबाक लेल प्रार्थना सेहो करय। “हे भगवती! विद्या-बुद्धि तऽ देबे करू, जीवन मे हमर नायिका बबीते हो सेहो आशीर्वाद देल जाउ।” एतबे छलैक तिरपितक प्रेम। हाई स्कूल केर परीक्षा आबि गेलैक, मुदा एहि सँ एको डेग ओ आगू नहि बढा सकल। बबीता केँ बुझइयो मे एलैक आ कि नहि, पुष्पा केँ धरि सब बात बुझय मे आबि गेल छलैक। ओ जरुर बबीता केँ ठुनकी मारैत कहि देने छलैक शायद। कियैक तऽ बबीता तिरपित केँ देखिते मुंह फेर लैत छल आर कोनो तरहक भाव कहियो नहि दैत छलैक। आखिर ओकरो न अपन सुन्दरताक दावी रहैक। क्लास मे सब सऽ बेसी सुन्नरि। ओनाहू गोर मौगी गौरवे आन्हर…. ई कहबी ओहिना थोड़े न बनलैक। बस तिरपित जाहि सिद्धान्तक प्रेमी छल ताहि मे एना भाव नहि भेटब ओकरा आरो भीतर सँ गुदगुदबैक, कारण निश्छल प्रेम मे नायिकाक नौटंकी – नखरा कने बेसी सब उपन्यास मे पढने छल….
बबीता केर भीतर कि छलैक से बात पुष्पे टा बुझय। पुष्पा धरि तिरपित केँ देखिकय मात्र मुस्की दैत छलैक। परीक्षाक तैयारी मे सब लागि गेल। विद्यालय एनाय-गेनाय बन्द भऽ गेल छलैक। बबीताक दर्शन पर्यन्त तिरपित केँ होयब आब संभव नहि होइक। तैयो सांझक आरती मे ओ भगवती सँ ओकरे संग माँगैत छल। ओकर ओ प्रार्थना परमानेन्ट बनि गेल छलैक। परीक्षा खत्म – रिजल्ट सेहो आउट – बबीता अपन दुनिया मे आ तिरपित केर प्रार्थना मे आइयो ओ कतहु न कतहु रहबे करय। बबीताक गामक कोनो दोसर विद्यार्थी केँ तिरपित देखय तऽ ओकरे मे बबीताक दर्शन करैत अपन प्रेम-पिपासा केँ मिझा लैत छल।
गाम-घर मे बेटी बहुत दिन धरि कुमाइर नहि रहैत छलैक ताहि जमाना मे। मैट्रीक पास बेटीक विवाह कय देल जाएत छल। आब जँ पतिक परिवार यानि ससुरारि मे पुतोहु केँ पढेबाक परंपरा होइक तऽ बड़ दिव, नहि तऽ भऽ गेल। मैट्रीक पास कनियैन बड करती तऽ चूल्हा फूकती आर धिया-पुता केँ नियमित जन्म देलाक बाद पालन-पोषण एक पढल-लिखल युवती समान करती, धियापुता केँ पढेती-लिखेती आ अनुशासन सिखेती। जँ गामहि मे वा पतिक संग कतहु आनो ठाम प्रवास पर रहबाक छन्हि तखन ओहो हिम्मत जुटेती जे किछु रोजगारी करती। यैह सामान्य युवतीक हाल सनातनकालीन मिथिलाक ओहि युग मे छल जाहि मे तिरपितक उपरोक्त प्रेमक व्याख्या कैल गेल अछि। बबीता बेसी होशियैर छलीह आर तिरपितक प्रेमक जबाब ओ कहियो ओकरा दिशि ताकियोकय नहि देलीह आर जरुर उपहास उड़ौने छलीह तही द्वारे तऽ पुष्पा तिरपित केँ देखि लल्लू बुझिकय हँसय आ मुस्की टा दैक। ओकरा बरु तिरपितक समर्पित प्रेम सँ प्रेम छलैक, मुदा से हिम्मत ओहो नहि केलक जे कहियो तिरपित संग गप करैत ई सब ओकरा लंग प्रकट करितय। समाजक नियम आ अनुशासन – ई सब प्रतिष्ठित