मैथिली कथाः मोहनाक जीत

मैथिली कथा

– प्रवीण नारायण चौधरी

मोहनाक जीत

पोखरी महाड़ पर बच्चा सभक भीड़ लागि गेल रहय । शहरक स्कूल मे पढ़य वला एकटा गामहिक काका बेटा गाम आयल रहय । सब ओकरा देखय लेल जुटल छल । ओकर देह-हाथ, मुंह-कान, पहिरल कपड़ा, सब चीज आकर्षक रहय । गामक बच्चा सब देखिकय मुग्ध रहय । सब केँ मोन होइ जे ओकरा छुबिकय देखी जे हमरे सब जेकाँ मनुख छी आ कि भगवान् । ओहि बच्चा केँ कालेज मे पढ़निहार काका-भैया सब घेरने, कियो हिन्दी मे बात करैत रहथिन त कियो अंग्रेजी मे । गामक बच्चा सब केँ हुनका सब द्वारा अंग्रेजी आ हिन्दी मे बात करबाक बात आर बेस आकर्षण पैदा कय रहल छलय । कियो काका पुछथिन व्हीच स्कूल यू रीड इन त ओ बच्चा चहकिकय अपन स्कूलक नाम बतबय ।

भीड़ मे गामक स्कुलिया बच्चा सब सँ सेहो कियो‍-कियो बीच मे पुछि बैसथिन, जे जबाब दय देलक त ओकरा खुब शाबाशी भेटैक । फेर सवाल पुछबाक आ जबाब लेबाक क्रम बड़ीकाल धरि चलैत छलैक । एकटा सवाल शहरक बच्चा सँ त एकटा सवाल गामक बच्चा सँ । शहरक बच्चा छट्-छट् जबाब दैत रहैक । गामक बच्चा सब दाँत बेसी बिदोरि मुंह बाबि देल करैक ।

ई बात मोहनाक मोन केँ बड कचोटलकैक । काका-भैया सभक सवालक जबाब नहि दय पेनाय आ शहरी बच्चा द्वारा फटाफट सब सवालक उत्तर दय देनाय ओकरा एतबा लज्जानुभूति देलकैक जे ओ ठानि लेलक कि काल्हि जखन हमरा सँ पुछता त सबटा जबाब हमहुँ देबनि, एतेक भीड़ मे बूड़ि बनेबाक काज जे काका-भैया हम गाम रहनिहार बच्चा सब लेल कयलनि तेकर ठोकल जबाब हम जरूर देबनि ।

ओ भरि राति रैपिडेक्स इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स के तैयारी कयलक । ऐगला दिन नहि सबटा त अधिकांश सवालक जबाब ओहो सही-सही दय देलकैक ।

आइ काका-भैया सब मोहनाक प्रशंसा सेहो करय लेल बाध्य भेलाह । मोहना सेहो मनहि-मन खुबे खुश भेल । ओ ठानि लेने छल जे ई शहरी बच्चा जा धरि गाम मे रहत, आ जतबे बेर कम्पीटिशन हेतैक त ओ कोनो हिसाब सँ हारि नहि मानत ।

एक दिन गणितक सवाल पर शहरी बच्चा भर्सस गामक बच्चा वला खेला होबय लगलैक । शहरी बच्चा अंग्रेजी माध्यम विद्यालयक छात्र रहबाक कारण अंग्रेजी मे सवाल लैत छलैक आ ओकरा कौपी मे बनाकय दैत छलैक, वैह सवाल गामक बच्चा सब केँ मैथिली मे देल जाइत छलैक ।

आइ मोहना ओहि शहरी बच्चा केँ तेना कय चित्त कय देलक जे काका-भैया सब केँ सेहो चकबिदोर लागि गेलनि । ओ सब मोहना केँ शाबाशी दय लेल बाध्य भेलाह । लेकिन तैयो शहरी बच्चाक आकर्षण आ तेज केेर चर्चाक सोझाँ मोहनाक आकर्षण आ तेजी ओतेक वाहवाही नहि लूटि सकल ।

मोहना ठानि लेने रहय जे कोनो मामिला मे ओ पाछू नहि रहत ।

एक दिन सतरंज खेल आरम्भ भेलैक महाड़ पर । फेर भीड़ ओहिना । ओना त गाम मे सतरंजक खेल बुढ़-बुजुर्ग लेल बेसी लोकप्रिय होइत छलैक, लेकिन ओ शहरी बच्चा बड नीक सतरंज खेल जनैत छल । आइ बाबा सब सेहो बैसल छलखिन्ह महाड़ पर । शहरी बच्चा अपन प्रतिभा सँ कय गोट बाबा-काका-भैया केँ चित्त कय देलक । बाप रे बाप !! गाम भरि ई बात शोर मचि गेलैक ।

गामक छौंड़ा सब दौड़िकय मोहना लग आयल । कहलकैक, ‘रौ मोहना, चल न । महाड़ पर सतरंजक खेल भ’ रहल छैक । तोरा आबय छौक ?’ मोहना लेल सतरंज एकदम नया बात रहैक । ओकरा कियो सिखेनहिये नहि छलैक । कहलकैक आइ छोड़ि दिहिन, दोसर दिन देखबय ।

फेर कि छल ! मोहना एकटा जेठ भैयारी सँ चुपचाप कोठली भीतर मे पुछलकनि जे कनी हमरा बताउ त ई सतरंज केहेन खेल होइत छैक ? ओ सिखेलखिन । सब गोटी के परिचय पाबि गेल मोहना । कोन गोटी के केहेन चाइल होइत छैक, घोड़ा, हाथी, ऊँट, मंत्री, राजा, सिपाही –

अढ़ाइ घर, सीधा, कोनाकोनी, सीधासीधी-कोनाकोनी, चारू दिश, चलय बेर सीधा आ काटय बेर टेढ़ – सब तरहक चाइल आ सतरंजक सब पात्र, दुइ पक्ष, ६४ घर मे सौंसे राजपाट केँ चलेबाक बुद्धिचाल वला खेल !!

