मैथिली धारावाहिकः हम आबि रहल छी भाग १९ सँ २२ धरि

मैथिली उपन्यास पर आधारित धारावाहिक लेख – हम आबि रहल छी

– रबीन्द्र नारायण मिश्र

हम आबि रहल छी (भाग १९ -२२)

19

गंगाकेँ गाम अएला मासदिनसँ बेसी भए गेलैक । सोचने रहए जे सात-आठ दिनमे वापस भए जाएब। मुदा गाम अएलाक बाद वापस दिल्ली जेबाक मोने नहि होइक । अपनोसँ बेसी ओकर माए-बाबूकेँ गामेमे रहबाक इच्छा होइ । मुदा गाममे कतेक दिन रहि सकैत? जिबाक कोनो साधन तँ चाही । गाममे आब खेती केओ करैत नहि अछि । कारण ओहिमे लागतो वापस नहि होइत छैक । ओना आब कतेको गोटे चौकपर  दोकान खोलि लेने अछि। केओ किछु, केओ किछु बेचि कए जीवन-यापन करैत अछि । मुदा गंगाक तँ दिल्लीमे सभटा ओरिआन रहैक । छोट-छिन अपन घर रहैक, अपन आटो रहैक । आटोसँ ओतेक कमा लैत छल जे ओकर पूरा परिवार सुखसँ जीबए । लोककेँ देबे करैक, लेबाक प्रश्न नहि छलैक । अपन घरक पछुअतिमे एकटा छोटसन कोठरी किरायापर लगा देने रहए । ओहूसँ किछु आमदनी भए जाइक । कुलमिला कए ओ दिल्लीमे नीकसँ गुजर कए लैत छल । मुदा ओकर माए-बाबूकेँ सदिखन गामे मोन पड़ैत रहैत छलैक । जकरे-तकरे पकड़ि लितए आ गाम-घरक बात उठा दितए । अनका ओहि गप्प-सप्पमे कोनो मतलब नहि रहैत छलैक । तेँ मौका देखितहि घसकि जाइत। जे-से ।

गंगा गाम आएल, किछुदिन रहबो कएलक। आब ओकर बचतसभ खर्च भए गेलैक । एतेकदिन तँ गाममे इज्जतिसँ समय काटि लेलक । मुदा जखने लोक बुझतैक जे ओकरा पाइ नहि छैक, मदतिक प्रयोजन छैक तखनहि अपनो लोक कात भए जेतैक। ओना गाममे अखनहु लहना चलैत छैक । दूरुपया सैकड़ापर मासिक सुदि पर जतेक टाका चाही भेटि जाएत । मुदा ओ कर्जा जानलेवा होइत छैक । सुदिए तरे लोक बिका जाइत छल । गंगा एहि भ्रमरमे फसए नहि चाहैत छल । तेँ एकदिन भोरे उखरामे माए-बाबूकेँ चाहक संगे गप्प-सप्प करैत काल कहलकैक –

“आब अपना सभकेँ दिल्ली वापस चलबाक चाही ।”

“से किएक? केहन बढ़िआँ समय कटि रहल छैक ।” – ओकर बाबू कहलकैक ।

“मुदा आब हमर टाका समाप्त भए रहल अछि । जँ आब वापस नहि भेलहुँ तँ टिकसोक हेतु कर्जा लेबए पड़त । गामक कर्जाकेँ तँ बुझिते छिऐक । सधबैत-सधबैत जिनगी बीति जाएत। तेँ इज्जति बँचा कए सभगोटे गामसँ निकलि जाइ । एहीमे सभक कल्याण अछि ।”

आखिर सभगोटेमे सहमति भेलैक । सभगोटे फेर दिल्ली वापस भए जाएत । रेलटिकटक जोगार कएल गेल । गामक सभ समानसभ सरिआओल गेल । लगपासक लोकसभसँ भेंट-घांट कएल गेल । लोकसभ बहुत अपनत्व देखबैत रहल ।

