मिथिला मे अभियानक सफलता-असफलता: एक गंभीर दृष्टिकोण

सन्दर्भ ए दहेज-मुक्त-मिथिला
‍- प्रवीण नारायण चौधरी
 
dmm introआइ व्हाट्सअप पर किछु उत्साही युवा एहि अभियान पर प्रश्न उठेलनि जे सक्रियता महाराष्ट्र मे भेला सँ अथवा कोनो शहर आ फेसबुक टा पर रहला सँ आम जनमानस धरि कोनो लाभ नहि पहुँचि रहल अछि। ई कोनो पहिल बेर नहि जे एहि तरहक प्रश्न उपरोक्त दहेज मुक्त समाजक निर्माण लेल चलायल अभियान पर उठल अछि, एहि सँ पूर्वहु कतेको बेर बिल्कुल एहने प्रश्न सब सँ दुइ-चारि होमय पड़ल अछि सक्रिय योगदानकर्ता सब केँ। व्हाट्सअप पर हमरा मोबाइल मे टाइप करैत लिखबा मे बहुत समय लागि जाइत अछि, ताहि कारण हम अनुरोध केलियैन जे आउ, एहि बहस केँ आम चर्चा बनबैत दहेज मुक्त मिथिलाक फेसबुक ग्रुप पर आनी। तथापि, किनको व्हाट्सअप बेसी नीक लगैत छन्हि, बेसी हाथ ओत्तहि उसरैत छन्हि, अत: ओ बहस हुनका लोकनिक बीच वैह स्थल पर चलि रहल अछि। मुदा ई विषय आम जनमानस सँ जुड़ल रहबाक कारण हम एकरा सार्वजनिक स्थल पर आनबाक लेल एतय लिखि रहल छी।
 
अभियानक सक्रियता मिथिलाक माटि पर नहि भेल – पहिल प्रश्न!
 
मिथिलाक माटि पर रहनिहार बीच परदेशी मैथिल पुतक कमाई सँ कतेको बेर जेबाक प्रयास भेल, लेकिन लोकप्रियता न्युजपेपर केर माध्यम सँ मात्र संस्था केँ भेटल, आम लोक मे नारा पहुँचल, धरि कय टा विवाह मे दहेजक व्यवहार कम भेल आ कि नहि भेल से तथ्यांक हमरा लोकनिक पास नहि अछि। हम सब ओतेक सामर्थ्यवान नहि भऽ सकलहुँ जाहि सँ विचार रहलो पर ओहेन तथ्यांक संकलन कए सकितहुँ।
 
असफलताक मूल कारण:
गाम-गाम मे अभियानक प्रसार करैत एकटा सूचना केन्द्र केर स्थापना, जुड़ल सदस्य द्वारा अपनहि गाम केर जिम्मेवारी ग्रहण करैत एहि लेल एकटा व्यक्ति आ हुनकर नंबर दैत संस्थाक पोस्टर द्वारा सोशियल मिडिया पर प्रचार करबाक काज मे किछु सदस्य छोड़ि बाकी कियो रुचि नहि देखेलनि। एकटा ‘निगरानी समिति’ जे ५ सदस्यीय बनेबाक छल, जे सब समुदायक लोक केँ आपस मे जोडिकय बनेबाक छल, ताहू लेल कतहु सँ कोनो तरहक अगुआई करबाक लेल पहल नहि भेल।
 
सफलताक किछु अकाट्य उपलब्धि:
साल २०११ मे ऐतिहासिक सौराठ सभा सँ ई काज बहुत बढियां जेकाँ शुरु भेल छल। २०१२ मे सेहो जमीन पर गाम-गाम मे बैनर-पोस्टर लगायल गेल छल। साल २०१३ मे मिथिला राज्य निर्माण सेनाक संग सहकार्य मार्फत गाम-गाम जे प्रचार अभियान गेल ताहि मे ई आह्वान केँ समाहित कैल गेल छल। २०१४ मे अभियानी लोकनि गामक वास्ते कोनो खास कार्यक्रम किछु विशेष परिस्थिति मे नहि बना सकलाह। तैयो, २०१४ मे स्मारिकाक विमोचन खास मिथिलाक मैदान मे कैल गेल आ जनमानस संग जुड़ल रहबाक प्रयास कायम रहल। साल २०१५ मे अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली कवि सम्मेलन कैल गेल अछि एखन धरि आ जनजुड़ाव अपना हिसाबे बनले अछि।
 
