लेख
प्रेषित : नीलम झा “ निवेधा”
#प्रकृतिक_अनमोल_उपहार_धात्री
सबसँ पहिने ई जे #धात्री के छथि?# धात्री कियो आर नञि साक्षात जगत्र जननी जगदम्बा क नाम छी ।सभटा प्रपंच धारण करबाके कारण भगवतीके ९ वाँ नाम धात्री परलैन। दुर्गा सप्तशतीमे अर्गलाके प्रथम श्लोकमे एकर वर्णन अछि।
ॐ १.जयंती २.मंगला ३.काली ४.भद्रकाली ५.कपालिनी।
६.दुर्गा ७.क्षमा ८.शिवा #९_धात्री १०.स्वाहा ११.स्वधा
एहिमे नवम रूप माँ #धात्रीके । कार्तिक हिनकर उत्पतिक मास अछि तैं हिनकर पूजा कार्तिक मासमे लोक नियमपूर्वक करैत अछि ,सभदिन जल सेहो दैत अछि। सभ स्त्री अपन भाग्य सोहागक लेल धात्रीके वृक्षमे नियमित रूप सँ साँझ दैत छैथ। अक्षय नवमी के दिन धात्री गाछ तर ब्राह्मण भोजन करेबा आ अपनो भोजन करबाक परंपरा अछि। धातृ गाछ अबैत जाइत काल सेहो नीक मानल जाइत अछि।तें कहल गेल अछि जे प्रकृतिक_अनमोल_उपहार_धातृ होइत अछि।
धातृमे रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत होइत अछि। बहुत प्रकारक फायदेमंद चीज जेना कि विटामिन सी, विटामिन ए, कैल्शियम, आयरन…… इत्यादि पाएल जाइत अछि। जाहि कारण सँ ई स्वास्थ्यके लेल बहुत फायदेमंद होइत अछी संगही अनेकानेक बीमारी सँ दूर रखैत अछि मानवकेँ। धात्रीक सेवन सँ मनुक्खकेँ आँखिक ज्योतिमे लाभ होइत अछि आ केशके सेहो मजबूत आ कारी रखैत अछि, रूसी के सेहो हटबैत अछि। ब्लडप्रेशर, त्वचा रोग,गैस्ट्रिक, कोलेस्ट्रॉल संगहि कतेको रोगमे ई रामवाण जेंना काज करैत अछि। एकर रस सेहो बहुतो बिमारी सँ बचबैत अछि।
धात्रीके हम सभ बहुत तरहें भोजनमे उपयोग करैत छी। जेना:- एकर चटनी, रंग-विरंगक अचार, फँक्की, मुरब्बा आ ओहिना काँच सेहो चूसैत छी । धातृके भोजनक उपयोगमे अमृतक समान मानल जाइत अछि। एकरा व्यवसायिक रूपमे सेहो बहुत लोग लैत छैथ। अचार, धातृ रस आ मुरब्बा इत्यादि बनाए व्यापार करैत छैथ।
अतः धातृ धार्मिक,व्यवसायिक ,आ स्वास्थ्य लगायत हर मामलामे बहुत बहुत बहुत उपयोगी होइत अछि मानवक जीवनमे ।