संस्मरण
– प्रवीण नारायण चौधरी
विद्यापतिधाम – सहरसा केर संस्थापक: भोगेन्द्र शर्मा निर्मल संग पहिल भेंट
प्रो. मायानन्द मिश्र स्मृति समारोह – सहरसा मे दर्शन देला मिथिलाक असली जनकरूप ‘भोगेन्द्र शर्मा’ जी!
कार्यक्रम केर उद्घोषक श्री किसलय कृष्ण जी सँ हिनक पूर्ण परिचय भेटल, तेकर बाद विशेष परिचय आदरणीय विमल कान्त बाबु केर मुखारवृन्द सँ स्पष्ट भेल – संपूर्ण सभा मे एतेक महत्त्वपूर्ण मुदा अति-साधारण भाव-भंगिमाक संग भोगेन्द्र जी केँ देखि साक्षात् कोनो देवताक दर्शन भऽ रहल छल से बुझलहुँ।
हिनकर परिचय – साधारण मजदूरी सँ अपन जीवन निर्वाह करनिहार एक स्वाभिमानी मिथिला चिन्तक, अयाची, अपन जीवननिर्वाहक अन्य कार्यक अलावे निरन्तर मैथिली लेखन मे रत आ मिथिला तथा मैथिलीक लेल अपन सर्वस्त निछावड करय लेल तैयार व्यक्तित्व केर नाम भेल ‘श्री भोगेन्द्र शर्मा’। विभिन्न सभा और स्वाध्याय, श्रुति आधारित मिथिला इतिहास सँ सुनल सुप्रसिद्ध नाम – विद्यापति, सलहेश, लोरिक, दीना-भद्री, गार्गी, भारती, मंडन, अयाची सहित विभिन्न अन्य ऐतिहासिक नाम सँ प्रभावित होइत ठानि लेला जे सहरसा आसपास एकटा एहन कीर्ति करब जे सबहक लेल दर्शनीय आ अनुकरणीय हो। एहि तरहें एक्कहि स्थल पर समस्त मिथिला विभूति केर मूर्ति स्थापित करैत ओहि जगह केर नाम देलनि ‘विद्यापतिधाम’। हिनकर दोसर परिचय छन्हि जे फूहर गीत हिन्दी वा भोजपुरी कियो जँ बजा रहल छथि तऽ असगरे आन्दोलन ठाइन दैत छथिन। मात्र मैथिलीक माधुर्य सँ समस्त आवोहवा मे हवन होइत रहबाक चाही। हमर बेर-बेर प्रणाम अछि हिनका!!
भोगेन्द्र जी केर एहि समर्पण आ दृढसंकल्प सँ महान कीर्ति करबाक सोच सहरसा, मधेपुरा, सुपौल वा जतय कतहु लोक सुनलनि, केओ प्रभावित होइ सँ नहि बचलाह। हम सब तऽ एहन-एहन असल मिथिला जनक केँ पाबि कृतार्थ भऽ रहल छी। आशा अछि जे एहने स्वसंकल्प केर महान मनिषी लोकनि एक बेर फेर मिथिला केँ पूर्व समृद्ध रूप मे आनि देता। विद्यापतिधाम आइ पर्यटन आ ग्रामीण विकास केन्द्र केर रूप मे स्थापित भऽ भोगेन्द्र शर्मा निर्मल सहित एहि मे सहभागी संरक्षक विमल कान्त झा, मार्गदर्शक किसलय कृष्ण, जमीनदाता देवनाथ यादव आ समस्त लछमिनियां गाम – सब कियो अमरत्व केँ प्राप्ति कय चुकल छथि। आइ एहि पवित्र स्थल पर साप्ताहिक दुइ दिने हटिया सेहो लगैत अछि आ क्षेत्रक रौनक मे काफी बढोत्तरी भऽ चुकलैक अछि। यैह सुझ-बुझ सब धरतीपुत्र केँ हो आ क्रान्तिक एहि नवयुग मे मैथिली-मिथिलाक ढिक्का बढैत चलि जाय।