परिवार मे रहिते टा छैक। तिरपित वा बबीता वा पुष्पा कोनो अयली-बयली परिवारक धियापुता तऽ छल नहि, ओकर परिवारक शेखीक चर्चा गाम व पड़ोस सब ठाम होइक। निश्चिते एतेक ज्ञान एकरा सबकेँ प्रेमक परिभाषा आ दायरा नीक जेकाँ स्पष्ट केने छलैक। संयोग देखू! बबीताक बियाह कय देल गेलैक आर आब तिरपित केँ स्पष्ट भेलैक जे ओ गलत उमर मे केकरो संग प्रेमक शुरुआत केलक।
सांझखिन आरती मे भगवतीक सोझाँ तिरपित ठाढ भेल आर बहुत बात केलक। कहलकैन जे, “माय! सद्बुद्धि देलहुँ जे हम कहियो बबितिया केँ अपन प्रेमक बारे किछु मुंह खोलिकय नहि कहलहुँ। नहि तऽ आइ हमरा बड कष्ट होइतय। माय!! आब जे हमरा केकरो सँ प्रेम हुअय तऽ ओ यथार्थ आर मजबूतक संग-संग हमर परिवार व समाज केँ सेहो स्वीकार होइक। हम एतबी मंगैत छी।”
भगवती सँ कोनो प्रार्थना पूर्ण आत्मीयता सँ केलापर जरुरे पूरा होइत छैक। तिरपितक परिवार मे ईश्वर प्रति आस्था सदैव तेहने रहल छलैक। ओकरा बबीताक जीवन-संगिनी नहि बनि सकबाक बात पर चिन्ता नहि भेलैक मुदा ओ चिन्तन खूब करैत रहल। ओ आब जीवनसंगिनी यानि कनियां जेकरा धर्मपत्नी कहल जाएत छैक ताहि विन्दु पर विशेष सोचय लागल। उपन्यास मे नायक केर उम्र पर ओ गहिंराई मे बात नहि बुझने छल। फेर मिथिलाक नायक संग नायिकाक आरम्भ कोन उम्र सँ होइत छैक ताहि लेल ओ कोनो उपन्यासो नहि पढने छल। प्रैक्टिकली सोचैत अपने परिवारक सदस्य सबहक विवाहित जीवन पर नजैर दौड़ेलक तऽ पता चललैक जे हिरो सँ हिरोइन कम सँ कम १० वर्ष छोट होइत छैक। एहेन उदाहरण बेसी देखेलैक – वास्तविकता सेहो मिथिलाक यैह थिकैक जे एतय अरेन्ज मैरिज बेसी करबाक कारण हर बेटीवाला एकटा सक्षम जमाय अनबाक इच्छा रखैत अछि। हर बेटावाला सेहो बेटा केँ नौकरी भेलाक बादे बियाह करेबा लेल सोचैत अछि। तखन तऽ तिरपितक उम्र प्रेम करयवला नहि भेल छलैक। वा, प्रेम चूँकि आन्हर होइत छैक जे तिरपितक मोन मे बैसि गेल छल, ताहि हेतु जँ प्रेम करबो करत तऽ बियाह लेल एखन नहि सोचत। एखन प्रेम टा करत आर फेर दुनू मिलिकय अपन आशियाना ठाढ करबाक सपना देखलाक बाद सबकेँ सहमति लैत बियाह करत, निर्णय लऽ लेलक तिरपित। बबीताक लेल नीक जीवन भेटौक से प्रार्थना करैत अपन आगामी जीवन लेल नव प्रार्थना आइ सँ शुरु छलैक ओकर।