“अखने तँ एतेक दिनपर गाम आएल छलह । किछुदिन रहितह । पाबनिसभ आबि रहल छैक । देखितहक जे आब कोना की होइत अछि।”

“हमरो संगे लेने चलिअह । हमहूँ काज करब । आब गाममे लज्जति नहि छैक ।”

“गाममे अनेरे लोक गाल फुलेने रहैत अछि । एहनमे बाहरे नीक । अपन कमाउ, खाउ आ चैनसँ पड़ल रहू । केओ अनेरे टोकारा नहि देत।”

एहि तरहें जकरा जे मोन भेलैक कहैत गेलैक । गंगा सभकेँ सुनैत गेल । ओ नीकसँ  बुझैत छल जे जहिए ककरो लग हाथ पसारब, खिस्से बदलि जाएत । जखन सभटा ओरिआन भए गेलैक, दिल्ली जेबासँ एकदिन पहिने गंगा हमरासँ भेंट करए आएल। हम दनानेपर पटिआ ओछा कए बैसल रही । हमरा देखिते भोकारि पारि कए कानए लागल । हमरा बुझेबे नहि करए जे अबिते-अबिते ओकरा की भए गेलैक?

“गंगा! गंगा!”

हम ओकरा बौसबाक प्रयास करैत छी । गंगा हमरा भरि पाँज पकड़ि लैत अछि । आँखिसँ नोर झर-झर खसि रहल छैक ।

“बात की छैक? तूँ एतए अबिते एना किएक कानि रहल छह?”

“हमसभ काल्हि गामसँ चलि जाएब । टिकट कटा लेने छी। हमर माए-बाबूकेँ जेबाक मोन नहि रहैक । मुदा उपाय की छल? जेबी खाली भए गेलाक बाद गाममे रहब खधिआमे खसब थिक ।”

“तखन…”

“तखन की करितिऐक? गाममे कतेक दिन गुजर हेतैक? दिल्लीमे कम सँ कम इज्जतिसँ कमा लैत छी ।”

“तूँ चलि जेबह से सुनि हमरो दुख भए रहल अछि । तोरा लगीचमे रहलासँ एकटा आशा रहैत छल । होइत छल जे शंकरक किछु समाचार कहबह । मुदा हमरा चलते तूँ अपन जीवन किएक खराप करबह । जखन हमर बेटा छोड़ि गेलाह तखन की कहल जा सकैत अछि?”

“एक बेर हीरासँ किएक नहि गप्प करैत छी? ओहो तँ अहींक संतान अछि। की पता ओ किछु समाधान कए सकए ।”

“समाधान की करत? ओ कहैत अछि जे कलकत्ता आबि जाउ । हम तँ गाम नहि रहि सकैत छी । कलकत्तामे सभकिछु अछि । अपन मकान अछि । डाक्टरी खूब चलैत अछि । बच्चासभक इसकुल सेहो एतहि छैक ।”

“ओकर कहब ठीके छैक । हमरा चलते ओ अपन जिनगी किएक खराप करए । जँ ओ हमरा लग आबिओ जाएत तँ कतेक दिन रहि सकत?”

हम आ गंगा गप्प कइए रहल छलहुँ की एकटा युवक दौड़ल हमर दलानपर आबि कए ठाढ़ भेल।

गंगा ओकरा देखिते पुछलकैक-

“की बात छैक? एना परेसान किएक छह?”

“तोहर बाबू…”

की भेलनि बाबूकेँ..?

