छठि मैया आर डूबैत-उगैत सूरुजके पूजा
– प्रवीण नारायण चौधरी
छैठ परमेश्वरी केर पूजा समस्त मिथिलावासी लेल अति प्राचिन पारंपरिक पूजन समारोह थीक। सामूहिक रूपमे बेसीतर महिला लेकनि आर गोटेक पुरुषो व्रतधारी सभ एक्कहि संग कोनो पोखरि वा नदीक किनार पर साज-बाज आर नाच-गाना सहित समारोहपूर्वक नवे-नव छीट्टा-चंगेरा-कोनिया-सरवा-छाँछी आदि मे भिन्न-भिन्न तरहक पूरी-पकवान एवं ऋतुफल संग संध्याकालीन अस्तांचल सूर्य केँ छठि परमेश्वरीक रूप मानि हाथ उठाय नमस्कार अर्पण करैत छथि, आर फेर पुनः उषाकाल भोरहरबे सँ छठि परमेश्वरी (उगैत सूरज) केर दर्शन लेल व्रतधारी करजोड़ि ठरल जलमें ठाड़्ह इन्तजार करैत छथि, सूर्योदय उपरान्त पुनः विभिन्न पकवान व ऋतुफल भरल डालासँ हाथ उठाय नमस्कार अर्पण करैत छठि मैयाक व्रतकथा सुनैत ओंकरी आ ललका बद्धी – ठोप लगबैत व्रतधारी अपन समस्त परिजन केँ भगवान्केर शुभाशीर्वाद प्रदान करैत छथि। अही पूजाकेँ छैठक संज्ञा देल जाएछ। क्रमशः मिथिला व आसपासकेर क्षेत्रसँ शुरु भेल ई पूजा आब समस्त भारतीय तथा नेपालीय संस्कृतिमें प्रवेश पाबि रहल अछि। आस्थाक बहुत पैघ उदाहरण थीक ई पूजा आ समस्त मनोवाञ्छित फल प्रदान करनिहैर शक्तिशाली छठि मैयाक पूजा लेल के आस्थावान् उद्यत नहि होइछ आइ!
व्रती (साधक) अत्यन्त कठोर नियम एवं शुद्ध आचार-विचार संग निर्जला व्रत करैत छथि आर शरदकालमे ठरल जलमे ठाढ भऽ व्रती सूर्यकेँ जल-फलसँ हाथ उठबैत विशेषार्घ्य अर्पण करैत पूजा करैत छथि, पूजाकाल सेहो अत्यन्त विशेष होएत छैक। सच पूछू तऽ छठि मैयाक पूजा-अर्चनाकेर विधान देखि हम सभ नहि सिर्फ प्रभावित रहैत छी, बल्कि एकदम कल जोड़ि शरणापन्न अवस्थामे सेहो रहैत छी जे कहीं एको रत्ती गड़बड़ नहि हो। कनेकबो टा’क अशुद्धि-अपवित्रता खोमाह मानल जाएछ। कहबी छैक जे छठि परमेश्वरीक पूजा मे विधानक महत्ता बेसी अछि। भावनाक संग विधानक शुद्धता आवश्यक अछि। कोनो खोम भेला सँ कखनहु साधनामें विघ्न पड़ि जायत आर तेकर दुष्परिणाम व्रतधारी एवं समस्त परिजन पर पड़त – एहेन भयंकर भय सहित कठोर आस्थाक संग छठि मैयाक पूजा कैल जाएछ।
बहुत गंभीर भावनासँ पूर्णरूपेण शरणागत बनि एहि पूजा मे साधना करबाक विशेष महत्त्व छैक। लेकिन एतेक गंभीरताक रहस्य कि? कि बात छैक जे व्रत एतेक कठोर करय पड़ैत छैक? डूबैत सूरजकेर पूजा किऐक? आउ प्रयास करैत छी जे एहि समस्त रहस्य पर सँ पर्दा उठाबी। कम सँ कम आजुक नवतुरिया (हमरा समेत) लेल ई एकटा महत्वपूर्ण शोधक विषय अछि आर एहिमे सावधानीपूर्वक हम सभ मनन करैत आगू देखी!
सभसँ पहिने छठि मैया के थिकी? वा छठि मैया सूरजरूपमे कोना?