एहि बीच ओ कालेज मे नाम लिखा लेलक। आब गाम सँ दूर शहर मे रहबाक डेरा-डंडा बनि गेलैक ओकर। गामक परिवेश मे जेना बान्हल रूटीन व बहुते बात लेल परनिर्भरता रहैत छैक से शहर मे नहि हेतैक ई सब सोचि ओकरा नव जीवनक एहसास भऽ रहल छलैक। कालेज मे क्लास आरंभ होइते ओ शहर आबि गेल। एतय भोरके समय क्लास लगैत छलैक ओकर कालेज मे। आब ओ अपन क्लासमेट सँ प्रेम करबाक विचार पूर्णरूप मे त्याग कय देने छल, कारण बबीता संग टूटल दिल व व्यवहारिक जीवन मे अपना सँ छोट हिरोइन तकबाक निर्णय ओकरा भीतर बैसि चुकल छल। अतः ओ अपन क्लास मे विभिन्न ठाम सँ आयल लड़की सबहक तरफ तकबो नहि करय। जखन ताकत तखने ओकर सुनरताइ ओकरा लोभेतैक…. फेर ई अन्हरा प्रेम कहुँ ओत्तहु नहि लागि जाउक आर फेर बबीता जेकाँ ओहो नायिकाक कतहु आनेठाम सेटलमेन्ट भऽ जेतैक, तिरपित लिल्लोहक लिल्लोहे रहि जाएत…. मोने-मोने ओ सोचय आ माथा झटैककय फेर सँ अपन निर्णय पर बैढ जाय। आब केकरो देखबाके नहि छैक। न रहत बाँस न बाजत बाँसुरी!
कालेज केर जीवन मे किछेक दिन बीतल छलैक। गाम मे बबीता ओकरा भाव नहि देलकैक, मुदा शहर मे जतेक लड़की सब पढय आयल छल ओहो सब तऽ स्वतंत्रताक अनुभूति कय रहल छल। उपन्यास पढबाक कार्य तऽ ओकरो सबहक समाज मे चलन-चलती मे छलैक। प्रेम कोनो जरुरी छैक जे खाली हिरो केर पहल पर हिरोइन सँ हेतैक। शहर मे स्वतंत्र जीवनक आनन्द हिरोइन सेहो कय सकैत अछि। मुदा पारिवारिक संस्कार आर सामाजिक बंधन केर महत्व केँ बुझनिहाइर नायिका कदापि कहियो हूसल डेग नहि उठा सकैत अछि, ई मिथिलाक संस्कार थिकैक। स्वतंत्रताक माने ई कदापि नहि जे अपन माता-पिताक पाग केँ मटियामेट कय जे मोन होयत से करब, केकरो संग उरहैर जायब। ना! कोनो संस्कारी नायिकाक एहेन अधलाह विचार कहियो नहि देखल गेल छल। लेकिन सच ई छैक जे बिपरीत लिंग मे आकर्षण प्रकृतिकेर नियम होएत अछि। यैह कारण सँ मिथिलाक हो आ कि अबध केर, सीता आर राम जेकाँ नयन चारि यानि प्रेम केकरो पर आबि सकैत अछि। ताहि मे स्वतंत्र विचार कनेक उत्साह बेसी जल्दी बढबैत छैक तूलनात्मक रूप मे सामाजिक परिवेश सँ तऽ निश्चिते कहि सकैत छी।
तिरपित केर आन्तरिक ज्ञान – सुन्दर-सुडौल-स्वरूप आर सुमधुर व्यवहार आदि अत्यन्त आकर्षक छलैक। क्लास मे शिक्षक व मित्र सब सँ ओकरा खूब मधुर व्यवहार भेटैत छलैक। निश्चिते ई मधुरताक प्रवाह ओकर क्लासक छात्रावर्ग पर सेहो गेलैक। आर एना मे तिरपित केँ कियो खूब पसिन करय लागल छल। मुदा हाई स्कूल केर ठीक बिपरीत एहि बेर तिरपित ओकरा बारे मे न जनबाक इच्छा रखैत अछि, नहिये प्रेम करबाक लेल ओकरा एहि क्लास मे प्राकृतिक मित्र भेटतैक तैँ ओ अपना दिशि सँ कोनो प्रयास करबाक तत्परता रखैत अछि। बस, जे ओकरा पसिन केलक, ओहो मनहि मन गुर-चाउर फाँकिकय बस देखा-देखी आ मनहि-मन सपना देखबाक प्रक्रिया सँ आगू नहि बढि सकल। दुइ वर्ष धरि समय कोना बीतल, परीक्षाक बेर आबि गेल आर फेर ओहि कालेजक समय खत्म। तिरपित अपन दिशा मे आर ओ नायिकाक सहजहि अपन अलग दिशा छलैक।
