सत्संग टा फल, बाकी सबटा फूले-फूल

आध्यात्मिक चिन्तन

– प्रवीण नारायण चौधरी

सत्संग कि?

043संसार मे सभ वस्तु, भावना आ अस्तित्व केर अपन-अपन महत्त्व छैक – जेकर अनुभूति हम-अहाँ विभिन्न रूपमे करैत आबि रहल छी। अनेको विद्वान्‌ आध्यात्मिक, सांसारिक आ आधिदैविक विषय मे अपन-अपन तरहें अनेको बात लिखने छथि। हुनक ओ लिखल अनुभव आ शास्त्र-पुराणकेर मत आदि सभ हमरा लोकनि लेल एक संस्कार केर उत्पत्ति करैत अछि।

अपन जीवन केँ एक निश्चित अनुशासन मे राखि चलायब धर्मक पालन करब भेल। धर्म केर अनेक प्रकारक अर्थ बेर-बेर सुनय-बुझय लेल भेटैत अछि। मुदा मानव हेतु अपन जीवन केँ सुचारू ढंग सऽ निर्वाह लेल जे रास्ता केर अपनायब थीक वैह धर्म थीक। एहि मे अनिवार्य रूप सऽ करयवला नित्यकर्म हो, भोजन-भ्रमण (आहार-विहार), चिन्तन-मनन, कर्म-कर्तब्य, शयन-विश्राम, आदि आवश्यक मानवीय कर्म हेतु एक अनुशासन केर निर्धारण हर व्यक्ति आ हर समुदाय मे विशेष ढंग सऽ कैल जाइत अछि। एहि तरहें प्रत्येक मनुष्य केँ अपन निज-धर्म निर्वाह करबाक मौलिक अधिकार अछि। बेशक! एहि तरहें किछु धर्म-विशेष जेना हिन्दू, इस्लाम, क्रिश्चयन, बौध, जैन, सिख, आदि अनेको धर्म (पंथ)क अपन विशेष परिभाषा जीवन चलेबाक लेल छैक।

हिन्दू धर्म केर उपासक केँ जीवन में उपासना – अर्थात्‌ जीवन केर किछु पल अवश्य एहि पृथ्वी समेत अनेको जीवमंडल केर रचयिता ईश्वर केर आराधनाक संग बितायब – एकर पालन करब आर एकर सार्थकता पर प्रकाश देल गेल छैक। उपासक अपना ढंग सऽ ईश्वर केर संग वास करय लेल प्रेरित रहैत छथि। यथाशक्ति तथाभक्ति! एहि कथनी केँ पूरा करय मे केओ कोनो तरहक कमी नहि रखैत छथि। सभक अपन क्षमता अनुरूप मानसिक अवस्था विकास करबाक प्रबल इच्छा रहैत छैक। तीर्थवास सेहो एहि उपासना केर एक सुन्दर स्वरूप थीक। संयोगवश तीर्थमें केवल उपासक केर सत्संग भेटब एक विलक्षण अनुभूति केर सृजन करैत अछि। नहि जानि कोन रूपमे नारायण संग हेता, कखन कोना साक्षात्कार होयत – एहि संज्ञान संग हम सभ एक-दोसर उपासक मे एतेक रमैत छी जे प्रेम आ स्नेह केर असल दर्शन तुरन्त होवय लगैत अछि।

तीर्थवास केर क्रम मे श्रावण मास आ शिवमठ पर सभक सामूहिक जुटान – शिवलिङ्ग पर जलाभिषेक करब – वेदपाठ – स्तुतिगायन – भजन-कीर्तन – नचारी – नाच-गाना – झूँडक झूँड भक्त केर आन-जान – इत्यादि एक विशेष दृश्य देखबैत अछि जे कखनहु हृदय केँ द्रवित करैत अछि।

रहस्य कि – एतेक ज्ञान हमरा नहि अछि… लेकिन सुनौती अनेक बात सुनैत छी… श्रावण मास शिवजी पर हलाहल विष केर असर होइत अछि जेकरा शमन करय लेल विष्णु भगवान्‌ केर आदेश पर मानव प्रजाति देवनदी गंगाजी सऽ गंगाजल खजाना भरि काँवर सहित पैदल शिव-मन्दिर जा ओहिठाम शिवलिङ्गपर जल-सिंचन करैत अछि जाहि सँ बाबा काफी प्रसन्न होइत छथि आ उपासक केर विभिन्न मनकामना पूरा करैत छथि। मनोकामना भौतिक प्राप्ति हो वा आध्यात्मिक प्राप्ति लेल हो – या बिना कोनो कामना केर भगवद् आराधना कियैक नहि हो…. सब प्रसन्न चित्त शिवजी केर पूजा-अर्चना मे लगैत अछि।

जीवनक असलियत कि? 

एहि प्रश्न केर शीघ्रातिशीघ्र ज्ञान भेटत, तीर्थक तुरन्त फल प्रकट होइछ। सत्संग केर प्राप्ति करब सब सँ बेसी पैघ फल केर प्राप्ति होइछ। विश्व मे मानव रूप अपन कर्तव्य प्रति सचेत होयब तेसर प्राप्ति होइछ। प्राप्तिक सीमा नहि!! बस, जीवन धन जतेक कमाओ ततेक सन्तुष्टि बनैत छैक।

हरि: हर:!!