मैथिली भाषा यानी मातृभाषामे संवाद, चिंतन आ विचार-विमर्शकेँ अपन रोजमर्राक जिनगीमे शामिल करी।

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लेखनीकेँ धार – ” संविधानक आठम अनुसूचीमे मैथलीक मान्यता भेट चुकल छैक, मान तखने भेटतै जखन हमसब अपने बाजब “-

मैथिली एक समृद्ध भाषा अछि। मुदा पठन-पाठनमे पाठ्यक्रमक मुताबिक मैथिलीकेँ प्रति बढ़ि रहल अरूचिकेँ देखि कऽ कखनो-कखनो सशंकित भऽ जाइ छी। मैथिलीकेँ प्रति उदासीन रवैयाक कारण ही आइ मैथिली भाषा पिछड़ल अछि। संविधानक अष्टम अनुसूचीमे शामिल भेलाक बादो एकरा ओ अधिकार नहिं भेटल जे भेटबाक चाही।
जन्म लेलाक बाद मानव जे प्रथम भाषा सीखैत अछि ओ मातृभाषा कहबैत छैक। मातृभाषा कोनो भी व्यक्तिकेँ सामाजिक एवं भाषाई पहचान होइत छैक। मातृभाषाक शाब्दिक अर्थ अछि माँ सऽ सीखल गेल भाषा। बच्चा यदि माता-पिताक अनुकरणसँ कोनो भाषाकेँ सीखैत अछि तऽ ओ भाषा ही ओकर मातृभाषा कहल जाइत छैक। हमर सभक मिथिलाक भाषा मैथिली अछि। मातृभाषा हमरा ओहि धरातलसँ जोड़ैत अछि, जे हमरा आगू बढ़यकेँ लेल आधार प्रदान करैत अछि। जखन हम अपन स्वयंकेँ भाषासँ इतर कोनो दोसर भाषामे शिक्षा प्राप्त करै छी तखन स्वाभाविक रूपसँ ओ भाषा हमर बाहरी आवरण होइत अछि। कियैकि हमर घरक आसपासक वातावरण मातृभाषाकेँ होइत अछि। हम केवल एक भाषाक तौर पर विकासक मिथ्या आवरण ओढ़ि लैत छी, जखन कि सांस्कृतिक विकासक धारासँ विमुख भऽ जाइ छी। अप्पन मैथिली भाषा या मातृभाषा जमीनी संस्कार प्रदान करय वाला भाषा अछि।
मातृभाषा जखन हमसब घरमे या बाहर अपने बाजब तखने हमर सभक बाल-बच्चा सेहो बाजत। मातृभाषासँ बच्चाक परिचय घर आ परिवेशसँ ही शुरू भऽ जाइत छैक। हम कहीं आन भाषाकेँ मोहजालमे फंसि कऽ हम अप्पन स्तत्वकेँ ही मिटा ने दी। मातृभाषा व्यक्तिकेँ संस्कारक परिचायक अछि। अप्पन भाषा एक कुशल गुरूकेँ भांति ही मार्ग प्रशस्त करैत अछि। मातृभाषा मैथिली मात्र संवाद ही नहिं, अपितु संस्कृति आ संस्कारक संवाहिका सेहो अछि। पाठशाला जेबाक पहिने तक बच्चा जे किछु बजनाइ सीखैत अछि ओहिमे सभसँ बेसी योगदान मायक होइत छैक। सभ संस्कार आ व्यवहार बच्चा एहिकेँ द्वारा सीखैत अछि। हम अपन भाषाक द्वारा अपन संस्कृतिकेँ संग जुड़ि कऽ ओकर धरोहरकेँ आगू बढ़बैत छी।
यूनेस्को द्वारा भाषायी विविधताकेँ बढ़ावा देबय आ ओकर संरक्षणक लेल अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवसक शुरूआत कएल गेल। कतेको बेर मातृभाषाकेँ हतोत्साहित करयकेँ प्रवृत्ति विद्यालयमे देखल जाइत छैक। जेना मैथिली बाजय पर हिंदी मीडियम स्कूलमे फाइन लागय वाला घटनाकेँ बारेमे हम सुनने छी। अहिना हिंदी बाजय पर इंग्लिश मीडियम स्कूलमे बच्चा सभ पर फाइन लगैत छैक। अहिना अन्य मातृभाषाक गीतकेँ स्कूलमे गेलासँ बच्चाकेँ हतोत्साहित कएल जाइत छैक, एकर अर्थ अछि कि हम बच्चाकेँ हुनक अपन परिवेश, संस्कृति आ हुनक जड़िसँ काटि रहल छी। एक दिन हमरा बुझयमे अबैत अछि कि हम अप्पन ही जड़िसँ अनजान भऽ गेल छी। एहिसँ बचयकेँ एक ही तरीका अछि कि हम अप्पन मैथिली भाषा यानी मातृभाषामे संवाद, चिंतन आ विचार-विमर्शकेँ अपन रोजमर्राक जिनगीमे शामिल करी।अपन भाषाक प्रति हीनभावनाक शिकार होइकेँ बजाय सभकेँ बाजयकेँ लेल प्रोत्साहित करी। कियैकि अप्पन भाषाकेँ बिसरि जेनाइ, अप्पन माँकेँ, अप्पन जातीयताकेँ, अप्पन अस्मिताकेँ बिसरि गेनाइ अछि। “अप्पन मैथिली भाषाकेँ संरक्षित करी। हमर अहाँ सभसँ अनुरोध अछि कि अहाँ घर पर अप्पन मैथिली भाषामे बाजू, लिखू आ पढ़ू।”
जय मिथिला, जय मैथिली।

आभा झा
गाजियाबाद