महाभारत काल सौं कएल जाइत अछि इ जीवित पुत्रिका( जितिया व्रत )

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लेखनीकेँ धार – “जितिया पाबनि बड़ भारी
धिया पुताकेँ ठोकि सुतएलौं
अपने खएलौं भरी थारी ”

मिथिलाक लोक आस्थाक पाबनि जितिया अछि। एहिमे संतानक दीर्घायु आ सौभाग्यक लेल महिला सभ निर्जला व्रत राखैत छथि। पितराईन महिलाकेँ निमंत्रण दऽ कऽ भोजन करबैकेँ संग ही ई पाबनि शुरू भऽ जाइत अछि।दोसर दिन प्रातःकाल बच्चाकेँ दही-चूड़ा खुआ कऽ महिला जल ग्रहण करैत छथि। जकरा ओठगन कहल जाइत अछि।मिथिलामे लोक आस्थाक पाबनि जितियाक ई कहावत बहुत लोकप्रिय अछि। जितिया पाबनि अर्थात जीमूतवाहन व्रत आशिन कृष्ण पक्ष अष्टमी कऽ होइत अछि। अपन-अपन संतानक दीर्घायुक लेल ई व्रत कएल जाइत अछि। ई पाबनि बहुत कठिन होइत अछि। निराहार आ निर्जला केर संग उपवास आ छत्तीस घंटा बाद भोरे-भोर पारण करैत छथि। एहि पाबनिमे मरूआ रोटी आ माछ खयबाक प्रथा अछि। व्रतसँ एक दिन पूर्व मरूआक रोटी आ माछ खेनाइ सौभाग्य सूचक मानल गेल अछि। एहि पाबनिमे भगवान जीमूतवाहनक पूजा कएल जाइत अछि। भगवान जीमूतवाहनकेँ तेल-खैर चढ़बैकेँ परंपरा अछि। भगवानकेँ चढ़ाओल गेल तेलकेँ परिवारक सब लोक श्रद्धाक संग लगबैत छथि। एकर संग ही झिमनीक पात पर अंकुरी, खीरा, अक्षत, मखान, मधुर नवेद चढ़ाओल जाइत अछि।जितिया व्रतमे नोनी साग खेबाक परंपरा अछि। एकर वैज्ञानिक कारण सेहो अछि। नोनी सागमे कैल्शियम आ आयरन प्रचुर मात्रामे होइत अछि। एहि सागकेँ लंबा उपवाससँ पहिने खेला सऽ खूनक संचार ठीक सऽ होइत अछि, जे व्रत राखयमे सहायता करैत अछि। ताहि दुवारे नहाय-खायकेँ दिन नोनीक साग खेबाक परंपरा अछि। ठीक ओहि तरहें गहूमक रोटीकेँ तुलनामे मरूआक रोटीमे काफी मात्रामे विटामिन तथा मिनरल्स होइत अछि जे व्रतक दौरान शरीरमे ऊर्जा बना कऽ रखैत अछि। माछमे प्रोटीन काफी मात्रामे होइत अछि जे व्रतक दौरान शरीरकेँ ऊर्जा प्रदान करैत अछि। निर्जला व्रत रखलासँ शरीरमे बढ़ल कोलेस्ट्रॉल आदि कंट्रोल भऽ जाइत अछि। एहिसँ हृदय, लिवर, किडनी इत्यादि शरीरक अंग स्वस्थ बनैत अछि।