मुदा तिरपित आब फूटिकय जवान भऽ गेल छल। आब ओकरा इन्टरमिडियेट केर रिजल्ट एबाक प्रतीक्षा रहैक। ताबत ओ गाम मे किछु सार्थक प्रयास सँ अपना सँ छोट विद्यार्थी सबहक संग किछु सांस्कृतिक कार्यक्रम आदिक आयोजन मे लागि गेल छल। ओकरा अपना सँ छोट उम्रक विद्यार्थी सब संग सहकार्य करय मे आब बेसी नीक लगैत छलैक। मोनक भीतर कतहु न कतहु ओकरा अपन हिरोइन केर खोज सेहो छोटे उम्र मे भेटबाक भाव रहल छलैक। एहि तरहें ओकर स्वस्फूर्त संगी-साथी आब बेसी छोटे उम्रक होमय लागल छल। गाम मे ओहि छुट्टीक समय ओ एकटा भव्य नाट्य समारोहक आयोजन केलक। मुदा ताहि मे महिला पात्रक भूमिका अदा करबाक लेल कोनो समाजक बेटी आगाँ नहि अयलीह। गामक संस्कार मे बेटी स्टेज पर चढत से माहौल ताहि दिन तऽ एकदम्मे नहि रहैक। तखन पुरुषे द्वारा महिलाक भूमिका निर्वाह करबाक लेल मेकप आ ड्रेसप करैत खानापूर्ति कैल जाएत छल। गाम मे तिरपित व अन्य संगी-साथी सब मिलिकय एहि खाली समय केर भरपूर सदुपयोग केलक आर त्रिदिवसीय नाट्य समारोहक आयोजन केलक। एकर सुन्दर प्रभाव तिरपितक गाम सँ बाहरोक गाम धरि खूब पसैर गेलैक जे नहि केवल ओकर गामक प्रतिष्ठा केँ बढेलक, बल्कि तिरपितक नाम सगरो होमय लागल। कियो फल्लाँ बाबुक बेटा कहिकय, कियो ओकर नामहि लऽ कय…. – हर तरहें इलाका मे हिरो बनि गेल तिरपित।
पद आ प्रतिष्ठा ओना तऽ मद बढबैत छैक, मुदा तिरपितक अन्तर्ज्ञान ओकरा सदैव अपन साइज मे रहबाक प्रेरणा दैत छल। ओ कोनो उपलब्धि केँ बड पैघ बनाकय वा बड तुच्छ बुझिकय आगाँ नहि बढय, बल्कि अपन गहिंर आस्था सँ सब बात लेल भगवती केँ धन्यवाद करय आर नित्य संध्याक प्रार्थना मे हुनका सँ सब गप करय। ओकरा अपन माता-पिता-परिजनक संग गाम-समाज आ आस-पड़ोस सबहक चिन्ता-चिन्तन करबाक संस्कार सँ परिचय भेटि रहल छलैक। पिता सेहो अत्यन्त सात्त्विक – माता अत्यन्त भक्तमान् – संतान पर एकर नीक असैर सब कियो देखि रहल छल। मुदा उपन्यास व संगत सँ प्रेम केर परिचय तिरपित लेल एकटा अलगे दुनिया बनबैत छल, ई बात आन कियो नहि बुझय। होइतो यैह छैक जे केकरो यदि दस गो आदति मे ८ गो आदति नीक संस्कार केँ परिलक्षित करत तऽ २ गो अपसंस्कार ओहिना नुका जायत। मुदा प्रेमक रोग जे तिरपित केँ लगैत छलैक ओहो तऽ सात्त्विके छलैक, ओकरो मे कोनो अपवित्रता वा कामुकता वा अपसंस्कृति तऽ नहि छलैक। सिद्धान्तो ओकर कोनो अयली-बयली नहि, पूर्ण रूपेण एक बुद्ध समान छल। लेकिन संवादशैली ओकर बोल्ड आ स्ट्रांग छल। ताहि कारण सँ ओकर प्रभाव यदि मित्रवर्ग पर पड़ैत छल तऽ ओकरा संग ईर्ष्या करबाक लेल सेहो उकसबैत छल। ओकर प्रभाव हर वर्ग पर पड़य कहि सकैत छी।
