अगहन मास मे खेत खलिहान मे मा अन्नपूर्णा के निबास 🙏कातिॅक मास क पूर्णिमा के बाद बला मास अगहन मास प्रारंभ भ जायत अछि, हिन्दु पंचाग मे ई नौबा मास अछि, अहि अगहन मास मे सतयुग के आरम्भ भेल अछि, कश्यप मुनि अहि मास मे कश्मीर के रचना केला, अहि मास मे सब धार्मिक कार्य क सकैत छि बियाह मुरन दुरागमन सब क सकैत छि, अगहन मास जैना मानू बचपन याद आयल चारू तरफ लहलहात धान दालान पर राखल बोझ, भोरे स धानकटनी बाली सब क आब जायब, खुब चहल-पहल अनरोखे स, धान क पिट पिट क,धान छोरायल जाईत छल से भदबरिया धान जहि स पूजा-पाठ मे ईस्तेमाल नै भेल से धान,,फेर बढिया बला धान जे दौनी क क पुयार मे स धान अलग कैल जाईत छल, बाबु जी केर संग खेत पर जैयियै त बाबू कहथिन भूख लागल हेत चल कच मुरही खा लैह, धान कटनी बाली स छोटकी आंटी बना क, खुब खुश भ क कच मुरही ल क आगन आबि जाईत छलहू, ओ मचा पिज्जा बला बरका दोकान मे क त, अगहन मास आयल मतलब दौर क मसलगटटी किन के अछि,कनसार बाली बैसल छै चल चाउर क भुजा बना क आबै छि, अगहन मास जहि मे मालिक के साथ जोन बनिहार क खुसी, सब क अन्न धनन भरल रहैत छैन, अहि अगहन मास मे झिल्ली कचरी बेच बाली, कनसार बाली कच मुरही बाली, बर्फ बेच बला क मास अछि जहि मे सब के रोजी रोटी क जुगार होईत अछि , खलिहान मे धान बिछा क बरद क दोआरा दौनी होईत छल पहिले आब त बरद बहुत कम भ गेल छैन, आब सब ठाम मसीन ल क सब काज भ जायत अछि, अहि अनुपम अगहन मास मे मा जानकी प्रभू राम क बियाह भेल छल।
– राखी झा