“कलममे बेहोस भए गेल छथि । सौंसे गामक लोक ओतए जमा अछि ।”

“कलममे…”

“तोरा एमहर अएलाक बाद ओ बड़की कलम गेलाह । ओतहि सिनुरिआ आमक नीचाँ किछु-किछु बड़बड़ाइत रहथि । थोड़े कालक बाद ओतहि ठामहि खसि पड़लाह ।”

लगीचेमे गामक कैकटा चरबाहसभ महीस चरा रहल छल। ओएहसभ हल्ला केलक । कहाँदनि ओ बेहोस हेबासँ पहिने कहथिन – “हमरा एतहि जगह देब हे भगवान! अपन माटि-पानिमे समाहित भए जाएब ।”

हम चोट्टे गाम घुरलहुँ । घर लग पहुँचिए रहल छलहुँ कि केओ चिचिआ उठल-

“तोहर माए घरमे बेहोस छथुन ।”

बाबूक बेहोसीक समाचार सुनिते एमहर माए घरेमे बेहोस भए गेल । जाबे लोक अबितए, किछु करितए ताबत तँ जा चुकल छल । माएकेँ माटिपर निष्प्राण देखि हमरा जेना लकबा मारि देलक। किछु फुरेबे नहि करए । ओमहर केओ बाबूकेँ ई समाचार देलकनि । हुनका कनीके होस भेल रहनि । ओ करोट बदलि लेने छलाह । माएक समाचार सुनिते मुँह खोललनि से खुजले रहि गेलनि ।”

हमर दलानपर लोकक मिस पड़ि रहल छल । एकगि संगे दूटा लहास एकहि अर्थीपर राखल गेल । आगू-आगू हम आ तकर पाछू – “राम नाम सत्य अछि” कहैत गौंआसभक हुजुम । हमर माथा काज केनाइ बंद कए देने छल । माए-बाबूक अंतिम संस्कार ओही आमक गाछ तरमे कएल गेल जे ओ स्वयं ठिकिआ गेल छलाह ।

20

शंकरक समाद हमरा भेटल छल । अमेरिका जाइत-जाइत हमरा ऊपर दस लाखक मुखिआक कर्जा छोड़ि गेल छलाह । एमहर मुखिआ आ ओकील दुनू मिलि कए दाव खेलाइत छल । हम गाममे एसगर अपन जान लेल झखि रहल छलहुँ । की करू, ककरा कहिऔक किछु बुझाइते नहि छल । जीवनक उत्तरार्धमे ई दुर्दशाक कल्पनो नहि छल । सभदिन नीके करैत रहि गेलहुँ । विद्यालयमे पहिने अध्यापक, फेर प्रधानाध्यापक रहि कतेको विद्यार्थीक जिनगी बनओलहुँ । कतेको गरीब विद्यार्थीक मैट्रिकक फार्म अपन जेबीसँ भरलहुँ । परिवारक पालन-पोषण केलहुँ । दुनू बच्चाकेँ बहुत नीक शिक्षा देलहुँ । ओ दुनूगोटे बहुत नीक पदपर पहुँचि गेलाह । हीराक बिआह हुनकर पसिंदक वरसँ कए देलिअनि । ओहो डाक्टरे छथि।  दुनूगोटे कलकत्तामे काज करैत छथि । ओतहि घर लए लेने छथि। शंकरकेँ सेहो बहुत नीक सरकारी नौकरी रहनि । से छोड़ि कए निशाक पाछू-पाछू अमेरिका चलि गेलथि । चलिए नहि गेलथि, जाइत-जाइत हमर हाथ-पैर बान्हि गेलथि । लगीचमे गंगा एकटा उपकारी व्यक्ति कतहुसँ संग भए गेल । मुदा ओकरो माता-पिताक देहावसान भए गेलैक । ओहो अपने परेसान भए गेल अछि।  परसू श्राद्ध संपन्न केलाक बाद फोन केने रहए । कहैत छल-

