श्री राम सँ अहाँ कि-कि सिखब

विचार

– प्रवीण नारायण चौधरी

श्री रामचरित्र परिचर्चा गोष्ठीक आयोजन विराटनगर मे मैथिली एसोसिएशन नेपाल द्वारा २२ जनवरी २०२४ केँ करायल जायत। एक दिश अयोध्या मे भगवान श्री राम केर बालरूप मूर्ति-विग्रह मे प्राण प्रतिष्ठा नवनिर्मित राममन्दिर मे कयल जेबाक अछि, दोसर दिश पूरे भारत, नेपाल व विभिन्न देश जाहि ठाम श्री राम एक आदर्श अवतारी महापुरुष अथवा भगवान् रूप मे मान्य छथि, ताहि सब ठाम उत्साहक अवसर अछि।

श्री राम सँ आजुक पीढ़ी केँ कम सँ कम निम्न विन्दु पर बेर-बेर सीख लेबाक जरूरत अछिः

१. जन्म सँ माता-पिता आ परिजन प्रति पूर्ण आज्ञाकारी होयबाक संग मनोहर बालक बनि सभक प्रेम व आशीर्वाद लेबाक मनोरम बाललीला।

२. छात्र धर्म मे गुरु प्रति सम्मान, बाल सखा प्रति मित्र धर्मक निर्वाह, भाइ सभक संग भ्रातृत्व आ पढाइ-लिखाइ मे उत्तमोत्तम चरित्रक प्रस्तुति।

३. अपन वीरता आ युद्ध-कौशल सँ असुर (राक्षस) केँ मारय मे महारत – किशोरावस्था सँ हिनक एहि चरित्रक चर्चा चहुँ ओर होबय लागल, यैह सूचना कुशिकवंशी ब्रह्मर्षि विश्वामित्र द्वारा ऋषि-मुनि आ ब्राह्मण द्वारा कयल जा रहल यज्ञ-उपासना मे बाधक बनि रहल असुर दल केर दलन वास्ते श्री राम आ लक्ष्मण केँ राजा दशरथ सँ याचनापूर्वक माँगिकय लय जायल गेल छल। आजुक युवा पीढ़ी मे गलत केँ नहि, अपितु सत्य केँ साथ देबाक लेल राम-लखन जेकाँ गुरुवर्ग (अभिभावक) लोकनि केँ सहयोग लेल स्वयं केँ तत्पर करब आवश्यक अछि।

४. श्री राम सदैव मर्यादित रहैत छलथि। अनुशासनक विशेष चारित्रित प्रस्तुतिक कारण ओ मर्यादा पुरुषोत्तम सेहो कहेलथि। अनुशासन बिना मनुष्य जीवन बेकार, वाहियात आ व्यर्थ अछि – एहि बातक शिक्षा ओ हमरा सब केँ विशेष रूप सँ देलनि। भले ओ वनवास मे रहला, भले गुरुआश्रम मे या राजकाज मे – हुनक दैनिकी मे मनुष्य केँ एक-एक मिनट समय केर सदुपयोग, ब्रह्ममुहूर्त मे उठनाय, कौलिक परम्परा अनुसार धर्म-कर्म आ समस्त आयोजन मे बढ़ि-चढ़िकय हिस्सा लेनाय, लोक-समाज बीच सदैव हँसैत-मुस्कुराइत आ सभक प्रिय बनिकय रहनाय – एहेन बहुतो रास बातक जिकिर अबैछ श्रीरामक जीवनलीला मे। तेँ, राम केँ वनवास भेटला पर सारा प्रजा हुनकहि संग वनगमन के जिद्द पर अड़ि गेल, सब चलि देलक… बहुत विनती कय केँ राम हुनका सब केँ घुरौलनि। आइयो जे कियो लोक समयक पाबन्द अछि, श्री राम समान आदर्श अनुशासन केँ जिबैत अछि, ओ निश्चित महान आ सफल लोक मानल जाइछ।

