हास्य-प्रहसन कथाः फेसबुक फ्रेन्ड्स

हास्य-प्रहसन
– प्रवीण नारायण चौधरी
फेसबुक फ्रेन्ड्स
५००० मित्र मात्र राखि सकैत छी। कतेको लोकक कोटा फुल भ’ गेल अछि। हमरो कोटा कहिया न फुल भ’ गेल। मुदा ५००० मे बेकाजक मित्र सेहो बहुते छथिन। अपरिचित सब सेहो छथिन। एकटा पोस्ट लाइक कय देला, फ्रेन्ड रिक्वेस्ट पठा देला, प्रेम सँ हुनको मित्र बना लेलियनि। दोबारा कहियो दर्शनो नहि भेटल। आब कि करब? मित्रक संख्या त बढ़ि गेल। कोटा फुल भ’ गेल। त कोटा फेर सँ लोक खाली करैत रहैत अछि। दोबारा नव-नव मित्र लेल ठाउं खाली करैत रहैत अछि। फेर नव-नव मित्र सब जुड़ैत रहैत छथि।
एक बेर फेर हमर कोटा फुल भ’ गेल। आइ फेर सोचलहुँ जे कोटा किछु खाली करी। गेलहुँ गोदाम पर। एकटा मित्र एहेन अभरलाह जे आब एहि दुनियो मे नहि छथि, मुदा फ्रेन्ड लिस्ट मे छथि। मोन भेल जे आब हिनका राखिकय अनेरे कोटा भरला सँ कि लाभ। दबेलहुँ बटन। मुदा फेर ओ आ हुनकर आजीवन ‘भैया-भैया’ कहयवला दृश्य तेना आँखिक आगू उमड़ल जे हाथ केँ अन्फ्रेन्ड करय सँ रोकि देलक।
स्क्रौल डाउन करैत आगू बढ़लहुँ, सरबाक कय टा कुटिचाइल वला अबन्ड सब सेहो मित्रक सूची मे स्थान लेने देखायल। लेकिन डर सँ ओकरो सब केँ अनफ्रेन्ड नहि कयलहुँ। सोचलहुँ जे अनफ्रेन्ड कय देबय त कहियो रस्ता-पेरा टोइक नै दियए, ‘कि यौ! बड भीआईपी भ’ गेलहुँ की? अनफ्रेन्ड कय देलहुँ?’ हबड़-हबड़ आगू बढ़ि गेलहुँ। मोन धरि तुरन्त कहि देलक, “मरलहबा मित्र नीक, ई खच्चर सब बेकार छौक लेकिन।” तुरन्त बुझेलियैक, “चुप! अबन्ड सब सँ मुंह नहि लागी।”
आर नीचाँ गेलहुँ, फेर खच्चर के आड़ि सब देखाय लागल। कहियो पलटिकय लाइको नहि करयवला, कमेन्ट के त बाते दूर। मोन कहलक, “एकरा सब केँ कथी ल रखने छँ, खाली कर।” ओकरा हँसिकय कहलियैक, “नहि बुझलिहिन! ई सार सब हमर सब सँ बड़का फौलोअर्स सब छी। एकरे सब लेल त एतेक लिखैत छी। यैह सब असल पाठक सेहो अछि हमर। टेढ़ी मे भले लाइक-कमेन्ट नहि करय, मुदा पढ़य य’ सबटा।” मोन पुछलक, “से केना बुझलिहिन?” ओकरा मोन पाड़ैत कहलियैक, “देखने नहि रहिन ओहि दिन फरीदाबाद मे? जाइत देरी यैह सब न पीएनसी-पीएनसी कय केँ पैर पर खसल, गला लगेलक, माया देलक। नेचर सँ खच्चर अछि तय सँ की? पढ़य य’ सबटा तेँ न असीम सिनेह दय य’ रौ?” मोन मानि गेल। ओहो हँसय लागल।
आर नीचाँ गेलहुँ, जाइत रहलहुँ…. रंग-बिरंगक भाव-भंगिमा सँ पूर्ण छवि-छटाधारी मित्र सब देखाय लागल। मोन फेर किछु कहय लागल, मुदा उपरका बात सब ओकरा मोन पड़ि गेलय त बस हमरा दिश ताकिकय हँसिकय चुपे रहि जाय। हमहीं कहलियैक, “कि कहय छँ? कह न!” तय पर कहइ य’, “ई सब जे ‘रेड-पिंक-टिकली फौज सब छथुन, दाय-माय सब सेहो छथुन, से के-सब छथुन?” हम कहलियैक, “रौ बहिं, ई सब घरवाली एकाउन्ट सँ छथिन। सम्बन्धी सब छथिन। सासुर दिश सँ सारि-सरहोजि सब छथिन। गाम दिश सँ दीदी-बहिन, भौजी-काकी,… आ मामागाम दिश सँ मौसी-मामी, अनेकों छथिन। अपने लोक छथिन सब!” मोन तमसा गेल। कहलक, “तखन अनफ्रेन्ड के नाटक छोड़। जन्मदिन वला नोटिफिकेशन मे देख, कोन निष्क्रिय छथिन, हुनके सब केँ अनफ्रेन्ड कर खाली।” हम हँ कहिकय आगू बढ़ि गेलहुँ।
सच कहैत छी, फेसबुक फ्रेन्ड्स केर मीमांसा बड़ा अजीब छैक। अस्तु! कोटा त खाली करहे के अछि, से आर चिन्तन करैत छी जे केना हेतय। अहाँ सब लग सेहो कोनो टिप्स अछि की?
हरिः हरः!!