ईंग्लिश पुतोहु आ पाठक मालिक

नैतिक कथा

– प्रवीण नारायण चौधरी

english putohuपाठक परिवार ओहि गामक शान छलैक। पूरा इलाका मे जँ केकरो कोनो तरहक आवश्यकता होइत छल तऽ लोक पाठक परिवार केर बड़का मालिक लंग आबि हुनका सँ अपन पीड़ाक वर्णन कय समाधान लैत छल। अपन गाम केर लोकक समस्या केँ तऽ सहजहि बड़का मालिक पाठकजी अपन प्रतिदिनक रूटीन मुताबिक अपनहि सँ समाधान कए दैत छलाह।

पाठक मालिक केँ तीन टा बालक छलखिन। तिनू गोटा केँ खूब नीक जेकाँ शिक्षा दियाओल गेल छल। मालिक केर कथन छलन्हि जे जाबत लोक मे शिक्षाक स्तर उच्च नहि होयत, ओ कथमपि अपन कुल, खानदान, संस्कार व संस्कृति आदि केँ ऊँचाई धरि नहि पहुँचा सकैत अछि। मालिक सब दिन बेटाक संग-संग अपन ५ बेटीक शिक्षा पर सेहो भरपूर ध्यान देलनि। लेकिन विद्यमान् समाजक रीति मुताबिक बेटी केँ उच्च शिक्षा लेबाक लेल ओ सब दिन सासूर परिवार पर भार सौंपबाक नीति अपनेबाक बाध्यता रहबाक बात कहैथ। हुनकर मानब छलन्हि जे बेटीक विवाह एकटा निश्चित उम्रक भीतर होयब जरुरी छैक। कुल-खानदान केर मर्यादा पर कतहु प्रश्न नहि उठबाक चाही, ताहि लेल सदिखन बेटी केर विदाई समय सँ करब एकटा भद्र माता-पिता-कुल-परिवार लेल अनिवार्य कर्तब्य मे पड़ैत छैक। तहिना ओ बेटा सबहक विवाह सेहो पढाई करिते समय मे करबाक नियम बनौने छलाह, तिनू बेटाक विवाह स्नातक धरिक पढाई पूरा कएलाक बाद कय देलनि, लेकिन पढाई सँ कहियो मुंह मोड़बाक लेल ओ किनको उत्साहित नहि केला।

दुनू जेठ आर माझिल बालक स्नातक केला उपरान्त उच्च शिक्षा वास्ते दिल्ली विश्वविद्यालय जाय ओतहि सँ स्नातकोत्तर पूरा केलनि। जेठ पुत्र पत्रकारिताक जगत् मे विशिष्टता हासिल करैत राष्ट्र केर एक नामी अखबारक सह-संपादनक भार सँ शुरु करैत बाद मे संपादक पद केँ सुशोभित केलनि। माझिल शिक्षण पेशा मे विभिन्न संस्थान सँ आबद्ध रहैत बाद मे एकटा अपन स्वतंत्र शिक्षण संस्थानक स्थापना कएलाह। दुनू बालक सर्व-सुविधा सँ संपन्न रहैत दिल्ली मे अपन वासस्थल केर निर्माण सेहो कए लेलाह। छोट बालक पिताक सब सँ बेसी दुलारू आ बेसीकाल गामहि केर वातावरण केँ पसिन करैत पढाई स्नातक उपरान्त नहि करबाक निर्णय केलनि। गामक अक्खा जमीन्दारी पर सेहो एकटा पुत्र पिताक संग रहब जरुरी बुझि ओ गामहि रहि गेलाह।

मालिक केर सब धिया-पुताक विवाह एक सँ बढिकय एक खानदानक संतान संग भेलनि। तिनू पुतोहु आ पाँचो जमाय – एक सँ बढिकय एक पढल-लिखल घर सँ स्वयं खूब पढल-लिखल भेलाह। मालिक एहि लेल अपना केँ खूब भाग्यशाली मानैत छलाह जे जहिना ओ शिक्षाक महत्व पर सब दिन लोक सबकेँ बुझबैत रहलाह, तहिना हुनकर परिवार मे सब कियो सुन्दर-सुशिक्षित-सुसंस्कृत भेलाह। जमाय आ समैध सब सेहो मालिक केर मनलाइके भेटलखिन। सब बेटियो केँ मालिक केर निर्देशानुसार समैध व जमाय कम सँ कम स्नातक धरिक डिग्री तऽ दियेबे टा केने छलखिन। अन्दाज लगा सकैत छी जे मालिक केर आठो संतान आ हुनका सबहक धिया-पुता जखन दुर्गा पूजा मे एकठाम जमा होइथ तऽ गाम-समाज मे केहेन सुरम्य वातावरण बनैत होयत। कतेक परिवारक लोक तऽ मालिक केर परिवार केर सब सदस्य केँ एकठाम एकत्रित देखबाक लेल दुर्गा पूजा कतेक जल्दी आबय तेहेन मनोकामना सँ सेहो भरल रहैत छल। नीक दर्शन केकरा नहि नीक लगैत छैक।