५. काल्हि राज्यारोहण होयत आ आइ राति मे विमाता कैकेइ द्वारा पिता दशरथ केँ परिस्थितिक जाल मे बान्हि वनवासक आदेश करौलनि, श्री राम तेहनो घड़ी मे प्रतिकार नहि, माता-पिताक वचन केँ सत्कार करैत विहँसैत वन प्रस्थान लेल तैयार भ’ गेलाह। बड पैघ सन्देश अछि हमरा सब लेल। कनी टा बात पर हमरा लोकनि ‘बदला लेबाक भावना सँ’ प्रेरित होइत दुष्टता पर उतरि जाइत छी। गाम-समाज आ आन लोक संग त शत्रुता करिते छी, अपन माता-पिता आ सहोदर भाइ-बन्धु तक केँ दुश्मन मानि बैसैत छी। परञ्च श्रीराम केर आदर्श पुनः त्याग केर भावना सँ सब स्थिति-परिस्थिति मे अपन वीरता देखेबाक बात निर्दिष्ट अछि हमरा सभक लेल।

६. श्री राम वनगमन कयलनि। वनक कठिन रास्ता केँ बिना कनिको दर्द-पीड़ा अनुभव कएने बस किछेक मित्र आ मित्रक सुझाव अनुरूप वनवासी कोल-भील सभक मार्गदर्शन प्राप्त करैत आगू बढ़ैत रहलाह। बीच-बीच मे जतय कतहु ऋषि-मुनि (सुविज्ञजन) केर आश्रम भेटन्हि, हुनका सँ भेंट करब नहि बिसरथि। तात्पर्य भेल जे स्वयं सुविज्ञ रहलाक बादो विभिन्न भूगोल आ भौगोलिक परिवेश जाहि सँ अहाँ अनभिज्ञ छी, जीवनक पूर्वभाग मे कोनो तरहक अनुभव नहि भेटल, त अहाँ सामान्यजन सँ सेहो मार्गदर्शन प्राप्त करैत आगू बढ़ू। सुविज्ञ-सुजान (ऋषि-मुनि समान) लोक त सदिखन शिक्षक रूप मे चाहबे करी। राम अपन सहज चरित्र सँ सब केँ सम्मान दैत कठिन आ दुरुह वनमार्ग तय कयलनि।

७. ऋषि-मुनि संगक चर्चा मे मनुष्य जीवनक गूढ़ सिद्धान्त, प्रकृति केर विभिन्न स्वरूपक निरूपण आ वेद-वेदान्त संग ईश्वर-ऐश्वर्यक वर्णन करैत आ स्वयं सेहो बुझैत प्रस्तुत भेल छथि। ऋषि भरद्वाजजी, वाल्मीकिजी, आत्रेयजी, अनसूयाजी, आदि ऋषि-मुनि संग श्री राम केर भेंट हमरा सब लेल सत्संगक अनिवार्यता पर प्रकाश दैत अछि।

८. निषादराज गुह संग श्री रामक मित्रता आ हुनका भीतर स्वयं केर जातीय पहिचान छोट होयबाक अन्तर्भान केँ बदलबाक लेल समानताक व्यवहार श्री राम द्वारा वास्तविक साम्यवाद-समाजवाद केँ निरूपण करैत बुझा रहल अछि। वनवासक क्रम मे सदैव सर्वहारा वर्ग केँ संग रखबाक अद्भुत चरित्र सेहो बहुत बेसी प्रभावित करयवला अछि। कतबो पैघ भ’ जाय, परन्तु स्वयं मे कथमपि पैघताक भाव एना नहि आबि जाय जाहि सँ जनसामान्य वर्ग सँ अहाँक दूरी बनय। श्री राम निषादराज गुह संग सदैव मैत्रीभाव मे समान महत्वक बोध करेबाक व्यवहार कयलनि।

