लेख
प्रेषित : कीर्ति नारायण झा
कूकि रहल अछि बाबरी कोइली, वसंत आगमनक दैत संकेत पीयर पीयर गेना के फूल सँ चमकि रहल अछि फूलक खेत। नहिं ठंढा नहिं गरम के अनुभव नीक लगैत अछि पवनक चालि ,विरहन के मोन के झकोरैत परदेशी जेना अओताह काल्हि ।
समस्त ऋतु के कामदेव वसंत जकर आगमन अपना सभक ओहिठाम फरवरी सँ अप्रैल मास के मध्य धरि होइत छैक आ एकर आगमनक पश्चात् चारू कात प्राकृतिक सुंदरता नृत्य करय लगैत छैक। हिन्दू पंचांग के अनुसार सरस्वती पूजा अर्थात वसंत पंचमी सँ फगुआ आ शिवरात्रि धरि वसंत केर समय मानल जाइत छैक। शरद ऋतुक बाद जखन जाड़ कम भऽ जाइत छैक आ गर्मी क’ अयवाक तैयारी होइत छैक ओहि मध्य मे इ ऋतु पड़ैत छैक तें मौसमक दृष्टिएँ इ समय एकदम संतुलित रहैत छैक अर्थात ने बेसी ठंढा आ ने गर्मी। दृष्टि के रूप वसंत ऋतु बहुत सुंदर होइत छैक जाहि मे गाछ बृक्ष मे नव आ हरियर- हरियर पात सभ आबि जाइत छैक। आमक गाछ मे पीयर पीयर मज्जर आ ठाढि पर बैसल कोइली के कू कू करैत कर्णप्रिय स्वर मन के आनन्दित कऽ दैत अछि, एकर अतिरिक्त खेत आ मैदान हरियर हरियर फसिल आ घास सँ भरि जाइत छैक। फूल सभ मे कली होमय लगैत छैक आ चारू कात फूलक सुगंध पसरय लगैत छैक।पीयर पीयर सरिशो के फूल खेत सभके पीयरका घघरी जकाँ लगैत रहैत छैक। चिरैई चुनमुन्नी सेहो वातावरण सँ आनन्दित भऽ मधुर स्वर मे कलरव करैत रहैत अछि। मनुखक पेएर वातावरण के मादकता देखि ओकर आनन्द लेवाक लेल बाहर निकलवाक लेल जिद करैत रहैत अछि। एहि ऋतु मे चारू कात उत्सव जकाँ वातावरण बनि जाइत छैक। नव उर्जा आ नव चेतना के संचार सँ सभ अपना के प्रसन्न अनुभव करैत छैथि। पौराणिक मान्यतानुसार वसंत के कामदेव के पुत्र मानल गेलैक अछि। भगवान कृष्ण गीता मे लिखने छैथि जे ऋतु मे हम वसंत ऋतु छी। वसंत ऋतु के जँ प्रकृति के सोलहो श्रृंगार केर प्रतीक कही तऽ अतिशयोक्ति नहिं होयत। प्रकृति के यौवनावस्था के दर्शन हमरा लोकनि कें वसंत ऋतु मे देखवाक लेल भेटैत अछि। समस्त जीव जंतु आ गाछ बृक्ष एहि ऋतु मे लोक कें अपना दिस आकृष्ट करबा मे सफल होइत अछि। हमर सभक धार्मिक ग्रंथ जेना रामायण, श्रीमद्भागवत गीता मे सेहो एहि ऋतुक वर्णन विस्तार सँ कयल गेल अछि ।