बड़का भैयाक पत्र पर छोट भाइक जवाब – प्रसंग टेढ़ी मे बर्बाद होइत मिथिलाक भाइ-भाइ केर कथा

बड़का टेढ़ भाइ केँ छोटका टेढ़ भाइक खुल्ला चिट्ठी

नवाबगंज, नई दिल्ली – १ ।
दिनांकः ०९/०९/२०२४ ।
आदरणीय बड़का भाइजी,
कुशल संग कुशलाभिलाषी!
अहाँक पत्र भेटल । सब किछु पढ़ल, खूब हंसी लागल । कतेक टेढ़ी अहाँ मे एखनहुँ बचल अछि, जखन कि उमेर भेल वानप्रस्थ आश्रम प्रवेश केर । तुलनात्मक रूप सँ अपन टेढ़ी सेहो देखलहुँ, बेसी टेढ़ी हमरहि मे अछि से अनुमान लागल । आखिर हमर-अहाँक जड़िये मे टेढ़ी अछि त ई सब कोनो बाते नहि भेल !!😊
एकटा दृष्टिपत्र पर अपन राय दय हमर राय घुमा कय मंगलहुँ, हम देबो करब त ओ खंडन करब सेहो संकेत दइये देने छी, तखन हम ओहि विन्दु पर किछु कहि अपन बेइज्जती करबाबी ताहि सँ नीक देबे नहि करब, अहाँ अपनहिं अनुसार बढ़ैत रहू ।😊
आर, खेतक बंटवारा बारे जे भौजी नामे घुमाकय कहलहुँ से हमरो कनियाँ फाँर बन्हने बुझू । आइ के युग के केकरा सँ कम यौ ?😊 भौजी के बाबू सँ हमर ससुरजी कम छथिन की ? फैकल्टी भले भिन्न होइन्ह, अपन क्षेत्र विषय के पारंगत ओहो रहल छथिन से भौजी केँ नीक सँ बुझा देबनि ।
ओहि सार कुकराहा केँ अहाँ माथ पर बैसेलियैक, आब ओकरा अहीँ सम्हारू । बँटइया दयकाल अहीँ के जिद्द छल । हम पहिनहि छाती मुक्का मारि लेने छी । भाभन्स होइ सार केँ ।😢
बेसी कि लिखू, अहाँ लिखलहुँ तेँ जवाब लिखय पड़ल, नहि त टेढ़ी मे गाम सँ दुनू गोटे उखड़िये गेलहुँ, अपना बाद धियापुता केर कि होयत से सोचू आ भ सकय त टेढ़ी कम करू । हमरो तखनहि कम होयत आ कम सँ कम अन्तिम समय शान्ति सँ परलोक केर यात्रा कय सकब ।
ओहि दिन मशान मे ओहि टेढ़ीलाल के जरैत काल जे टेढ़ टेढ़ बोलवचन सुनलहुँ से हमरा बेतरतीब ढंग सँ डरा देने अछि ।
अहाँक छोटका,
जूनियर टेढ़ कुमार 😃
नोट: ई काल्पनिक कथानक पर आधारित अछि, जेठ-छोट भाइ पूर्णतया काल्पनिक अछि।

बड़का भाइक चिट्ठी सार्वजनिक करबाक पाठक लोकनिक मांग अनुसार

मिश्रटोला, दरभंगा ।
दिनांकः ८/८/२०२४ ।

श्री गणेशाय नमः!!

प्रिय अनुज,

एहि ठाम सब नीक, तोरो नीके हेतह से माँ शेरावाली सँ प्रार्थना । बाद बाकी समाचार यैह जे हमरा फेर टका के जरूरी पड़ि गेल य’ । गामक किछ जमीन हमरा फेरो बेचब जरूरी भ’ गेल । बौआ सभक पढाइ पर बेसी खर्चा लागि रहल अछि । अपन कारोबार तेहेन ढंगगर नहि अछि । बस मुन्शीगिरिक दरमाहा सँ भौजीक नुओ नहि पुरैत छन्हि । ताहि पर सँ २ तरहक तरकारी, उलायल राहड़िक दाइल आ तरुआ-पापड़ सँ नीचाँ भोजनो कहियो नहि धँसलनि जे कोहुना सम्हारती । हाथ पर पाय खत्मो भेलापर ओतबे छहर-महर सँ भोजन धँसैत छन्हि से त तूँ जनिते छह…. । आब त बाबू जेहेन घरक बेटी सँ ब्याह करौलनि तिनका त सम्हारहे के अछि !

