भूमिका:
मिथिलावासीक भाषिक पहिचान मैथिली भाषा सँ मैथिल होइत अछि। राजा हरसिंह देवक समय मे कहाँ दैन मैथिल मूल जाति आ उपजातिक रूप मे अन्य जातिक बँटवारा भेल छल। सब जातिक जन्म, विवाह आ मृत्यु आदिक पंजियन सेहो शुरु कैल गेल छल। आइ केवल किछुए जाति मे ई पंजियन प्रथा जीबित अछि, सेहो मृत्योन्मुखी…. एहि मे सब सँ पैघ कारक अछि जे मैथिल जनमानस बलजोरियो हिन्दिये बाजिकय अपन आत्मसम्मान तकैत छथि। जखन कि वास्तविकता समस्त विकसित राष्ट्र आ क्षेत्रक देखल जाय तँ जाबत अपन भाषाक सम्मान अहाँ नहि करब, ताबत धरि अहाँक सही विकास संभव नहि होयत। आइ मिथिलाक विपन्नता कतहु न कतहु एहि जबरदस्तीक हिन्दी सँ प्रभावित भेल अछि। पहिचानक संकट संवैधानिक भाषा मे एकरा कहल जाइत छैक।
आउ, प्रस्तुत कय रहल छी नाटक ‘दरभंगिया हिन्दी’, ओहि अफीमी भाषाक दमक मे मैथिली भाषाक हत्यारा सब पर हास्य रूप ई प्रहसन केर संज्ञा सेहो पाबि सकैत अछि।
लेखक: प्रवीण नारायण चौधरी
एकांकी नाटक: दरभंगिया हिन्दी
प्रीति: तू काहे पाउडर लगाती है। तू तो ऐसही बड़ी गोर है री। (अपन छोटकी बहिन के ठुनका मारैत कहैत छैक।)
सृति: काहे! पाउडर कोनो गोर होने के लिये लगाया जाता है सो? (ऊचकैत पूछैत छैक अपन बहिनसऽ।)
(दुनू बहिन आपसमें केस थकरैत – पाउडर लगबैत – अलता-श्रृंगार करैत आपस में बात करैत रहैत छलैक। भन्सा घर सऽ माय के स्वरमें)
मम्मी: हय सृतिया-प्रीतिया! एतना बार शोर कर रहे हैं से तोरा
सबके कानमें ठेपी पड़ा है जी?
प्रीति: कि मम्मी?
मम्मी: जल्दी दुनू बहिन अपन खाना खा लो आ बापो के खाना जल्दिये खाय लेल कैह दो। हमरा माथामें आइ भिन्सरे से टनक दे रहा है। कनी जल्दिये आराम करनेका मन है।
सृति: हाँ मम्मी! हमरा तऽ भूखो जोर सऽ लागल अछि।
प्रीति: (बहिनके मैथिली बजैत देखि समझाबैत) हगै! मैथिलीमें बजैत छिहीन। मम्मी के आरो माथ दुखेतैक। बूझल नहि छौक जे ओकरा टेन्शन भऽ जाइत छैक?
सृति: हगै बुझलियौ! चुप-रह! चुप-रह! तू कोन सतिवर्ता छँ से? अपन मुँहक बोली कि तोरा बिसरा जाइत छौक? ई कुनू स्कूल छियैक से?
प्रीति: हँ गै! सेहो ठीके कहैत छँ… स्कूल में तऽ मास्टर सब अपने मैथिलिये में फदर-फदर करतौ आ हमरा सबके मैथिली में बजैत देखि छड़ी लऽ के पिटैत छौ।
(फेर अन्दरसऽ माय हाक दऽ के शोर करैत छैक।)
मम्मी: हय! छौंड़ी सब! तखन से शोर करते-करते हमरा टनक वाला माथा फूट रहा है आ तूँ सब बात नञि सुनती है?
प्रीति: हैया एलियौ मम्मी!
मम्मी: ऐँ जी! तू सब नाक कटाती है… मैथिली बोलकर। तुम सबके चलते हम हिन्दिये बोलते हैं कि हमर जेठकी विशाखापटनम वाली दियादिनी के धिया-पुता से ऐबरी तुहूँ सब कोनो मामला में कमजोर नहि पड़ेगी… आ तू सब तऽ मैथिलिये में कहती है कि एलियौ मम्मी?
सृति: मम्मी! अहाँ पागल नहि बनू। मैथिली हिन्दी सऽ बेसी मीठ लगैत छैक। कोनो स्कूल थोड़ेक नऽ छियैक…?
मम्मी: खबरदार! हम माहूर खा लेंगे… आइन्दा तू सब मैथिली बोली तो। घर हो कि स्कूल! खाली हिन्दी आ अंग्रेजी बोलो।
(दुनू बहिन कनैत सनक मुँह बनबैत माय के मुरी डोलाकऽ गछैत छैक। आगू हिन्दिये बाजब।)
एहि एकांकी नाटक पर पाठक अपन प्रतिक्रिया दरभंगिये हिन्दीमें देब, से आग्रह।
हरिः हरः!