एकर अतिरिक्त दहेज मुक्त मिथिलाक उपस्थिति मुम्बई, दिल्ली सहित मैथिली महायात्राक क्रम मे कोलकाता, कानपुर, सहरसा, जमशेदपुर, राजविराज, आदि मे सेहो पहुँचल। संगहि सोशियल मिडिया द्वारा निरंतर फोकस मे रहल विषय संबोधन सँ सामाजिक संजाल पर सक्रिय जनमानस मार्फत लगभग संपूर्ण मैथिल मे ई अभियान बहुत बेहतरीन ढंग सँ अपन स्थान बनेने रहल। आइ ‘दहेज मुक्त मिथिला’ कतेको मुक्ति आन्दोलनक जनक बनि गेल अछि। ‘नशा मुक्त मिथिला’, ‘बेरोजगारी मुक्त मिथिला’, ‘अशिक्षा मुक्त मिथिला’ आ आबयवला समय मे ‘रोग मुक्त मिथिला’, ‘भ्रष्टाचार मुक्त मिथिला’, ‘जातीय मतान्तर मुक्त मिथिला’, ‘धार्मिक विभेद मुक्त मिथिला’ आ समाजक हित मे जे किछु आर संभव होयत ताहि केर पहल मे पर्यन्त योगक्षेम दैत नव मिथिलाक निर्माण मे ई सहायक होयत।
 
कोषकेर कमीक मूल कारण:
 
dmm banner 1मैथिल जनमानस मे स्वयंसेवा आ स्वसंरक्षण केर मूल आधार रहल अछि जाहि सँ सनातनजीवी संस्कृति मे मिथिला आइ युगों-युगों सँ भूगोलविहीन अवस्थो मे जीबित अछि। मुदा वर्तमान युग मे अधिकांश लोक ‘स्वार्थपरक’ भौतिकवादी बेसी बनि रहला अछि। तथापि विदेहक संतान मे स्वस्फूर्त योगदान कएनिहार सैकड़ा मे दुइ-चारि गोटा रहिते छथि।
 
मैथिल लोक चन्दा-चिट्ठा मे बेसी विश्वास नहि करैत अछि। सब कियो अति स्वाभिमानी होइत अछि। रुख-सुख भोजन कय लेत, मुदा ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् केर चर्वाक् समान नास्तिकवादी विद्वानक कथन केँ कहियो नहि अपनायत। यैह कारण छैक जे व्यक्तिवादी विकास मे भले मैथिल अपन मूल केँ बिसैर गेल हो, मुदा सामुदायिक हित लेल स्वैच्छिक योगदानक घड़ी ओ बजेला पर कहियो पाछू नहि हँटत।
 
स्वैच्छिक योगदान लेल विषय सार्वजनिक हितक राखय पड़ैत छैक। सबहक हित लेल कार्यक्रम निर्माण करय पड़ैत छैक। ताहि गुणे किछु अत्यन्त पारदर्शी आ समाजिक हित मे सदा समर्पित अगुआ केँ संग लैत धरातल पर काज करबाक लेल आयोजन करय पड़ैत छैक। एहि तरहें लाखों-लाखों खर्च सँ संपन्न होइत छैक अनेकानेक अभियान। गाम मे सार्वजनिक पूजा समारोह, धार्मिक यज्ञ आयोजनादि आ संपूर्ण ग्रामीण सहयोग सँ कोनो असहाय ग्रामीणक कल्याणादि अनेकानेक कार्य आइयो होइते छैक।
 
तखन दहेज विषय केर व्याख्या आइयो बौद्धिक मैथिल लेल एकटा अनरिजोल्भ्ड मिस्ट्री – समाधानविहीन रहस्य केर रूप मे स्थापित छैक। वैवाहिक सम्बन्ध हरेक परिवारक नितान्त व्यक्तिगत निर्णय होयबाक कारण समाजक भूमिका नगण्य होइत छैक। मुदा दहेजक कूरूपता सँ परिचित समाज धीरे-धीरे आब एहि बात लेल तैयार भऽ रहलैक अछि जे एकरा सँ लड़बाक लेल सबकेँ एकजुट होमय पड़त। तखनहु, मिथिला मे आइ धरि कोनो सामूहिक विवाह आ कि दहेज मुक्त विवाह केर आयोजन केर यशगान वा वैवाहिक परिचय सभा वा कोनो सार्वजनिक आयोजन हाल धरि नहि भऽ सकलैक अछि जाहि सँ ‘दहेज मुक्त मिथिला’ केर सपना पूरा हेतैक।
 
