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उपनयनक बाद कियो जनेऊ नै पहिरैत अछि आब

लेख

प्रेषित : नीलम झा ‘निवेधा’

#लेखनीक_धार
विषय:- “आधुनिकता आ परंपरा के बीच बढ़ैत यज्ञोपवीतमे आडम्बर ”

पहिने यज्ञोपवीतमे विध पर बहुत बेसी धियान रहैत छलैक। सभ शुभ-शुभक हास्य – बिनोदक संग सभ विधि करबामे लागल रहैत छल मुदा आब सभ उत्सुक रहैत अछि आइ कथिक भोज छै, डीजे बजतै कि नहि, ककरा आ कत तक नुवा-धोती बटेतै, बह्मस्थान दुर छैक त’ जेबाक की व्यवस्था छैक। मैट मंगल दिन की आ केहन नुवा थारी बाटी बटेतै। सिंहुरार बालीके नुवो भेटतैक की खाली प्लेटे आ रूमाल इत्यादि। ताहुमे सभसँ बेसी धियान लागल रहैत छैक सभहक मामागाम पर। दुनूठामक लोक धियान लगने रहती जे की जेतै एत सँ आ की अतै बरूआक मामागाम सँ। ई एकटा विचित्र चलनक चलती भ’ गेलैया।
आब ममेगाम सँ बाँसकट्टी सँ लक रातीम दिन तककें सभ कपड़ा-लत्ता, विधक सभ ओरियान, सोना -चानी,बाँसक वर्तन , आचार्य,बह्मा,आ पंडितकें पाँचो टुक कपड़ा सँ लक घर भरीक जतेक जाल-़पोल रहैत छैक सभहक लेल मामागाम सँ जेतैक कपड़ा।भोज लेल किछु वा सभटा,कहबाक तात्पर्य जे सभ ओरियान नाना मामाके नाम। आब उपनाइनमे ततेकने आडम्बर बैढ़गेलैया जे दुनू ठामक लोक खूम नीक सँ पिसाइत अछि। विध कम आ देखाबा बहुत बेसी भ’ गेलैया। लियौन हकार सेहो बड्ड बैढ़ गेलैक अछि। आब जिनका लग अर्थ छैन से बड्ड दीब जिनकी लंग नञि छनि त’ ओत बुझू जे थौवा भ’ जाइत छैथ एहि देखेबाक आडम्बरमे। घुन संगे पिसाइत अछि आब सतुवा।
परिणाम :- परिणाम ई होइत अछि जे बच्चा सभ एकरा मात्र एकटा आडंबर वला कार्यक्रम  बुझैत अछि आ नञि कियो आब जनेउ पहिरैत अछि नियमित रूप सँ आ नञि गायत्री जपैत अछि। तहिना नानीगाममे आब उपनाइनके लोक आब एकटा खूम भाड़ी काज बुझैत अछि कारण ओरियानो त’ बड्ड करबाक रहैत छैक।एहि प्रकारे आधुनिकता आ परंपरा के बीच उपनाइन संस्कारक आडम्बर बहुत बेसी बैढ़ गेलैक अछि।

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