छठि मैयाक विषय मे बहुत रोचक प्रसंग कहल गेल छैक – एक दिन नारद ऋषि व्यामोहित (नारी रूपमे आकर्षित) भेल छलाह। भगवान् विष्णु केर माया सँ नारद केँ एहि तरहक अवस्थाक प्राप्ति भेल छलन्हि। आर कहल गेल छैक जे ई ताहि समय भेल छलन्हि जखन नारदजी कोनो कुण्ड (सरोवर) मे तेसुरका पहरक संध्या करबाक लेल प्रवेश केने छलाह। ताहि समय भगवान् केर मायाजनित एकटा सुन्दर नारी ओहि सरोवर मे अपन अंग-प्रत्यंग प्राच्छालन कय रहल छलीह। संध्या करिते नारदजी केर नजरि हुनका पर पड़ि गेलनि। अपूर्व सुन्दर नारीक विभिन्न जलक्रीड़ा व स्नान-शैली सँ नारदजी सहसा ओकरा तरफ आकर्षित भऽ गेलाह। व्यामोहित नारदजी अपन संध्या करब (सूर्य एवं गायत्री केर उपासना करब) बिसरिकय बस ओहि नारी केर माया-दर्शन मे लागि गेल छलाह। हिनका ऊपर भगवान् केर मायाक कारण हिनका एहि तरहें व्यामोहित देखि सूर्य केँ सेहो हँसी लागि गेल छलन्हि। सूर्य सेहो अपन नियत समयक संग गतिमान रहबाक गति बिसैर गेलाह। एना सूर्यास्तक नियत समय बीतलाक एक पहर काल धरि ओ उदिते रहलाह।
किछुए काल मे नारद केँ व्यामोहन छूटि गेलनि आर ओ पुनः अपना केँ सम्हारैत संध्या मे एतेक विलम्ब हेबाक गलती केँ अनुभव कयलनि। परन्तु सूर्यक पर्यन्त नहि डूबबाक घटना सँ ओ अनुमान कय गेलाह जे हमर उपासनाकाल मे व्यामोहित होयबाक भेद हिनका सेहो पता लागि गेलनि, ई उपहास करैत हमर अवस्था सँ आनन्द लय रहल छलाह। सूर्यक उपस्थिति देखि सभ बात बूझय मे आबि गेलन्हि, तखनहि नारद सूर्यकेँ नारीरूप प्राप्त करबाक शाप दय देलनि जे जेना हमर व्यामोहनक अवस्था सँ अहाँ अपन उपस्थिति रखैत उपहास केलहुँ अछि, जाउ, आइ सँ अहाँक रूप सेहो नारिये समान भऽ जायत।
नारदक शाप केर प्रभाव तथा सूर्यक गति बिसरबाक गलतीक परिणाम सूर्य शापित होएत नारीक रूप मे आबि गेलाह। बाद मे एहि लेल स्वयं विष्णु भगवान् केँ मध्यस्थता करय पड़ि गेलनि। शाप विमोचन करैत ओ केवल एक दिवस लेल सूर्यक नारी रूप केँ कायम रहबाक निराकरण देलनि। ओ दिन आर नहि केवल कार्तिक मासक षष्ठी (छठम) तिथि केर वैह समय राखल गेल जाहि समय ई सब घटनाक्रम घटल छल। समय तेसर संध्या (सूर्यास्तसँ एक पहर पहिले) समय सँ अगिला संध्या याने भोरक सूर्योदय काल केर एक पहर उपरान्त धरि नारी स्वरूपमे रहबाक बात तय भेल जिनका भगवान् विष्णु छठि मैयाक शक्तिस्वरूपा नाम व वर प्रदान कयलन्हि। मिथिला मे यैह देवीक उपासना लेल पूर्वकाल मे योगी-ऋषि द्वारा प्रजा केँ उपदेश कैल गेल आर आदिकाल सँ हिनक उपासनाक एकटा सुनिश्चित विधान बनाओल गेल जाहि अनुरूप छठि मैयाक आराधना चलैत आबि रहल अछि।
छठि मैयाक पूजाक महत्त्व कि?