फेर, युवा समाज जे आइ परदेश मे अछि, जे मैथिल वाहेक आन-आन समाज मे एहि कूरीति सँ निदान पेबाक विभिन्न उपक्रम सँ परिचय पाबि रहल अछि वैह टा मिथिला केँ सेहो एहि कैन्सर सँ निजात दियेबाक लेल कने-मने सोचैत अछि। ओकरे मे कनेक दानशीलता सेहो छैक जे एहि तरहक आयोजन करी। व्यवसायिकता सँ एहि आयोजन लेल कोनो फंड कतहु सँ प्राप्त करी, ताहि तरहक धारणा आइ धरि हम मैथिल मे अछिये नहि। आ नहिये ई अछि जे केकरो सँ जबरदस्ती चन्दा उठाबी। तखन, अपन-अपन समर्पण सँ अपन-अपन गाम टा लेल यदि हम सब जिम्मा उठा ली, किछुए लोक केँ मिथिलाक्षेत्र सँ जोड़बा मे सफल होइ तखनहि टा एहि अभियानक सफलता यथार्थ धरातल पर तय हेतैक। एहि लेल हम सब प्रयास करी।
 
आरोप अछि जे पाग-दोपटा आ मंचीय सम्मान केर भूखक चलते ई अभियान नामक लेल बेसी, काजक लेल कम अछि:
 
ई आरोप तखन आरो बेसी गहिंर भऽ जाइत छैक जखन विषय पोषण लेल चिन्तन कम आ अगबे मान-सम्मान आ नाम लेल कूदा-कूदी बेसी भऽ जाइत छैक। हलाँकि जतेक चर्चा मे अबैत छैक, ततेक लाभ प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष होइते टा छैक, जेना फेयर-एण्ड-लवली क्रीम कतेको श्यामल वर्णक लोक गोर हेबाक लेल टीवी विज्ञापन देखिकय लगैबते अछि। मुदा यथार्थ ई छैक जे संस्था, एकर अभियान आ विभिन्न आयोजन केर व्यवस्थापन लेल एकटा कार्यकारिणी समितिक आवश्यकता होइत छैक। ताहि लेल पद आ जिम्मेवारीक बँटवारा कार्य विभाजनक दृष्टि सँ कैल जाइत छैक। एहि मे पित्त-तित्त बात उगलब, अपन जिम्मेवारी सँ कोनो बहन्ना बनाय भागब, फूसिये मे तरह-तरह केर आरोप-प्रत्यारोप करब, तेहेन समय मिथिला लेल नहि आयल छैक।
 
अछैते सरकारक घर सँ करोड़ों रुपयाक परियोजना उपलब्ध रहैतो हमरा लोकनिक पंजीकृत संस्था एखन धरि ढंग सँ मैटो नहि पकैड़ सकल अछि। केन्द्रीय कार्यालय दिल्ली मे रहनिहार एतेक व्यस्त छथि जिनका अपन काज छोड़ि कनेक संस्थाक हित पोषण कय दियौक ताहि लेल कहलो पर कोनो परिणाममूलक उपलब्धि नहि भेटैत छैक। मजबूरियो छैक… सबहक परिस्थिति ओकरा अपनहि सम्हारय पड़ैत छैक। समाजसेवा पहिने अपन अनिवार्य स्वार्थ पूरा भेला बादे कियो करैत छैक वा करतैक। तखन दोषी केकरा मानल जाय? आपसी कहा-सुनी छोड़ि जिनका सँ जे पार लगैत अछि ओतेक योगदान दैत यथासंभव सेवा करू, मानवसेवा केँ माधवसेवा बुझू। जीत तय अछि।
 
ॐ तत्सत्!!
 
हरि: हर:!!