लेख
प्रेषित : रिंकु झा
लेखनी के धार
शीर्षक -वसंत ऋतु मे प्रकृति अपन सुन्नरताक छटा चहुंदिस पसारैत अछि –
भारत मे मुख्यतः छः टा ऋतु मानल जाइत अछि। जाहि मे वसंत ऋतु एक टा विषेश ऋतु मानल जाइत अछि। वसंत ऋतु के हरेक ऋतु के राजा कहल जाइत अछि। मुख्यतः फरवरी स अप्रैल के मध्य वसंत ऋतु मानल जाइत अछि।माघ मासक शुक्ल पक्षक पंचमी तिथि क वसंत ऋतु के आगमन मानल जाइत अछि। मान्यता छै कि ओहि दिन पृथ्वी के ताप यानी अग्नि नव सृजन के तरफ अपन कदम बढाबय छैथ। अहि समय मे प्रकृति अपन सुंदरता के चरम सीमा पर रहैत अछि। संपूर्ण पृथ्वी के प्राकृतिक वातावरण नव कनियां के समान सजि -धजि क समस्त चिर प्राणी के मन मोहि लै छैथ। वसंत ऋतु के मधुमास सेहो कहल जाइत अछि।कहल जाइत अछि कि मधुमासक आगमन मनुष्य के मोन मे नव आशा,नव संकल्प,नव उर्जा आर रंग -बिरंगक खुशी के संग जीवन में उत्साह भैर दै छै।वसंत ऋतु शिक्षा,कला आर संस्कृति के एक टा विषेश भुमिका निभावै छै पृथ्वी पर।कवि के मन मे नव -नव कल्पना के जागृत करय छै। वसंत ऋतु प्रकृति के निंद स जगा क सक्रिय बना दय छै।नव चेतना भैर दै छै प्राणी मे ।अहि समय में चंहुदिश हरियाली आर खुशहाली के वातावरण रहय छै। बाग -बगीचा मे नब चमक आबि जाई छै।गाछ वृक्ष मे नव -नव पल्लव लागि जाइ छै।खेत -खरिहान सब फसल स लहलहाईत रहय छै।आमक गाछ मे मज्जर आर टिकुला लागि जाइ छै। चंहुदिश पियर – पियर सरसो के फुल खिली जाइ छै। अन्नपूर्णा के कृपा सओं खेत -खरिहान मे अन्न के भंडार लागी जाई छै।खेत मे गहुमक बाली सोना जंका पसरल रहय छै। किसान जन, बनिहार सबहक मन प्रसन्न रहय छै।रंग -बिरंगक फल आर फुल स गाछ वृक्ष लदल रहय छै। तितली सब मड़राइत रहय छै अकाश मे । धरती सओं आकाश धरि मुस्कान पसरल रहय अछि ।चिरै – चुनमुन सब राग मल्हार गाबय लागय छै।रौदक धाह देह मे नीक लागैत रहय छै।कोयल कुहकय लागय छै नित भोरे – भोर। जाड़क अन्त हुए लागय छै। भँवरा मधुपान करय लागय छै।वन मे मोर नाचय लागय छै।पियर रंग के प्रधानता देल जाईत अछि शुभ मानल जाइत अछि। मनोविज्ञानक अनुसार पियर रंग मानव मस्तिष्क के चिंतन शक्ति के सक्रिय करय छै। आयुर्वेद के अनुसार वसंत ऋतु के शुद्ध, सात्विक वायु मे भ्रमण करब स्वास्थ्य के लेल हितकर होई छै। पौराणिक कथा के अनुसार वसंत ऋतु के कामदेव के पुत्र मानल गेल अछि।कहल जाइत अछि कि रुप आर सौन्दर्य के देवता कामदेव के घर पुत्र प्राप्ति के समाचार सुनी प्रकृति झुमि उठल , जाहि हेतु एतेक उत्साह रहैत अछि अहि ऋतु मे । खुशी स द्रविभूत भए गाछ-वृक्ष नव पल्लव के पालना लगेलक, फुल नव वस्त्र बनेलक, पवनदेव पुरबैया हवा स झुला झुलेलैथ, कोयल गीत सुना मन बहलेलक।वसंत ऋतु मे ज्ञान आर कला के देवी सरस्वती मां के आराधना होईत अछि। शिवरात्रि,होली,जुड़शीतल, आदि बहुत रास पावैन -तिहार सब होईत अछि अहि ऋतु मे ।निराश भेल आर कलुषित भरल अहि जीवन मे नव आशा के संचार करैत अछि ई वसंत ऋतु ।