“हमर मोन पश्चातापसँ भरल अछि । लगैत अछि जेना हमही हुनकरसभक प्राण घिचि लेलिअनि । ओ सभ तँ गाममे केहन बढ़िआँ रहैत छलाह । मुदा हमर जेबी खाली होमए लागल छल । तेँ हम चाहलहुँ जे आब गाम छोड़ि दी । वापस अपन कर्मभूमिपर चली । मुदा हमर माए-बाबूकेँ गामसँ बहुत लगाओ रहनि । ओ सभ तँ मजबूरीमे हमरा संगे दिल्लीमे रहैत छलाह । बहुत दिनक बाद हुनकासभकेँ जखन दोबारा गाम रहबाक मौका भेटलनि तँ बहुत आनंदमे रहथि । जखन सुनलखिन जे दोबारा दिल्ली जेबाक बात भए रहल अछि तँ कलममे अपन गाछसँ बतिआए लगलाह आ ओतहि अपन सभकिछु छोड़ि गेलाह । हुनकर सभक श्राद्ध करबामे हम कर्जसँ दबि गेल छी । जँ तुरंत दिल्ली नहि जाएब तँ गाममे सुदिए तरे बरबाद भए जाएब।”

ओकर बात सुनि कए हम बहुत दुखी भए गेल रही । मुदा कइए की सकैत छलहुँ? बड़ीकाल धरि ओहिना पड़ल रहि गेलहुँ। दू दिनक बाद फेर गंगाक फोन आएल । कहलक-

“हम आइए दिल्ली पहुँचि गेलहुँ । एतए अएलाक बाद जान मे जान आएल । जखने ट्रेन गाजिआबादसँ टपलैक तँ बड़का-बड़का गगनचुंबी मकानसभ देखबामे आएल । सड़कपर दौड़ैत मोटर, रिक्सा, बससभ देखाएल । लागल जेना अपन बथानपर पहुँचि गेलहुँ । ओ स्थान जे हमरा जीवन देलक, इज्जति देलक आ एतेक सामर्थ्य देलक जे अपन माता-पिताक सेवा कए सकलहुँ । आब ओ सभ एहि दुनिआमे नहि छथि । हुनकरसभक स्थानपर अहीं हमर सर्वस्व छी । अहाँ कोनो बातक चिंता नहि करब । कखनहु कोनो परेसानी होअए तँ हमरा निधोख मोन पाड़ब ।”

“दिल्लीमे असगर की करैत छह?”

“सभसँ पहिने तँ अपन घराड़ीकेँ छोड़ेबाक अछि । माए-बाबूक श्राद्धमे मुखिआ सादा कागजपर निसान लए लेने अछि, से वापस करेबाक अछि । तकरबादे किछु आओर काजमे हाथ लगाएब ।”

गंगाक भावुकतासँ हम आश्चर्यचकित रही । आइ-काल्हि बूढ़सँ तँ ओकर अपनो लोक छीह कटैत अछि । जाहि संतानक हेतु जीवन लगा दैत अछि, की-की कष्ट ने सहि जाइत अछि सेहो छोड़ि जाइत अछि । बेटासभ अपन पत्नीक कहलमे रहैत छैक । ओहो की करतैक? जँ से नहि करत तँ अपने घर बरबाद भए सकैत छैक। आब ओ समय नहि छैक । बात-बातमे  संबंध विच्छेद भए जाइत छैक ।  ताहि हालतिमे ओ तँ अपने जीबि लिअए सएह बहुत । नित्य नव-नव बात सुनएमे आबैत छैक । हम आनठाम कतए जाएब? हमर तँ शंकरे सभक कान काटि रहल छथि । ने हुनकर बिआहक ठेकान, ने परिवारक ठेकान, ने नौकरीक ठेकान । हमर सेवा ओ की करताह ?”

गंगाक फोन कटि चुकल छल । हम गुमसुम दनानेपर पटिआपर पड़ल रही कि हीराक फोन आएल ।

“गोर लगैत छी बाबू।”

“खूब नीके रहह । आओर की हाल-चाल?”

“शंकरक फोन आएल छल । ओ किछु-किछु कहि रहल छल ।”

“की कहैत छलह?”

“सारांश जे अहाँकेँ हम अपना संगे कलकत्ता लए आबी।”

“हम आब एहि बएसमे गाम छोड़ि कतहु नहि जाएब ।”

“मुदा ओ तँ गामक सभकिछु बेचि चुकल अछि ।”

“से कतहु भेलैक अछि? हम अखन ठामहि छी । हमर अर्जित संपत्ति अछि । केओ तेसर आदमी कोना बेचि सकैत अछि?”

