लेखनीकेँ धार – “अगहन मासमे साक्षात अन्नपूर्णा खेत खरिहानमे बास करैत छथि “
हिंदू धर्म शास्त्रक अनुसार अगहन मास बड्ड पवित्र आ महत्वपूर्ण मानल जाइत अछि। गीताकेँ दसम अध्यायमे भगवान श्रीकृष्ण कहने छथिन – मासानां मार्गशीर्षोयम् अर्थात साल भरिक बारह मासमे अगहनक पवित्र मास भगवान श्रीकृष्णक मास छैन्ह। रामायणमे वर्णित चौपाई ‘ मंगल मूल लगन दिन आवा, हिमॠतु अगहन मास सुहावा ‘ के अनुसार अगहनक मासमे भगवान श्रीरामक विवाह माता सीता संग संपन्न भेल छलनि। सतयुगमे ॠषि सभ मार्गशीर्ष अर्थात अगहनक मासकेँ वर्षक प्रथम दिन मानैत छलखिन। एहि मान्यताक संग-संग प्राकृतिक दृष्टिसँ सेहो अगहन मासक विशेष महत्व छैक। अगहन मासक जाड़ कृषिकेँ लेल बहुत फायदेमंद मानल गेल छैक। एहि मासक जाड़सँ फसलमे दुगुना पैदावार होइत छैक। खेतक लेल अमृत अछि अगहन मासक बरखा। अगहनक महत्ता सिर्फ पुराण तक ही सीमित नै अछि, बल्कि एहि मासमे बरखा भेनाइ किसानक लेल तऽ सोना पर सुहागा मानल जाइत अछि।
अन्नपूर्णा देवी हिंदु धर्ममे मान्य देवी-देवतामे विशेष रूपसँ पूजनीय छथि। अन्नपूर्णाक शाब्दिक अर्थ अछि – ‘ धान्य ‘( अन्न ) के अधिष्ठात्री। सनातन धर्मक मान्यता अछि कि प्राणीकेँ भोजन माँ अन्नपूर्णाक कृपासँ ही प्राप्त होइत अछि। माँ अन्नपूर्णा देवी पार्वतीकेँ रूप छथिन।
एक बेर जखन पृथ्वी पर जल आ अन्न समाप्त हुए लागल तखन परेशान भऽ लोक एहिसँ मुक्ति पबयकेँ लेल भगवान ब्रह्मा आ विष्णुक स्तुति शुरू कयलक। लोकक परेशानी देखि ब्रह्मा आ विष्णु भगवान शिवकेँ आराधना कऽ हुनका योग मुद्रासँ जगेलक आ पूरा मामलाक जानकारी देलकनि। एकर बाद भगवान शिव पृथ्वी पर भ्रमण केलनि। माता पार्वती अन्नपूर्णाक रूप आ भगवान शिव भिक्षुक रूप धारण केलनि। एकर बाद भगवान शिव माता अन्नपूर्णासँ भिक्षा लऽ कऽ पृथ्वीवासीकेँ बीच अन्न वितरित केलनि। एहि कारण माता अन्नपूर्णाक पूजा कयल जाइत अछि। जाहि दिन माँ अन्नपूर्णाक उत्पत्ति भेलनि, ओ दिन मार्गशीर्ष मासक पूर्णिमाक दिन छलैक।यैह कारण मार्गशीर्ष पूर्णिमाक दिन अन्नपूर्णा जयंती मनाओल जाइत छैक।
मिथिलांचलक लोक पर्व लबान जकरा नवान्न सेहो कहल जाइत छैक। अश्विन मासक अहि संक्रांतिकेँ अपन मिथिलामे बहुत महत्व छैक। ई पाबनि मिथिलाक कृषि परंपरा आ अन्नक महत्व केर सूचक अछि। एहि दिन आँगन-घर नीपल जाइत अछि। अरिपन पड़ैत अछि आ सूर्यक आराधना सेहो कयल जाइत अछि। एहि अवसर पर खास कऽ किसान अपन खेतमे लागल धानक शीश काटि कऽ घर अनैत छथि आ ओहिकेँ उखड़िमे कूटल जाइत अछि आ चूड़ा बनाओल जाइत अछि। फेर ओहि चूड़ाकेँ अग्नि आ विष्णु भगवानकेँ चढ़ाओल जाइत अछि। किसान जखन अपन खेतसँ धान आनै लेल जाइत छैथ तखन अन्नपूर्णाक पूजा करैत छैथ। भगवान अन्नपूर्णासँ आज्ञा लेलाक बाद ओ धान काटै लेल खेतमे अस्त्र चलबैत छैथ। मिथिलांचलक हर घरमे गोबरसँ बनल ओहि चिपरी या गोईठाकेँ जराओल जाइत अछि जे नाग पंचमी दिन आँगन पाथि कऽ पूजल जाइत अछि। एकरा जराबैकेँ लेल दियाबातीक दिन उकमे जाहि संठीक उपयोग कैल जाइत अछि ओकरे चिपरीक संग प्रयोग कैल जाइत अछि। अग्नि देवता व विष्णु भगवानकेँ नवान्न चढ़ाबैकेँ बाद हर घर जतय लबान कैल जाइत अछि ओहि ठाम ब्राह्मण भोजन कराबैकेँ परंपरा अछि। भोजनमे नब वस्तु जेना चूड़ा,दही,गुड़ आ मूड़ अनिवार्य रूपसँ खुवाओल जाइत अछि। आजुक दिनसँ लोक नब अन्न ग्रहण करैत छथि। ई पाबनिकेँ मिथिलांचलमे लबानक नामसँ जानल जाइत अछि। अहि दिनसँ किसान अपन खेतमे लागल फसल धान काटि कऽ घर अननाइ शुरू करैत छथि। अहिसँ पूर्व ने नब अन्न ग्रहण करैत छथि आ ने खेतमे लागल फसल काटल जाइत अछि। मिथिलांचलमे ई पाबनि आदि कालसँ मनाओल जाइत अछि। हालांकि देशक अन्य भागमे नवान्नक अलग-अलग नाम कहल गेल अछि।
नब चाउर आ साग खाई के अछि परंपरा-
दिनमे हर घरमे चूड़ा,दही,गुड़ लोक भोजनमे करैत छथि। ओतहि आई के दिन रातिमे नब चाउर,सजमइन आ सरिसोंकेँ साग सहित अन्य भोजन सेहो लोक करैत अछि। आजुक राति जे भोजन बनैत अछि ओहि में कोनो सामग्री एहेन नहीं जे नब नहीं होइत अछि। सजमइन आ सरिसोंकेँ साग स्वास्थ्यक लेल लाभकारी मानल गेल अछि। एकरा लोक लबान के राति भोजनमे जरूर ग्रहण करैत अछि।
चूड़ा,दही,गुड़ आ मूड़क अछि प्रधानता-
आई खास कऽ अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रमे लोक नवान्नक अवसर पर चूड़ा,दही,गुड़ और मूड़ के भोजनक रूपमे ग्रहण करैत अछि। ओहि चूड़ाकेँ दूध आ गुड़ मिला लवनिया चिपड़ीसँ पका प्रसाद बनाओल जाइत अछि। ई भोजन सामग्री अगहन मासक नब भोज्य पदार्थ अछि जकरा लोक आइ सँ खेनाइ आरंभ करैत अछि। ग्रामीण क्षेत्रमे एखनो लोक एहि परंपराकेँ बचा कऽ रखने अछि। मिथिलाक ई पाबनि श्रद्धा ओ गृहस्थ परंपरा केर सूचक अछि।
आभा झा
गाजियाबाद