सूर्यक परिचय सर्वविदित अछि। बिना सूर्य सभ सून्न! विज्ञान – ज्ञान – मान – आन – शान – सभ सूर्यकेर चारू कात अछि, केन्द्रमे मात्र सूर्य स्वयं छथि! नवग्रह, नक्षत्र, भूमण्डल, पंचतत्त्व, उर्जा, पोषण… हरेक ब्रह्माण्डीय लोक केर केन्द्र मे सूर्य अवस्थित छथि! सूर्यक उपासना संसार मे आस्तिक-नास्तिक सभ करैत अछि। मिथिला मे जतय पुरुषवर्ग लेल संध्योपासना मे सूर्य केँ जलक अर्घ्य सँ नित्य त्रिसंध्या उपासनाक विधान अछि, तहिना सूर्य नमस्कार समान प्रखर योग-साधना, नारीवर्ग लेल सेहो नित्य तुलसी एवं सूर्य केँ जलार्घ्य देबाक परंपरा रहल अछि।
सूर्य केँ भगवान् मानल जाय मे किनको कोनो आपत्ति कहियो नहि रहल अछि। नित्य समय सँ उदय, समय सँ अस्त, दिन व रातिक निर्धारण, अग्नि-वायु-वर्षा-मौसम आर समस्त पर्यावरणीय अवयव जे हर जीवक जीवन लेल आवश्यक अछि तेकर दाता – चक्रवर्ती राजा केर संज्ञा सँ सेहो संपन्न केवल सूर्य छथि। ओ चाहे मनुष्यलोक हो वा आदित्य-वसु वा कोनो अन्य लोक; सभक राजा सूर्य! प्रत्यक्ष देवता के अधिपति सूर्य! साक्षात् नारायण केर – त्रिलोकस्वामीकेर प्रतिनिधित्व करनिहार सूर्य! हिनकर पूजा तऽ लोक नित्य करैत अछि। तखन यदि एक दिन (कार्तिक षष्ठी) हिनक विशेष रूप छठि मैया साक्षात् शक्ति केर भंडारिणी हम मानवलोक केर सोझां रहती तऽ सहजहि कृपाक बरसात अपन भक्ति केनिहार पर करबे करती। आर यैह कारण छैक जे आइ मिथिला सँ बढैत-बढैत छठि मैया केर आराधना सौंसे देश व विदेश आदि मे सेहो कैल जा रहल अछि। एहि पूजाक विशेष अर्थ समस्त सखा-परिजनक कल्याणक संग राष्ट्र लेल सेहो कल्याणकारक होइछ – ई मान्यता अछि।
सूर्य केँ प्रतिदिन प्रातः काल अर्ध्य देलासँ आ प्रणाम कएला सँ आयु, विद्या, यश आ बल के वृद्धि होइत अछि ।
आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने-दिने ।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम् ॥
छठि मैयाक व्रतकेर नियम कि?
एहि व्रतमे तीन दिनक कठोर उपवास कैल जाइत अछि। चतुर्थी दिन पवित्र पोखैर वा नदीक जलसँ व्रतधारी सामूहिक स्नान करैत एक बेर खयबाक परंपराक पालन करैत छथि, जेकरा नहाय-खाय कहल जाइछ।
पञ्चमी दिन उपवास करैत सन्ध्याकाल लवणरहित आर गुड़सहित बनल खीर सँ खरना कैल जैछ। खरनाक समय सेहो अत्यन्त तांत्रिक विधि सँ पूर्ण रूपेण सन्नाटाक अवस्था मे करबाक विशेषता अछि। एहि पूजाक समय व्रतधारी पूर्ण समर्पणक मुद्रा मे आबि जाएत छथि, आर संगहि संपूर्ण परिवार तथा श्रद्धालू लोकनि चुपचाप भगवतीक विशेष ध्यान मे आबि जाएत छथि। षष्ठी दिन निर्जल व्रत राखि सूर्यास्त सँ पहिले एवं कतेको जगह सूर्यास्तक बाद पोखरि वा नदीकेर पवित्र घाट पर जलमे ठाढ भऽ पकवान एवं फलादिक डाला सँ अस्त होइत सूर्य जे आब शक्ति-स्वरूपा छठि मैयाक रूप मे परिणत भऽ गेल रहैत छथि तिनका प्रणाम कैल जाइछ, समस्त बन्धु-बान्धवकेर कुशलता एवं कल्याण लेल प्रार्थना कैल जाइछ, मनोवाञ्छित फल व व्रतक निष्ठापूर्वक सफलता एवं चरण मे अटूट भक्ति लेल प्रार्थना कैल जाइछ। पुनः उदयकालिक सूर्य यानि छठि मैया केँ विभिन्न प्रकारक पकवान एवं ऋतुफलकेर डाला आदिसँ हाथ उठाय नमस्कार अर्पित करैत व्रतक कथा श्रवण कैल जाइछ।
छठि मैयाक व्रत कथा
