मिथिलाक प्रकृति सँ जुड़ल कोजगरा पाबनि
- शारदीय नवरात्रक समाप्तिकेँ बाद मिथिलाक नव दम्पत्ति अर्थात बियाहल वरक लेल खास महत्व राखै वाला सुख-समृद्धिक लोकपर्व कोजगरा अछि।एहि पाबनिकेँ शरद ॠतुक आश्विन मासक पूर्णमा तिथिक मनाओल जाइत अछि। एहि दिन प्रदोष कालमें माता लक्ष्मीक पूजा होइत छैन्ह। संग ही नव बियाहल वरक चुमाउन क’ नवविवाहितक सुखमय और समृद्ध जीवनक लेल प्रार्थना
कयल जाइत छैक। हुनका पर लक्ष्मीक कृपा बनल रहैन,
हुनकर घर धन धान्य एवं सुख समृद्धि सँ परिपूर्ण रहैन,
एहि कामनाक संग कोजगरा पाबनि मनाओल जाइत छैक। बिहार, कोशी, तराई सहित मिथिलामें एहि पाबनिक खास महत्व छैक। विवाहक पहिल साल एहि तिथिकेँ लोक बेसब्री सँ इंतजार करैत छथि।ई परंपरा चलल आबि रहल अछि, नव विवाहिताक घर सँ लोक अपन जमायकेँ घर डाला, भार पठबैत छथि। ई बांसक करचीकेँ बनल होइत छैक। एहि पाबनिमें वर सहित पूरा घरक लोक लेल वस्त्र पठाओल जाइत छैक। वरक लेल जनेऊ एवं अन्य शुभ प्रतीक पठाओल जाइत छैक। एकर अलावा मखान, बतासा, मधुर, फल, मेवा सेहो देल जाइत छैक। परंपरागत रूप सँ जजमानी व्यवस्थाक तहत गामक कहार सँ वरक गाम पठाओल जाइत छैक। आब त’ कहारक प्रथा विलुप्त भ’ गेल अछि। तखन वरक सार ओहि सामानकेँ ल’ जेबाक जिम्मेदारी निभबैत छथि। आँगनमें अरिपन देल जाइत छैक आ ओहि पर वरक चुमाउन कएल जाइत छैन्ह। एहि अवसर पर वर मिथिलाक पारंपरिक वस्त्र धोति, कुर्ता व पाग पहिरैत छथि। मिथिलामें पाग सम्मानक प्रतीक मानल जाइत छैक। तदुपरांत दुर्वाक्षत सँ वरक दीर्घायुक मंगल कामना करैत गोसाउनकेँ गोहरबैत स्त्रीगण समाज वरकेँ गोसाउनक अराधनामें ल’ जाइत छथि। एहि अवसर पर वर अपन सारक संग कौड़ी खेलाइत छथि।एहि मौका पर वर और वधू पक्षक लोककेँ बीच खूब हंसी-मजाक, हास-परिहास चलैत अछि आ खूब ठहाका सेहो लगैत अछि।घरमें स्त्रीगण सभ लोकगीत जेना- आई पूर्णिमा उगल
ईजोरिया चकमक चमकय चान यौ मिथिलाकेँ पाबनि ई कोजगरा बांटू पान मखान यौ— के मधुर ध्वनि गुंजैत अछि। मंगलमय दिन आजु हे पाहुन छथि आयल, धन-धन जागल भाग हे मन कमल फुलायल गीत सँ स्त्रीगण सभ वातावरणमें लोक रस घोलैत छथि। पूजाक बाद गामक लोक और परिचितक बीच मखान,पान, बतासा, मधुरक वितरण कैल जाइत छैक। मिथिलामें किम्वदंती अछि कि चन्द्रमासँ जे अमृतक बूंद टपकैत अछि वैह मखानक रूप ल’ लेने अछि। ज्योतिषक अनुसार, पूरा सालमें केवल यैह दिन चन्द्रमा सोलह कला सँ परिपूर्ण होइत अछि।कोजगराक दिन मिथिलामें प्रत्येक घरमें लक्ष्मी पूजाक परंपरा छैक। एहि दिन खीर बना क’ राति भरि चाँदनीमें राखैकेँ विधान अछि। कहल गेल अछि, शरद पूर्णिमाक रातिमें खुजल आकाशक नींचा चाँदीक पात्रमें खीर रखला सँ ओहिमें अमृतक अंश आबि जाइत छैक। पूरा वर्षमें शरद पूर्णिमाक राति चन्द्रमा सब सँ बेसी शीतल और प्रकाशमान प्रतीत होइत छथि। ई पाबनि सामाजिक समरसताक प्रतीक मानल जाइत छैक।
आभा झा
गाजियाबाद