गाम मे रही त बच्चा सभक पढाइ करबय दरभंगा जेबाक जिद्द कय देलीह । गामो छुटि गेल । एतय दरभंगा मे प्रति माह डेरा भाड़ा सँ लैत टैम्पू-टैक्सी आ मार्केटिंग कय-कय बेसाहक अन्न-पानि मे आइ पैछला १२ साल मे १२ बिघा बेचियोकय पूरी नहि पड़ि सकल ।

तोँ कहियो-कहियो दैत छह त थोड़-बहुत सहयोग भ’ जाइत अछि । हम तोरा लेल करबे कि कयलहुँ जे बेर-बेर किछु कहियह ? अधिकारपूर्वक कहियो सुपारियो किनय लेल टका माँगी से नैतिक बल नहि भेटैत अछि ? तखन त सहोदर छियह, मोनक व्यथो लिखू त केकरा लिखू ! आब त पहिने जेकाँ विवेको लोक मे कहाँ रहि गेलैक जेठक सेवा मादे, हमरा सब अपन जेठ भैयारी सब केँ बेरोजागरियोक दिन मे कि नहि कयलहुँ !

तूँ बच्चा छलह त तोरो लेल अंगा आ जुत्ता हमहीं कीनिकय आनैत रही । बाबूएक पैसा रहैत छलन्हि, लेकिन विवेक हमरे रहैत छल । तोरा लेल अपनो सँ नीक कीनि देल करियह । खैर… नेत अपन-अपन होइत छैक सभक ! हम अपन छोटक आगू हाथ पसारी से शोभा नहि दैत अछि । तखन त दिने तेहेन जे नहि बाजू त नहि बजाइछ, नहि बाजी त बाट नहि सुझाइछ । जुग तेहेन जे पाथर पर कतबो जल ढारबह, महादेवो नहि सुनैत छथि !

भौजीक सुझाव हमरा बड नीक लागल । कहैत छथि जे छोटका बौआ केँ चिट्ठी दियौन जे दुर्गा पूजा मे गाम आबथि । एखन धरि त जे-जतेक बेचलहुँ से त बुझह नाके जमीन सब रहह, तोरो हिस्सा जे छोड़ने छियह सेहो त सोने के मोल बिकेतह । मुदा भौजीक कहब छन्हि जे एक बेर बँटवारा नीक सँ भ’ जइतय त एम्हुरका काज चलबय मे अहाँ निधोख भ’ कय अपन हिस्साक जमीन सभक मोल लय-लय केँ बेचि सकितहुँ । जा धरि बँटवारा नहि भेल ता धरि धखा-धखा बेचि रहल छी, बुझहे मे नहि अबैत अछि जे ई बेचू, ओ बेचू कि कोन बेचू ! से एहि बेर तूँ आबह । कनियाँ सँ सलाह कय लिहह ।

एकटा विचार तोरो सँ लेबाक मोन होइ य, ओ ई जे गामक घराड़ी मे सड़क मे मुंह कम छह । त तूँ एकटा विचार दितह जे या त तोरे या हमरे, बदलेन मे फल्लाँ गामक चौक परका ५ कठ्ठा सँ एन्नी-ओन्नी दुनू भाय कय लितहुँ । बस, एहि पर तूँ अपन दृष्टि रखिहह । कारण बाद मे जमीनक विवाद नीक बात नहि होइत छैक । ओना भौजीक जे विचार हेतनि तेकरा काटय के साहस हमरा मे नहि होइ छह से तोरा नीक सँ बुझले छह, तैयो कनियाँ त तोरो छथुन । विचारिकय कहिहह ।

गामक बँटेदार बड बयमान भ’ गेल अछि । आब अपने जाउ कटौनी मे से बुझह आसकति लगैत अछि । दरभंगा जेकाँ बिजली गाम मे नहि रहबाक कारण गाम मे रहिकय कटौनी करबाउ, अनाज तैयार करबाउ आ तखन बँटबाउ से हमरा बुत्ते पार नहि लगैत छह । भौजी ताहि पर सँ कहिकय आर मोन खट्टा कय दैत छथि जे अहाँ जे समय देबय त छोटका बौआ कोनो अपना हिस्सा मे सँ फाजिल क’ अनाज दय देताह से ? ओना तोहर हिस्साक जे पैसा होइत रहलह से त बुझिते छह, तोंही छोड़ि दय छह ओ अलग बात भेलय…. हमर जे फर्ज अछि से सब दिन निभेबे केलियह । आगू तोरा जेना मोन हुअह, तूँ अपने कहबह ।

ओना हम त यैह कहबह जे गाम सँ जुड़िकय रहनाय हमरे टा सँ पार नहि लगतह, कनियाँ-बच्चा सब केँ बुझा-सुझा कम सँ गर्मी छुट्टी, दुर्गा पूजा आ आने कोनो परोजन-पिछे अबैत जाइत रहबह त गामक चीज-वस्तु नहि बिलटतह ।

अन्त मे सब बढियाँ रहह, हमर शुभकामना !! जवाबक प्रतीक्षा रहत ।

तोहर भैया

हरिः हरः!!