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अगहन लायल धानक ढेरी राखू धनी सम्हारि कऽ

‘ ।
मेहिंयाँ बड़द मूड़ी गोतने चलि रहलै नहूँ नहूँ
कैला बाछा रमकि रहल छै नांगड़ि ऐंठ ने दै कहूं
सूप हौंकि क’ ओसा रहल छै खखड़ी जेना खेहाड़ि क’
अगहन लायल धानक ढेड़ी राखू धनी सम्हारि क’ ।
सजा सजा क’ लागि रहल छै सब दिशा मे नारक टाल
गिरहत संगे जन बोनिहारो एहि मास मे भेला नेहाल…… मैथिली भाषा के बहुचर्चित लेखक श्री मणिकांत झा के अगहन मास के सुन्दरता के वर्णन अद्वितीय अछि जाहि मे लेखक अगहन मास मे होमय बला गतिविधि के बहुत नीक जकाँ वर्णन कयलनि अछि। वास्तव मे अगहन मास गामक लोक सभक लेल सभ सँ सुन्नर मास होइत छैक जाहि मे अन्नपूर्णा महारानी स्वयं खेत खरिहान में निवास करैत छैथि। जिनका खेत पथार छैन्ह ओ तऽ प्रसन्न रहितए छैथि संगहि धान काटय बला मजदूर, तरकारी बेचय बाली, झिल्ली कचरी बेचय बाली अथवा अन्य सामान सभ बेचय बला सभ प्रसन्न रहैत अछि कारण हाथ में पाई नहिं रहलाक बादो नवका धान दऽ कऽ सभ काज भऽ जाइत छैक। चारु कात आनन्दे आनन्द रहैत छैक, कतहु कोनो प्रकारक अभाव नहिं रहैत छैक, हमरा सभक ओहिठाम पूरनका लोक सभ इहो कहैत छलखिन्ह जे अगहन मास मे मूस के सेहो तीन टा कनियाँ भऽ जाइत छैक। खेत सँ अन्नपूर्णा रूपी धान खरिहान में अबैत छैथि, फेर खरिहान में दाउन कयलाक उपरान्त आँगन में सुखाओल जाइत अछि, नीक जकाँ सुखेबाक लेल काठक फर्हुआ सँ पसारल धान के पातर कयल जाइत छैक आ ओहि सँ पहिले उसिनियां होइत छैक आ फेर तकर बाद गामक धनकुट्टी मशीन में ओकरा कुटाओल जाइत छैक।चारू कात धानहि धान, एहि मास मे हरियर तरकारी बेचय बाली सेहो तरकारी के बदला मे धान लैत छैथि। खेते खेते झिल्ली, कचड़ी, मुरही आ कच बेचय बाली सभ घुमैत रहैत छैथि। दलान पर रामदाना बला, बर्फ आइसक्रीम बला धान के बदला में सामान बेचबाक लेल तैयार रहैत छैथि। मुरही भूजवाक कंसार आरम्भ भऽ जाइत छैक, नवका गूड़ सेहो एहि मास मे खूब भेटैत छैक जाहि सँ मूरलाई खूब बनैत छैक। घर में नवका चाउर के रोटी आ नवका गमकौआ चूड़ा पर्याप्त मात्रा मे भेटैत छैक। बहुत गोटे के आंगन में बगिया सेहो बनैत छैक। चारू कात खयवाक विन्यास। वास्तव में बहुत सुंदर होइत छैक इ अगहन मास ।
— कीर्ति नारायण झा

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