लेख
प्रेषित : कीर्ति नारायण झा
विषय : उपनयन संस्कार मे विधि सओं बेसी देखावट पसरल अछि ।
विचित्र स्थिति भऽ गेलैक अछि अपन मिथिला के जे उपनयन सन उत्कृष्ट संस्कार में जे वैदिक रीति सँ बच्चाक संस्कार देल जाइत छैक ओकर मूल विधि व्यवहार पर कम ध्यान दैत ओहि मे अपन मोछक सबाल बना लेलन्हि अछि। आचार्य आ ब्रम्हा भले कम होइथ, संस्कार के समान मे भले कटौती कयल जाय मुदा सौंसे इलाका मे भोजक नाम होअय, एकरा लेल सतत् प्रयासरत रहैत छैथि। गामक उपनयन के स्थिति के विवेचना एहि सत्य घटना सँ कऽ रहल छी आ इ मात्र मिथिलाक कोनो एक गामक घटना नहिं थिकै, प्रायः सभ गामक येएह हाल छैक ।भोरे भोर लखना देबन भाई के दरबज्जा पर अनघोल कऽ रहल छल जे बुच्ची बाबू अपन बेटा के उपनयन मे रसगुल्ला के पथार लगबा देलखिन्ह। एना भरि पेट रसगुल्ला गाम मे के करैत अछि यऔ? आंगन सँ देवन भाई सरोता सँ सुपारी कतरैत दलान पर अयलाह आ लखना के डांटैत बजलाह जे धुर बुरिबक। तोरा किछु बुझले नहि छओ। ओ रसगुल्लाक भोज करवाक लेल तैयार नहिं छलाह। दुनू प्राणी पटना सँ बिचार कऽ कऽ आयल छलाह जे भोज मे बेसी खर्च नहिं करब। भोज मे बेसी पसार कयनाइ बर्बादी अछि मुदा हमरा अपना दलान पर बजेलनि आ भोजक विषय मे पूछय लगलाह। हम तऽ एही पाहि मे रही, हम कहलियनि जे जखन भोज मे कंजूसी करबै तखन बाबा धाम मे बेटा के उपनयन करा लेने रहितहुँ, कियो नहिं देखितेए जे की कयलहुँ आ की नहिं मुदा जखन गाम अयलहु अछि तखन गौंवां के हिसाब सँ करय पड़त। अहाँ के दूटा बेटे अछि आ बहुत दिन सँ शहर मे कमा रहल छी। एहि बेर गामक लोक के रसगुल्ला मे डूबा देबैइ बस आ जँ से नहिं करबै तऽ सौंसे गाम मे नाक कटि जाएत तखन तऽ हँ नै हँ नै कऽ कऽ बुच्ची बाबू तैयार भेलाह आ तों झूठे के अनघोल कयने छह। हमहुँ संयोग सँ गाम मे रही, देवन भाई के बात सुनि सोचय लगलहुँ जे बुच्ची बाबू शहर मे प्राइवेट कम्पनी मे एकाउंटेंट के नौकरी करैत छैथि, कोनहुना थूक साटि कऽ परिवार चलबैत छैथि। मकानक किराया सँ लऽ कऽ बच्चा के पढाई लिखाइ तक जोड़ैत जोड़ैत परेशान रहैत छैथि। बच्चा के उपनयन कराओनाइ आवश्यक तें बेचारे कनियाँ के विशेष आग्रह पर गाम आबि गेल छलाह मुदा नहि जनैत छलखिन कि हमर देवन भाई सभ सन बैद्यनाथधाम के पंडा जकाँ हिनका पकड़ि लेथिन आ इच्छा के विरुद्ध फाजिल खर्च कराओथिन। हमरा बाद मे पता चलल जे बुच्ची बाबू प्रोविडेंट फंड के एडवांस उठा कऽ पाई अनने छलाह आ सभटा बच्चा के उपनयन मे खर्च कऽ देलखिन्ह। उपनयन के बाद भले बरूआ गायत्री अथवा सावित्री मंत्र मोन नहिं राखैथि मुदा बुच्ची बाबू के प्रोविडेंट फण्ड सँ उठाओल गेल एडवांस जा धरि जीबैत रहताह ता धरि मोन रहतैन। एकरा अनावश्यक खर्च कही अथवा आवश्यक खर्च? एकर निर्णय हम अहाँ सभ पर छोड़ि दैत छी