स्वाध्याय
– प्रवीण नारायण चौधरी
रामचरितमानस मोती
मेघनाद यज्ञ विध्वंस, युद्ध आर मेघनाद उद्धार
१. मेघनादक मूर्च्छा हंटल आ पिता (रावण) केँ सोझाँ देखलक त बड़ा लजा गेल। “हम अजय यज्ञ करब”, एना मोन मे निश्चय कय ओ तुरन्त श्रेष्ठ पर्वतक गुफा मे चलि गेल। एम्हर विभीषण ई बुझलनि त सलाह विचारिकय श्री रामचंद्रजी सँ कहला – “हे अतुलनीय बलवान् उदार प्रभो! देवता सब केँ सतबयवला दुष्ट, मायावी मेघनाद अपवित्र यज्ञ कय रहल अछि। हे प्रभो! यदि ओ यज्ञ सिद्ध भ’ गेलय तँ हे नाथ! फेर मेघनाद जल्दी नहि जीतल जा सकत।”
२. ई सुनिकय श्री रघुनाथजी बहुते प्रसन्न भेलाह आ अंगदादि बहुते रास बानर सब केँ बजाकय कहलखिन – “हे भाइ सब! सब गोटे लक्ष्मण संग जाउ आ जाकय मेघनादक यज्ञ केँ विध्वंस करू। संग्राम मे अहाँ सब ओकरा मारू। देवता सब केँ भयभीत देखि हमरा बहुत बेसी दुःख भ’ रहल अछि। हे भाइ! ओकरा एहेन बल आ बुद्धिक उपाय सँ मारब जाहि सँ निशाचरक नाश भ’ जाय। हे जाम्बवान, सुग्रीव व विभीषण! अहाँ तीनू गोटे सेना सहित हिनका सभक संग रहब।”
३. एहि तरहें जखन श्री रघुवीर आज्ञा देलखिन तहन डाँर्ह मे तरकस आ धनुष सजाकय रणधीर श्री लक्ष्मणजी प्रभुक प्रताप केँ हृदय मे धारण कयकेँ मेघक समान गंभीर वाणी बजलाह – “जँ आइ हम ओकरा बिना मारने आयब त फेर श्री रघुनाथजीक सेवक नहि कहायब! जँ सैकड़ों शंकरो ओकर सहायता करता तैयो श्री रघुवीर केर दोहाइ अछि, आइ हम ओकरा मारबे टा करब।”
४. श्री रघुनाथजीक चरण मे सिर नमा शेषावतार श्री लक्ष्मणजी तुरन्त चलि देलाह। हुनका संग अंगद, नील, मयंद, नल आर हनुमान् आदि उत्तम योद्धा सब सेहो छथिन। बानर सब जाकय देखलथि जे मेघनाद बैसिकय खून आ भैंसा सभक आहुति दय रहल अछि। बानर सब ओकर यज्ञक विध्वंस कय देलखिन। तैयो ओ नहि उठि रहल अछि। फेर बानर सब ओकर खूबे प्रशंसा सेहो करय लगलखिन। तथापि ओ नहि उठल। आब बानर सब ओकरा केश पकड़िकय लात सँ मारि-मारिकय भागल लगलाह। तखन ओ तमसाकय त्रिशूल लयकय हुनका सब केँ खेहारलक। बानर सब भागिकय ओहिठाम पहुँचि गेलाह जाहिठाम लक्ष्मणजी ठाढ़ रहथि।
५. मेघनाद एकदम तामस सँ भरल आयल आ बेर-बेर भयंकर शब्द सँ गरजय लागल। मारुति (हनुमान्) आ अंगद सेहो तमसाकय ओकरा उपर छुटलथि, मेघनाद दुनू गोटे केँ छाती पर त्रिशूल सँ प्रहार करैत पृथ्वी पर खसा देलकनि। फेर ओ प्रभु श्री लक्ष्मणजी पर त्रिशूल छोड़लक। अनन्त (श्री लक्ष्मणजी) बाण मारिकय ओहि त्रिशूल केर दुइ टुकड़ा कय देलथि।
६. हनुमान्जी आ युवराज अंगद फेरो उठिकय एकदम क्रोधित भ’ ओकरा मारय लगलाह, मुदा ओकरा चोट नहि लागय। शत्रु (मेघनाद) मारलो सँ नहि मरैत अछि, ई देखिकय जखन वीर सब वापस भेलाह त ओ घोर चिग्घाड़ (स्वर) करैत दौड़ल। ओकरा अत्यन्त क्रोधित काल समान अबैत देखि लक्ष्मणजी भयानक बाण छोड़लनि। वज्र समान बाण सब केँ अबैत देखिकय ओ दुष्ट तुरन्त अंतर्धान भ’ गेल आ फेर भाँति-भाँति केर रूप धारण कयकेँ युद्ध करय लागल।
