कालकूट विषः अमृत मन्थन आ १४ रत्नक वर्णन सहितक शिव-चर्चा

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

आइ शिव-चर्चा करैत छी

स्वाध्यायक बेर मे शिवचर्चा करबाक इच्छा भेल । सोम दिन, सावन मास – दिवस विशेष अनुसार जीवन जिबक संकल्प पर अग्रसर हम सब ई पुण्य कमा ली ।

सब सँ पहिने समुद्र मन्थन आ ताहि सँ प्राप्त कुल १४ रत्न पर चर्चा

राजा बलिक राज मे असुर शक्ति सुर शक्ति पर हावी छल । इन्द्रदेव परेशान आ थाकल, देवता सभक संग भगवान् विष्णु सँ समाधान मंगलनि । विष्णुदेव समुद्र मन्थन सँ अमृतक प्राप्तिक बाट देखा असुर संग सन्धि कइये कय आगू बढ़ल जेबाक विधान निर्देश कयलनि । कहलनि, विपरीत समय (संकटकाल) केँ मैत्रीपूर्ण ढंग सँ बिता लेबाक चाही ।

इन्द्रदेव राजा बलि सँ सन्धिक प्रस्ताव आ समुद्र मन्थन सँ अमृतक प्राप्तिक सन्देश दय भेंटवार्ता कयलनि । सन्धि भेल । समुद्र मन्थनक सब उपाय अपनायल गेल । स्वयं विष्णु कच्छप बनि मन्दराचल जेहेन भारी मथनी केँ पीठ पर धारण कयलनि आ ‘नेती’ (मन्दराचलरूपी मथनी केँ मथबाक माध्यम यानि रस्सीरूप) वासुकीनाथ केँ बनौलनि । कहल जाइछ जे कच्छपक पीठ १ लाख योजनक विस्तार मे छल, वासुकीनाथ केँ गहन निन्द्रा प्रदान कय हुनक दर्दक अनुभूति शून्य कय देल गेल छल, देवता मे सुरशक्तिक बढ़ोत्तरी आ दानव-दैत्य मे असुरशक्तिक बढ़ोत्तरी लेल स्वयं नारायण शक्तिप्रदान कयलनि आ समुद्र मन्थन आरम्भ भेल ।

सब सँ पहिने जल सँ ‘हलाहल’ (कालकूट) विष (दोष) बाहर आयल । ओकर बाहर अबिते देवता व दानव दुनू दल पर भयावह असर पड़य लागल । सब कियो निस्तेज भ’ बेहोश भ’ गेलाह । जिनका सब केँ होश बचलनि ओ सब ‘गोहार-गोहार’ करैत ‘देवाधिदेव महादेव’ केँ कल्याण हेतु आह्वान कयलनि । सौम्य देव शिव हुनका सभक मदति वास्ते ओ हलाहल उठाकय पीबि गेलाह । कहल जाइछ जे पार्वती (शक्ति स्वरूपा देवी) हुनकर गला केँ अपनहि हाथ सँ स्पर्श कय ओहि विष केँ ओतहि रोकि देलीह । महादेवक कंठ नील पड़ि गेलनि । एहि तरहें ‘नीलकंठ’ सेहो कहाइत छथि ।

आर पुनः देवता सब नव स्फुरणा पाबि मन्थन कार्य आरम्भ कय क्रमशः १३ अन्य रत्न – कामधेनु गाय (ऋषि प्राप्त कयलनि), उच्चैःश्रवा घोड़ा (असुरराज बलि प्राप्त कयलनि), ऐरावत हाथी (इन्द्र प्राप्त कयलनि), कौस्तुभमणि (विष्णुदेव प्राप्त कयलनि), कल्पवृक्ष तथा रम्भा अप्सरा (देवलोक केँ प्राप्त भेल), पुनः महालक्ष्मी प्रकट भेलीह जे स्वयं भगवान् विष्णुक वरण कय लेलीह, कन्यारूप मे वारुणी (असुर लोकनि ग्रहण कयलनि), चन्द्रमा, पारिजात (वृक्ष), शंख आर अन्त मे वैद्य धन्वन्तरी स्वयं अपन हाथ मे अमृतक घट सहित प्रकट भेलाह ।

धन्वन्तरीक हाथ सँ अमृतक घट दैत्य लोकनि छीनि लेलनि । दुर्वासा ऋषिक श्राप सँ देव लोकनि शक्तिविहीन भ’ गेल छलाह । ओ सब दैत्य सभक अत्याचार केर प्रतिकार तक नहि कय सकलथि । ई दृश्य देखिते भगवान् विष्णु तुरन्त विश्वमोहिनी रूप धय ओहिठाम प्रकट भ’ गेलीह । हुनका देखिते दैत्य सब मोहित भ’ गेल । दैत्य मात्र नहि, देवता आ स्वयं शंकर पर्यन्त मोहित भ’ गेल छलाह कहल जाइछ ।

मोहिनीक कृपाकटाक्ष आ मदकटाक्ष सँ क्रमशः अमृत देवता सब केँ पान कराओल जा सकल । एहि चरित्र केँ एक गोट दानव ‘स्वरभानु’ बुझि गेलाह आ ओहो देवताक पाँति मे रूप बदलिकय बैसि गेलाह – हुनका मोहिनी द्वारा अमृतपान करा देल गेल । मुदा चन्द्रमा आ सूर्य द्वारा तुरन्त ओहि दानवक असलियत उजागर कयल गेल । भगवान् विष्णु सेहो तुरन्त कार्रबाई करैत चक्र सँ सिर आ धड़ अलग कय देलखिन्ह, वैह आइ राहु आ केतु छथि ।

१४ गोट रत्न केँ एहि श्लोक मे एना समेटल गेल अछिः

लक्ष्मीः कौस्तुभपारिजातकसुराधन्वन्तरिश्चन्द्रमाः।
गावः कामदुहा सुरेश्वरगजो रम्भादिदेवांगनाः॥
अश्वः सप्तमुखो विषं हरिधनुः शंखोमृतं चाम्बुधेः।
रत्नानीह चतुर्दश प्रतिदिनं कुर्यात्सदा मंगलम्॥

प्रतिदिन स्मरण कयला सँ कल्याण सुनिश्चित अछि । बहुत सुन्दर परिकल्पना सहितक एहि श्लोक सँ सभक कल्याण हो, हमर शुभकामना !!

शिव-चर्चा मे सावन मास ओहि कालकूट जहर केर प्रभाव केँ कम करबाक वास्ते शिवलिंग पर जलाभिषेक करबाक विशेष महत्व कहल गेल अछि । कथा बहुत रास अछि । आइ एतबे मे विराम देब, ई कहिकय जे शिवकृपा सदिखन हमरा-अहाँक कल्याण लेल बरसैत रहैत अछि । एहेन भोलेनाथ केँ स्मरण-सुमिरन छोड़ि आन दिश बेसी भटकनाय जरूरी नहि ।

मन लागि गेल जँ कने भुजगेन्द्रहार मे
चिन्ताक कोन काज एहि संसारधार मे!!

हरिः हरः!!