ओत्तहि कलह-कलूठ सँ पीड़ित धनक पूजारी परिवार मे कतबो भीड़ लागि जाएत छलैक, मुदा गामक लोक लेल धैन सन। पैसावला सब कियो भऽ सकैत अछि, मुदा सुसंस्कार आ सुसुन्दर सन्मति सँ भरल परिवार मे फरक ओहिना स्पष्ट भऽ जाएत छैक। पाठक मालिक केर घर मे मानू लक्ष्मी ओहिना सदिखन हँसैत भेटि जाएत छल लोक केँ, मुदा यैह दर्शन लेल अन्यत्र वैह गाम मे व्याकुलता साफ झलकैत छल कतेको लोकक दृष्टि मे।

मुदा समय बितैत गेल आ दिल्लीवाली कनियां केर व्यवहार मे जानि नहि कियैक लेकिन परिवर्तन अबैत रहल जे अन्ततोगत्वा ओहि परिवारक हँसैत स्वरूप लेल घातक डायन समान प्रमाणित भेल। पाठक मालिक केर घरक नियम छलन्हि जे गाम मे एला पर सब कियो अपनहि मातृभाषा मे बाजब, आन देश वा परदेशक भाषा – या फेर मलेच्छक भाषा अंग्रेजी आदिक व्यवहार घर मे कदापि नहि करब। लेकिन मझली पुतोहु जे प्रोफेसर साहेबक पत्नी छलीह, ओ अपनो अंग्रेजिये सँ एमए पास छलीह, आ धियो-पुता हुनकर सबटा अंग्रेजी या फेर दिल्लीवला हिन्दीक प्रयोग करैत छल। खाली जखन बाबाकेँ देखय तऽ सब कियो जहिना-तहिना मैथिली मे बात करय। मैझली पुतोहु केँ बड़की पुतोहु सँ बेसी पटरियो नहि बैसैत छलन्हि। मालिक केर धाख सँ दिल्लीक झगड़ा सेहो गाम तक नहि अबैत छल। तथापि जखन कलह कतहु घर प्रवेश कय जाएत अछि तऽ ओकरा कियो कतीकाल ताण्डव करय सँ रोकत। मालिक तऽ १० दिन लेल सबकेँ गाम एबाक निर्णय देने छलाह, कनियां सबहक बापे मालिकक पाँज मे छलखिन, तऽ कनियांक कतेक चलतनि…. लेकिन कलह एहेन शक्तिक नाम होएछ जेकरा मालिको बेसीकाल नहि रोकि सकलाह आ एक दिन ओ मझली पुतोहु अपन जेठ दियादिनी सँ दिल्लीक कोनो मतान्तर लऽ के अंग्रेजी मे झाड़ि रहल छलीह कि मालिक सुनि गेलखिन आर ओ आवाज दैत बजलाह, “ई ईंग्लिश पुतोहु कोन गामवाली थिकी? ई सब घर मे कि भऽ रहल अछि?” एतेक कहैत ओ अपन बेटा सबहक नाम लऽ के सोर पारय लगलाह।

ईंग्लिश पुतोहु पर तऽ कलह केर दुरात्मा शक्ति हावी भऽ गेल छलखिन। ओ कतए सँ आइ ससूर या पति या जेठ-छोट बुझय गेली। बहुत वर्षक दबल-दबायल भड़ास सब निकालबाक छलन्हि। ओ एकदम अंग्रेजिया औरतक समान बजैत-बजैत ससूर सँ भिड़य लेल दलान पर पैर राखि देली। आब तऽ भेल आफद! ससूर एकटा सम्भ्रान्त आ सशक्त लोक, सोचनहियो नहि छलाह जे एहि तरहक उन्मादी प्रवृत्ति कहियो हुनको घर पैर राखत। लेकिन आइ तऽ कलहदेवी नंगे नाचय लेल तैयार छली। अन्त मे गामवला बचबा केँ हाक देलनि। आ कहला जे आर किछु नहि, निकाल दुहत्थी आ ततार एहि मौगिया केँ। एकरा कपार पर जे भूत आयल छौक, उतार तेकरा आइ। छोट दियर भऽ के भाउज पर हाथ कोना चलायब, मुदा बापहु केर बात केँ काटब कोना। दियर, पति, ईंग्लिश पुतोहु, धिया-पुता, सगर गाम आइ पाठक मालिक केर दलान पर एहि अजीब माहौलक पहिल बेर दर्शन कय रहल छल। कलहदेवी शायद पाठक मालिक केर यम बनिकय आयल छलीह…. ई सब हल्ला शान्त भेल नहि कि मालिक छाती पकड़िकय बैसि रहलाह आ फक-फकाइत प्राण छूटि गेलनि।

कलहदेवी अपन काज केलाक बाद ओतय सँ हवा बनिकय उड़ि गेलीह, मुदा ईंग्लिश पुतोहु अपन समस्त ताण्डव छोड़ि पिता समान ससूर केर निर्जीव शरीर लंग जाय निर्लज्जता सँ भरल आर सब संग कानय लगलीह। सबहक अन्तरात्मा मे ईंग्लिश पुतोहु प्रति एकटा अजीब धारणा बैसि गेल। कलंक लागि गेलनि जे हुनकहि व्यवहार सँ मालिक अपन प्राण त्याग कए देलनि।