७. ओ कखनहुँ प्रकट होइत छल आ कखनहुँ बिला जाइत छल। शत्रु केँ पराजित नहि होइत देखि बानर सब घबरा गेल। तखन सर्पराज शेषजी (लक्ष्मणजी) बहुत बेसी क्रोधित भेलाह। लक्ष्मणजी मोन मे ई विचार दृढ़ कयलनि जे एहि पापी केँ हम बहुते काल खेला लेलहुँ, आब आर बेसी खेलेनाय नीक नहि। आब त एकरा समाप्ते कय देबाक चाही। कोसलपति श्री रामजीक प्रताप केँ स्मरण करैत लक्ष्मणजी वीरोचित दर्प कयकेँ बाण केर संधान कयलनि। बाण छोड़ैत देरी ओकर छातीक बीच मे लगलैक।
८. मरैत समय ओ सबटा कपट त्यागि देलक। “राम केर छोट भाइ लक्ष्मण कतय छथि? राम कतय छथि?” एतबा कहिकय ओकर प्राण छुटि गेलैक। अंगद आर हनुमान कहय लगलखिन – “तोहर माय धन्य छथुन, धन्य छथुन जे तूँ लक्ष्मणजीक हाथे मरलें आ मरैत समय श्री राम-लक्ष्मण केँ स्मरण कयकेँ तूँ हुनका सभक नाम केर उच्चारण कयलें।” हनुमान्जी ओकर मृत शरीर बिना कोनो बेसी परिश्रमहि केँ उठा लेलनि आ लंकाक दरबाजा पर राखिकय घुरि अयलाह।
९. ओकर मरबाक समाचार सुनि देवता आ गंधर्व सब विमान चढ़ि-चढ़ि आकाश मे आबि गेलाह। ओ सब फूल बरसाकर नगाड़ा बजबैत छथि आ श्री रघुनाथजीक निर्मल यश गबैत छथि। “हे अनन्त! अपनेक जय हो, हे जगदाधार! अपनेक जय हो। हे प्रभो! अपने सब देवता लोकनि केँ महान् विपत्ति सँ उद्धार कयलहुँ।” देवता आर सिद्ध सब स्तुति कयकेँ चलि गेलाह तखन लक्ष्मणजी कृपाक समुद्र श्री रामजी लग अयलाह।
१०. रावण जहिना पुत्रवध केर समाचार सुनलक तहिना ओ मूर्च्छित भ’ कय पृथ्वी पर खसि पड़ल। मंदोदरी छाती पिटि-पिटि बहुते प्रकार सँ नाम लय-लयकय भारी विलाप करय लगलीह। नगरक सब लोक शोक सँ व्याकुल भ’ गेल। सब कियो रावण केँ नीच-नीच कहय लागल। तखन रावण सब स्त्री सब केँ बहुते प्रकार सँ बुझेलक जे समस्त जगत् केर यैह (दृश्य) रूप नाशवान् छैक, हृदय मे विचारिकय देखू।
११. रावण ओकरा सब केँ ज्ञानक उपदेश कयलक। ओ अपने त नीच अछि, लेकिन ओकर कथा (बात सब) शुभ आर पवित्र छैक। दोसर केँ उपदेश दय मे त बहुते लोक निपुण होइते अछि। मुदा एहेन लोक बेसी नहि अछि जे उपदेश अनुसार आचरण सेहो करैत अछि।
१२. राति बिति गेल, भोर भेल। रीछ-बानर सब फेर चारू दरबाजा पर आबि डटल। योद्धा सब केँ बजाकय दशमुख रावण कहलकैक – “लड़ाइ मे शत्रुक सोझाँ मोन जेकर डमाडोल हुए, नीक होयत जे एखनहि भागि जाय! युद्ध मे जाकय विमुख भेला सँ (भगला सँ) नीक नहि होयत। हम अपन भुजाक बल पर ई बैरी बढ़ेलहुँ अछि। जे चढ़ि आयल अछि, ओकरा हम अपने उत्तर दय देबय।” एना कहिकय ओ पवन समान तेज चलयवला रथ सजेलक। लड़ाइ वला सबटा बाजा सब बाजयल लागल। सब अतुलनीय बलवान् वीर एना चलल मानू काजरक बिहाड़ि चलल हुए। ताहि समय असंख्य अपशकुन होबय लागल। मुदा अपन भुजाक बल केर बड़का गर्व भेला सँ रावण ओहि अपशकुन सब केँ नहि गनैत अछि।
१३.
छंद :
अति गर्ब गनइ न सगुन असगुन स्रवहिं आयुध हाथ ते।
भट गिरत रथ ते बाजि गज चिक्करत भाजहिं साथ ते॥
गोमाय गीध कराल खर रव स्वान बोलहिं अति घने।
जनु कालदूत उलूक बोलहिं बचन परम भयावने॥
अत्यन्त गर्वक कारण ओ शकुन-अपशकुन केर विचार नहि करैछ। हथियार हाथ सँ खसि रहल छैक। योद्धा रथ सँ खसि पड़ैत छैक। घोड़ा, हाथी संग छोड़िकय चिग्घाड़ैत भागि जाइत छैक। स्यार, गीध, कौआ आर गदहा सब खराब शब्द बाजि रहल छैक। बहुते रास कुकुर सब भुकय लागल छैक। उल्लू एहेन खराब आ भयानक शब्द कय रहल छैक, मानू काल केर दूत हो, मृत्युक संदेश सुना रहल हो।
हरिः हरः!!