लेख विचार
प्रेषित: शेफालिका दत्त श्रीजा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
#विषय- “मिथिला में बटसावित्री व्रत के महत्व और विशेषता”।
अप्पन सबहक मिथिला में बट सावित्री (बरसाइत) व्रत के बहुत बड़ा महत्व होइयत अछि।सब सोहागिन पवनैतिन सब अप्पन सोहाग के लेल सोलहो श्रृंगार कs के पूरा हर्सोल्लास के साथ ई पावैन व्रत करैत छथि।
बरसाइत पूजा (वट-सावित्री) नवविवाहित कनियाँ सब पहिले बेर जेना पूजा करैत छैथि,ओ लिख रहल छी।
विधि:-
एक दिन पहिने कनिया नहा धोय कय अरवा-आरवैन भोजन करथिन,साँझ खन भगवती,महादेव,ब्राह्मण,हनुमान आ गौरी कs गीत गावि,गौरी नवेद्य बनायल जायत,आ दुईब,कांच हरैद,धनिया (कनी ) फेंट कs गौर बनत,जकरा ढ़उरल सरवा पर एकटा सिक्का पर गौरी राखि पान कs पात सँ झापि,पान कs पातक ऊपर सिंदूरक गद्दी राखि ललका कपडा स झापि भगवति लग राखि देल जाइत अछि।
उड़द दालि कs फुला के १४ टा बड़ पकायल जायत,जकरा सरेला पर सुतरी में गांथल जायत (बिना सुइया के) बड़ गुथल सुतरी के बोहनी के मुँह पर बांधल जायत।केरा के पात पर सिन्दूर आ काजर सँ बिष-विषहारा लिखल जायत।राति खन कनी मुंग आ बेसी बूट (काला चना ) फुलय लs पड़त।
वट सावित्री (बरसाइत) पूजा क दिन:-
नव कनियाँ नहा धो कs सासुर सs आयल नव कपङा पहिर के श्रृंगार कय,खोंच्छा लय,भगवती कs पूजा कय,हाथ में साजी (जाही में कनिया-पुतरा रहत ) आ माथ पर बोहनी (जाही में लाबा भरल रहत आ जकरा मुँह पर सुतरी में बांधल 14 टा बड़ रहत ) लय के भगवती के गोर लागि सबहक संगे बड़क गाछ तर जेती।गाछ तर बोहनी में राखल लाबा केरा के पात पर राखि देथिन आ ओही बोहनी में पानि भैर देथिन्ह।गाछ तर अरिपन रहत,एकटा अरिपन के ऊपर 7 टा बिअनि रहत,आ सात टा डाली में फुलायल बूट,फल,मिठाई राखल रहत।गाछ तर अहिवात जरायल जायत।
एक टा डाली में चाउर,सुपारी,जनऊ,पैसा फल-मिठाई राखल रहत जे पूजा के बाद पंडित कs दs देल जायत।आम कs पात पर फुलायल मुंग आ फल-मिठाई के नवेद्य लगायल जायत।
एकटा बियनि पर आ एक टा आम पर पांच टा सिन्दूर लगा बड़ के गाछक जड़ि में राखल जायत अछि।अरिपन पर विष-विषहारा लिखल पात राखि ओही पर माईटक विष-विषहारा राखल जायत।कनिया एक टा बड़ कs पात केश में खोसती
सबटा ओरिआन केलाक बाद कनियाँ गौरी सबहक (सासूर बला,नहिअर बला जे राति में बनल गौड़ी नवेद्य) आगु नवेद्य राखि फूल आ सिन्दूर लय गौरी पूजती।ओकरा बाद बिन्नी हाथ में लय जांघ तर बोहनी राखि कथा सुनती।
कथा सुनला के बाद कनिया साड़ी के खूंट पर गाछ तर रखलाहा आम आ एक टा सिन्दूर क गद्दी लs के मौली धागा बांधैत गाछ के चारू तरफ पाँच बेर घूमती।फेर गाछ तर राखल बियनि से गाछ के तीन बेर होंकैत गला मिलती।
आब कनिया-पुतरा कs हाँथों कनिया के सिंदूरदान करथिन्ह (कनिये करेती) ओकरा बाद सबटा नवेद्य उसरैग लेती आ विष-विषहरा के दूध लाबा चढ़ेती।
बोहनी में बांधल सबटा बड़ के वायां हाथ कs अंगुठा आ अनामिका सs तोरि के एक बेर आगु आ एक बेर पाछु फेकैत फकरा पढ़ती,बड़ लिय (पाछु ) मर दिय (आगु ) ओकरा बाद माथ पर फेर बोहनी उठेती,हाथ में साजी लेती आ भगवती घर में औती।गाछ तर राखल डाली सेहो उठा कs भगवती घर में राखल जायत।भगवती के गोर लागि 7 टा अहिवाती के बियैन आ डाली देथिन्ह आ सब पैघ सब के गोर लागि आशीर्वाद लेथिन्ह।
कथा:-
बरसाइत में दु गो कथा होइयत अछि।अई में कथा नई लिखब कियाकि कथा लिखला से बहुत लंबा भs जायत।
बट सावित्री (बरसाइत) व्रत के बहुत पैघ विशेषता अछि।माँ भगवती सब के सोहाग-भाग सँ भरल राखैथ।बट सावित्री (बरसाइत) के बहुत बहुत शुभकामना अछि सब सुहागिन दीदी बहिन सब गोटे के।