जिनगीक ऐगला मोड़ फेर तिरपितक जीवन मे आबि गेलैक। रिजल्ट आउट आर स्नातक मे प्रवेश लेल शहरक निर्णय – एहि बेर ओ पूर्वक शहर सँ दूर जेबाक मानसिकता बना चुकल छल। ओकरा लेल अप्शन्स मूलतः दुइटा छल। एकटा ओ अप्पन स्वाबलंबन मार्ग पर चलत, दोसर ओ अपन च्वाइश पर शहर चुनत। पिताक स्नेह सँ दूर जेबाक मार्ग मे पिता स्वयं बाधक भेलाह। ओ तिरपित केँ बहुत दूर कोनो शहर जाय देबाक पक्ष मे नहि छलाह। हुनकर मानब छलन्हि जे अहाँ नजदीके रहू। लेकिन तिरपित जिद्द पर छल जे आब ओ स्वाबलंबन मार्ग पर चलत, आर शहर सेहो अपन संस्कृति सँ दोसर संस्कृति मे प्रव्रजन करत। शायद ओकर भितरका मन केँ आब किछु नव देखबाक ललक छलैक। पिता-पुत्र केर द्वंद्व मे फेर तिरपितक जिद्द जीतल। पिता केँ हारिकय अपन एक नजदीकीक संरक्षण मे तिरपित केँ बाहर पठाबय पड़ि गेलनि। तिरपित नव जीवन आरंभ केलक। ओ किछु पार्ट-टाइम जौब पकैड़ लेलक आर बाकी समय अपन पढाई पर ध्यान देमय लागल। मुदा एतय सेहो ओकरा प्रेम आर नायिकाक खोज अन्तर्मन सँ रहबे कैल। एहि क्रम मे ओकरा अपन संस्कृति सँ दूर आरो बेसी स्वतंत्रताक अनुभूति होयबाक कारण उम्रक लेहाज कतहु हेरा गेल। बस, एकटा सुनरकी हिरोइन टा चाही, प्रेम करबाक अछि। कोनो उपन्यास एहेन नहि पढलहुँ जाहि मे हिरो केँ हिरोइन नहि भेटल, आखिर हमर हिरोइन कतय अछि, ओ भेटबाक चाही – एतबे बात बेर-बेर ओकर मन मे घुमरय लागल। नव संस्कृति – नव जीवन पद्धति – मुदा इच्छा वैह पुरनके जे ‘प्रेम’ हो।
आब तऽ ओ सिनेमा सेहो सप्ताहांत मे देखैत छल। शहरक गली-गली मे घूमैत छल। पार्क – कालेज – सिनेमा – समाज… सब तैर ओकरा अपन हिरोइन केर खोज छलैक जे आब उम्रक हिसाबे सेहो तेज भऽ गेल छलैक। आब ओकरो मोछ-दाढी सेहो आबि रहल छलैक। शरीरक बनावट मे एहि समय अपूर्व परिवर्तन अबैत छैक। आवाज सेहो बदैल जाइत छैक। एहि नव शहर आ मिथिला सँ इतर एक नव संस्कृति मे केकर संस्कृति कि आर केकरा सँ ओ करय दोस्ती – एहि बातक बहुत रास विचार ओ अपना मे प्रवेश नहि होमय देलक। आब ओकरा जाति-अनजाति आ अपन भाषा, अनकर भाषा आदिक ज्ञान एकदम हेरा रहल छल। प्रेमक खोज मे असली अन्हरापन आब आबय लागल छल। ओकरा चाही तऽ चाही, बस एकटा हिरोइन चाही। ओकर आँखि ताकि रहल छल। मुदा अन्जान शहर आर चलैत-फिरैत बाट मे कोनो हिरोइन फिल्म मे भेटि जाय तिरपितक खोज ओहिना जारी रहल। आब, तिरपित किछु एक्सट्रा एक्टिविटिज मे सेहो सहभागी बनि गेल छल। नाटक मे रुचि रहबे करैक। ओ एकटा नाट्य संस्था मे जुड़ि गेल छल। संयोग सँ बेसी लोक अपनहि भाषा ओ संस्कृतिक भेटल ओतय। आर पूरा भेल तलाश ओहि हिरोइन केर – ओतय भेट गेली एकटा तरुणी नायिका ओकरा जे अपने गाम सँ किछु दूर मिथिला सँ छलीह, मुदा जातिक विचार सँ ओ राजपुत आ तिरपित ब्राह्मण। लेकिन प्रेम तऽ आन्हर होइत छैक, ई निस्तुकी बात छल। प्रेम भऽ गेल आर एहि बेर एकतर्फा नहि दुइतर्फा भेल।
