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सत्यकथाः एकटा अचला छलीह जिनका……

कथा

– प्रवीण नारायण चौधरी

एकटा अचला छलीह जिनका…..

(सत्यकथा – सन्देशः परिवेशक पहिचान अत्यावश्यक)

[आइ-काल्हि बहुत रास नवविवाहिता संग अचला जेहेन स्थिति सम्भव अछि । अहाँ कोनो बात नीके सोचिकय करब, मुदा अहाँक नीक केँ बेर-बेर दूसल जायत, हतोत्साहित कयल जायत, कन्फ्यूज बना देत परिवेशक लोक – तखन अहाँ कि करब ?]

अचला अपन नामहि अनुरूप जीवनक किछु सिद्धान्त पर अचल रहबाक प्रण कएने छल । सिद्धान्त मे मानवीय पक्ष, सकारात्मकता आ सार्थकताक सुन्दर चिन्तन समाहित रहैत छलैक ओकर । यदाकदा ओकर स्पष्टवक्ता आ पारदर्शी होयबाक विन्दु पर ओकर परिवेश ओकरा रोकल करैक । परिवेश अर्थात् ओकर नजदीकी मित्र-परिजन सब । परिवेशक कहब छलैक जे संसारक गति अनुरूप मति मे परिवर्तन अनैत बढ़बाक चाही, अचलाक अचल रहबाक जिद्द नीक नहि । अचला किन्नहुँ समझौता करबाक अवस्था मे नहि आबय । परिवेश ओकर एहि कठोरता केँ बहुते दुसैत छलैक । ओकर चारूकात ई किछेल लोक अवस्था एहेन बना देलकैक जे आब अचला अपनहि उपर स्वयं सवाल ठाढ़ करय लागल । ओकरा लागय लगलैक जे कतहु न कतहु हमरे गलती अछि । सवाल उठलैक – सिद्धान्त त बेजा नहि अछि, फेर लोक केँ एना दिक्कत कियैक भ’ रहल छैक ? लोक हमरा सँ अपन पसिन अनुरूप बदलबाक लेल कियैक दबाव दैत अछि ? आदि ।

अचला एहि तरहें एतबी बेसी सोचय-गुनय लागल जे सोचिते-गुनिते स्वयं बीमार पड़ि गेल । बीमार हालत मे एतेक बेसी कमजोर भ’ गेल जे आब ओकरा इलाजक जरूरत बुझेलैक । ओ तुरन्त नीक चिकित्सक सँ सलाह कयलक । चिकित्सक ओकर मानसिक अवस्था सभक डायग्नोसिस कय केँ ओकरा कहलकैक जे किछु समय एहि परिवेश सँ बाहर निकलिकय अपन विश्वसनीय लोकक बीच रहय । अपन नीति-नियम आ सिद्धान्त पर जेकर भरोसा ओ जीतने अछि ओकरहि संग समय बितबय । जाहि परिवेश मे मात्र नकारात्मकता आ ओकर अनावश्यक चरित्र-चित्रण कयल जा रहल छैक, ओहि सँ बहराय । अचला केँ सेहो चिकित्सकक ई सुझाव नीक लगलैक । ओहो देख लेलक कि मानसिक तनाव सँ ओकर सर्वोपरि अहित मात्र भ’ रहल छैक । एहेन स्थिति मे ओ ओहि परिवेशक परित्याग जँ नहि करत त ओकर जान पर खतरा आबि जेतैक ।

अन्ततोगत्वा अचलाक सुमति काज एलैक । ओ नकारात्मक परिवेश सँ स्वयं केँ मुक्त कय लेलक । हालांकि ओकरा ई समस्या सोझाँ एलैक जे अचानक ओ किछु नीको लोकक संग सँ दूर भ’ जायत से ओकर बड पैघ नुकसानी हेतैक । किछु लोक निश्चय सुन्दरो सँ सुन्दर छल जे हमेशा प्रोत्साहन दैत छल, ओकरो सँ दूर होबय पड़त से सोचिकय ओ बेर-बेर सिहरि उठय । मुदा जान बचय त लाख उपाय ! जाहि परिवेश मे बेस सब किछु कारिये-कारी आ प्रेतहि जेहेन खह-खह उज्जर आकृति सँ भरल राति मात्र मोन आ दिमाग केँ घेरि लियय, ओकरा सँ दूर गेनाय अत्यन्त आवश्यक छैक । अचला एक झटका मे ओहि परिवेश केँ परित्याग कय देलक, एहि तरहें ओ पुनः सुख‍-चैन आ नव जीवन प्राप्त कय सकल ।

एतय अचलाक एक गोट उदाहरण मात्र देल गेल अछि । प्रत्येक मानव केँ अपन परिवेशक उचित पहिचान बहुत जरूरी छैक से दरसाओल गेल अछि । हम मनुष्य प्राणी अपन जीवन केना जियब एहि लेल पूरा जिम्मेदारी सँ स्वयं केँ तालिम दैत रहैत छी । हमरा सभक गुण-धर्म यैह होइत अछि जे बाल्यकाल सँ अन्तकाल धरिक जीवन मे सदैव अपन रक्षा आ जिवन्तता प्रति चिन्तनशील रहैत छी । चिन्तन सभक भिन्न होइछ । जँ अहाँक चिन्तन मे वास्तविक सुन्दरता अछि, अहाँ लिपिस्टिक-पाउडर लगाकय आ तरह-तरह केर कोस्मेटिक्स एप्लाई कय केँ अपन वास्तविक चेहरा पर आडम्बरी चेहरा नहि चढ़ौने छी, तँ अहाँ निश्चिन्त रहू जे अहाँक सोझाँ भौतिकतावादी आ अनन्त ईच्छाधारी सब २ मिनट पर्यन्त नहि टिकि सकत । तेँ अचला जेकाँ अचल रहिकय अपन सुन्दर सिद्धान्त पर ई मानव जीवन जिबैत रहू ।

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हरिः हरः!!

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