ओकर दिमाग त ओहिना तीक्ष्ण रहबे करय, मात्र ७ दिनक बाद महाड़ पर फाँर्ह बान्हि उतरि गेल मैदान मे ।

बेर-बेर पटखनी खेलक ओहि शहरी बच्चा सँ । जतेक बेर हारय, भीतर सँ छटपटा गेल करय । मुदा ओकर मोन कहल करैक जे एखन तूँ नवका खेलाड़ी छँ, ओ बहुते बात तोरा सँ बेसी जनैत छौक । ओहो मोन मसोसिकय हारि स्वीकार करय, कय गोटे पिहकारी सेहो मारि देल करैक त ओकर मोन आर भीतर सँ कुहरि गेल करैक ।

जे भैयारी सिखेने रहथिन, हुनका लग फेर गेल । पुछलकनि, “यौ भाइजी, एहि खेल मे गूढ़ सूत्र सब सेहो होइत छैक की ?” ओ कहलखिन, “रौ, हमहुँ सब त गामहि भरि खेलेलहुँ । ओतेक त अबइ नहि य । चल, फल्लाँ काका बड़ नीक जनैत छथिन । हुनका सँ तोरा ट्रेनिंग दियबैत छियौक ।”

तखन मोहना २-३ बेर फल्लाँ काका सँ गुप्त चाइल सब बारे जनलक । ओ कहलखिन, सामने बैसल खेलाड़ी जे चाइल चलैत छैक, ओकर माइर कोन दिशा मे, कतेक दूर धरि, ओहि चाइलक बादक चाइल, आदिक भाँज जे नीक सँ बुझि गेल वएह टा नीक सतरंजक खेलाड़ी भ’ सकैत अछि, तहिना अपन चाइल १-२-३-४-५ स्टेप धरिक जे नीक सँ योजना बनाकय अपन विपक्षी केँ बुझेबे नहि करय तेना जँ खेलाय लागल त निश्चित जीत जायत ।

ई सूत्र बड कारगर सिद्ध भेलैक । मोहना फेर अखाड़ा पर आयल । लोक सब पहिनहि हँसि दैत रहैक जे ई छौंड़ा जानइ-तानइ अछि नहिये आ बेर-बेर अखाड़ा पर आबि जाइत अछि । लेकिन, कनियेकाल मे सब केँ चकबिदोर लागि गेलैक जखन ओ पहिल बेर शहरी छौंड़ा केँ पटकि देलक ।

शहरी छौंड़ा पटका गेलाक बाद ओतय बैसल किछु काका-भैया सब किछु-किछु बहाना बनबय लगलाह, कहय लगलखिन जे फल्लाँ चाइल मे शहरी बाबूक गलती सँ ओ गोटी चला गेल रहैक आ मंत्री कटि गेलैक तेँ ई छौंड़ा जीति सकल ।

मोहना लेल ई सब बात फेर तकलीफ दयवला छलैक । ओ कहलकैक, “खेल एक्के बेर हारला-जीतला सँ लोक खेलाड़ी नहि बनैछ, एखन हम एतहि छी । लगाउ दोसर भाँजी ।”

ओकर ई डायलौग सुनि पूरा गाम स्तब्ध । फेर भाँजी लगलैक । मोहना लेल ओ फल्लाँ काका केर सिखायल सूत्र फेर कारगर भ’ रहल छलैक । ओ आब शहरी बच्चाक सब चाइल पकड़य मे ओस्ताज बनि गेल छल । आ, मोहना केँ त सब बुझय जे ई त हरदम हारिते रहल, एकरा कतय सँ चाइल-ताइल के आईडिया अओतय… । बस, मोहना लेल १-२-३-४-५ स्टेप आगू धरिक सोच आ तदनुसार अपोनेन्ट केँ बुझय तक नहि दयवला भाँज एतेक बेसी सफल भेलैक जे आब ओ दोबारा ओहि शहरी बच्चा केँ पटकि देलक । पुरा गामक लोक मोहनाक तीक्ष्ण बुद्धिक कायल बनि गेल ।

शहरी बच्चा सेहो मोहना केँ हाथ मिलाकय बधाई देलकैक एहि बेर । मुदा फेर ओ पक्षपाती काका-भैया सब शहरी बच्चाक डिफेन्ड करैत ओतय ई भेलैक तेँ एना भेलैक… आदि बहाना मारि-मारि ओकर बचाव करथिन ।

मोहना विहुँसैत बाजल, “यौ काका-भैया! आब बड़ भेल । अहाँ भिड़बय ?”

मोहनाक चुनौती काका-भैया केँ कतय सँ बर्दाश्त होइतनि । भिड़लाह । ३ बेर लगातार पटका गेलाह । पूरा गाम सन्न !! काका-भैया सन्न !!

खिस्सा खत्म – खिस्सा सँ कि प्रेरणा किनका भेटल से स्वयं कमेन्ट बौक्स मे जरूर लिखब ।

हरिः हरः!!