कल्याण कोना होयत: अत्यन्त सहज साधना-उपाय

आध्यात्मिक चिन्तन

– प्रवीण नारायण चौधरी

vishnu bhagavan
श्रीमन्नारायण चरणौ शरणं प्रपद्ये श्रीमते नारायणाय नम:!! ॐ नमो नारायणाय!! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय!! श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेवाय!! हरि: हर:!!

हे भगवान् – ई करू, ओ करू, कि करू? कोना कल्याण होयत? मार्गदर्शन करू!! भगवान् कहैत छथि –

मय्येव मन आघत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय॥

मात्र ‘हमरा’ मे चित्त लगाउ, अपन बुद्धि ‘हमरे’मे लगाउ,

निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशय:॥गीता १२ – ८॥

एकर बाद अहाँ ‘हमरे’ मे निवास करब, एहि मे सन्देह नहि!!

अथ चित्तं समाधातुं न शक्नोषि मयि स्थिरम्॥

एना जँ निरन्तर ‘हमरे’ मे चित्त लगेनाय संभव नहि हो तँ…..

अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनञ्जय॥गीता १२ – ९॥

तखन अभ्यास-योग सँ ‘हमरा’ तक पहुँच बनाउ।

एतय बड-बड गुरुजन सेहो अपन मार्गदर्शन करैत छथि जे अभ्यास-योग कि थिकैक। मानवक मन-मस्तिष्क यानि ‘चित्त’ बड चंचल होइत छैक, सबहक अपन भोग-विषय छैक। जेना जिह्वा छैक, तऽ ओकर रुचि छैक चटपटा-स्वादिष्ट, ओकरा वैह चाही; आँखि देखय मे उत्कृष्ट-आकर्षक देखय लेल आतुर हेबे करत; हर इन्द्रिय अपन-अपन भोग वस्तु पेबाक लेल ‘चित्त’ केँ चहुँदिशि दौडबैत रहैत अछि। “विषय-भोग सँ चित्त केँ बेर-बेर खिंचैत ईश्वर मे लगेनाय – अभ्यास योग कहाइत छैक।”

अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव॥

जँ अभ्यास करबा सँ पर्यन्त असमर्थ होइ तँ…..
समस्त काज-धाज मात्र ‘हमरे’ लेल करू!! 

मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन्सिद्धिमवाप्स्यसि॥गीता १२ – १०॥

एना सब काज ‘हमरे’ लेल कयला सँ सेहो
अहाँ सिद्धि – परमानन्द केँ प्राप्त करब!

अथैतदप्यशक्तोऽसि कर्तुं मद्योगमाश्रित:॥

जँ समस्त काजो मात्र हमरा लेल करबा सँ असमर्थ छी,

तँ हमरहि आसरा मे रहू,

सर्वकर्मफलत्यागं तत: कुरु यतात्मवान्॥गीता १२ – ११॥

स्वयं-नियंत्रित बनि समस्त कर्मक फल केँ त्यागू।

महानुभाव लोकनि!! गीताक हर संदेश मे मानव-कल्याण निहित छैक। जेना ऊपर देखलहुँ, प्रभुजी सब विकल्प सँ ‘कल्याण’ प्राप्तिक उपदेश केलनि। पहिने कहला जे चित्त आ बुद्धि केवल ईश्वर मे लगाउ। जँ ओ पार नहि लागय तँ अभ्यास योग सँ हुनका मे लागू। कतेको एहेन छथि जिनका लेल अभ्यास करब सेहो बड कठिन छन्हि, जनितो-बुझितो कतेक रास आपराधिक मूल्यक कार्य हमरा लोकनि करिते टा छी… चित्त केर चपलताक हम सब गुलाम छी ई बात नित्य-चर्या मे स्पष्ट अछि। तदापि समाधान देल गेल जे चलू, जे करू बस ईश्वर केँ सौंपि कय करैत रहू। मोन मे दोषभाव नहि राखू, भगवान् सँ कोनो पर्दा नहि छैक। बुझू जे हर कार्य हुनकहि लेल भऽ रहल अछि। एनाहू सिद्धि भेटत। आब जँ सेहो भावना सँ जीवन-निर्वाह कठिन बुझाइत हो तँ अन्त मे कहैत छथि जे फलक भोग अपना लेल नीक वा बेजाय केँ बिसरि स्वयं प्रभुक आश्रय मे रहऽवला एक निरीह जीव, सब हुनकहि कृपा सँ होयत ई सोचि, अपना केँ नियंत्रित राखू, द्वंद्व मे नहि फँसू, चिन्ता सँ मुक्त रहू!

हरि: हर:!!