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अगहन मास आनन्ददायी सुखदायी होइत अछि

।चारि मास धरि गिरहस, जन,बनिहारक कयल गेल मेहनतक प्रतिफल सब के अपन अपन हिस्सा जे भेटय बला छैक।
हम तेइस वर्षक अवस्था तक लगातार गाम म बितवने छी।खेतीवारी मे सेहो सहभागिता रहैत छल।जखन अगहन मास अबैक त एकबेर सब खेत पर घूमि जाइ आ देखियैक जे कोन खेतक धान बेसी पाकल छैक तकरा बाद नीक दिन पर धन कटनी शुरू भय जाइ।सब सॅ नीक उपजल धान रहैक ओइ खेत म लोहर,हजाम,धोबी,खबास,सब नापि कय पाल बारैक ।ओकरा सब के कटनी दिन खवरि करियैक ओ सब आबि अपन अपन हिस्साक धान काटि लय जाइक।एहि तरहे सबहक चेहरा पर खुशीक माहौल रहैक।
हमसब स्वेग धान लोढि कय जमा करी जे दू मोन तक भय जाय ।ओकरा बेचि कय पाइ जमा करी आ मेला ठेला म खर्च करी।माघ मास तक धानक दावन चलैक।बूझू जे ई तीन मास धरि सब दिन लाइ,मुरही,कचरी,बरी,झिल्ली सब खूब चलैक।चारू दिस बुझाइ बहारे बहार।रहना सहना सेहो खरिहाने पर खोपरी म होइक ओतै राति कय पढाइ सेहो करी ।ई सब अछि अगहनक खुशी।सब जगह चर्चा धान पानि के होइ।हो बिचला चर म कतेक मोनी दलक ,आ भुइयाथान म परोरिया म।ई सब खूब चलैक।किछुदिन त सब काज धाने सॅ होइक ।अर्थशास्त्र मे पढने रही बार्टर सिस्टम तकर असली उदाहरण अगहने म बुझाइ।सबहक मोन हरियर।घोड़ा वला सब अबैक धान लै ला।साल भरि जतेक सॅ होयत से धान कुटाइ,साल भर जतेक काज होयत से अन्दाज सॅ बोनि लेल धान रखा गेल,बीमा बालि रखा गेल आ तखन जे बचै से बिका जाइक।जन बनिहार सब कहै बौआ इयाह तीन मास त भात कचरी कय खायब तकरा बाद त सालो भरि रोटिए चिबायब।ओइ समय त हँसी लागय मुदा बाद मे मर्म बूझय लगलियैक त बड्ड पीडा होइत रहय।जान सब के कहियैक जे धान बचा कय राख वर्षांत मे काज देतौक ।ऑटो,मुट्ठी सेहो लगाभिरा कय दय दियैक।
आब की कहू।आब त कनिको अगहनक रौनक नै बुझाइ छैक।गाम मे पचीस बिगहा के जोतनिया के खेत सेहो बटाइए लागल छैक।कखन की दय जाइत छैक से बुझाइते नै छैक।जेहो बाटि खूटि कय दय जाइत छैक ओकरो लोक अरबे कुटा लैत अछि।बाहरबला त धाने बेचि दै छैक।ओकरा इण्डिया गेट खयबाक आदति परि गेल छैक।कियो घर मे अन्न पूरणा के राहो ने चाहै छैक।पहुलका बात आ वर्तमानक तुलनात्मक अध्ययन कयला पर सब बदलल आ नष्ट भ्रष्ट भेल बुझायत।जे ई सब नै देखने अछि तकरा लेल एहि सब बातक कोनो मोल नै।ओ त अगहन पास बुझितो नै छैक।एकबेर हमर एकटा मित्रक बेटा फागुन मे फोन केलक जे अंकल आब त धान कटाइत हेतैक।हम कहलियैक से किया पूछा छ हो।ओ कहलक सोचै छी जे होली गाम आबी त होलिओ भय जायत आ धानो समटा जायत।हम कहलियैन बौआ एतेक काज कय सकैत छी जे आयब त देखब जे मास सॅ कतेक धान बाचल अछि।ओहो सुखाय बिना सडि गेल।चाभी बला त रखा देलक आ घर बन्द कय देलक।ई लिखबा मे जतबे पहुलका बात लिखैत आह्लादित भेलौ ततबे वर्तमान स्थितिक वर्णन करैत दुख भेल मुदा सही स्थिति उल्लेख कयलहुँ। इति।
— दया नाथ मिश्रा

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