“से हम की जाने गेलिऐक? जे कहलक से कहि रहल छी। ओहुना अहाँ असगर गाममे कोना रहब ?”

“जेना रहब । मरबो करब तँ अपन डीहपर मरब । एहिसँ बेसी हमरा आब की होएत?”

हमर बात सुनि कए हीरा कानए लगलीह । बहुत मोसकिलसँ हुनका सम्हारलहुँ । फेर कहैत अछि-

“अहाँ कथुक चिंता नहि करब । हम जल्दीए गाम आबि रहल छी ।”

तकरबाद हीराक फोन कटि गेल ।

21

ओहिदिन भोरेसँ हमर मोन खनहन लागि रहल छल । बूझबे नहि करिऐक जे बात की छैक? सभकिछु तँ ओहिना अछि। ओएह मुखिआ, ओएह ओकील, ओएह गाम । शंकर तँ हमर समस्या बढ़ा कए अमेरिका चलि जाइत रहलाह । गंगा सेहो दिल्ली वापस चलि गेल । तखन आइ भेलैक की जे हमर मोन एते प्रसन्न अछि । अपनेसँ चाह बना कए ओसारापर साबिकक कुर्सीपर बैसल रही । ई कुर्सी हम जखन प्रधानाध्यापक रही तखने बनबओने रही। सेवानिवृत्तिक बाद एकरा गाम लेने आएल रही। जखन कखनो हम ओहि कुर्सीपर बैसैत छी, हम एक क्षणक हेतु अतीतमे समाहित भए जाइत छी । कहि ने की-की सोचए लगैत छी । कैकटा सुखद स्मृति मोनकेँ अनुरंजित कए दैत अछि । मुदा कैकबेर बिसरल दुखसभ सेहो मोन पड़ि जाइत अछि। हम जखन प्रधानाध्यापक रही तँ एही कुर्सीपर बैसि विद्यार्थी सभसँ लहेरिआसरायक अपन डेरापर  गप्प-सप्प करैत छलहुँ ।  ओकरसभक परेसानी कम करबाक प्रयास करैत छलहुँ ।  कैकबेर हमर श्रीमतीजी कहितथि – “आब बस करू । कनीको काल आराम कए लिअ । थाकि गेल होएब । फेर तँ इसकुलो जेबेक अछि।” एहि तरहें कखन भोर होइक, कखन साँझ होइक पता नहि चलैक । आबो ओएह कुर्सी अछि । असगर घंटो ओहिपर बैसल रहैत छी । केओ हालो-चाल पुछनाहर नहि भेटैत अछि। मुदा आइ जखन हम एहि कुर्सी बैसलहुँ, चाह पिनाइ शुरु केलहुँ कि मोनमे  अनेरे उत्साह लगैत छल। लगैत छल जे जरूर किछु नीक होमए बला अछि । आ से सही साबित भेल । थोड़बेकालक बाद एकटा कार आबि कए हमर दलानपर ठाढ़ भेल । कारसँ हीरा उतरि हमरा गोर लगैत अछि।

हम अचानक हीराकेँ देखि अबाक रहि जाइत छी । हीराकेँ मोन भरि आशीर्वाद दैत छी । हम ओकरा संगे अपन घर चलि जाइत छी । हीराक संगे ओकर एकटा चाकर सेहो छलैक । ओ कारसँ बड़का पेटी उतारैत अछि । हीरा पेटी खोलैत अछि । ओहिमेसँ हमरा लेल रंग-विरंगक चीज-वस्तुसभ निकालैत अछि।  हमरा पसिंदक धोती, कुरता, बंडी, डोपटा सेहो अनने अछि ।  दुनू बाप-बेटी घंटो गप्प करैत रहि जाइत छी । ओकीलकेँ सेहो हीराक आगमनक जानकारी भेटैत छनि । ओ हमरा लग सपत्नीक अबैत छथि । हीरा हुनकोसभकेँ गोर लगैत अछि । पेटीसँ निकालि कए हुनका लेल आनल गेल धोती-कुरता आ काकीक लेल नुआ हुनकर हाथमे राखि दैत अछि । एक झोरा मधुर सेहो काकाक हाथमे पकड़ा दैत अछि । ओकील  गदगद भए जाइत छथि । बजैत छथि –

