मैथिली कथा
– हेमन्त झा
महाकुम्भ आ भ्रम
मुरारी बाबू – हे सुनू, शोर नै मचबै जाउ, आब जे निर्णय भ’ गेलै ताहि पर कायम रहू सब गोटे ।
श्याम – हँ कक्का जी, फेर लिस्ट बनाउ, सामान सभक ओरियान करू, अहू सब मे त समय लगतै ।
मुरारी बाबू – हँ, सुनै जाउ सब गोटे, 11 बजे तक सब गोटे गंगा बाबाक घर पर पहुँचै जाउ ।
11 बजे सभ गोटे गंगा बाबा के दलान पर जुटैत छैथि।
अमर – कक्का, भैया सब गोटे सुनै जाइ जाउ, आइ जौं हमर बाबूजी जिबैत रहितथि त किन्नहुँ नै अहाँ सभक बात मानितथि । मुदा हम त गाम मे रहैत नै छी, तैं जे अहाँ सब कही । हम त एतेक जरूर कहब जे हम पूरा प्रयागराज छानि लेलहुँ, बाबाक मेला मे गुम हेबाक कोनो सूचना नै भेटल, आ हुनकर लाशो त नहिये भेटल ने !
मुरारी बाबू – सुन’ अमर, बाबाक उमर 70-75 बरख त रहले हेतन्हि, तुहूँ त रहबे कर’ ने बाबा के संग कुंभ मे, ओहि भगदड़ मे तुहूँ बिछुड़िए गेल’ आ कतेक लोक दबिकय अपन प्राण गमा लेलक । तोरा बुझाइ छ’ जे बाबा ओहेन भगदड़ मे बाँचि गेल हेथुन्ह ? आ लाश कोना भेटत’ जखन सुनैत छियैक जे कतेको लाश दबा देल गेलैक !
अमर – हँ से त सुनिते छियैक । त जे अहाँ सब कही ।
मुरारी बाबू – देख’, बाबा हमरो सब केँ बड्ड मानैत छलाह, हमरो सब केँ दुःख अछि । मुदा आब हुनकर कोन प्रतीक्षा ? आब त 20 दिन भ’ गेल अहि बात के । जे भेलैक से हमर-तोहर हाथक बात त नै छैक ! भगवानक मर्जीक सामने केकरो चललै आइ तक ? आब हुनका एहि तीर्थ मे मोक्ष लिखल छलन्हि त हम सब ई मानि ली आ हुनकर क्रियाकर्म, ब्राह्मण भोजन करा ओहि पुण्यात्माक आत्मा भटकय सँ रोकी ।
अमर – ठीक छै कक्का जी, समाजक जे निर्णय ! हम समाजक संगे त रहब ।
अमर जीक गला मे उत्तरी पड़ि गेलनि । उम्हर कर्मकांड मे सब लगलाह आ एम्हर भोज भातक ओरियाओन होबय लागल । अमर जीक कमाइ नीक छन्हि, ओना कमाइ केहनो रहय, गामक लोक चाहता त भोजभात नीक करहे पड़त, हेब्बे करतै ।
आइ एकादशा छन्हि बाबाक, अमर जीक मोताबिक भरि गामक बरहबरना नोतल गेल छथि । स्त्रीगणे – पुरुखे ।
खूब नीक भोज ! अहा ! महो-महो भ’ गेल । दलान पर पान सुपारी लैत सब क्यो जाइ गेला ।
आइ द्वादश भोज मे रसगुल्ला संग तीन-चारि तरहक मिठाइ केर व्यवस्था छैक ।
अमर बाबू समय सँ कर्म समाप्त करैत घाट सँ घर आबि गेलाह । आब एम्हर चुमाओनक व्यवस्था भ’ रहल अछि आ उम्हर नोतल लोक सब कें बिज्झो कराबय लेल कहल गेल ।
बिज्झो भ’ गेल । एम्हर अँगना मे उसरग – पसरग, कन्नारोहट भ’ रहल अछि ।
गंगा बाबा गामक बगलक स्टेशन सँ गामक रिक्शा बला संग गप्प करैत आबि रहल छैथि । रिक्शा बला बाबा केँ बीतल काल्हुक भोजक वर्णन क’ रहल अछि ।
गंगा बाबा के देखि मुरारी बाबू अचंभित छथि । मोने मोने बाजि रहल छथि जे ‘ हमरे जिद्द सँ आइ गंगा बाबा केँ जिबिते मे श्राद्ध भ’ गेलन्हि, ओह !
खैर …. टोल पड़ोसक बच्चा-बुच्ची सब दौड़ल अबैत भोजक अँगना मे कहैत अछि जे ‘गंगा बाबा आबि गेलखिन्ह’ ।
अमर जी सुनिते दलान दिस भगैत देखैत छथि, ठीके बाबा आबि गेलाह । हुनकर खुशी के ठेकाना नहि रहलन्हि ।
खैर ….. एम्हर जे नोतल लोक सब आबि गेल छथि हुनका सब केँ प्रेम सँ भोजन कराएल गेल आ एहि तरहें एहि कथाक सुखद अन्त भ’ गेल ।
**