एक कलियुगी सीता आ राम के कथा

एक कलियुगी सीता आ राम के कथा

– प्रवीण नारायण चौधरी

(भाग १)

हरेक पिताक इच्छा रहैत छैक जे अपन सीता बेटी लेल राम समान वर करय। हरेक सीता बेटी सेहो राम समान वरक इच्छा रखैत अछि। एहने एक सीताक विवाह एक रामक संग भेल आ १७ वर्ष धरि घर-गृहस्थी दुःखे-सुखे चलैत रहल। राम एहि बीच जीवनक सब सुविधा अर्जित करबाक संग मानव समाज केँ सेहो सही मार्ग पर चलबाक लेल विभिन्न सृजनकर्म करैत रहला। तखन मर्यादा पुरुषोत्तम राम सँ कनेक भिन्न ई राम कनेक स्त्रीक मामिला मे कमजोर रहथि। सुपनेखा देखिते सीता बिसरि गेल करथि। लेकिन बनिकय रहय चाहथि केवल सीतापति राम। एहि लेल सीता संग बड खटपट होइन्ह, तैयो राम अपन अनेकों पुरुषार्थ सँ सीता केँ रिझा-बुझा फेर सब किछु ठीक राखल करथि।

एक बेर ई राम अपन सीता केँ अयोध्या राजधानी मे छोड़ि अपने राज्यक दोसर महानगर मे किछु निश्चित कार्य लेल चलि गेलाह। बीच-बीच मे अयोध्या आबि सीता आ ता धरि प्राप्त लव-कुश समान तीन गोट बच्चा सब सँ भेंट करय आबैत रहथि। एहि अन्य महानगर मे रामक आदति मुताबिक एकटा सुपनेखा अभरलथि आ ई राम ओहि दिश ढलैक गेलाह। से बात सीता केँ कियो कहि देलकनि। सीता छापा मारलनि त राम रंगे हाथ धरा गेलाह। आब सीता कोनो समझौता करबाक स्थिति मे नहि रहि गेली, ओ सीधे राम केँ कहलखिन जे तुरन्त अयोध्या लौटू आ पूर्ववत् जे राज-काज छल ताहि मे गुजर करू।

एतय ई कहि दी जे ई सीता खूब संस्कारी आ समुचित पढ़ल-लिखल ठोस दृष्टि, बौद्धिक सामर्थ्यवाली आ अद्भुत प्रतिभा सँ कोनो काज केँ पूरा करयवाली रहथि। रामक राजकाज केँ ई अपने हाथ बंटाकय आधा सँ अधिक सम्हारि देल करथि। राम जखन दोसर महानगर मे काज देखय चलि गेलाह ताहि समय सीता सबटा राजकाज असगरे चला लेल करथि। कम्प्यूटर के ज्ञान सेहो देखिते-देखिते आबि गेल छलन्हि।

एम्हर जे सुपनेखा-राम प्रसंग घटित भेल तेकर बाद ई सीता अपन राम सँ अयोध्या घुरि अयबाक बात कहली लेकिन राम हुनका मोजर नहि दय निकृष्ट पुरुषत्व देखबैत दुइ-चारि झापड़ मारि-तारि छापा-स्थल पर रंगे हाथ पकड़ायल अवस्था मे घुरबय मे त सफल भेला, लेकिन एतय सँ गृहस्थी मे जहर घोरि लेलाह।

आब सीता रणचण्डीक रूप धय कुपित भ’ स्वयं अयोध्या आबि रहय लगलीह। पाछू सँ राम अपन अनेकों प्रलोभन सब दैत हिनका कोहुना ई मानय लेल राजी करय लगलाह जे कलियुगक राम त्रेता वला राम जेकाँ निष्ठा आ मर्यादाक रक्षा नहि कय पबैत अछि… सुपनेखा सभक पावर बढ़ि गेल छैक, केहनो रामक आम दुए-चारिये लटका-झटका सँ झाड़ि देल करैत छैक, आन महानगर मे सीताक अनुपस्थिति मे सुपनेखा सँ काज चलेबाक बाध्यता, कि कहाँदैन, आदि-इत्यादि, लहसून-मेरचाइ, नून-तेल-मसल्ला, हींग-हरैद… बड बात कहलखिन। सीता केँ तरह-तरह के प्रलोभन देलखिन। ‘तुझे नौलक्खा मंगा दूँगा सजनी दिवानी’ वला लोकप्रिय गीतो गेलखिन। मुदा सबटा बेअसर रहलनि, ई कलियुगी सीता रणचण्डीक रूप मे कोनो समझौता लेल राजी नहि भेलखिन्ह। सुपनेखा के उपस्थिति कहाँ दिन कोनो सीता केँ कहियो पसिन नहि! खैर… आब राम बड़ा घोर दुविधा मे पड़ि गेल छलाह। एम्हर सुपनेखा हिनकर टीक धेने, सीता अपन अयोध्या मे सन्तान सभक रक्षा करैत असगर संघर्ष करैत…!

