स्वाध्याय
– प्रवीण नारायण चौधरी
रामचरितमानस मोती
त्रिजटा-सीता संवाद
राम-रावण युद्ध निरन्तरता मे, रावणक मूर्च्छा आ तेकर बाद….
१. ओहि राति त्रिजटा सीताजी लग जा कय हुनका सब कथा कहि सुनेलक। शत्रुक माथ आ हाथ बढ़ैत रहबाक बात सुनि सीताजी केँ बहुत भय भेलन्हि। हुनकर मुँह उदास भ’ गेलनि। मोन मे चिन्ता उत्पन्न भ’ गेलनि। सीताजी त्रिजटा सँ कहलखिन –
“हे माता! बतबैत कियैक नहि छी? कि हेतय? संपूर्ण विश्व केँ दुःख दयवला ई कोन तरहें मरत? श्री रघुनाथजीक बाण सब सँ मूरी काटलो पर नहि मरैत अछि।
विधाता सब चरित्र उल्टे कय रहल छथि। सच बात त ई अछि जे हमरे दुर्भाग्य ओकरा जियौने अछि, जे हमरा भगवानक चरणकमल सँ अलग कय देलक। जे कपट केर झूठ स्वर्ण मृग बनेने छल, वैह दैव एखनहुँ धरि हमरा सँ रुसल छथि। जे विधाता हमरा सँ दुःसह दुःख सहन करबौलनि आ लक्ष्मण केँ कड़ुवा वचन कहबेलनि, जे श्री रघुनाथजीक विरहरूपी बड़ा विषैला बाण सब सँ ताकि-ताकिकय हमरा अनेकों बेर मारिकय, एखनहुँ धरि मारि रहल छथि आ एहेन दुःख मे जे हमर प्राणों केँ राखि रहल छथि, वैह विधाता ओकरा (रावण) केँ जिन्दा रखने छथि, दोसर कियो नहि।”
२. कृपानिधान श्री रामजी केँ याद कय-कयकेँ जानकीजी बहुते प्रकार सँ विलाप कय रहल छथि। त्रिजटा कहलखिन –
“हे राजकुमारी! सुनू, देवता लोकनिक शत्रु रावण हृदय मे बाण लगिते देरी मरि जायत। लेकिन प्रभु ओकर हृदय पर बाण एहि लेल नहि मारैत छथि जे ओकर हृदय मे जानकीजी (अहाँ) बसैत छी।”
छंद :
एहि के हृदयँ बस जानकी जानकी उर मम बास है।
मम उदर भुअन अनेक लागत बान सब कर नास है॥
सुनि बचन हरष बिषाद मन अति देखि पुनि त्रिजटाँ कहा।
अब मरिहि रिपु एहि बिधि सुनहि सुंदरि तजहि संसय महा॥
प्रभु यैह सोचिकय रहि जाइत छथि जे एकर हृदय मे जानकीक निवास छन्हि, जानकीक हृदय मे हमर निवास अछि आ हमर उदर मे अनेकों भुवन अछि। तेँ रावणक हृदय मे बाण लगिते सब भुवनक नाश भ’ जायत।
३. ई वचन सुनि सीताजीक मोन मे अत्यन्त हर्ष आर विषाद भेलनि देखि त्रिजटा फेर कहलकनि – “हे सुन्दरी! महान् संदेहक त्याग करू, आब सुनू, शत्रु एहि प्रकारे मरत – मूरी बेर-बेर काटल गेलापर जखन ओ व्याकुल भ’ जायत आ ओकर हृदय सँ अहाँक ध्यान छुटि जायत, तखन सुजान (अन्तर्यामी) श्री रामजी रावणक हृदय मे बाण मारता।”
४. एना कहिकय आ सीताजी केँ खुब बढियाँ सँ बुझा-सुझाकय त्रिजटा अपन घर चलि गेल। श्री रामचंद्रजीक स्वभाव सब स्मरण कयकेँ जानकीजी केँ बहुते विरह व्यथा उत्पन्न भेलनि। ओ राति केर आ चंद्रमा केर बहुते प्रकार सँ निन्दा कय रहली अछि आ कहि रहली अछि – “राति युग समान पैघ भ’ गेल अछि जे बितिये नहि रहल अछि।”
५. जानकीजी श्री रामजीक विरह मे दुःखी भ’ कय मनहि मन भारी विलाप कय रहली अछि। जखन विरहक मारल हृदय मे दारुण दाह भ’ गेलनि तखन हुनकर बाम आँखि आ बाँहि फड़कि उठलनि। शकुन बुझि ओ मोन मे धैर्य धारण कयलीह जे आब कृपालु श्री रघुवीर अवश्य भेटताह।
हरिः हरः!!