९. पिता दशरथ, मंत्री सुमंत्र, माता कौशल्या, विमाता कैकेइ-सुमित्रा आ भाइ-बन्धु मे लक्ष्मण, भरत आ शत्रुघ्न संग गुरुवर्ग मे वसिष्ठ, विश्वामित्र, अन्यान्य ऋषि-मुनि – सभक संग सत्यनिष्ठ आ सुन्दर चरित्रवान् – आदर्श पुत्र-शिष्य व सद्बुद्धिक खान बनिकय श्री राम प्रस्तुत भेल छथि। एकटा मानव केँ स्वयं मे एतबा सद्गुण धारण करैत आगू बढ़बाक चाही।

१०. पतिक रूप मे रामक भूमिका एहि प्रसंग सँ अन्दाज लगा सकैत छी जे स्वर्णमृग प्रति सीताक आकांक्षा देखैत ओ ओहि मायाजनित स्वर्णमृगक पाछाँ चलि पड़लाह, पत्नीक आकांक्षा केर पूर्ति करय बेर मे पति मे समर्पणक भाव होयब बहुत आवश्यक कहल जाइछ। से परम् सुजान आ सब किछु जनितो लीलारूपी चरित्र निर्वाह करैत बिल्कुल प्रेमी-दीवानाक रूप मे प्रस्तुत भेल छथि श्री राम। से युवजन लेल बड खास बुझाइत अछि हमरा।

११. भाइ भरत सहित समस्त अयोध्यावासी आ माता लोकनिक विभिन्न आग्रह, तर्क आ न्यायोचित ढंग सँ राम केँ वनवासक प्रण (पिताक वचन) छोड़ि अयोध्या पर ध्यान केन्द्रित करय, खासकय तखन जखन पिता दशरथ रामवियोग मे प्राण उत्सर्ग कय स्वर्गवासी भ’ गेलाह – एतेक तक कि गुरु वसिष्ठ सेहो सभक आग्रह प्रति श्री राम सँ विचार करबाक अनुरोध कयलनि, परञ्च राम एक शब्द मे अपन पिताक आदेश आ ताहि प्रति देल गेल समर्थन सँ नहि डिग सकबाक बात कहलनि। ‘रघुकुल रीति सदा चलि आई, प्राण जाय पर वचन न जाई’। एहि तरहक दृढ़ता रखले सँ मानव कोनो महान् कार्य पूरा कय पबैत अछि। मनुष्यरूप मे जीवनक प्राप्ति मे एहि आदर्श केँ जे छोड़लक, या जे नहि अपनौलक, ओकर जीवनक महत्ता स्वतः घटि जाइत छैक।

१२. वनगमन आ खास कय सीता अपहरणक बाद श्री राम हाक्रोश पाड़िकय ‘हा सीते! हा सीते!!’ कहैत सहज मानुसिक चरित्र प्रस्तुत कयलनि, लेकिन धीरतापूर्वक आ बहुत युक्ति सँ सीताक खोज करबाक उपाय निकालिकय तदनुसार वनवासी समाजहि सँ समाधानक सलाह-सुझाव (विमर्श) कय केँ आगू बढ़ैत रहलाह। एहि क्रम मे श्री राम केँ शबरी सँ भेंट होइत छन्हि। शबरी मार्फत बानरराज सुग्रीवक निवास सम्बन्ध मे पता चललनि। हनुमानजी, जाम्बवन्तजी, अंगद, नल-नील आदि कतेको देवतूल्य महावीर बानर-रीछ सँ मित्रता करैत – वनपशु गिध जटायू, हुनक भाइ सम्पाती आदिक सहयोग सँ अपहृता सीताक खोज करय सँ लयकय पुनः लंका अपन दूत पठाकय शान्ति-समझौता करबाक कतेको आग्रहक कूटनीति पर चलैत रहलाह। अन्त मे रावणक अहंकार चरम् पराकाष्ठा पर रहबाक कारण लंका पर आक्रमण, घोर युद्ध आ रावण वध कयलनि।

१३. छोट सँ छोट केँ सम्मान देनाय, शुद्धतावादी आ अनुशासित रहैत शबरीक ऐँठ (जूठ) बैर सहर्ष भोग लगेबाक अद्भुत विनम्रता आ भक्ति भाव प्रति श्रेष्ठ समर्थनक अकाट्य उदाहरण बनेनाय, सभक बात सुनबाक-गुनबाक आ मनबाक श्री रामचरित्र सदिखन अनुकरणीय अछि।

