भोज-भात सँ आगुओ हमर समाजक समृद्ध लोकक किछु कर्तव्य बनैत अछि

श्रेष्ठ आचरण ओ उदाहरणक अनुकरण सँ पाछू पड़ल समाज आगू बढ़ैत अछि।

– ई उक्ति गीता मे श्रीकृष्णक सुन्दर कथन पर आधारित अछि।

सन्दर्भ राखय चाहब आजुक ‘बब्बर सिंह देव कुमारी थापा सेवा गुठी’ द्वारा प्रत्येक वर्ष देल जायवला दुइ गोट महत्वपूर्ण साहित्यिक सेवा पुरस्कार पर।

आइ मैथिलीभाषी समाज केँ एकर अनुकरण लेल हम ई बात सोझाँ राखि रहल छी। ओना ई गुठी द्वारा विगत मे हमरा सभक मैथिली स्रष्टा श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि केँ सेहो पुरस्कृत कयल गेल छन्हि, श्री प्रेमर्षि मैथिली सहित नेपाली भाषा-साहित्य मे सेहो उल्लेख्य योगदान करैत आबि रहल छथि आ तेँ एहि गुठीक प्रतिष्ठित पुरस्कार हुनका भेटल छन्हि। एहि वर्ष फेर दुइ गोट नेपाली साहित्य केँ योगदान देनिहार स्रष्टा केँ ई पुरस्कार आइ देल जेतनि।

गुठीक सचिव आदरणीय Dinesh Shrestha सर प्रत्येक बेर हमरो आमंत्रित करैत छथि। बहुत नीक लगैत अछि। सर हमर पूज्य अभिभावक सेहो छथि। करियर के श्रीगणेश अर्निको बोर्डिंग स्कूल के प्राइमरी सेक्सन मे मैथ्स (गणित) शिक्षक के रूप मे भेल छल। ताहि समय सर हमर वाइस प्रिन्सिपल रहथि। सर सब दिन एक प्रखर आ विवेवान शिक्षक के रूप मे हमरा देखाइत रहल छथि। ओ जे छवि पहिल-पहिल बैसल हमर मोन मे, वैह बनल अछि एखनहुँ हमर मोन मे।

मैथिलीभाषी समाज आइ कइएक मामला मे बहुत पाछू (backward) अछि। मोरंग के ऐतिहासिक भूमि मे मैथिलीक ऊर्वरता पाछू पड़बाक बहुतो रास कारण अछि। लेकिन एकटा कारण ई अछि जे ‘हारल मानसिकता’ सँ अपन भाषा-संस्कृति आ समाज प्रति समृद्ध मैथिलक नकारात्मक किंवा निराशाजनक अथवा उदासीन सोच राखब।

हालहि मैथिल संचारकर्मी संघ द्वारा किछु पुरस्कार सभक घोषणा कयल गेल। घोषणा अनुरूप लगभग ५ गोट स्रष्टा केँ पुरस्कृत सेहो कयल गेलन्हि। परञ्च ओहि घोषित पुरस्कार सभक पाछाँ आधार कतेक मजबूती सँ राखल गेल ताहि पर ओहि पुरस्कार वितरण कार्यक्रमक प्रमुख अतिथि श्रद्धेय स्रष्टा आ वर्तमान समय राष्ट्रीय समाचार संस्थान नेपालक राष्ट्रीय प्रमुख श्री Dharmendra Jha भाइजीक सुझाव मे आयल जे कोनो पुरस्कारक पाछू एकटा ठोस आ दीर्घकालिक सोच नहि होयत त मनमर्जी सँ कहियो पुरस्कार देल जायत, कहियो नहि देल जायत।

कहबाक तात्पर्य ई अछि जे कोनो पिछड़ल समाज केँ आगू बढेबाक लेल बिल्कुल ओहिना करबाक चाही जेना प्रस्तुत गुठी कय रहल अछि। कहैत चली जे बब्बर सिंह एक वीर सेनानी महापुरुष रहथि, हुनक मृत्यु उपरान्त हुनक सन्तति लोकनि जे कि आइ सब तरहें सक्षम आ सामर्थ्यवान् छथि ओ सब एकटा अक्षय कोष ठाढ़ कयलनि, पुनः ओहि महापुरुषक धर्मपत्नी जिनका हम देखनहियो छी, जे साक्षात् देवीरूप के महिला छलीह, आदरणीया देव कुमारी थापाक मृत्योपरान्त पुनः ओ सन्तति लोकनि मिलिकय हुनकहु नाम पर पुरस्कार वितरण के संकल्प लेलनि, ताहि लेल उचित अक्षय कोष (फिक्स्ड डिपोजिट) केँ आर बढ़ा देलनि। आइ, उपरोक्त दुइ पुरस्कार के वितरण लेल हरेक वर्ष एकटा भव्य समारोह करैत पुरस्कार वितरण कयल जाइत अछि। कहय मे हर्ज नहि, जतबे पुरस्कार राशि अछि, ताहि सँ बेसिये समाजक लोक केँ जमा कय केँ खूब भव्यतापूर्वक स्वागत-सत्कार करैत, चर्चा आ विमर्श करैत उपरोक्त दुइ गोट महापुरुष लोकनिक स्मरण करैत श्रद्धाञ्जलि दैत पुरस्कार वितरण कयल जाइछ।

कि हमर मैथिलीभाषी मात्र माय-बापक श्राद्ध लेल छहर-महर-तीन-पहर वला भोज टा करता?

कि एहि तरहक ठोस आ दीर्घकालिक सोच सँ अपन भाषा-साहित्य ओ समाज केँ आगू बढ़ेबाक कोनो सोच नहि रखताह?

बस, किछु प्रश्न दिमाग मे आयल से राखल। शेष, किनको कष्ट देबाक हमर मोन एकदम नहि, आ न हम भोजक विरोधी छी, ओहो एक तरहें सर्वकल्याणकारी सोचे थिक हमर समाजक लेल… तथापि, जरूरत ई छैक जे पाछू पड़ल समाज केँ आगू बढ़ेबाक दिशा मे सेहो किछु डेग बढ़ायल जाय।

अस्तु! समय दय पढ़ि लेलहुँ ताहि लेल हार्दिक आभार!!

हरिः हरः!!