शुरु करैत छी एकटा सुन्दर सनक जगदम्बाक प्रार्थना सँ:
– मयंक मिश्र, पोखरौनी, मधुबनी द्वारा फेसबुक मार्फत पूर्व मे देल गेल ई सुन्दर भजन:
हे जगदम्ब जगत् माँ काली, प्रथम प्रणाम करै छी हे!
प्रथम प्रणाम करै छी हे मैया प्रथम प्रणाम करै छी हे!
हे जगदम्ब जगत् माँ काली…
सुनलौं कतेक अधम के मैया, मनवाँछित फल दै छी हे! -२
हे जगदम्ब जगत् माँ काली….
नोर बटोरि अहाँ लय मैया, मोतीक माल गुथै छी हे! – २
हे जगदम्ब जगत् माँ काली…
कलियुग घोर आब बीति रहल अछि – अहाँ बनलौं शमशानी हे!-२
हे जगदम्ब जगत् माँ काली….
(मयंक द्वारा देल मूल अंश में आगू किछु पाँति हम जोड़य चाहब।)
जन्म देलहुँ आब पोषि बनेलहुँ, अर्थ प्रेरणा भीख दियऽ!
कर्म करैते जन-जन हित करि, आशीष उपमा लिख दियऽ!
हे जगदम्ब जगत् माँ जननी… प्रथम प्रणाम करै छी हे!
चारु कात अछि शत्रुक ताण्डव, मन दस दिशि फिरय अछि हे!
शरण राखि माँ ज्ञान सँ भरि दी, निश्छल अचल भक्ति दी हे!
हे जगदम्ब जगत् माँ जननी… प्रथम प्रणाम करै छी हे!
समग्र संसार के हित हेतु हमर जीवन समर्पित हो, कारण विश्वरूपिणी माँ, हम एहि संसारके हर रूपमें केवल आ केवल अहींक माया दर्शन करैत छी आ माया आन के सिवा अहाँके। जय माँ!
गीता सन्दर्भ: भक्ति साधना
अभ्यासेऽप्यसमर्थोसि मत्कर्मपरमो भव॥
मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन्सिद्धिमवाप्स्यसि॥१२-१०॥
अभ्यासे (In) Abhyasa अपि also असमर्थ: unable to practise असि (if) thou art मत्कर्मपरम: intent on doing actions for My sake भव be thou मदर्थम् for My sake कर्माणि actions कुर्वन् by doing अपि even सिद्धिम् perfection अवाप्स्यसि thou shalt attain.
If also thou art unable to practise Abhyasa, be thou intent on doing actions for My sake. Even by doing actions for My sake, thou shalt attain perfection.
अध्याय १२ यानि भक्ति-मार्ग केर व्याख्या करैत प्रभुजी शरणागत शिष्य अर्जुन केँ सुझाव आ बुझाव सँ भरल विभिन्न बात कहैत, अपन विशाल विराट रूप केर दर्शन उपरान्त अर्जुनक प्रार्थना सुनलाक बाद आब कि सब कोना-कोना कैल जाय कहैत स्वयं केँ सदिखन शरणागतवत्सल स्वामी यानि स्वयं परमात्मा कृष्ण प्रति चित्तकेँ स्थिर करबाक लेल कहलनि, जँ चित्त-स्थिर मे समस्या हो तऽ एहि लेल अभ्यास-योग यानि चित्त केर अनुरागी विषय सँ बेर-बेर हँटबैत प्रभुजी मे समर्पित करबाक उपक्रम करैत चित्त केँ स्थिर करबाक सीख देलनि। आ तदोपरान्त वर्तमान रहस्योद्घाटन कैल जा रहल अछि:
“यदि अहाँ अभ्यास करबा योग्य सेहो नहि होइ, तखन बस हमरा खातिर कर्म करू। मात्र हमरे खातिर कर्म केला सँ सेहो अहाँ पूर्णता प्राप्त करब।” – श्रीकृष्ण – गीता अध्याय १२ केर श्लोक १० मे।
हरि: हर:!!