तिला संक्रांति पावनिक परंपरा पूर्वजक धरोहर थीक

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लेख

प्रेषित :आभा झा

लेखनीकेँ धार – ” तिला संक्रांतिक तैयारीमे पहिने आ आबमे उत्साहक कतेक अंतर भऽ गेलैक” –
पाबनि-तिहारक भारतीय संस्कृतिक विकासमे अप्रतिम योगदान छैक। परंपरा पूर्वजक धरोहर अछि। मिथिलाक संस्कृतिसँ जुड़ल एकटा महान पाबनि अछि ” तिला – संक्रांति”। बच्चामे तिला संक्रांति केर बड़ उत्साह रहैत छल। माँ भोरे-भोर चारि बजे स्नान करयकेँ लेल उठा दैत छल। बाबूजी घूरक इंतजाम पहिनेसँ कए कऽ राखैत छलाह। हमसब पाँचो भाई-बहिन स्नान कऽ घूरक चारूकात आगि सेकय लेल बइस जाइत रहियैक । ओकर बाद बाट जोहैत रहैत छलौं जे चुलौर, तिलबा कखन माँ लकए आओती ।कनिक फरीछ होइ तखन माँ चुलौर, तिलबा, तिलकुट प्लेटमे सरिया कऽ हमरा सबकेँ खाइ लेल अनैत छल। एहि पाबनिसँ पहिने चूड़ा कुटेनाइ – चूड़ा भुजनाइ – तिल धोनाइ – सुखेनाइ -तिलबा बनेनाइ सभक तैयारी एक अठबारे पहिनेसँ शुरू भऽ जाइत छल। सूर्यक लालिमाक संग घरक तिलबा सभक खुशबू पसरि जाइत छल। किछु व्यंजन तऽ माँ, नानी, दादी कैयो दिन पहिनेसँ बनेनाइ शुरू कऽ दैत छलीह। हुनक हाथक ओ पकवानक स्वाद एखनो नहिं बिसरल अछि। माँकेँ संग तिलबा बनबै लेल हमहुँ बैइस जाइ। तिलबा बनबैमे हमर हाथ लाल भऽ जै तखन हम सोचि कि माँ सब एतेक तिलबा कोना बना लैत अछि।तिला संक्रांतिक इतज़ाम पाती पहिने आ आबमे उत्साहक बहुत कमी देखल जाइत अछि। आब तऽ सभ पकवान लोक ऑनलाइन या हाट – बजारसँ कीन कऽ मंगा लैत अछि। आब भोरे चारि बजे ने घरक गार्जियन उठि कऽ स्नान करैत छथि आ ने बच्चा सभ। आब पहिने जेकां ओ उमंग आ उत्साह विलुप्त भऽ गेल। गाम घरमे तऽ घूरक व्यवस्था रहैत छलैक मुदा बाहर या शहरमे लोक हीटरसँ काज चला लैत अछि। परंपरागत तरीकाकेँ जगह आब दिखावा हावी भऽ गेल छैक। परंपरा हेरायल नहिं अछि हमरामे जिंदा अछि हाँ इहो सच अछि कि नब पीढ़ीमे हमर परंपरा लुप्त भऽ रहल अछि। आधुनिकताक प्रभाव बढ़ि रहल अछि एहि कारन त्योहारकेँ मनाबै मे सेहो बदलाव आयल छैक। परंपरा जीवनमे सकारात्मकताक संचार करैत अछि एहि बातकेँ बुझैत हमरा नब पीढ़ीमे परंपराकेँ प्रति भाव जाग्रत करय पड़त।
तिला संक्रांति पूरा भारतमे हर्षोल्लासक संग मनाओल जाइत अछि। कुंभकेँ पहिल स्नानक शुरूआत सेहो तिला संक्रांतिक दिनसँ शुरू भऽ जाइत अछि। एहि दिनसँ ही प्रयागराजमे शूरू होइ वाला कुंभ महोत्सवक पहिल शाही स्नान शुरू होइत अछि। ज्योतिषशास्त्रक अनुसार, जखन सूर्य धनु राशिसँ निकलि कऽ मकर राशिमे प्रवेश करैत अछि, तखन तिला संक्रांतिक पावन पर्व मनाओल जाइत अछि। एकर संगहि सूर्यकेँ मकर राशिमे प्रवेश करयकेँ संग-संग सूर्य उत्तरायण हुअ लगैत अछि, जकरा बड्ड शुभ काल मानल जाइत छैक। कहल जाइत अछि जे संक्रांतिएक दिन सओं वसंत ॠतुक आगमन भऽ जाइत अछि। दिन पैघ आ राति छोट हुअ लगैत अछि। जाहि कारण एहि पाबनिकेँ नब ॠतु और मौसमक स्वागतक लेल सेहो मनाओल जाइत अछि। माघ मासक संक्रांतिकेँ मकर संक्रांति कहल जाइत अछि। जे अपन मिथिला मे तिला संक्रांतिक नामसँ जानल जाइत अछि। एहि दिन सँ सूर्य दक्षिणायण सँ निकलि कऽ उत्तरायण मे प्रवेश करैत अछि। शास्त्रक अनुसार, उत्तरायण कें समयाअवधिकेँ देवी-देवताक दिन और दक्षिणायणकेँ देवताक रातिकेँ रूपमे मनाओल गेल अछि। एहि दिनसँ विवाह, मुड़न, गृह प्रवेश, जनेऊ आ नामकरण आदिक लेल शुभ समय शुरू भऽ जाइत अछि।तिला संक्रांतिक एहि पावन पर्वक पौराणिक महत्व अछि, कहल जाइत अछि कि एहि दिन सूर्य भगवान अपन पुत्र शनिसँ भेट करय लेल हुनकर घर जाइत छथि, जे कि शनि देव मकर राशिकेँ स्वामी छथि, ताहि दुवारे एहि पाबनिकेँ मकर संक्रांतिक नामसँ जानल जाइत अछि। ओतहि दोसर मान्यता अछि, कि भगवान विष्णु एहि दिन पृथ्वी लोक पर असुरक संहार कयने छलाह, यैह खुशीमे तिला संक्रांतिक पाबनि मनाओल जाइत अछि।
