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त्रिनेत्रधारी जगपालक के महिमा अपार छनि

लेख

प्रेषित : ममता झा

#महाशिवरात्रि_कै_महत्व

शिव के महादेव कहल जाइत अई कियाकी देवों के देव छैथ । सब कियो पूजा करैत अछि औघड़नाथ के।

‘शिवरात्रि’ शब्दक अर्थ अछि शिवक रात्रि। सब मास के कृष्णपक्ष के चतुर्दशी तिथि शिवरात्रि होइत अछि। परन्तु फाल्गुन माह के कृष्णपक्ष के चतुर्दशी तिथि के शिवरात्रि सबस खास अछि।आई के दिन महादेव आ सती के विवाह भेल छल तें लक सबसे महत्वपूर्ण अछि। महाशिवरात्रि के महानिशा भी कहल जाइत अई ।

एकटा लोकप्रिय मान्यता के अनुसार, भगवन शिव के बामां आंइख चंद्रमा आ दाहिन आंइख सूर्यक प्रतिनिधित्व करैत अछि। एक दिन शिव ध्यान में रहैथ, तखन हुनक पत्नी माता पार्वती के एकटा खेल खेल के विचार आयल। ओ पाछु सं अपन दुनू हाथ सं शिवजी के दुनू आँइख के मूइन देलैन। भगवन के दुनू बंद आँइख के कारण संसार भ्रम आ अंधकार में डूइब गेल। शिव तुरंत अपन ईश्वरीय क्षमता के उपयोग करैत अग्नि उत्पन्न करि, अपने माथे पर तेसर आंइख बनेलैथ। अई तरहें शिव अंधकार के मिटेलैथ।

समुद्र मंथन अमृत के प्राप्त कर के लेल कैल जा रहल छल,लेकिन एकर संग हलाहल नामक विषो मंथन के बाद भेटल। हलाहल विष में ब्रह्माण्ड के नष्ट कर के क्षमता रहै। अई संकट सं केवल भगवान शिव बचा सकैत रहैथ।

देव गण के प्रार्थना पर भगवान शिव हलाहल नामक विष के अप्पन कण्ठ में राइख लेलैन। विष अतेक विशाक्त आ शक्तिशाली रहै कि भगवान शिव अत्यधिक दर्द सं पीड़ित भऽ उठला। हुनकर कंठ नीला होब लागल। तखने सं भगवान शिव के एक नाम ‘नीलकण्ठ’ प्रसिद्ध भेल।

उपचार कर के वास्ते चिकित्सक आ देवता सब भगवान शिव के राइत भरि सतर्कता सं जगेने रखलखीन । शिव के आनंदित कर आ जगाब के देवताओं अलग-अलग नृत्य देखेलैन। जखन भोर भेल त हुनक भक्ति सं प्रसन्न भगवान शिव सब के आशीर्वाद देलैन। शिव आ पार्वती मिलन के राति छल तें बड्ड खास फलदायी व्रत होइत अछि ।

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