१४. विभीषण रावणक भाइ रहथि। अपन सहोदर अहंकारी रावण केँ बुझेलाक बादो नहि बुझि उल्टा लात मारि अपमान करलाक बाद ओ श्री रामक खेमा मे – हुनकहि शरण मे रहबाक पुनीत उद्देश्य सँ आबि गेल रहथि। सुग्रीव सहित बहुतो लोकक विचार सँ शत्रुपक्षक लोक केँ अपन खेमा मे राखब उचित नहि, लेकिन श्री राम ओहिठाम अपन नीति स्पष्ट करैत कहलनि जे शरण मे आयल लोक केँ कखनहुँ ठुकरेबाक नहि चाही। तुलसीकृत् रामचरितमानस मे बहुत रास नीति-उपदेशक संग ओ अपन नीति आ शरणागतवत्सल भगवानक स्वरूप स्पष्ट कएने छथि। हमरो सब केँ एहि लेल प्रेरणा देने छथि जे शरण मे आयल निरीह प्राणी प्रति कथमपि निर्दयता केर भाव नहि अनबाक चाही।

१५. सीधा युद्ध या सीधा प्रहार कय केँ केकरो दण्डित करबाक विचार श्री राम केर कोनो व्यवहार मे कतहु नहि आयल। बड़ा धैर्यक संग ३-३ दिन धरि समुद्रदेव सँ विनती करैत रहला जे लंका पर आक्रमण लेल हुनका सहित हुनक सम्पूर्ण बानरी सेना केँ बाट देल जाय। संग मे रहल लक्ष्मण जेहेन प्रखर तेजस्वी आ शूरवीर भाइ केर सलाह केँ प्राथमिकता नहि दैत शान्त-शील आ नीति-निपुण विभीषणक सलाह मानलनि। एतय सेहो हम मानव हुनकर चरित्र सँ ई शिक्षा ली जे कखनहुँ गरम दल सँ नरम दलक सुझाव प्रथम ग्राह्य होइछ। अन्त मे लक्ष्मणजीक मत अनुसार सेहो बाण सन्धान कयलनि, आ तुरन्त समुद्रदेव श्रीरामक कोपक समक्ष नतमस्तक भ’ हाजिर भ’ गेलाह आ प्रभु सँ विनम्रतापूर्वक अपन बाध्यता कहलनि। हुनकर कथन बेस महत्वपूर्ण भेलनि। प्रभु कुपित रहितो हुनकर विनम्रता आ बाध्यता केँ नीक सँ मनन कयलनि। सारा सभा समुद्रदेवक बात सँ सहमत भेल – ओ प्रभु श्री राम केँ सर्वव्यापक परमात्मा आ सभक स्वामी रूप मे मानिकय एतबा कहलनि जे आखिर हमर निर्माण अपने जाहि उद्देश्य सँ कएने छी ताहि धर्म केँ निभेबाक बाध्यता अर्थात् करोड़ों प्रकारक जीव सभक आश्रयस्थल मात्र छी हम, जँ हम सुखा जायब त ओहि जीव सभक कि होयत… तेँ हे प्रभु हम बाध्य भ’ जड़ जीव रूप मे अपनेक विनती बुझितो-गुनितो किछु करय योग्य नहि छी। तखन प्रभु श्री राम हुनका सँ मंत्रणा कयलनि जे आर कोन विकल्प अछि। समुद्रदेव द्वारा प्रभुक नामक महिमा आ नल-नील नाम्ना दुइ बानर केर वरदान (वैशिष्ट्य) केर सदुपयोग जे आगू भ’ के ओ सब गाछ-वृक्ष, पाथर, रेत आदि जे किछु प्रयोग करता, समुद्र मे बाँध निर्माण सम्भव भ’ जायत। यैह ‘रामसेतु’ कहायल आ श्रीरामक सेना एहि पार सँ लंकाक पार पहुँचि सकल।

क्रमशः….

हरिः हरः!!