तिला संक्रांतिक धार्मिक महत्व – शास्त्रक अनुसार तिला संक्रांतिकेँ दिनसँ सूर्य देवता उत्तरायण होइत छथि और उत्तरायण देवताकेँ अयन अछि। एक अयन देवताक एक दिन होइत अछि एहि तरहें 360 अयन देवताक एक वर्ष बनि जाइत अछि। सूर्यक स्थितिकेँ अनुसार वर्षक आधा भागकेँ अयन कहल जाइत छैक। सूर्यकेँ उत्तर दिशामे जाइकेँ उत्तरायण कहल जाइत अछि और एहि दिनसँ खरमास समाप्त भऽ जाइत अछि। खरमासमे कोनो तरहक शुभ कार्य नहिं होइत छैक।मान्यताक अनुसार, कोनो व्यक्तिकेँ उत्तरायणमे मृत्यु होइ सँ मोक्षक प्राप्ति होइत छैक। एहि पाबनिकेँ लोक प्रकृति सँ जोड़ि कऽ सेहो देखैत छथि, जतऽ प्रकाश और ऊर्जा देबय वाला भगवान सूर्य देवक पूजा होइत छैन्ह। एहि कारण एहि दिन दान, पूजा-पाठ, जप-तप, स्नान आदि धार्मिक क्रिया-कलापक एक अलगे महत्व छैक। कहल जाइत अछि कि एहि दिन दान-पुण्य कयलासँ सौ गुना बढ़ि कऽ पुनः प्राप्त होइत अछि। जाहि कारण आइयो लोक तिला संक्रांतिक दिन गंगामे स्नान करयकेँ संगहि बढ़ि-चढ़ि कऽ दान करैत अछि।
तिला संक्रांतिक वैज्ञानिक महत्व – जेना तिला संक्रांति मनाबैकेँ धार्मिक महत्व अछि ओहि तरहें एहि पाबनिकेँ मनाबैकेँ वैज्ञानिक महत्व सेहो अछि। तिला संक्रांतिक समयसँ ही नदीमे वाष्पन क्रिया होइत अछि और एहि दौरान नदीमे स्नान कयलासँ अनेक प्रकारक रोग दूर भऽ जाइत अछि ताहि दुवारे एहि दिन नदीमे स्नान करयकेँ विशेष महत्व छैक। चूँकि एहि समय सर्दी सेहो रहैत अछि और एहि दिन तिल-गुड़क सेवन कैल जाइत अछि, जे शरीरकेँ गर्मी प्रदान करैत अछि, जाहि सँ शरीरमे ऊर्जाक वृद्धि होइत अछि। एकर संग ही एहि दिन खिचड़ीकेँ सेवन सेहो अनिवार्य रूपसँ कएल जाइत अछि। खिचड़ी खाइकेँ वैज्ञानिक कारण अछि, कि खिचड़ी पाचनकेँ दुरूस्त रखैत अछि। ओतहि यदि खिचड़ीमे मटर आ अदरक मिला कऽ खिचड़ी बनेला पर ई शारीरिक रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़बैकेँ संग ही बैक्टीरिया सँ लड़यमे मदद करैत अछि।
जाड़मे तिला संक्रांतिक अपन विशेष महत्व अछि। दही-चूड़ा मिथिलाक खास व्यंजन अछि। मिथिलामे तिला संक्रांति पाबनिक दिन दही आ चूड़ा संग खिचड़ी खेबाक परंपरा अछि। संक्रांति दिन उड़ीदक दालि आओर चाउरक खिच्चड़ि , चुलौड़-तिलबाक संग तिल-चाउर, गुड़ चढ़ैत छनि। कहल गेल अछि, खिचड़ीकेँ चारि यार घी, पापड़ ,दही, अचार। तिल गुणवान अछि परंतु गुड़क बिना बेस्वाद, जकरा खायल नहिं जा सकैत अछि। गुड़क बिना तिलक महत्व नहिं और घीकेँ बिना खिचड़ी अधूरा।एक -दोसरकेँ महत्व बुझैत समाजमे समरस भऽ कऽ रहनाइ संदेश अछि तिला संक्रांतिकेँ। संक्रांति प्रतीक अछि परिवर्तनक, सामाजिक समरसताक, एकता व बंधुत्वक।समाज एकजुट होयत तऽ संक्रांति अवश्य घटित होयत, नब भोर अवश्य आओत, संबंधक ठिठुरैत राति जरूर ऊष्मा भरल दिवस मे परिवर्तित होयत। जय मिथिला, जय मैथिली।

आभा झा ( गाजियाबाद )