एक छलाह राजा प्रियव्रत जिनक पत्नीक नाम मालिनी छलन्हि। राजा रानी नि:संतान होयबाक कारणे बहुत दु:खी छलाह। महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्ठि यज्ञ करौलन्हि, फलस्वरूप मालिनी गर्भवती भेलीह मुदा नौ महीना बाद जखन ओ बालक केँ जन्म देलीह तऽ ओ मृत अवस्था मे छल। एहिसँ राजा प्रियव्रत बहुत दुःखी भऽ आत्महत्या लेल उद्यत भेलाह। तखनहि एक देवी प्रकट होएत अपन परिचय षष्ठी देवीक रूपमें दैत अपनाकेँ पुत्र वरदान देनिहैर शक्तिरूपा देवी कहैत हुनका सँ अपन पूजा-अर्चना मे लीन होयबाक लेल उपदेश केलीह। राजा देवीकेर आज्ञा मानि कार्तिक शुक्ल षष्टी तिथि केँ देवी षष्टीकेर पूजा कयलन्हि जाहिसँ हुनका पुत्र-धनकेर प्राप्ति भेलन्हि। ताहि दिन सँ छठिक व्रतक अनुष्ठान चलि रहल अछि।
एक दोसर मान्यता अनुसार भगवान् श्रीरामचन्द्र जी जखन अयोध्या वापसी कयलाह तखन राजतिलक उपरान्त सियाजीक संग कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि केँ सूर्य देवताकेर व्रतोपासना कयलन्हि आर ओहि दिनसँ जनसामान्य मे ई पावैन मान्य बनि गेल और दिनानुदिन एहि पावैनक महत्त्व बढैत चलि गेल जाहि मे पूर्ण आस्था एवं भक्तिक संग ई पावैन मनाओल जाय लागल।
मिथिला मे कि सब कैल जाएछ आजुक दिन
घाटबाट साफ-सुथरा करैत केराक थम आदि गाड़ल जाएछ। अनेको प्रकारक साज-सज्जा झालैर आदि लगबैत पूजा-स्थल केँ चमकाओल जाएछ। पहिने तऽ लोक सब केराक थमक बीच मे चौड़ा-बत्ती खोंसि ताहिपर तेल-भरल दिया – चुकिया आदि रखैत छल। मुदा वर्तमान समय मे इलेक्ट्रीकल झालैर केर दीप आर जेनरेटर सँ संचालित रोशनीक जगमगी सँ चकाचक रहैत अछि।
व्रतधारी द्वारा ऋतुफल सहित अन्य मिथिला विशिष्ट उपचारसँ छैठिक हाथ उठाओल जाएत अछि। मिथिलाक विशिष्ट हाथी जे कुम्हार द्वारा खासरूप सँ बनायल जाएछ, ताहि ऊपर पल्लव – ठकुआ – दीपसहितक धूप-दीप दर्शन करैत, ठकुआ-पिरिकिया-टीकरी सहित विभिन्न पकवान-मिठाई सँ भरल छिट्टा, पनपथिया, कोनियां, सूप, डगरी, जे डोमनिर्मित होइछ ताहि सबकेँ हाथमे लैत ठरल जलमे ठाड्ह रहैत दुनू समय यानि डूबैत-उगैत सूरजदेवता केँ हाथ उठेबाक चलन अछि। अस्त उन्मुख सूर्य यानि संध्याक समयसँ ऐगला दिन उदय उन्मुख सूर्यकेँ छैठ परमेश्वरीक विशेष रूप नारायण भगवान् द्वारा भेटल अछि, जिनकर पूजा आराधना अपन विशेषरूपमे भक्तजनलेल विशेष आ तुरन्त फलदायी सेहो होइछ। यैह कारण थीक जे छैठ परमेश्वरीक पूजा आराधनामे कोनो एक विशेष जाति वा धर्मक लोक टा नहि वरन् आस्थावान् सबहक जोश-खरोस संग सहभागिता होइत अछि।
सूरज भगवान् आइ विशेषरूपसँ छठि परमेश्वरीक वरदायी स्वरूपमे रहैत छथि ताहि लेल मिथिलाक परंपरा अनुसार कार्तिकक षष्ठी तिथिमे अपनहि खेतक ऋतुफल जेना हरैद, सूथनी, केसौर, ओल, खम्हाउर, आदि सहित कुशियार, पान, सुपारी, नारियल, केला, टाभ नेबो, कागजी, आ जतेक तरहक उपज मिथिलामे ताहि परिवेशमे होइछ ओ सब किछु समर्पित करैत विशेष प्रार्थना करबाक परंपरा रहल अछि। तहिना कतेको लोक घाटपर नटुआ-नाचसँ परमेश्वरीकेँ आराधना वा कबुला पूरा भेलाक बाद समर्पण करैत अछि…. कतेको ठाम विभिन्न तरहक सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि सेहो आयोजित कैल जाइछ, भजन-कीर्तन-संध्या-सुमिरन-जागरण आजुक रातिक विशेष प्रस्तुतिसँ चारू कात एक विलक्षण शान्ति व परमानन्दक दर्शन मिथिलाक पौराणिक संस्कृति ओ सभ्यताक हिस्सा थीक।
समूहमे कोनो पावैन ओतबा असरदार होइछ जेना एकताबद्ध सेना कोनो देशक सीमाक सुरक्षा लेल। एकतामे बल अछि, अहिना आब मिथिला संस्कृतिकेँ आबाद रखबाक लेल विभेदकारी उपनिवेशी षड्यन्त्रकेँ बुझैत अपन स्वराज्य कायम करबाक लेल सब कियो संकल्प करी।