कथा
– प्रवीण नारायण चौधरी
मोहनाक भाग्योदय
मोहना किशोरावस्था सँ अति-कुशाग्र आ तीक्ष्ण बुद्धिक प्रदर्शन लेल चारूकात जानल जाय लागल छल । पूर्व-वर्णित कथा जाहि मे शहरी बच्चा सँ प्रतिस्पर्धा करैत ओ रैपिडेक्स इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स पढ़ि अंग्रेजियो बजबाक आ सामान्य ज्ञान सँ सतरंज खेल धरि मे पारंगत भ’ गेल छल, ठीक तहिना मैट्रिक परीक्षा मे सब सँ बेसी मार्क्स अनबाक धुनकी ओकरा लागि गेल छलैक, एक हद तक सफल सेहो भेल । कारण, ओकरा सँ बेसी मार्क्स अननिहार १-२ टा लग बड पैघ पैरवी छलैक । मनहि-मन मुस्कुराकय रहि गेल, अपन सफलता पर ओकरा गर्व भेलैक ।
फेर ओ इन्टरमीडिएट परीक्षा मे सब सँ अव्वल दर्जाक छात्र स्वयं केँ सिद्ध कय देलक । जखन कि आर्थिक विपन्नताक कारण ओकरा न कहियो ट्यूशन पढ़ाइ लेल पाय भेटलैक, न कहियो कालेज जा सकल, आ न कहियो गाम छोड़ि शहर रहि सकल । तैयो ओ अपन गामक सब छात्र सँ नीक मार्क्स आनि लेलक आ एहि सफलता सँ सेहो आत्मसन्तोष अर्जित कय खुबे प्रसन्न छल ।
आगू ग्रेजुएशनक पढ़ाइ लेल ओ स्वयं अपन ट्यूशन पढ़ाकय खर्च निकालि लेत लेकिन एडमिशन नीक कालेज मे लेत, मुदा पिताक निर्देशन जे एखन उमेर असगर रहयवला नहि भेलौक कहि ओकरा अपन एक मित्रक बेटा संग रहिकय पढ़ाइ करय कहि देल गेल । मोहना केँ सेहो एकटा संगी भेट गेलैक त ओ तदनुसार आगू बढ़ि गेल ।
मोहना बेसीकाल मन मे ई सोचय जे स्वतंत्रतापूर्वक असगरे जीवन जिबय के ओकादि ओकर नहि बनि सकल छैक, शायद तेँ ओ हमेशा दोसरहिक सहारे जिबय लेल बाध्य अछि । चूँकि ई बात ओकर मोन मे बेर-बेर उठैक, ओकरा अपन स्वाभिमान पूर्ण-स्वतंत्रताक अनुभूति नहि दय सकैक; तखन ओ एहि दिशा मे आर नीक सँ चिन्तन करय लागल ।
संगी केँ कहलकैक जे ‘दोस, तोहर सहयोग हमरा भेटिते रहय, मुदा हमरो अपन अलग डेरा लय कय रहय के इच्छा होइत अछि । बस, तूँ हमरा एक-दु टा ट्यूशन पकड़ा दे खाली ।’ ओकर संगी कहलकैक जे तोहर बाबूजी कि कहता हमरा ? मोहना जवाब देलकैक जे बाबूजी बूढ़ छथिन, हम असगर रहि सकैत छी से हुनका विश्वास नहि छन्हि । डराइत छथिन । तूँ चिन्ता नहि कर । बस, हमरा कनि दिन स्वतंत्र भ’ जीवन जियय के नियम सब सिखय दे ।
ओकर संगी मार्मिक भावना बुझैत अपन परिचित वर्ग मे प्रयास कय २ टा ट्यूशन पकड़ा देलकैक । २ मास बाद अपन डेरा अलग करय के स्वीकृति दय देलकैक । एहि २ मास के गोटेक हजार ट्यूशन फीस केर पैसा सँ मोहना अपन गृहस्थी आरम्भ कयलक । खाना बनबय अपने, कपड़ा धुअय अपने, ओछाइन सरियाबय अपने, झारू लगाबय अपने, साँझ-बाती जराबय अपने, स्नान-पूजा सब किछु ओहिना करय जेना ओ बच्चे सँ गृहस्थ परिवार मे होइत देखने रहय ।
