प्रश्न -२ भगवान केँ सर्वस्व अर्पण कएलाक बाद कि पुर्व संस्कारवश निषिद्ध कर्म भऽ सकैत छैक?
उत्तर – नहि भऽ सकैत छैक। यदि अभिमान होइत छैक तऽ वास्तव मे पूर्ण समर्पण भेबे नहि केलैक। पदार्थ केँ भूलवश अपन मानि लेने रही, ओ भूल खत्म भऽ गेल तऽ फेर अभिमान केहेन!
उत्तर – कृष्णावतार मे प्रेम केर मुख्यता छैक। अन्य अवतार मे सेहो प्रेमक अभाव नहि मुदा ओहि मे प्रेम प्रकट नहि छैक।
उत्तर – अवतार केर लीला एकदेशीय होइत छैक और ओहिमे भगवान् केर भाव केर मुख्यता छैक। संसार मे होमयवाली लीला सर्वदेशीय होइत छैक ओहिमे भक्त केर भावक मुख्यता छैक।
उत्तर – मन, बुद्धि और अहम केँ छेड़छाड़ जुनि करू। ओकरा देखबो नहि करू। एक अछि तेकरा टा देखू। एकदेशीयपना मेटा जाय, तेकरो नहि देखू। किछुओ नहि देखू, चुप भऽ जाउ, फेर सबटा स्वत: ठीक भऽ जायत। समुद्र मे बर्फ़ केर ढेला हेलैत रहैत छैक तऽ ओकरा गलेबाको नहि छैक, आ न रखबाक छैक। एकरे सहजावस्था कहल जाइत छैक।
उत्तर – संयोगजन्य सुख केर इच्छाक कारण सँ मात्र अहंता मेटब कठिनाह देखाइत छैक। जिबैत रही और सुख-सुविधा सँ रही – बस एहि टा पर अहंता टिकल रहैत छैक।
उत्तर – फ़र्क ई छैक जे भक्ति मे तँ भगवान् केर सहारा छैक, मुदा ज्ञान मे केकर सहारा छैक? भगवान् केर सहारा रहबाक कारण भक्त मे कोनो कमी सेहो रहि जाय तैयो ओकर पतन नहि होइत छैक।
प्रश्न -११ – सात्विक सुख, शान्ति आर आनन्द मे कि फ़र्क छैक?
उत्तर – कीर्तन आदि मे ‘सात्विक सुख’ भेटैत छैक। सात्विक सुख भोग नहि केला सँ ‘शान्ति’ भेटैत छैक। शान्ति केर उपभोग नहि केला सँ ‘आनन्द’ भेटैत छैक। सात्विक सुख मे गुण छैक, शान्ति और आनन्द गुणातीत छैक। संसार केर त्याग सँ शान्ति और परमात्मा केर प्राप्ति सँ आनन्द भेटैत छैक।
उत्तर – संसार सँ ऊँच उठबाक लेल निष्काम भाव सँ दोसराक हित वास्ते कर्म करबाक आवश्यकता छैक; कियैक तँ सकाम भाव सँ अपना लेल कर्म कयला सँ मात्र मनुष्य संसार मे फ़ँसैत अछि। तैँ करबाक वेग और वर्तमान राग केर निवृत्तिक लेल कर्म करब उपयोग थिकैक।