“आइ तोहरसभक भोजन हमरे आङनमे हेतैक । काकी तोहरसभक अएबाक समाचार सुनि बरी-भातक ओरिआन केने छथुन ।”

थोड़े कालक बाद ओकील  अपन आङन चलि जाइत छथि। हम हीराक संगे गप्प करैत रहैत छी । ओहिदिन हम आ हीरा ओकीलेक ओहिठाम भोजन केलहुँ । ओकीलक प्रसन्नताक तँ अंते नहि छलनि । भोजने कालमे ओ बजैत छथि –

“सुनैत छी जे अहाँ हीरा संगे कलकत्ता चलि जेबैक?”

“हीराक तँ बहुत जोर छैक । मुदा हमरे मोन छओ-पाँच कए रहल अछि । कखन की होएत तकर कोन ठेकान? आब एहि बएसमे गाम छोड़ि कलकत्तामे रहब ठीक नहि बुझाइत अछि ।”

“इएह ने अहाँक गड़बड़ी अछि । जे सेवा करत तकरा संगे रहब नहि आ गाममे लोकसभपर अनुरोध करैत रहब । ताहिसँ की होएत ? गाम तँ आब सहरोसँ गेल-गुजरल अछि । एक तँ गाममे लोके नहि छैक, जे छैक तकरा ककरोसँ कोनो मतलब नहि छैक । जतबे पुछबैक ततबे बाजत । जँ टोकबैक तँ टोकत । जँ नहि  बजबैक तँ मुँह घुमा लेत जेना देखनो नहि होअए । फेर अहाँ तँ आब एकदम असगर पड़ि गेल छी । हमहूँ बूढ़ भए गेल छी । एहन हालतिमे अहाँ गाम कोना रहि सकब?”

“हम तँ भोरेसँ एही प्रयासमे छी जे बाबूकेँ संगे लेने जेबनि। ताहि लेल सभटा ओरिआन कलकत्ता डेरापर कए लेने छी । मुदा ई मानथि तखन ने?”

“मानताह किएक नहि? एहन अवसर ककरा भेटैत छैक? दू-दूटा डाक्टर दिन-राति सेवा लेल तैयार । जे खाउ, जतेक खाउ, जतए घुमू । हमरा तँ मोन होइत अछि जे अखने तोरा संगे बिदा भए जाइ । हिनका जे मोन होनि से करथु ।”

ओकीलक बात सुनि कए हीरा हँसि दैत अछि । हम चुप रहि जाइत छी । ओकीलक प्रसन्नताक कारण हम बूझि रहल छी। ओकर बकोदृष्टि हमर संपत्तिपर छैक, से आइसँ नहि छैक । जहाँ हम कलकत्ता गेलहुँ कि ओ हाथ साफ कए देत ।

दिनभरि घमरथन होइते रहल । आखिर हम हीरा संगे जेबाक प्रस्ताव मानि लेलहुँ । प्रातभेने सौंसे घरमे ताला मारि देलिऐक । जरुरी कागजसभकेँ अपना संगे राखि लेलहुँ । शेष वस्तुसभकेँ आलमीरामे बंद कए देलहुँ । तकरबाद भोरे ककरो किछु कहने-सुनने बिना गामसँ बिदा भए गेलहुँ । कारक खुजबाक अबाज सुनि ओकील दौड़ल आएल। हुनका दौरैत देखि हीरा कार रोकि दैत अछि।

“तूँसभ आगू बढ़ह । हमहूँ पीठेपर आबि रहल छी ।” गामसँ हीराक कार निकलि रहल छल कि मुखिआ हाक देलक ।