नाटक मंचन या रिहर्सलक समय – प्रतिभावान् तिरपित आर ओहि मंचक एक कली-नायिका – प्रेमक जैंह-तैंह खोज-तलाश, प्रेम तऽ होबाके छल तिरपित आर स्वाति मे। दुनूक मिलल विचार आर भऽ गेल पक्का-पक्की दोस्ती। तिरपित मानि लेलक स्वाति केँ प्रेमिका आर बढि गेल कतेक बात – घूमय दुनू जोड़ी साथे-साथ – नदी-बगीचा काते कात – देखलक धूप आ बरसात; लेकिन एक दिन एहेन आबि गेल जे टूटि गेल प्रेम आ छूटि गेल मुलाकात। भेल एना जे स्वाति जिद्द करय लागल तिरपित सँ जे चलू, अहाँ हमर पिताजी सँ भेंट करैत एहि प्रेम प्रतिज्ञा केँ बल दियौक। तिरपितक माथा घूमि गेल। ओ कहलक जे एतेक जल्दी पिताजी तक बात पहुँचब ठीक नहि प्रिये। स्वाति कहलक, से कियैक? तिरपित तखन अपन मनक बात रखलक स्वातिक सोझाँ – देखू! एखन पढाई करबाक अछि। किछु बनबाक अछि। यैह कारण गाम सँ एतेक दूर एना नौकरी करैत हम पढाई कय रहल छी। एहेन अवस्था मे प्रेम सँ बियाहक दिशा मे डेग उठायब – ना! हमर तेहेन अवस्था नहि भेल अछि। स्वाति घोर आश्चर्य मे डूबि गेली। ओ जिद्द पर अड़ल छलीह जे बात तऽ अहाँ केँ हमर पिता सँ करहे पड़त। ओ बहुत आधुनिक लोक छथि। ओ अहाँक ब्राह्मण जातिक रहब मंजूर कय लेता। चलू! हमर-अहाँक दोस्ती केँ पक्का करू। मुदा तिरपित आब किछु बेसिये डरा गेल। चौंकि गेल जखन सुनलक जे ओ आधुनिक छथि… ब्राह्मण जमाय स्वीकार कय लेता… बाप रे! हमर पिता तखन राजपुत पुतोहु स्वीकार करती? हमर माय केँ ई केहेन लगथिन? गाम-समाज मे हमरा लोक कि कहत? अनजाती बियाह तऽ केकरहु नहिं धारलक? अनेको प्रश्न तिरपित केर माथ खाय लागल। अन्ततोगत्वा ओ कठोर निर्णय करैत जोर सँ फटकारि देलक स्वाति केँ… ई कि? काल्हि हम सब भेटलहुँ, आइ प्रेम भेल आर आइये जाय पिता व परिजन केँ एहि मे शामिल करी आ बियाहक सपना देखी, एतेक बात लेल हम एखन तैयार नहि छी। हमरो पारिवारिक परिस्थिति अहाँ बुझबाक चेष्टा करू। ई तऽ सोचलहुँ जे अहाँक पिता हमरा मानि लेता, मुदा ईहो सोचू जे हम अपन पिता केँ अहाँ केँ मानबाक लेल कोन बियौंत करब। कि ताहि लेल हम एखन सक्षम छी? नहि-नहि!! स्वाति कन्हुआइत तिरपितक आनाकानी केँ भैरसक नामर्दगी बुझैत आखिर अपन ठोर पर एहेन कठोर वाणी आनिये लेलीह, “नामर्द छी तऽ प्रेम करबाक लेल कियैक अबैत छी? यैह भलैक प्रेम? जेकरा मे अपन स्वाबलंबन बल आर पौरुष केर मान नहि ओ हमर प्रेमी बनत? हम कल्पना मे सेहो अहाँ सँ नफरत करैत छी। आइ हेट यू!!”