पौराणिक कथा – समुद्र तटक निकट नर्मदा नदी लग कंचनबटी नामक नगर छल। जतऽ केर राजा मलयकेतु छलाह। नर्मदा नदीकेँ पश्चिम दिशामे मरूभूमि छल जेकरा बालुहटा नामसँ जानल जाइत छल। ओहि जगह पर एकटा विशाल पाकड़िक गाछ छल। ओहि गाछ पर एकटा चील रहैत छल। गाछक नींचा धोधरि छल ओहिमे एकटा सियारिनक वास छल। चील आ सियारिनमे बड़ घनिष्ठ मित्रता छल। एक बेर दुनू सामान्य स्त्री जेकां जितिया व्रत करवाक संकल्प लेलक आ माता शालीनबहन केर पुत्र भगवान जीमूतवाहन केर पूजा करवाक लेल निर्जला व्रत रखलक। भगवानक लीला किछ एहेन भेलनि जे ओहि दिन ओहि नगरक एकटा बड़का व्यापारीकेँ मृत्यु भऽ गेल। ओकर दाह संस्कार ओहि मरूस्थल पर कैल गेल। ओ राति बहुत भयानक छल। बीजली कड़ैक रहल छल, बादल गरैज रहल छल। खूब तेज आंधी-तूफान चलि रहल छल। सियारिनकेँ बड्ड जोरक भूख लागल। मुर्दा देखि कऽ ओ अपना आपके रोकि नहिं सकल आ ओकर व्रत टूटि गेलै। मुदा चील नियम आ श्रद्धाक संग दोसर दिन अन्य महिला जेकां व्रतक पारण केलक।
अगिला जन्ममे ओ दुनू एके घरमे बहिनक रूपमे जन्म लेलक। चीलक जन्म पैघ बहिनक रूपमे भेलनि जिनकर नाम शीलवती छलनि। शीलवतीकेँ विवाह बुद्धसेन नामक युवकसँ भेलनि आ सियारिन छोट बहिन कपुरावती छलीह जिनकर विवाह राज्यकेँ राजाक संग भेलनि। विवाहक बाद शीलवतीकेँ सात पुत्र भेलनि जे पैघ भऽ कऽ राजाक दरबारमे काज करय लागल। परंच कपुरावतीक बच्चा जन्मक किछु समय बादे मरि जाइत छल। कपुरावती राजासँ कहि कऽ ओहि सातो पुत्रकेँ गरदनि कटवा देलक आ एक थारीमे राखि कऽ अपन बहिन शीलवतीकेँ पठा देलक। पिछला जन्मक व्रतसँ प्रसन्न भऽ भगवान जीमूतवाहन ओहि सातो पुत्र केँ जीवित कऽ देलथिन आ थारीमे राखल हुनक गरदनिकेँ फल आ व्यंजनमे परिवर्तित कऽ देलथिन। कपुरावतीकेँ बच्चाकेँ जीवित देखि कऽ पछतावा भेलनि। तखन ओ अपन पैघ बहिनकेँ अपन कृत्यक बारेमे कहलथिन। तखने भगवान जीमूतवाहनक कृपासँ शीलवतीकेँ सब मोन पड़ि जाइत छैन्ह आ शीलवती अपन छोट बहिनकेँ ओहि पाकड़िक गाछ तर लऽ जाइत छथि आ सब याद दियबैत छथि। सब बात मोन पड़ला पर कपुरावती ओतहि खइस कऽ मरि जाइत अछि। एहि तरहें एहि व्रतक महत्वकेँ ई कथा नीक जेकां बुझबैत अछि।

एकटा कथा महाभारत कालसँ जुड़ल अछि। महाभारतक युद्धकेँ बाद अपन पिताक मृत्युकेँ पश्चात अश्वत्थामा बड्ड क्रोधमे छलाह आ हुनक भीतर बदलाकेँ आगि तीव्र छलनि। जाहि कारणसँ ओ पांडवक शिविरमे घुसि कऽ सुतल पांच टा लोककेँ पांडव बूझि मारि देने छल। मुदा ओ सभ द्रौपदीक पांच संतान छलनि। अश्वत्थामाक एहि अपराधक कारण अर्जुन हुनका बंदी बना लेलथिन आ हुनक दिव्य मणि छीन लेलथिन। जकर फलस्वरूप अश्वत्थामा उत्तराक अजन्मल संतानकेँ गर्भमे नष्ट करयकेँ लेल ब्रह्मास्त्रक उपयोग केलनि, जकरा निष्फल केनाइ असंभव छल। उत्तराक संतानक जन्म भेनाइ आवश्यक छल, जाहि कारण भगवान श्रीकृष्ण अपन सब पुण्यक फल उत्तराक अजन्मल संतानकेँ दऽ कऽ ओकरा गर्भमे ही जीवित कऽ देलथिन। गर्भमे मरि कऽ जीवित हेबाक कारण हुनक नाम जीवित्पुत्रिका पड़लनि आ आगू जा कऽ यैह राजा परीक्षित बनला। तखने सऽ संतानक लंबा वयसक लेल हर साल जितिया व्रत राखयकेँ परंपरा अछि।

आभा झा
गाजियाबाद