असगर रहैत ओ स्वतंत्र भ’ कखनहुँ ई किताब, कखनहुँ कोर्सक किताब, कखनहुँ आध्यात्मिक कथा-वस्तु – सुतय काल धरि पढ़िते रहैत छल । जखनहि समय भेटैक ओ पढ़िते अथवा पढ़लाहा चीज आ व्यवहारिकता मे देखि रहल – भोगि रहल बात सब पर खुब मनन करय ।
एक दिन मोहना दोस्तक जिद्द पर बियर पी गेल छल एक गिलास । बियर संगे सिगरेट सेहो फूकने छल । दोस्त बड रईस घरक रहैक । ओकरा कोनो कमी नहि छलैक । ओ पियेलक त पी गेलहुँ, पचा लेलियैक सार के – किछु एहने भाव रहैक मोहनाक मोन मे । ओकरा बड नीक लागि गेल छलैक बियरक स्वाद आ माथा मे उठल हिलोड़, सिगरेटक गोल-गोल धुआँ आ कखनहुँ मुंह सँ त कखनहुँ नाक सँ ।
जखन स्वतंत्रताक जीवन जिबि रहल छल, मात्र २ टा ट्यूशनक गोटेक हजार टका सँ अपन सारा किरानाक राशन-समान, तरकारी, मटिया तेल, घर-भाड़ा, साबुन, सर्फ, आदि पूरा कय लेल करय त ओकर आत्मा खुब प्रसन्न रहय लगलैक । ओ कोशिश करय जे किछु पाय बचि जइतय त बाबू केँ टका पठबितियनि । हुनका हमरा पर विश्वास जे नहि होइत छलन्हि से मनिआर्डर फौर्म पर चिठ्ठी लिखतियनि, कहितियनि जे बाबू, हम अहाँ जेहेन स्वाभिमानी पिताक पुत्र छी, हम दोसर संग कतेक दिन रहू, आब हम असगर रहि रहल छी, किछु पैसा बचत भेल, पठा रहल छी ।
एतबा सोचिते-सोचिते मोहनाक दुनू आँखि भरि गेल करैक । ओ दहो-बहो असगर मे कानय लागय । ओकरा अपन पिताक विपन्नता बड अखरैक । मुदा अपन पिताक एकटा जिद्द ओकरा बड नीक लागैक । पिता किन्नहुं केकरो आगू झुकथिन नहि । आ न ओ केकरो मोजर देथिन, न केकरो बेसी फालतू प्रशंसा कय ओकरा सँ किछु प्राप्तिक आशा-प्रत्याशा रखथिन । मोहना लेल ओकर पिता मात्र सब सँ पैघ हिरो रहथिन । तेँ, मोहना अपन पैर पर जल्दी ठाढ़ होइ लेल आतुर रहय आ ओकरा मोन मे एतबे रहैक जे पिता केँ किछु पाय पठबितियनि महिने-महिने । मुदा, एखन त शुरुआत रहैक । पाय बचि नहि पाबय ।
१-२ मास बाद ओ सोचलक जे एना पाय नहि बचत । जतबे अछि ताहि मे सँ पहिने बाबू लेल राखब । से कयलक । मात्र ५० टका बचलैक, बस ओ वैह ५० टका अपन पिता केँ पठौलक ।
मनिऔर्डर फौर्म पर लिखलक, “बाबू, हम अहाँ जेहेन स्वाभिमानी पिताक पुत्र छी, हम दोसर संग कतेक दिन रहू, आब हम असगर रहि रहल छी, किछु पैसा बचत भेल, पठा रहल छी । आब अहाँ कोनो चिन्ता नहि करब । चिन्ता हम करब बाबू, हम कय सकैत छी । अहाँ निश्चिन्त रहब ।”
आत्मविश्वासक मामिला मे मोहना बड पैघ उदाहरण छल । बरख बितैत मोहनाक आमद तेब्बर भ’ गेलैक ।
बीच-बीच मे संगी अपना ओतय खानपान लेल बजा लेल करैक । संगहि संग बियर पिबय, बहुते गपशप करय । बियर के पाय संगी केँ दैत देखय, भरि मास ओ मेहनति सँ जतेक कमाइत अछि, ततेक पाय त एक्के दिन मे खर्च भ’ गेल करैक । मोहना क्षुब्ध रहि गेल करय । चुपचाप सोचय, बाप रे! ई केहेन चीज छैक जे एतेक-एतेक पाय लगैत छैक ? एक दिन हम अपनहि पाय के पिबितहुँ ?