सुपनेखा ओहि कलियुगी रामक टीक धेने रहल। सीता अपन रामक किरदानी सँ व्यथित लेकिन अपन जनक सँ प्राप्त उच्चकोटिक संस्कारक बल सँ बस लव-कुश जेहेन ३ गोट सन्तान केँ अपन संसार बनेनाय पसीन कयलीह। राम आइ न काल्हि घुरि अओता से ओ ठानि लेने रहथि। रामक भ्रष्टाचार आ व्यभिचार कनिकबो पसीन नहि पड़लन्हि हुनका, हालांकि राम एहि लेल अनेकन प्रयास कयलनि जे सीता कोहुना मानि जाइथ, बड़े-बड़े शहरों में छोटा-मोटा बात जेकाँ एकरा ओ दरकिनार करथि… लेकिन सीताक एक्के टा कहब भेलनि जे अयोध्या घुरू आ अपन पूर्वक काज मे लागि जाउ। राम एकर विपरीत निर्णय कयलनि, पता नहि सुपनेखाक प्रभाव हुनका पकड़लकनि या फेर आन बात… सृजनधर्म सँ नव संसार केर सृजन मे सक्षम राम सीताक भावना नहि बुझि अपन सृजनकर्म के अलग पथ पर चलि पड़लाह। सीता सेहो अपन जिद्द मे अड़ल सीधा निर्णय लय लेलीह जे येन-केन-प्रकारेण अपन सन्तान सब केँ पोसती, पढ़ेती-लिखेती आ ओहि सन्तान लोकनिक संसार मे अपन रामक अमूर्त रूप पतिक सेहो दर्शन करती। सन्तान सब छोट-छोट रहनि, रामक किरदानी सँ चोटिल भेल ओहो सब। लेकिन मायक असीम स्नेह, ममत्व आ माया सँ पिताक कमी नहि खललैक ओकरा सब केँ।

मानल बात छैक जे दुःख आ पीड़ा होयब नीक नहि लगैत छैक केकरो, लेकिन यैह दुःख आ पीड़ा लोक केँ एतेक मजबूत बना दैत छैक जे बाद मे यैह दुःख असीम सुख आ यैह पीड़ा अद्भुत परमानन्द मे परिणत भ’ जाइत छैक। एहि कलियुगी राम संग सीता लगभग १४ वर्ष दुःख-सुख सँ संग बितौलीह, तदोपरान्त रामक जीवन मे सुपनेखाक प्रवेश आ तेकर बादो ३ वर्ष वाद-विवाद होइत बीतल। कतेको तरहक आपस मे वार्ता, गाम-समाजक लोक द्वारा बुझारत, आदि-इत्यादि होइतो आखिरकार सुपनेखेक रांगल नख मे राम रंगायल रहलाह।

जेना रामायणक असली सीता पितास्वरूप वाल्मीकि केर आश्रम मे रहि लव-कुश केर जन्म, पालन-पोषण आ युद्ध-कौशल आदिक विधिवत् शिक्षा देलीह, ठीक तहिना ईहो सीता सन्तान सब केँ पढ़ा-लिखा सभ्य नागरिक बनौलीह। अपन राम केँ लाइन पर अनबाक लेल कोर्ट मे केस सेहो कयलीह, एहि चलते राम आर तामसे फुच्च भ’ गेलाह, एतेक बुद्धिमान आ विवेकी रहितो ओ एको बेर ई नहि सोचलखिन जे आखिर कोनो सीता अपन राम पर अधिकार जतेबाक लेल अपना तरहें केहनो स्टेप उठा सकैत छलीह, से ओहो उठेलीह… राम एकरा उल्टा बुझि आर दूरी बना लेलनि। कोर्ट मे सेहो गछलखिन जे सीता केँ भरण-पोषण (गुजारा भत्ता) देथिन, लेकिन सीता ताहू लेल लिल्लोहे रहली, किछु दिन थोड़-बहुत भेटलनि आ बाद मे ‘कैसा रंगा तेरा’। लेकिन स्वयं केर हुनर आ बुद्धि सँ ओ प्राइवेट संस्था मे काज पकड़ि लेलीह, एहि मे राम केर सृजनधर्मक प्रभाव सेहो काज अयलनि… लेकिन किछुए समय मे ई कुटिल समाज के लोक हुनका संग एतबा पीड़ादायक टिका-टिप्पणी कयलखिन जे आखिरकार ओ ओहि काज सँ बाहर भेनाय उचित बुझलीह…! बहुत कष्ट मे जीवन रहनि, लेकिन सन्तान सब केँ कनिकबो कष्ट नहि हुए से सोचि अपन नैहर, भाइ आदिक सहयोग सँ जेना-तेना बढैत रहलीह। एक बीच त एतबा बीमार पड़ि गेलीह आ एहेन मानसिक अवसाद मे पड़ि गेलीह जे जान तक बचतनि कि नहि ताहू पर आफद भ’ गेल छलन्हि… लेकिन भाइ आ परिवारक सहारा पाबि कोहुना ओहि कालचक्र सँ सेहो बाहर होय मे सक्षम भेलीह। आइ एकटा कुटीर उद्योग संचालित करैत अपन स्वाभिमान संग सन्तानक सभक भविष्य निर्माण मे लागल छथि। हुनका आइयो ई उम्मीद छन्हि जे राम आइ न काल्हि अपन सीता लग अवश्य घुरता। अपन किरदानी पर अपने पश्चाताप अवश्य करता।

एहि कथा मे सीताक चरित्र लगभग त्रेतायुग जेकाँ ओहिना निष्ठा सँ भरल आ संघर्ष केँ पचबयवला स्पष्ट अछि, बाकी कलियुग के राम केँ अपन चर्या पर बेर-बेर समीक्षा करबाक जरूरत अछि। एहनो नहि छैक जे आजुक सब सीता एकदम निष्ठावाने छथि, बहुत रास केस मे सीता द्वारा सेहो एहेन कार्य कयल जाइछ जे राम केँ पीड़ा देल करैत छैक। धरि, एहि कथाक सीता बिल्कुल वैह सीता जेकाँ अपन चरित्र प्रस्तुत कयलीह अछि, तेँ अपन पाठक सब लेल ई कथा लिखल अछि।

हरिः हरः!!