“कनी रुकब, कनी रुकब । हमरा किछु कहबाक अछि।”

संभवतः हीरा हुनकर अबाज नहि सुनि सकलि ।  कार ठाढ़ नहि भेल, कार आगू बढ़ि गेल । हमसभ आगू बढ़ि गेलहुँ। कारमे हीरा हमरा पसिंदक पुरान जमानाक गानासभ लगा देने छलैक जाहिसँ हम हल्लुक रही । मुदा अपन जन्मस्थानक बिछोहक आगू ओहो प्रियगर नहि लागि रहल छल ।

22

हमर कलकत्ता जाएब  ओकीलकेँ बहुत नीक लगलनि । जेना मोन जोकर काज भए गेल होनि । ओ दोसरे दिन भेने हमर ओसारापर अपन चौकी राखि देलनि आ ओतहि अपन बैसार बना लेलनि । जखन मुखिआकेँ ई बात पता लगलैक तँ ओ दौड़ल ओकीलक ओहिठाम पहुँचल ।

“अहाँकेँ तँ ई बात बूझल अछि जे ई सभटा जमीन-मकान हमरा शंकर दए गेल अछि । हम ओकरा दसलाख टका देनहुँ छिऐक ।”

“चुपचाप एहिठामसँ खसकि जाह । बेसी मुखिआगिरी हमरा लग नहि देखाबह ।”

“की बात करैत छी? हम तँ अहाँपर विश्वास कए मूल दस्ताबेजो अहाँकेँ दए देने छी जे जरुरी  पड़लापर उचित समाधान करब ।”

“सएह ने केलहुँ अछि । हमरा जीबैत तूँ हमर परिवारक चीज-वस्तुपर हाथ लगेबह से सकबह । हमर ओकालत कोन दिन काज आओत?”

“हमरो लगमे तँ कागज अछि।”

“कोन कागज? जे हमरा देने छह?”

“ओकर दोसर प्रति हम कोर्टमे जमा कए देने छिऐक ।”

“एहिसभसँ, आओर तँ किछु होएत नहि तोहर जहल गेनाइ पक्का भए जेतह ।”

“तखन अहीं कहू जे की कएल जाए?”

“कएल की जाए? हमर परिवारक संपत्तिसँ अपन बकोदृष्टि हटा लेल जाए।”

“आ हमर दसलाख टाका ।”

“ओकरा बिसरि जाह, नहि तँ एहन-एहन कतेको दसलाख बहार भए जेतह ।”

“कोनो वाजिब रस्ता निकालिऔक ने । हम अहाँक बात मानि लेलहुँ । मुदा हमर टाका तँ वापस करा दिअ ।”

 “साफ-साफ सुनह । टाका तूँ हमरा तँ देने नहि छह ने हम वापस करबह । टाका देलहक तूँ शंकर केँ । आब ओ अमेरिकामे अछि । जँ ओ कहिओ वापस आएत तखने ने कोनो बातो कएल जाएत? मुदा ओ वापस की करए आओत ? अमेरिकामे मोट आमदनी कए रहल अछि । ओतहि ओकर पत्नी छैक । एहिठाम की राखल छैक?”

“हमर कागज तँ वापस कए दिअ ।”

“कागज-कागज बेसी नहि चिचिआह । ओ कागज फरजी अछि । जँ बेसी उठा-पटक करबह तँ दफा चार सए बीसमे बंद भए जेबह ।”

मुखिआ ओहिठामसँ चलि गेल । मुदा जाइत-जाइत ओकीलकेँ चेता गेल-

“बेसी ओकालत हमरा नहि देखाउ । हमर टाका वापस नहि भेल तँ अहूँकेँ फल भोगहि पड़त ।”

मुखिआक बात सुनि कए ओकील  किछु चिंतामे पड़ि गेलाह । “कोना की कएल जाए जाहिसँ ई आदमी काबूमे आबए?” – मोने-मोन से सोचैत रहलाह ।