घरक खर्च आ बाबू केँ पठेलाक बाद किछु अतिरिक्त पाय हाथ पर अबितय त पिबितय । से नहि होइक । होइत-होइत संगिये के पाय पर पिबय के आदी भ’ गेल मोहनो ।
एक दिन बड खराब सपना देखलक । अचानक आधा राति मे मोहनाक निन टूटि गेलैक । ओकर आत्मा ओकरा सँ पूछि रहल छलैक जे एना जे तूँ दोसरक खुआयल-पियायल कर्जा अपना पर लदने जा रहल छँ एहि सँ तोहर स्वतंत्रता छिना रहल छौक से नहि बुझि पेलहिन कहियो ? एहि बियर पीबय के चक्कर मे संगी केँ कतेक चाटुकारिता करय पड़ैत छौक से बुधियारी हेरा गेल छौक तोहर ? एना मे तूँ भरि जनम संगीक पाय आ ओकर अनाप-शनाप खर्चक पिछलग्गू बनि जेमे, तोहर अपन कोनो मान-सम्मान कहियो नहि बनतौक, ई सब बिसरि गेलहिन ?
मोहना राति भरि छटपट-छटपट करैत रहल । ऐगला दिन अपन संगी केँ कहलकैक, “दोस, राति बियर के नशा हमरा बड नोक्सानी देलक । ई हमरा नहि पचैत अछि । दोसर बात, सब दिन तोहर खर्च होइत देखिकय हमरा एकदम नीक नहि लगैत अछि । आब जँ कहियो पीबो करब त पहिने हमरा सँ पूछि लीहें, हमरा लग पाय रहत तखनहि टा पीयब, अन्यथा हमरा जिद्द नहि करिहें ।”
संगी कतबु बुझेलकैक, मोहना नहि मानलक । एकटा समय एलय मोहनाक आमदनी बढ़लैक, आइ ओकरा लग किछु पाय अतिरिक्त रहैक । ओ संगी केँ अपना घर पर बजाकय बियर के पार्टी कयलक । एक बरख आर बितलैक । मोहना एहि योग्य भ’ गेल छल जे आब ओकरा संगी के पाय पर रभाइस करबाक बाध्यता नहि रहि गेलैक । ओ अपनहिं एतबा कमाय लागल छल जे ओकर धनी-मनी संगी केँ ओ निर्वाह अपन पाय पर कय लियय ।
एहि तरहें, मोहना गौर कय केँ देखलक जे जा धरि दोसरक पाय पर सख-मनोरथ पूरा करैत अछि लोक, ता धरि ओकर अपन भाग्योदय रुकल रहैत छैक ।
मोहनाक ई कथा एक कठोर सत्य थिकैक । वर्तमान समय, खासकय कोरोना महामारी बाद कतेको किशोर वयस केर युवा मे अनेकों विकृति प्रवेश कय गेल छैक । लेकिन ई किशोर सब माय-बापक शेखी पर बेसी नबाबी छँटैत देखाइत अछि । कनिकबो होश नहि रहि जाइत छैक जे कोन बातक दुष्परिणाम केहेन हेतैक । एहि तरहें ओ अपन भाग्य केँ अपनहिं सँ बर्बाद करय पर तुलल रहैत अछि ।
मोहनाक ई कथा ओकरा सब लेल एकटा सन्देश अछि । भाग्योदय तखनहिं संभव छैक जखन स्वाभिमानी-स्वाबलम्बी बनिकय कियो जीवन जिबैत अछि ।
हरिः हरः!!