धन के लोलुपता प्रायः सब मानव मात्र मे होइत छै

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धन उपार्जन।सभ सँ पहिले हमरा लोकनि धन के परिभाषा पर अपन ध्यान आकृष्ट करी। आइ काल्हि के भौतिक जीवन में धन के अर्थ होइत छैक पाई कौड़ी आ एकरा कमेवाक लेल हमरा सभ के किछुओ त्याग करय पड़य ताहि लेल हमरा लोकनि तैयार भऽ जाइत छी। मात्र हमहीं अहाँ नहिं, धन के लोलुपता दुनिया के प्रायः सभ प्राणी के होइत छैक आ एहि धन के चक्कर में हमरा लोकनि समस्त प्राणी दुखी रहैत छी। पर्याप्त धन पाबि कऽ सुखी हम आइ धरि कोनों प्राणी के नहिं देखलहुँ तखन मोन पड़ैत अछि ओ पांती जे बेसी काल हम अपन पिता के मुंह सँ सुनैत रही जे “राजा दुखी प्रजा दुखी आ योगी के दुख दूना। अर्थशास्त्र में सेहो लिखल छैक जे” इच्छा अनन्त होइत छैक ” आइ जँ एकटा स्कूटर भेल तऽ काल्हि इच्छा होयत जे एक टा चारिपहिया होइतेए एहिना मोन बढैत जाइत छैक आ संतुष्टि कहियो नहिं होइत छैक।. लोक सभक मुँह सँ सुनैत छियन्हि जे मँहगाइ के जमाना भऽ गेलैक अछि तेँ यावत धरि दुनू प्राणी नहिं कमेतै, तऽ गुजर वसर नहिं हेतैइ.. ई सुनि हमरा मोन में कखनहु काल कऽ अबैत अछि जे दुनू प्राणी कहिया नहिं कमाइत छलैक? उत्तर भेटत जे कनियाँ पाई नहिं कमाइत छलखिन। अपन बच्चा के भोर में उठा कऽ ओकरा विद्यालय समय पर पठेवाक लेल, ओकरा दुलार सँ खुएवाक लेल, घरबला के लेल गर्म गर्म नाश्ता तैयार केनाइ इत्यादि के हमरा लोकनि कमेनाइ नहिं बुझैत छियैइ कारण ओकरा वेतन नहिं भेटैत छैक। ओकरा स्थान पर पर अहाँ कोनो काज करय बाली के राखि लिअ आ तखन देखियौ जे धिया पूता के पालन के स्वरूप बदलि जायत। कतेको बेर अखबार में हमरा लोकनि पढैत छी जे माय बाप दुनू नौकरी पर निकलि गेलैक आ नौकरानी बच्चा के खूब मारि मारैत छैक कारण ओ पाई पर राखल गेल छैक ओ माय कथमपि नहिं भऽ सकैत अछि। हमरो पहिले येएह होइत छल जे परिवार में दुनू प्राणी नौकरी करैत छैक तऽ ओकर घर बड्ड सुंदर चलैत हेतैइ मुदा अनुभव ओकर विपरीत देखल जकर चर्चा अतिश्योक्ति हेएत। हम कोनो स्त्री के धन उपार्जित करवाक विरोधी नहिं छी मुदा एहि सँ परिवार में कोनो हर्षोल्लासक वातावरण सेहो हम नहिं देखलियै। हमरा सभ के जतेक अपन माय सँ स्नेह आइयो धरि अछि, ओहि सँ कम हमर धिया पूता के छैन्ह आ अगिला पीढी के दिनानुदिन स्नेह घटल जेतैक कारण समयाभाव के कारणे जे धिया पूता के अपन माय सँ दुलार चाही ओ नहिं भेटि पबैत छैक। ओकरा नीक संस्कार जे अपन माय सँ भेटवाक चाही ओ नहिं भेटैत छैक जकर परिणाम दिनानुदिन भयंकर भेल जाइत छैक। हँ। किछु परिस्थिति मे स्त्री द्वारा उपार्जन बहुत आवश्यक होइत छैक जेना देव संयोग अथवा कोनो पति – पत्नी के स्थिति प्रतिकूल होयवाक उपरान्त उपार्जन आवश्यक छैक नहिं तऽ जतेक पत्नी उपार्जन करैत छैथि आ ओहि सँ बेसी पाई दाई पर नौकर पर खर्च केनाइ हम बहुत बुद्धिमानी नहिं बुझैत छी………..कीर्ति नारायण झा