बस! राति भरि कछमछ-कछमछ करैत तिरपित समय बिताबैत रहल। स्वातिक एक-एक टा बात ओकरा ऊपर बज्र खसबैत रहल। लेकिन सब सँ बेसी ओकरा ‘नामर्द’ शब्द खाय लागल। ओ सोचलक जे आखिर प्रेम मे मर्दानगीक भूमिका सेहो कतहु न कतहु जरुर छैक। हम मर्द छी आर कोनो जनाना सँ प्रेम करब तऽ जरुरे मर्दानगीक आवश्यकता अछि। नहि तऽ एहि तरहक कठोर वाणी सुनय पड़त जे यदा-कदा जानलेवा सेहो भऽ सकैत अछि। आखिर हम आइ मर्द बनिकय मर्दानगी करैत प्रेम करी आ कि पढाई-लिखाइ करैत पहिने किछु बनी? ओ फेर कठोर निर्णय लेलक। काल्हि सँ ओहि नाट्य संस्था मे गेनाय छोड़ि देलक। स्वातिक मुंहो नहि पसिन अबैक। ओकरा सेहो घोर नफरत भऽ गेलैक जे एहेन कम उम्र मे ओ हमरा सँ मर्दानगीक उम्मीद रखलक, ना, ओहेन नायिका हमर जीवनसंगिनीक भूमिका निर्वाह करत। कदापि नहि! आब स्वातिक मुंहो नहि देखब।
तिरपित एकटा स्वच्छ भावक नायक छल। ओकरा मे पारिवारिक संस्कारक संग विवेकक मात्रा सेहो लगभग पूर्ण छलैक। प्रेम आन्हर होइत छैक, ई ज्ञान ओकरा उपन्यास पढैत-पढैत पहिने भऽ चुकल छलैक। तखन फेर ओहो यदि आन्हर बनत से ओकरा मंजूर नहि भेलैक। आब ओ प्रेम नहि करत। पहिने किछु बनत। तखन फेर माय-बाप सँ अपना वास्ते कोनो नायिकाक चुनाव लेल कहत। भऽ गेल प्रेम आ खत्म भेल तलाश कोनो हिरोइन केर। विवेक ओकर ई जबाब दैत कालान्तर मे तिरपित एकटा नीक पद पर सेवादान करैत परिवार बसेलक। माता-पिताक सही चुनाव पुनः ओकर जीवनक सब सपना केँ मर्यादित ढंग सँ पूरा केलकैक। प्रेम सँ बियाह धरिक गाथा केँ अपन डायरी मे लिखलक आर आइ ई कथा अहाँ सबहक सोझाँ मे अछि। प्रेम कतबो आन्हर कियैक नहि होइक, विवेक केर चश्मा सँ सही दृष्टि भेटैत छैक।
अस्तु!
हरिः हरः!!